यहेजकेल की पुस्तक का अध्याय-दर-अध्याय सरल हिंदी में सारांश | Book of Ezekiel Explained in Hindi
📖 यहेजकेल अध्याय 1 – स्वर्गीय
दर्शन: परमेश्वर की महिमा का प्रकाश
(Ezekiel 1 – A Heavenly Vision: The Radiance of God’s Glory)
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अध्याय की झलक:
यहेजकेल अध्याय 1 में हमें एक अद्वितीय और गहन
दर्शन के माध्यम से परमेश्वर की महिमा का दर्शन होता है। यह कोई सामान्य दृश्य
नहीं, बल्कि स्वर्गीय रथ, चार जीव,
और चमकदार प्रकाश से भरा हुआ अनुभव है। यहेजकेल को यह दर्शन बंधुआई
की भूमि में मिलता है — यह बताता है कि परमेश्वर सीमाओं से बंधा नहीं है।
🔹
1-3 पद: बंधुआई में बुलाहट – परमेश्वर की आवाज हर जगह पहुंचती है
यहेजकेल यहूदी बंधुओं के साथ बाबुल में है, और
वहीं, कबार नदी के पास, परमेश्वर का
हाथ उस पर आता है।
🕊️
सीख: परमेश्वर हमें बंधनों में भी बुला
सकता है – उसकी आवाज़ कहीं भी गूंज सकती है।
🔹
4-14 पद: चार जीवित प्राणी – परमेश्वर की महिमा के वाहक
चारों जीवों का दर्शन होता है – हर एक के चार चेहरे (मनुष्य,
सिंह, बैल, और उकाब) और
चार पंख। उनके साथ पहिए हैं जो हर दिशा में घूमते हैं, लेकिन
कभी भटकते नहीं। उनके बीच आग की तरह चमकती बिजली है।
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सीख: परमेश्वर की उपस्थिति जीवित,
गतिशील और अद्भुत है – उसकी महिमा को कोई सीमित नहीं कर सकता।
🔹
15-21 पद: घूमते पहिए – आत्मा के अनुसार चलने वाला रथ
हर जीव के साथ एक रहस्यमयी पहिया जुड़ा है जो आत्मा के साथ चलता है।
यह कोई सामान्य रथ नहीं, बल्कि एक दिव्य यंत्र है – जहाँ
आत्मा जाती है, वहीं वे चलते हैं।
🔁
सीख: परमेश्वर की योजनाएँ हर दिशा में
काम करती हैं – वह हर समय और स्थान पर कार्यरत है।
🔹
22-28 पद: सिंहासन और महिमा – परमेश्वर के सिंहासन का दर्शन
चारों जीवों के ऊपर एक विशाल, क्रिस्टल जैसे
विस्तार पर सिंहासन है – और उस पर एक स्वरूप बैठा है जो चमकते धातु और आग जैसा
दिखता है। उसके चारों ओर इंद्रधनुष जैसी ज्योति है — यह परमेश्वर की महिमा है।
👑
सीख: परमेश्वर की महिमा भयभीत करने
वाली, पर साथ ही आश्वस्त करने वाली होती है – वह ऊँचा,
लेकिन सुलभ है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर हर जगह मौजूद है – वह बंधन में भी प्रकट होता है।
✝️
उसका दर्शन हमारी कल्पनाओं से परे है – लेकिन वह अपने लोगों को
दिखाना चाहता है।
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उसकी योजना गतिशील है – आत्मा के अनुसार चलती है।
✝️
उसकी महिमा को देखने से जीवन बदल जाता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“वह दृश्य जो परमेश्वर की महिमा के दर्शन के समान था, जब मैंने उसे देखा, तो मैं मुँह के बल गिर पड़ा।”
(यहेजकेल 1:28)
📖 यहेजकेल
अध्याय 2 – नबी की नियुक्ति: सत्य बोलो, चाहे लोग माने या न मानें
(Ezekiel 2 – Commissioning of a Prophet: Speak the Truth,
Whether They Listen or Not)
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अध्याय की झलक:
इस अध्याय में यहेजकेल को नबी के रूप में बुलाए जाने का दृश्य है।
परमेश्वर उसे एक “बाग़ी जाति” के पास भेजता है – ऐसे लोगों के पास जो सुनना नहीं
