ये है राम और रामायण की वास्तविकता । How old is Ramayana
ये है राम और रामायण की वास्तविकता । How old is Ramayana
अगर आप किसी भी ब्राह्मण से पूछो कि धरती पर पहले राम का युग था या बुद्ध का ? तो वह झट से जवाब देगा कि राम का। यूँ तो ब्राह्मण राम और बुद्ध दोनो को विष्णु का अवतार (जो कोरी गप्प हैं) मानते है, पर उनका कहना है कि पहले रामावतार हुआ, फिर कृष्णावतार और तत्पश्चात बुद्ध का आगमन हुआ। लेकिन आप कुछ श्रोतो और पौराणिक ग्रंथो का अध्ययन करे तो मामला जरा पेचीदा लगता है।
गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल मे कभी भी राम का उल्लेख नही किया, या उनके दौर मे राम का अस्तित्व ही नही रहा होगा। पर राम ने अपने मुँह से बुद्ध का नाम लिया है, मतलब राम के समय मे बुद्ध का अस्तित्व था। ब्राह्मण बड़ी चालाकी से हमेशा एक साजिश करते हैं, हिन्दुओं को यह पता है कि भारत मे नई चीजों की अपेक्षा प्राचीन चीजों का अधिक महत्व है, इसीलिये जब कभी भी कोई बड़ा मन्दिर बनता है तो ब्राह्मण यह कहकर प्रचारित करते हैं कि यह मन्दिर बहुत पुराना है। द्वापरयुग मे यहाँ पाण्डवों ने पूजा की थी। हर मन्दिर से इसी तरह की झूठी कहानियाँ जोड़ दी जाती है, ताकि उस मन्दिर का महत्व बढ़ जाये और वहाँ चढ़ावे मे कमी ना आये।
बस ऐसे ही हिन्दू(ब्राह्मण) धर्म भी है, ब्राह्मण हिन्दू धर्म को अति प्राचीन बताते हैं, पर कई बार ऐसा लगता है कि हिन्दू धर्म बौद्ध धम्म के बाद खड़ा किया गया। ऐसे ही यह भी प्रतीत होता है कि राम भी बुद्ध के बाद के हैं। इसका एक उदाहरण बाल्मीकि रामायण मे भी मिलता है। बाल्मीकि रामायण (गीताप्रेस) अयोध्याकाण्ड सर्ग-109 पृष्ठ-359 पर श्रीराम अपने ही एक हितैषी 'जाबालि' से कहते है कि -"जैसे चोर दण्डनीय होता है, उसी प्रकार वेदविरोधी बुद्ध (बौद्धधर्म को मानने वाला) भी दण्डनीय है।"यहाँ रामजी ने बौद्धो को दण्ड देने की बात की है। अर्थात राम के समय मे बौद्ध थे, तो यह स्पष्ट है कि राम का अस्तित्व बुद्ध के बाद खड़ा किया गया।
इसी श्लोक मे राम नास्तिकों को भी दण्ड देने की बात करते है और कहते है -"नास्तिकों (चार्वाको) को भी इसी प्रकार दण्ड देना चाहिये, इसलिये राजा को चाहिये कि नास्तिक को भी चोर की भाति दण्ड दें।" यानि राम को नास्तिकों से भी घृणा थी जो उन्हें दण्ड देने को कहते हैं।
वाल्मीकि रामायण में श्रीकृष्ण का ज़िक्र करने की गलती
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महर्षि वाल्मीकि को कम से कम काल खंड का तो ध्यान रखना चाहिये था। द्वापर में जन्मे कृष्ण का त्रेता में जिक्र कर दिया
शार्ड्गधन्वा ह्रषिकेशः पुरुषः पुरुषोत्तमः।
अजितः खड्गधृग् विष्णुः कृष्णश्चैव बृहद्वलः।।
