Life and Teachings of Lord Krishna । जानिए श्री कृष्ण का जीवन और चरित्र


वासुदेव नंदन कृष्ण ‘लीला पुरुषोत्तम’ अर्थात कृष्ण अपनी अनोखी लीलाओ के कारण जन सामान्य में अधिक लोकप्रिय रहे हैं. संभवत: कृष्ण का बचपन नंदगांव और गोकुल में गोपियों के बीच बीता। कृष्ण औरतो के मामले में शुरू से ही स्वतंत्र विचार के थे। 
पुराणों के अनुसार उनका मिजाज़ लड़कपन से ही आशिकाना मालूम होता हैं। गोपियों के साथ कृष्ण का यौन सम्बन्ध था इस विषय में लगभग सारा कृष्ण साहित्य एकमत हैं। इन गोपियों में विवाहित और कुमारी दोनों प्रकार की थी वे अपने पतियों, पिताओ और भाइयो के कहने पर भी नहीं रूकती थी: 

‘ ता: वार्यमाणा: पतिभि: 
पितृभिभ्रातृभि स्तथा, कृष्ण 
गोपांगना रात्रौं रमयंती रतिप्रिया :’ 
-विष्णुपुराण, 5, 13/59. 


अर्थात वे रतिप्रिय गोपियाँ अपने पतियों, पिताओं और भाइयो के रोकने पर भी रात में कृष्ण के साथ रमण करती थी। कृष्ण और गोपियों का अनुचित सम्बन्ध था यह बात भागवत में स्पष्ट रूप से मोजूद हैं। ईश्वर अथवा उस के अवतार माने जाने वाले कृष्ण का जन सामान्य के समक्ष अपने ही गाँव की बहु बेटियों के साथ सम्बन्ध रखना क्या आदर्श था ? 

कृष्ण ने गोपियों के साथ साथ ठंडी बालू वाले नदी पुलिन पर प्रवेश कर के रमण किया. वह स्थान कुमुद की चंचल और सुगन्धित वायु आनंददायक बन रहा था. बाहे फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना, बाल (चोटी) खींचना, जंघाओं पर हाथ फेरना, तिरछी निगाह से देखना, हंसीमजाक करना आदि क्रियाओं से गोपियों में कामवासना बढ़ाते हुए कृष्ण ने रमण किया। 

-श्रीमदभागवत महापुराण 10/29/45 

कृष्ण ने रात रात भर जाग कर अपने साथियो सहित अपने से अधिक अवस्था वाली और माता जैसे दिखने वाली गोपियों को भोगा. 

– आनंद रामायण, राज्य सर्ग 3/47 

कृष्ण के विषय में जो कुछ आगे पुरानो में लिखा हैं उसे लिखते हुए भी शर्म महसूस होती हैं की गोपियों के साथ उसने क्या-क्या किया इसलिए में निचे अब सिर्फ वाले हैं जहा कृष्ण ने गोपियों के यौन क्रियाये की हैं- 

– ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4, अध्याय 
28-6/18, 74, 75, 77, 85, 86, 105, 109,110, 134, 70. 
– ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4,115/86-88 

कृष्ण का सम्बन्ध अनेक नारियों से रहा हैं कृष्ण की विवाहिता पत्नियों की संख्या सोलह हज़ार एक सो आठ बताई जाती हैं. धार्मिक क्षेत्र में कृष्ण के साथ राधा का नाम ही अधिक प्रचलित हैं. कृष्ण की मूर्ति के साथ प्राय: सभी मंदिरों में राधा की मूर्ति हैं. लेकिन आखिर ये राधा थी कौन? ब्रह्मावैवर्त पुराण राधा कृष्ण की मामी बताई गयी हैं। इसी पुराण में राधा की उत्पत्ति कृष्ण के बाए अंग से बताई गयी हैं ‘कृष्ण के बायें भाग से एक कन्या उत्पन्न हुई. गुडवानो ने उसका नाम राधा रखा. 

– ब्रह्मावैवर्त पुराण, 5/25-26 

‘उस राधा का विवाह रायाण नामक वैश्य के साथ कर दिया गया कृष्ण की जो माता यशोदा थी रायाण उनका सगा भाई था। 

– ब्रह्मावैवर्त पुराण, 49/39,41,49 

यदि राधा को कृष्ण के अंग से उत्पन्न माने तो वह उसकी पुत्री हुई . यदि यशोदा के नाते विचार करें तो वह कृष्ण की मामी हुई. दोनों ही दृष्टियो से राधा का कृष्ण के साथ प्रेम अनुचित था और कृष्ण ने अनेको बार राधा के साथ रमण किया था। 

(ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4, अध्याय 15) 
और यहाँ तक विवाह भी कर लिया था 
(ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड ४)