चाहते। यह अध्याय इस बात पर ज़ोर देता है कि परमेश्वर के सेवक का कार्य लोगों की
प्रतिक्रिया पर नहीं, बल्कि आज्ञाकारिता पर आधारित होता है।
चाहे लोग सुने या न सुने, सत्य बोलना ही उसका धर्म है।
🔹
1-2 पद: उठ खड़ा हो, आत्मा तुझमें प्रवेश
करेगी
परमेश्वर ने यहेजकेल से कहा – “हे मनुष्य के सन्तान, खड़ा हो जा, मैं तुझसे बात करना चाहता हूँ।”
जैसे ही वचन आया, परमेश्वर का आत्मा यहेजकेल
में प्रवेश करता है और उसे खड़ा कर देता है।
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सीख: परमेश्वर जब बुलाता है, तो वह शक्ति भी देता है — उसकी आत्मा हमें उठाती है।
🔹
3-5 पद: एक बाग़ी राष्ट्र के पास भेजा गया नबी
परमेश्वर कहता है: “मैं तुझे इस्राएलियों के पास भेजता हूँ – जो
बाग़ी हैं, जिन्होंने अब तक मेरी न मानी है।”
फिर भी उसे कहना है – “यहोवा का यह वचन है!”
चाहे वे सुनें या न सुनें, वे जान जाएँगे कि
उनके बीच एक नबी आया है।
🔥
सीख: परमेश्वर का वचन बोलना हमारा
कार्य है — परिणाम की चिंता परमेश्वर को है।
🔹
6-7 पद: मत डर – कांटों और बिच्छुओं के बीच भी खड़े रहो
“मत डर, चाहे तेरा सामना काँटों और बिच्छुओं
से हो, उनके शब्दों और चेहरों से न डर।”
यह आदेश है कि यहेजकेल लोगों के बाग़ी स्वभाव के बावजूद सच्चाई
बोले।
👁️
सीख: सच्चाई बोलना साहस माँगता है — और
परमेश्वर वही साहस देता है।
🔹
8-10 पद: एक कड़वा लेकिन ज़रूरी संदेश
परमेश्वर कहता है: “जो मैं तुझसे कहता हूँ, वही
सुन और खा। विद्रोह मत कर।”
फिर एक पुस्तक पट्ट खुलता है जिसमें विलाप, हाय
और शोक लिखा होता है।
📜
सीख: कभी-कभी परमेश्वर का सन्देश कठोर
होता है, लेकिन वह आत्मिक चंगाई के लिए ज़रूरी होता है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर हमें उठाता है जब हम स्वयं में निर्बल होते हैं।
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सच्चाई बोलना हमारी बुलाहट है – चाहे लोग स्वीकार करें या नहीं।
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भय और विरोध के बावजूद आज्ञाकारिता परमेश्वर को प्रिय है।
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कभी-कभी परमेश्वर के वचन कड़वे लग सकते हैं, लेकिन
वे आत्मा के लिए औषधि होते हैं।
📌
याद रखने योग्य वचन
“तू न डर, चाहे उनके शब्द डरावने हों,
और तू न काँप, चाहे वे काँटों और बिच्छुओं
जैसे हों।”
(यहेजकेल 2:6)
📖 यहेजकेल
अध्याय 3 – संदेश की जिम्मेदारी: खाओ, बोलो,
डरो मत
(Ezekiel 3 – The Responsibility of the Message: Eat,
Speak, Fear Not)
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अध्याय की झलक:
इस अध्याय में यहेजकेल को केवल दर्शन नहीं, बल्कि
कार्य भी सौंपा जाता है। अब समय है कि वह उस संदेश को अपने अंदर ले और फिर उसे
लोगों तक पहुँचाए – चाहे लोग सुनें या न सुनें। परमेश्वर उसे “चौकीदार” बनाता है – एक ऐसा पहरेदार जो खतरे की
चेतावनी देता है। साथ ही उसे यह भी बताया जाता है कि उसकी जिम्मेदारी लोगों की
प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि उसकी खुद की आज्ञाकारिता है।
🔹
1-3 पद: खाओ – परमेश्वर का वचन आत्मसात करो
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह उस पुस्तक को खा जाए जिसमें वचन