अर्थात्:- आप ही शार्ड्गधन्वा, ह्रषिकेश अन्तर्यामी पुरुष और पुरुषोत्तम हैं। आप किसी से पराजित नहीं होते। आप नन्दक नामक खड्ग धारण करने वाले विष्णु और महाबली कृष्ण हैं।
महेन्द्रश्च कृतो राजा बलिं बद्धवा सुदारुणम्।
सीता लक्ष्मीर्भवान् विष्णुर्देवः कृष्णः प्रजापति।।
अर्थात्:- आपने अत्यन्त दारूण दैत्यराज बलि को बांधकर इन्द्र को तीनों लोकों का राजा बनाया था। सीता साक्षात लक्ष्मी हैं और आप भगवान विष्णु हैं। आप ही सच्चिदानंद स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण एवं प्रजापति हैं। ऐसी भी क्या जल्दी थी वाल्मीकि महाराज...आराम से ही लिख लेते। आपने तो काल खंड बदलकर कांड ही कर डाला
रामसेतु का सच
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2. श्रुतिमान,
3. केतुमान,
4. गतिमान,
5. धृतिमान थे।

देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का. 2-
"राम" एक काल्प्निक पात्र थे, पुरातत्व विभाग द्वारा कई वर्षो के शोध के बाद 2008 मे ये सिद्ध हुआ के रामसेतू 18 लाख वर्ष पूर्व "Tectonic Plates" के घर्षण द्वारा उत्पन्न हुआ, जो समुद्र तल तक गड़ा हुआ है| जबकि मानव जाति के जन्मे हुए अभी 1 लाख वर्ष भी नही हुए, करोङो वर्षो पूर्व के डायनासौर्स (Dianasaurs) के अवशेष भी मिल गये मगर वानर सेना का कोई अता पता नही | इस प्रकार के सेतू जापान - कोरिया के बीच मे भी है, और इससे कई गुना बड़ा सेतु तुर्की द्वीप मे भी है|
राम सेतु (Adams Bridge) इसे अधिक पुराना होने के कारन आदम पुल भी कहाँ जाता है । राम सेतु (Adams Bridge) पर नासा ने रिसर्च कर बताया कि यह पुल प्रकृति निर्मित है, मानव निर्मित नही । यह समुद्र में पाये जाने वाले मूँगा (Coral) में पाये जाने वाले केल्शियम कार्बोनेट के छोड़े जाने से निर्मित श्रंखला है । जिसकी लंबाई 30 Km. है। नासा ने इसके सैम्पल लेकर रेडियो कार्बन परिक्षण से बताया कि यहसेतु 17.5 लाख वर्ष पुराना है । मूंगा (Coral) समुद्र के कम गहरे पानी में जमा होकर श्रंखला बनाते है। विश्व में मूँगा से निर्मित ऐसी 10 श्रृंखलाएँ है इनमे से सबसे बड़ी ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर है । इसकी लंबाई रामसेतु से भी कई गुणा अधिक 2500 Km है। विश्व की इन सभी 10 मूँगा श्रंखलाओ को सेटेलाईट के द्वारा देखा जा चूका है। नासा के रिसर्च अनुसार रामसेतु जब 17.5 लाख वर्ष पुराना है, तो इसे राम निर्मित कैसे कहाँ जा सकता है। जबकि मानव ने खेती करना/कपडे पहनना 8000 हजार वर्ष ईसा पूर्व सीखा है । मानव ने लोहा (Iron) की खोज 1500 ईसा पूर्व की है। मानव ने लिखना 1300 ईसा पूर्व सीखा है। फिर राम नाम लिखकर दुनियाँ के पहले पशु सिविल इंजनियर भालू नल-नील ने इसे कैसे बना डाला?