कृष्ण के जन्म के विषय में ये विरोधाभास है।

पुराणो के अनुसार कृष्ण के जन्म की कहानी कुछ इस प्रकार है जब देवकी और वासुदेव को विवाह के बाद विदा किया जा रहा था, तो देवकी के भाई कंस ने निश्चय किया कि वर-वधु को वो खुद अपने गंतव्य तक छोड़ कर आयेगा और उसने रथ की कमान थाम ली। जब वो रथ को लेकर थोड़ी दूर गया तो अचानक आकाशवाणी हुई जिसमे एक अज्ञात व्यक्ति ने ये कहा कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का वध करेगा। यह आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और वह उसी समय देवकी को जान से मारने का निश्चय करता है, किन्तु वासुदेव ने कंस को समझाते हुए कहा कि वो ऐसा ना करे अपनी बहन की हत्या का पाप अपने सिर ना ले, उन्हे जो भी संतान होगी वो (वासुदेव) खुद लाकर कंस को सौप देंगे। कंस वासुदेव पर विश्वास करता है और उन्हें छोड़ देता है। जब वासुदेव के यहां पहला पुत्र जन्म लेता है, तो वासुदेव अपने प्रण के अनुसार बच्चे को कंस को सौपने ले जाते हैं, लेकिन महाराज कंस वासूदेव से कहते हैं कि उन्हें वासुदेव की आठवी संतान से खतरा है। अतः आप इस बच्चे को ले जाइये, ये सुनकर वासुदेव वहां से चले जाते हैं, उसी समय चुग़लखोर नारद वहां प्रकट होता हैं और कंस से कहता हैं कि आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हो, वासुदेव के सभी बच्चों मे भगवान का अंश है। उन्ही मे से किसी के हाथों आपका विनाश होगा। नारद मुनी की बात सुनकर कंस तुरंत वासुदेव के पास जाता है, और वासुदेव तथा देवकी को करागार मे कैद कर देता है तथा उनके पहले पुत्र की हत्या कर देता है, इसी प्रकार कंस एक के बाद एक देवकी के सात पुत्रों की हत्या कर देता है और जब आठवें पुत्र के रुप मे कृष्ण का जन्म होता है, तो वासुदेव उस बच्चे को चमत्कारिक रुप से यशोदा तथा नंदलाल के यहां छोड़ आते हैं जहां पर कृष्ण का पालन पोषण होता है।

वैसे तो यह एक मिर्च मसाला युक्त एक काल्पनिक कथा है लेकिन आपको इस पाखंड को उजागर करने के लिये, जो लोग इसे सत्य मानते है उन लोगो से कुछ झकझोड़ देने वाले प्रश्न हैं। इन प्रश्नों का उत्तर आज तक कोई भी पोंगा पाखंडी योगी पंडा नहीं दे पाया। बस भावुक प्रवचन दे कर कन्नी काट ली और अंधभक्त तो केवल गाली गलोज दे कर काल्प्निक्ता की रक्षा करते ही रहते हैं।

भगवान ने कंस को आकाशवाणी से सुचित क्यों किया कि देवकी का आठवां पुत्र उनका संहार करेगा? क्या भगवान को बाकी के सात निर्दोष मासूम बच्चों की जान से कोई मतलब नही था ?

कृष्ण ने आठवें नम्बर पर ही जन्म क्यों लिया ? अगर वो पहले ऩम्बर पर ही जन्म ले लेता तो बाकी के बच्चों की जान बच जाती।

कंस भी अजीब मुर्ख आदमी था, सोचता था कि बहन देवकी की हत्या करेगा तो पाप लगेगा, तो उसने यह बात क्यों नही सोची कि सात सात निर्दोष मासूम बच्चों की हत्या करने से तो उसे सात गुना पाप लगेगा ?

उस मुर्ख कंस ने यह बात क्यों नहीं सोची कि होने वाले आठ मासूम बच्चों की हत्या करने से तो अच्छा है कि देवकी को ही खत्म कर दिया जाये ? ताकि ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी।

चलो अगर कंस खून खराबा नही करना चाहता था, तो फिर उस मूर्ख ने देवकी और वासुदेव को बंदीगृह मे एक साथ क्यों कैद किया ? क्या उसमे इतनी अक्ल नही थी कि अगर ये दोनों एक साथ रहेंगे तो बच्चे पैदा करेंगे ?

इन काल्पनिक गप्प कथाओं के लेखकों ने तो मूर्खता की सारी हदें पार कर डालीं। सबसे ज्यादा मुर्ख वो हैं जो ऐसी पौराणिक कथाओं को पूर्ण सत्य मानकर भावुक होकर बार बार सुनते पढ़ते और विश्वास करते हैं।
                                  


यीशु मसीह के नाम से उद्धार पायें, वो किसी धर्म का नहीं बल्कि समस्त मानव जाती का प्रभु है