लिखे हैं। वह खाता है और कहता है – “यह मेरे मुँह में मधु के समान मीठा था।”
🍯
सीख: पहले परमेश्वर का वचन हमारे अंदर
उतरना चाहिए – तभी हम उसे प्रभावी ढंग से दूसरों को दे सकते हैं।
🔹
4-11 पद: बोलो – एक कठिन श्रोता समूह के बीच में सेवा
यहेजकेल को परमेश्वर इज़राएल के पास भेजता है – ऐसे लोगों के पास जो
विद्रोही और हठी हैं। वे सुनेंगे नहीं, लेकिन नबी का काम है
कि वे वचन सुनाएं।
🗣️
सीख: परमेश्वर हमें लोकप्रियता के लिए
नहीं, सच्चाई बोलने के लिए बुलाता है – परिणाम उसकी चिंता
है।
🔹
12-15 पद: आत्मा की अगुवाई – भारी मन और परमेश्वर का हाथ
आत्मा यहेजकेल को उठा लेती है और वह कबार नदी के किनारे जाकर सात
दिन तक स्तब्ध बैठा रहता है। वह उस बोझ को महसूस करता है जो परमेश्वर ने उसे सौंपा
है।
💭
सीख: आत्मा के द्वारा दी गई जिम्मेदारी
को गंभीरता से लेना चाहिए – यह बोझ भी होती है और आशीष भी।
🔹
16-21 पद: चौकीदार की जिम्मेदारी – चेतावनी देना अनिवार्य है
यहेजकेल को “चौकीदार” कहा जाता है। अगर वह दुष्ट को चेतावनी नहीं देगा और वह मरेगा, तो उसका खून यहेजकेल के सिर आएगा। लेकिन अगर उसने चेतावनी दी, तो वह निर्दोष होगा।
⚠️
सीख: हमारे ऊपर जिम्मेदारी है कि हम
सत्य बोलें – परिणाम परमेश्वर के हाथ में है।
🔹
22-27 पद: परमेश्वर की अगुवाई में मौन और आवाज
परमेश्वर उसे कहता है कि वह कब बोले और कब चुप रहे – क्योंकि उसकी
आवाज केवल परमेश्वर की आज्ञा पर उठेगी। यह नबी अब एक संकेत बन गया है।
🔇
सीख: कभी-कभी परमेश्वर हमें चुप रहना
सिखाता है – और सही समय पर बोलने का अधिकार देता है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर का वचन पहले हमारे जीवन में उतरना चाहिए।
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लोगों की प्रतिक्रिया हमारी जिम्मेदारी नहीं – हमारी आज्ञाकारिता
है।
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परमेश्वर हमें पहरेदार बनाता है – हमें चेतावनी देना है, चाहे लोग सुनें या नहीं।
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आत्मा के साथ चलना भारी भी हो सकता है – लेकिन यही मार्ग सच्चा है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“जब मैं दुष्ट से कहूँ, ‘तू निश्चय मरेगा’,
और तू उसे न चेताए... तो वह अपने अधर्म में मरेगा, परन्तु उसके खून की जिम्मेदारी मैं तुझसे माँगूँगा।”
(यहेजकेल 3:18)
📖 यहेजकेल
अध्याय 4 – प्रतीकात्मक भविष्यवाणी: न्याय का चित्रण
(Ezekiel 4 – Symbolic Prophecy: A Picture of Judgment)
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अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह यरूशलेम की
घेराबंदी और इस्राएल के पापों को प्रतीकों के माध्यम से दर्शाए। यह नबी के लिए एक
कठोर आज्ञा थी — महीनों तक बगैर बोले एक मुद्रा में लेटे रहना, सीमित भोजन करना — लेकिन इसका उद्देश्य था लोगों को उनके पापों और आसन्न
न्याय का दृश्यात्मक अनुभव देना। यह अध्याय सिखाता है कि परमेश्वर हमें कई बार
चेतावनी प्रतीकों और कार्यों द्वारा देता है।
🔹
1-3 पद: यरूशलेम की घेराबंदी का चित्र
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह ईंट पर यरूशलेम का चित्र बनाए और
उसकी घेराबंदी का नाटक करे — मानो एक नबी खुद एक जीवित नाटक बन गया हो!