हिन्दू ग्रंथों में युगों की बात कही गयी है और युग बदलने की गणना को करोड़ों सालों में गिना जाता है। बताया जाता है कि त्रेता युग में राम आये और द्वापर युग में कृष्ण। पर इस पोस्ट में हम ये साबित करेंगे कि त्रेता द्वापर अन्य सभी युग बदलने और युगों की करोड़ों सालों की गणना सब झूठ है और इस ही से पुनर जन्म और अन्य जन्म में जानवर कीड़ा बनने की शिक्षा सब झूठ साबित हो जाएंगे।
वाल्मीकि रामायण में श्रीकृष्ण की चर्चा ये साबित करती है कि ये सब ग्रंथ एक ही कालखण्ड में लिखे गए और वो कालखण्ड था गौतम बुद्ध का।
शार्ड्गधन्वा ह्रषिकेशः पुरुषः पुरुषोत्तमः।
अजितः खड्गधृग् विष्णुः कृष्णश्चैव बृहद्वलः।।
अर्थात्:- आप ही शार्ड्गधन्वा, ह्रषिकेश अन्तर्यामी पुरुष और पुरुषोत्तम हैं। आप किसी से पराजित नहीं होते। आप नन्दक नामक खड्ग धारण करने वाले विष्णु और महाबली कृष्ण हैं।
महेन्द्रश्च कृतो राजा बलिं बद्धवा सुदारुणम्।
सीता लक्ष्मीर्भवान् विष्णुर्देवः कृष्णः प्रजापति।।
अर्थात्:- आपने अत्यन्त दारूण दैत्यराज बलि को बांधकर इन्द्र को तीनों लोकों का राजा बनाया था। सीता साक्षात लक्ष्मी हैं और आप भगवान विष्णु हैं। आप ही सच्चिदानंद स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण एवं प्रजापति हैं।
ऐसी भी क्या जल्दी थी वाल्मीकि महाराज...आराम से ही लिख लेते। आपने तो काल खंड बदलकर कांड ही कर डाला☺😄
वाल्मीकि रामायण में नहीं हैं ये प्रसंग
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कुछ ऐसे झूंठे और काल्पनिक प्रसंग जो वाल्मीकि की रामायण में नहीं हैं----
1 सीता-स्वंवर का प्रसंग
2. लक्ष्मण-रेखा का प्रसंग
3 राम द्वारा शबरी के झूंठे बेर खाना
4 अंगद के जड़ पैर का प्रसंग
5 रामसेतु शब्द
6 गुहा द्वारा यह सोचना कि कहीं राम के पैर रखने से उसकी नाव अहिल्या की तरह कोई जीव न बन जाए
7 सीता की अग्नि-परीक्षा
8 राम द्वारा धोबी के मुख से लांक्षन सुनने का प्रसंग
मुगलकाल का तुलसी बड़ा अंतर्यामी था जो बात पुरातन समय में बाल्मीकि को पता नहीं थी, तुलसी को पता चल गईं !! इसे कहते हैं गप्प हांकना !!
राम का अस्तित्व सिद्ध करो या स्विकार करो कि रामायण काल्पनिक ग्रंथ है
----------------- एक समय पर दो तरह के इंसान कैसे हो सकते हैं? एक पूंछ वाला और एक बिना पूंछ वाला दोनों मनुष्य की तरह बोलते हैं दोनों के पिता राजा हैं क्या ऐसा संभव है??
- मेंढक से मंदोदरी कैसे बन सकती हैं/ पैदा हो सकती है?
- लंगोटी का दाग छुड़ाने से अंगद कैसे पैदा हो सकता है?
- पक्षी मनुष्य की तरह कैसे काम कर सकता है जैसे गिद्धराज?
- किसी मनुष्य के 10 सिर हो ही नहीं सकते इतिहास या पुरातत्व द्वारा आज तक ये सिद्ध नहीं हो पाया कि किसी इंसान के 10 सिर 20 भुजाओं वाला कोई संतान नहीं है
- जिस लंका की आप बात कर रहे हो वह लंका 1972 में की लंका नाम पड़ा इसके पहले सिलोन से पहले सिहाली इत्यादि नाम थे तो असली लंका कहा है???
- घडे से लड़की कैसे पैदा हो सकती है?
- एक माह में मकरध्वज कैसे पैदा हुए?
- मछली से कोई मनुष्य कैसे पैदा हो सकता है??