लोहे की तवा को शहर और नबी के बीच रखा गया — यह परमेश्वर और नगर के
बीच दूरी का संकेत था।
🧱 सीख: जब लोग सुनना बंद कर देते हैं, तब परमेश्वर दिखाने
लगता है।
🔹
4-8 पद: एकतरफा लेटना – पाप का बोझ उठाना
यहेजकेल को 390 दिन बाईं ओर लेटना था –
इस्राएल के पापों के लिए।
फिर 40 दिन दाईं ओर – यहूदा के पापों के लिए।
प्रत्येक दिन एक वर्ष का प्रतीक था।
उसके शरीर को रस्सियों से बाँध दिया गया — यह दर्शाता है कि वह
परमेश्वर की योजना में बँधा हुआ है।
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सीख: नबी कभी-कभी दूसरों के पापों का
बोझ प्रतीक रूप में स्वयं उठाता है – यह मसीह की छाया भी है।
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9-17 पद: कठोर जीवन – भविष्य का दुष्परिणाम
परमेश्वर यहेजकेल को सीमित भोजन खाने को कहता है – अनाज की रोटी,
एक निश्चित मात्रा में पानी।
यह यरूशलेम की घेराबंदी के दौरान होने वाले अकाल और अभाव को दर्शाता
है।
शुरू में उसे अपवित्र ईंधन (मानव मल) से रोटी पकाने को कहा गया – पर
परमेश्वर उसकी विनती पर उसे गाय के गोबर से रोटी पकाने देता है।
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सीख: जब लोग पाप में जीते हैं, तो न्याय में शुद्ध और अपवित्र का भेद मिटने लगता है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर केवल शब्दों से नहीं, जीवन के
प्रतीकों से भी सिखाता है।
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नबी का जीवन साक्षी बनता है – कभी-कभी बहुत कीमत चुकाकर।
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पाप का बोझ केवल आत्मिक नहीं, सामाजिक और
शारीरिक भी होता है।
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परमेश्वर चेतावनी देता है, ताकि लोग समय रहते
लौट सकें।
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याद रखने योग्य वचन
“इस प्रकार इस्राएल का घराना अपवित्र रोटी खाएगा, जब मैं उन्हें अन्यजातियों के बीच में तितर-बितर कर दूँगा।”
(यहेजकेल 4:13)
📖 यहेजकेल
अध्याय 5 – न्याय की घोषणा: बाल कटेगा, शहर बटेगा
(Ezekiel 5 – Declaration of Judgment: Hair Will Be Cut, City Will Be Divided)
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अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक प्रतीकात्मक कार्य से शुरू होता है — यहेजकेल अपने बाल
और दाढ़ी मुंडवाता है और उन्हें तीन भागों में बाँटता है। यह क्रिया सिर्फ एक नाटक
नहीं, बल्कि यरूशलेम पर आने वाले भयानक न्याय का
भविष्यवाणीपूर्ण चित्र है। परमेश्वर कहता है कि यरूशलेम की बगावत उसके आस-पास की
जातियों से भी बदतर हो गई है, इसलिए अब उसका न्याय भी कठोर
होगा।
🔹
1-4 पद: बालों का नाटकीय चित्रण – तीन प्रकार का विनाश
यहेजकेल को कहा जाता है कि वह बाल और दाढ़ी काटे और उन्हें तीन
भागों में बाँटे:
- एक भाग शहर के बीच में जलाया जाए 🔥
- एक भाग को तलवार से काटा जाए ⚔️
- एक भाग को हवा में उड़ाया जाए 🌬️
— और थोड़ा सा बाल अपने कपड़े में बाँधकर भी रखें।
✂️
सीख: परमेश्वर अपने न्याय को स्पष्ट और
प्रतीकात्मक तरीकों से दर्शाता है ताकि लोग गंभीरता से लें।
🔹
5-10 पद: यरूशलेम का अपराध – विशेष स्थान, विशेष
जिम्मेदारी
परमेश्वर कहता है: “मैंने यरूशलेम को जातियों के बीच रखा, पर उन्होंने मेरे नियमों को तुच्छ जाना।”
इसलिए अब ऐसा समय आएगा कि लोग अपने ही बच्चों को खाएँगे — यह है
बगावत की चरम सीमा का फल।
⚖️
सीख: जब विशेष आशीष मिलती है, तो परमेश्वर अपेक्षा भी अधिक करता है। उल्लंघन पर न्याय भी गहरा होता है।
🔹
11-13 पद: पवित्र स्थान का अपवित्रीकरण – क्रोध का विस्फोट
क्योंकि उन्होंने मंदिर को अशुद्ध किया, परमेश्वर
कहता है: “मेरी आँखें नहीं तरस खाएँगी... मैं अपना क्रोध पूरा करूँगा।”
यह एक चेतावनी है — पवित्रता के साथ खिलवाड़ परमेश्वर को सहन नहीं।
🔥
सीख: परमेश्वर दयालु है, लेकिन वह पवित्र भी है – और पवित्रता की अवहेलना का परिणाम गंभीर होता है।
🔹
14-17 पद: सबके सामने दंड – उदाहरण बन जाएगा यरूशलेम
यरूशलेम को सब जातियों के सामने अपमानित किया जाएगा। अकाल, तलवार, जंगली जानवर और प्लेग भेजे जाएँगे। यह सब
इसलिए कि लोग जानें — यह परमेश्वर का न्याय है, न कि कोई
संयोग।
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सीख: परमेश्वर कभी छुपकर न्याय नहीं करता
– वह दिखाता है कि उसका न्याय सही और उचित है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर जब चेतावनी देता है, तो वह प्रतीकों
और कार्यों के द्वारा भी बोलता है।
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जब हमें विशेष स्थान या बुलाहट दी जाती है, तो
उससे जुड़ी ज़िम्मेदारी भी बड़ी होती है।
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पवित्रता सिर्फ बाहरी नहीं, भीतरी सच्चाई की
माँग करती है।
✝️
परमेश्वर की दया अनंत है, पर उसका न्याय भी
सच्चा और निश्चित है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं अपना क्रोध पूरी रीति से उन पर उतारूँगा... और तब वे जानेंगे
कि मैं, यहोवा, ने अपने जलजलाहट में यह
सब कहा है।”
(यहेजकेल 5:13)
📖 यहेजकेल
अध्याय 6 – ऊँची जगहों पर पाप और उनकी सज़ा
(Ezekiel 6 – Sin on the High Places and Its Judgment)
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अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर पहाड़ों, पहाड़ियों और
ऊँची जगहों को संबोधित करता है — जहाँ इस्राएल ने मूरतों की पूजा की, बलिदान चढ़ाए और आत्मिक व्यभिचार किया। यह अध्याय परमेश्वर की धार्मिक जलन
को दर्शाता है, और यह भी दिखाता है कि न्याय केवल नगरों तक
सीमित नहीं रहता, बल्कि प्रकृति और स्थानों पर भी असर डालता
है। फिर भी, बीच में एक आशा की किरण है — एक “शेष बचे हुए
लोग” जो पश्चाताप करेंगे।
🔹
1-4 पद: पहाड़ों से बात – जहाँ पाप ऊँचाइयों पर चढ़ गया