- एक माह में मकरध्वज पातालपुरी में नौकरी करने लगे क्या ये संभव है?? अगर संभव है तो साबित करो
- 5000 साल पुरानी द्रविड़ भाषा को कोई पढ़ नहीं सकता तो 70000 साल पहले अंगद किस लैंग्वेज भाषा में लिख रहा था?
- सम्राट अशोक के काल में अयोध्या का नाम साकेत था। अयोध्या के बाद साकेत और साकेत के बाद अयोध्या नाम कैसे पड़ा??
- पुरातत्व विभाग की तरफ से एक भी प्रमाण हो तो बताओ कि राम राज्य था?
- सात घोड़ों से सूर्य कैसे चल रहा आप की पुस्तकें कह रही हैं जबकि विज्ञान कह रहा है कि सूर्य चलता ही नहीं है।
- जब राम का राज्याभिषेक हो रहा था तब सूर्य एक महीने के लिए रुक गया था जबकि सूर्य चलता ही नहीं है अगर सूर्य चलता है तो सिद्ध करो /साबित करो
- सूर्य खाने गए हनुमान की स्पीड और कद क्या था??
- बालमीक रामायण कहती है चैत अमावस्या को रावण का वध होता है तुलसीकृत रामायण कहती है कुमार दशहरा को रावण का वध होता है तो सच क्या है?
- सोने की खोज हुए 4000 साल हुए हैं तो 70000 साल पहले सोने की लंका कहां से आई थी?
- सोने का महल था या सोने की लंका 6000 साल पूर्व सभी चमड़े का परिधान पहनते थे तो 70000 साल पूर्व कपड़े राम कहां से पहनते थे?
- जब ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण पैदा हुआ तो भारत में ही क्यों पैदा हुआ जबकि ब्रह्मा ने ब्रह्मांड रचाया तो चीन अमेरिका थाईलैंड जापान दक्षिण कोरिया वगैरह वगैरह दुनिया के बाकी देशों में ब्रम्हा की और बाकी देवताओं की वैसे ही पहचान होनी चाहिए थी।
- सब ब्राह्मणों द्वारा रची गयी झूठी कहानियां है । जिनसे लोग बेवकूफ बने हुए हैं।
राम का काल महाभारत से अधिक पुराना माना जाता है।
-------------------------अगर दीवाली और दशहरे का संबंध राम से होता तो मथुरा और गोकुल में कृष्ण ने कभी तो दीवाली दशहरा मनाया होता। पूरी महाभारत जिसमें शांतनु के विवाह से लेकर जनमेजय के नाग-यज्ञ तक करीब 100 साल के घटनाक्रम का वर्णन है में दीपावली और दशहरा की चर्चा एक बार भी नहीं हुई। जैसा कि लोग कहते हैं कि राम के अयोध्या आगमन से ही हर साल दीपावली और दशहरा मनाया जा रहा है तो रामचरित मानस में भी इसका उल्लेख होना चाहिए था और महाभारत में भी इसका उल्लेख होना चाहिए था। और और तो और राम इतने बड़े भगवान थे और उन्होनें इतने बड़े रावण को मारा था कि तीनों लोक में उनका नाम था और ताज्जुब की बात कि महाभारत की करोड़ों की जनता, मथुरा, गोकुल और वृन्दावन की जनता हिन्दू होते हुए भी न कभी राम नवमी मनाती थी, न दीपावली और न ही दशहरा। धन्य हो पाखंडियो।
हनुमान और उसके पांच_भाई
-----------------------ब्रह्मांडपुराण के अनुसार हनुमान के पांच सगे भाई बताए गये हैं। इसी पुराण में हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन पढने को मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि पांडु पुत्रों में कर्ण की तरहं हनुमान भी तब पैदा हुए जब उनकी माँ " बिना शादी करवाए कुवांरी लकड़ियाँ थीं और कर्ण की तरहं ही हनुमान भी अपने पांचों भाइयों में सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के कुल 6 पुत्र थे। सबसे बडे बजरंगबली हनुमान के बाद इनके भाई क्रमशः :-
1. मतिमान,2. श्रुतिमान,