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह पहाड़ों और ऊँची जगहों से कहे —
वहाँ के वेदीस्थान, मूरतें और सूर्य-स्तम्भ सब तोड़े जाएँगे।
लोगों की हड्डियाँ उनके मूरतों के चारों ओर बिखरी होंगी — यह पाप और
मूर्तिपूजा की घृणित परिणति है।
🗿
सीख: जब कोई स्थान पवित्र के बजाय पाप
का केंद्र बन जाता है, तो वह न्याय का पात्र बनता है।
🔹
5-7 पद: न्याय इतना व्यापक कि लाशें ही संदेश बन जाएँ
मूर्तिपूजक लोग अपने ही बनाए देवताओं के सामने मारे जाएँगे।
हर ओर उजाड़ और चुप्पी होगी — ताकि लोग जानें कि यहोवा ही परमेश्वर
है।
🔥
सीख: जब पाप सार्वजनिक होता है,
तो न्याय भी सार्वजनिक हो सकता है — ताकि लोग चेत जाएँ।
🔹
8-10 पद: एक बचा हुआ अवशेष – पश्चाताप की पुकार
परमेश्वर कहता है: “मैं कुछ लोगों को छोड़ दूँगा…”
वे अपनी बंधुवाई में पश्चाताप करेंगे और कहेंगे — “हमने व्यर्थ
मूरतों के पीछे जाकर मूर्खता की।”
उनके हृदय टूटेंगे और वे अपने पापों पर शोक मनाएँगे।
🕊️
सीख: परमेश्वर न्याय करता है, लेकिन साथ ही वह पश्चाताप का मार्ग भी खोलता है।
🔹
11-14 पद: एक औरत की तरह पीटना – एक नबी का दुख में सहभागिता
परमेश्वर कहता है: “हाय कहो! ताली बजाओ, पाँव
पटक!”
यह यहेजकेल को न केवल वचन बोलने, बल्कि
भावनात्मक प्रतिक्रिया के साथ उस दुख को प्रकट करने को कहता है।
उत्तर से लेकर दक्षिण तक – सारी धरती उजड़ जाएगी, क्योंकि उन्होंने यहोवा को भूलकर मूर्तियों से प्रेम किया।
👁️
सीख: सच्चा नबी केवल भविष्यवाणी नहीं
करता — वह परमेश्वर के हृदय के दुख को महसूस भी करता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर को ऊँची जगहों पर मूर्तिपूजा से घृणा है – पाप चाहे कितना
भी “धार्मिक” दिखे।
✝️
न्याय का उद्देश्य विनाश नहीं, जागृति और
पश्चाताप है।
✝️
परमेश्वर का प्रेम न्याय के साथ चलता है – वह एक अवशेष बचाता है।
✝️
नबी का हृदय परमेश्वर के दुख में सहभागी होता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ, जब उनके
घात हुए लोग उनके मूरतों के बीच होंगे।”
(यहेजकेल 6:7)
📖 यहेजकेल
अध्याय 7 – अन्त आ गया है: अब कोई पलायन नहीं
(Ezekiel 7 – The End Has Come: No More Escape)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय बहुत गहन और गंभीर है। यहेजकेल पूरे ज़ोर से घोषणा करता
है: “अंत आ गया है!” — चारों दिशाओं से, पूरे देश पर। यह एक
भविष्यवाणी है, पर ऐसा लगता है जैसे अब कुछ बाकी नहीं — समय
समाप्त हो चुका है। यरूशलेम के लोग जिन्होंने बार-बार परमेश्वर की चेतावनियों को
अनसुना किया, अब उनके पास पछतावे का समय भी नहीं बचेगा।
🔹
1-9 पद: चारों ओर से अन्त – न दया, न विलंब
परमेश्वर कहता है: “अंत आ गया है, अब मैं तुझ
पर अपना क्रोध प्रकट करूँगा।”
अब दया नहीं, अब न्याय है। उन्होंने जो बोया
है, वही काटेंगे।
⏳ सीख: परमेश्वर लंबे समय तक सहन करता है, लेकिन एक समय
आता है जब न्याय अपरिहार्य होता है।
🔹