3. केतुमान,
4. गतिमान,
5. धृतिमान थे।
इन सभी के संतानें भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। अन्य कथाओं में कर्ण सूर्य का बेटा था जबकि हनुमान सूर्य का जवाईं बना। कर्ण की मां को दुर्वासा ऋषि ने बच्चे पैदा करने का वरदान दिया और उसी दुर्वासा ऋषि ने अंजनी को कुवांरी मां बनने का शाप दिया। हनुमान के बारे में जानकारी वैसे तो अनेकों रामायणें, रामचरितमानस, महाभारत और अनेकों धर्म के धर्म ग्रंथों में मिलती है। लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध हैं और अधिकांश लोगों ने खरीद कर पढा भी नही है, जिनमें से #ब्रह्मांड_पुराण' उन्हीं में से एक है। रावण के दस सिर व बीस हाथ बताए जाते हैं जबकि हनुमान के पांच सिर व दस हाथ वाली मूर्तियाँ व तस्वीरें देखने को मिलती हैं।
राम के समय को तुम रामराज्य कहते हो।
हालात आज से भी बुरे थे। कभी भूल कर रामराज्य फिर मत ले आना! एक बार जो भूल हो गई, हो गई। अब दुबारा मत करना। राम के राज्य में आदमी बाजारों में गुलाम की तरह बिकते थे। कम से कम आज आदमी बाजार में गुलामों की तरह तो नहीं बिकता! और जब आदमी गुलामों की तरह बिकते रहे होंगे, तो दरिद्रता निश्चित रही होगी, नहीं तो कोई बिकेगा कैसे ? किसलिए बिकेगा ? दीन और दरिद्र ही बिकते होंगे, कोई अमीर तो बाजारों में बिकने न जाएंगे। कोई टाटा, बिड़ला, डालमिया तो बाजारों में बिकेंगे नहीं।
स्त्रियां बाजारों में बिकती थीं! वे स्त्रियां गरीबों की स्त्रियां ही होंगी। उनकी ही बेटियां होंगी। कोई सीता तो बाजार में नहीं बिकती थी। उसका तो स्वयंवर होता था। तो किनकी बच्चियां बिकती थीं बाजारों में ? और हालात निश्चित ही भयंकर रहे होंगे। क्योंकि बाजारों में ये बिकती स्त्रियां और लोगआदमी और औरतें दोनों, विशेषकर स्त्रियां-राजा तो खरीदते ही खरीदते थे, धनपति तो खरीदते ही खरीदते थे, जिनको तुम ऋषि-मुनि कहते हो, वे भी खरीदते थे! गजब की दुनिया थी! ऋषि-मुनि भी बाजारों में बिकती हुई स्त्रियों को खरीदते थे!
अब तो हम भूल ही गए वधु शब्द का असली अर्थ। अब तो हम शादी होती है नई-नई, तो वर-वधु को आशीर्वाद देने जाते हैं। हमको पता ही नहीं कि हम किसको आशीर्वाद दे रहे हैं! राम के समय में, और राम के पहले भी–वधु का अर्थ होता था, खरीदी गई स्त्री! जिसके साथ तुम्हें पत्नी जैसा व्यवहार करने का हक है, लेकिन उसके बच्चों को तुम्हारी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा! पत्नी और वधु में यही फर्क था। सभी पत्नियां वधु नहीं थीं, और सभी वधुएं पत्नियां नहीं थीं। वधु नंबर दो की पत्नी थी। जैसे नंबर दो की बही होती है न, जिसमें चोरी-चपाटी का सब लिखते रहते हैं! ऐसी नंबर दो की पत्नी थी वधु।
ऋषि-मुनि भी वधुएं रखते थे! और तुमको यही भ्रांति है कि ऋषि-मुनि गजब के लोग थे। कुछ खास गजब के लोग नहीं थे। वैसे ऋषि-मुनि अभी भी तुम्हें मिल जाएंगे। इन ऋषि-मुनियों में और तुम्हारे पुराने ऋषि-मुनियों में बहुत फर्क मत पाना तुम। कम से कम इनकी वधुएं तो नहीं हैं! कम से कम ये बाजार से स्त्रियां तो नहीं खरीद ले आते! इतना बुरा आदमी तो आज पाना मुश्किल है जो बाजार से स्त्री खरीद कर लाए। आज यह बात ही अमानवीय मालूम होगी! मगर यह जारी थी!
रामराज्य में शूद्र को हक नहीं था वेद पढ़ने का! यह तो कल्पना के बाहर की बात थी, कि डाक्टर अम्बेडकर जैसा अतिशूद्र और राम के समय में भारत के विधान का रचयिता हो सकता था! असंभव !! खुद राम ने एक शूद्र के कानों में सीसा पिघलवा कर भरवा दिया था–गरम सीसा, उबलता हुआ सीसा! क्योंकि उसने चोरी से, कहीं वेद के मंत्र पढ़े जा रहे थे, वे छिप कर सुन लिए थे। यह उसका पाप था; यह उसका अपराध था। और राम तुम्हारे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं! राम को तुम अवतार कहते हो!
महात्मा गांधी रामराज्य को फिर से लाना चाहते थे। क्या करना है? शूद्रों के कानों में फिर से सीसा पिघलवा कर भरवाना है ? उसके कान तो फूट ही गए होंगे। शायद मस्तिष्क भी विकृत हो गया होगा। उस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना! शायद आंखें भी खराब हो गई होंगी। क्योंकि ये सब जुड़े हैं; कान, आंख, नाक, मस्तिष्क, सब जुड़े हैं। और दोनों कानों में अगर सीसा उबलता हुआ…!
उबलते हुए शीशे की जरा सोचो! उबलता हुआ सीसा जब कानों में भर दिया गया होगा, तो चला गया होगा पर्दों को तोड़ कर, भीतर मांस-मज्जा तक को प्रवेश कर गया होगा; मस्तिष्क के स्नायुओं तक को जला गया होगा। फिर इस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना है! धर्म का कार्य पूर्ण हो गया। ब्राह्मणों ने आशीर्वाद दिया कि राम ने धर्म की रक्षा की। यह धर्म की रक्षा थी! और तुम कहते हो, “मौजूदा हालात खराब हैं!

धोखेबाज पुष्यमित्र शुंग (राम)
- मौर्य साम्राज्य के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट बृहद्रथ मौर्य की साजिश के तहत धोखे से हत्या करने वाला हत्यारा ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग
- अखण्ड भारत में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में अखण्ड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान के वंशज मौर्य वंश के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या उन्हीं के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से की थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।
- उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का खुलेआम कत्लेआम किया था। पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों व यहाँ की जनता पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था
- उत्तर -पश्चिम क्षेत्र पर यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था। राजा मिलिंद बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, इसके बाद पुष्यमित्र शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन धर्म के अनुयायियों की शरण ली।
- जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया*। *पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर पश्चिम की ओर धकेल दिया*।
- इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग राम ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया। पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी
- राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग राम ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, बौद्ध भिक्षुओं का सर (सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ। राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे । इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था*।
- राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश "सरयू" हो गया*।
- इसी "सरयू" नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में "सरयू" नदी के किनारे हुई।
- बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए। तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा' कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे की आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे*
- तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रों, देवी देवताओं को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी*।
- ध्यान रहे उक्त बृहद्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था, ना ही इस तरह की संस्क्रति थी। वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है*।
- पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी " सच्ची रामायण" पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर* *412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बीच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला* ।
- जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य सही है। सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि "रामायण" नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातात्विक कोई आधार नही है*।
- अथार्त् 100% फर्जी व काल्पनिक है*।
गन्दी रामायण
संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है। लेकिन तुलसी की रामायण, इसका विरोध करने की वकालत करती है।
अधम जाति में विद्या पाए,
भयहु यथाअहि दूध पिलाए।
अर्थात जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं।
संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है।
लेकिन तुलसी की रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच नीच मानने की वकालत करती है।
देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का. 2-
जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,
स्वपच किरात कौल कलवारा।
देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1), उत्तर कांड अभीर (अहीर) यवन किरात खल स्वपचादि
अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी,आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं। यह संविधान की धारा 14, 15 का उल्लंघन है। संविधान सब की बराबरी की बात करता है। तुलसी की रामायण जाति के आधार पर *ऊंच-नीच* की बात करती है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है।
देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1), उत्तर कांड अभीर (अहीर) यवन किरात खल स्वपचादि
हिन्दू धर्म की असलियत जो SC/ST/OC अपने आपको हिन्दू समझते है वे ध्यान दे ।
- एक मंदिर में बिना नहाए भी जा सकता है दूसरा नहा-धोकर भी मंदिर में नहीं घुस सकता, तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ? एक का पाँव पूजने का और दूसरे की पीठ पूजने का ग्रंथ आदेश देते हैं, तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
- कोई आरक्षण वाला है कोई आरक्षण वाला नहीं है, तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
- एक आरक्षण से सहमत है दूसरा आरक्षण का विरोधी है, तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
- एक कायम उच्च है और एक कायम निम्न है, तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
- एक लगातार सत्ता में रहता है दूसरा लगातार सत्ता से बाहर है, तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
- एक सभी संवैधानिक पदों पर है दूसरा वैधानिक हक से भी वंचित है , तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
- हिन्दू धर्म है या सत्ता पाने का एक राजनीतिक षड्यंत्र है ?*
- हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को अपनी बेटी नहीं देता है ।
- हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को अपनी थाली में रोटी नहीं देता है ।
- हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को मान नहीं देता, सम्मान नहीं देता,
- हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के ही अधिकार छीन लेता है ।
- हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू गरीबों का पेट काट लेता
राम को भारत का बताने वाले तथाकथित कट्टर हिन्दू राम को भारतवंशी कहते हैं। पर जब यूनेस्को ने इस दावे के विरुद्ध राम को अपनी धरोहर और थाईलैंड वासी होने का दावा किया तो हिन्दू राम के भारतवासी होने का एक भी सबूत नही दे पाये और भारत थाईलैंड से केस हार गया।
इस हार को छुपाने के लिए हिन्दू ये बताते हैं कि थाईलैंड में भी राम की पूजा होती है और रामायण थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रंथ है।
जब भारत मे मंडल के खिलाफ कमंडल आंदोलन चला और "आओ अयोध्या चले" के नारे गूंजने लगे तो थाईलैंड सरकार को लगा कि हमारी धरोहर हड़पने का भारत मे आंदोलन चल रहा है तो उन्होंने यूनेस्को में आवेदन देकर अपनी अयोध्या को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित करवा लिया।
भारत के लोग देश के भीतर जिसको चाहे काल्पनिक खड़ा करके बखेड़ा खड़ा कर ले मगर भारत के बाहर बुद्ध ही शुद्ध है यह साबित है।
भारत का कोई राष्ट्राध्यक्ष विदेशी धरती पर जाता है तो कभी नहीं कहेगा कि मैं श्रीराम की धरती से आया हूँ क्योंकि थाईलैंड अंतर्राष्ट्रीय अदालत में कानूनी कार्यवाही कर देगा।
यह गलती न हो जाएं इसलिए दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बुद्ध की प्रतिमा लगाई गई है ताकि घरेलू गड़बड़ भूलकर, जाते समय बुद्ध को दिमाग मे डालकर जाएं।
भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में भाषण देते समय कहा कि भारत ने युद्ध नहीं बुद्ध दिए!गलती से भी नहीं कह सकते कि हमने श्रीराम दिए है!
यीशु मसीह के नाम से उद्धार पायें, वो किसी धर्म का नहीं बल्कि समस्त मानव जाती का प्रभु है