10-13 पद: घमंड की छड़ी – सम्पत्ति और व्यापार व्यर्थ होंगे
लोगों ने अपने धन और व्यापार पर भरोसा रखा था। अब सब कुछ व्यर्थ हो
जाएगा। “खरीदार आनंदित नहीं होगा, और विक्रेता शोक नहीं
करेगा।” क्योंकि सब कुछ खो जाएगा।
💸
सीख: जो चीज़ें हमने परमेश्वर के बिना
बनाई हैं, वे संकट के दिन हमें नहीं बचा सकतीं।
🔹
14-18 पद: युद्ध की तैयारी – पर कोई लड़ने को तैयार नहीं
नरसंहार इतना गंभीर होगा कि लोग अपने हाथ गिरा देंगे। न गीत होंगे,
न शक्ति। तलवार, अकाल और महामारी चारों ओर
होंगे।
🗡️
सीख: जब आत्मा टूट जाती है, तब न सेना काम आती है, न तैयारी – केवल पश्चाताप ही
एकमात्र आशा है।
🔹
19-22 पद: चाँदी और सोना – जो कभी गर्व का कारण था, अब घिनौना होगा
लोग अपने सोने-चाँदी को सड़कों पर फेंक देंगे क्योंकि वह उन्हें
परमेश्वर के क्रोध से नहीं बचा पाएगा। यहाँ तक कि उनका मंदिर भी अपवित्र कर दिया
गया, और अब उसे भी दंड मिलेगा।
🏛️
सीख: यदि पवित्र स्थान भी पाप से भर
जाए, तो वह भी न्याय से नहीं बचता।
🔹
23-27 पद: हाहाकार और भय – न राजा बचेगा, न
याजक, न नबी
हर ओर हाहाकार, भय और भ्रम का माहौल होगा।
राजा शोक में डूबेगा, याजक व्याकुल होंगे, और नबी निरुत्तर। यह परमेश्वर की योजना का दिन होगा — न्यायपूर्ण और
अन्तिम।
😔
सीख: जब परमेश्वर बोलना बंद कर दे,
तो वह सबसे डरावना मौन होता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर बार-बार चेतावनी देता है, लेकिन अगर
हम न सुनें, तो अन्त निश्चित होता है।
✝️
संसार की चीज़ें संकट के समय हमें नहीं बचा सकतीं।
✝️
पवित्रता और पश्चाताप ही न्याय से बचा सकते हैं।
✝️
जब हर दिशा से "अंत" आता है, तो
केवल परमेश्वर ही शरण है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“अन्त आ गया है... अब मैं अपने क्रोध को तुझ पर पूरी रीति से प्रकट
करूँगा।”
(यहेजकेल 7:3)
📖 यहेजकेल
अध्याय 8 – छुपे हुए पापों का पर्दाफाश: मंदिर में
मूर्तिपूजा
(Ezekiel 8 – Hidden Sins Exposed: Idolatry in the Temple)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में यहेजकेल को एक अलौकिक दर्शन में यरूशलेम ले जाया जाता
है, जहाँ परमेश्वर उसे मंदिर के भीतर हो रहे छुपे हुए पापों
को दिखाता है। यह न केवल यहूदियों के बाहरी पाप, बल्कि उनके
“दिलों के मूर्तियों” को भी प्रकट करता है। यह अध्याय दर्शाता है कि परमेश्वर के
भवन में धार्मिकता का मुखौटा ओढ़कर किया गया पाप उसके न्याय को और भी अधिक उकसाता
है।
🔹
1-4 पद: एक दिव्य दर्शन की शुरुआत – यरूशलेम की यात्रा
छठे वर्ष, छठे महीने की पाँचवी तारीख को,
यहेजकेल अपने घर में प्राचीनों के साथ बैठा था – तभी परमेश्वर की
शक्ति उस पर उतरी।
एक आग जैसी आकृति ने उसे उठाया और आत्मा में उसे यरूशलेम ले गया –
वहाँ वह मंदिर के उत्तर फाटक पर पहुँचता है।
🔥
सीख: परमेश्वर हमें बाहरी नहीं,
आंतरिक स्थिति दिखाना चाहता है – ताकि हम गहराई से सुधरें।
🔹
5-6 पद: उत्तर फाटक पर मूर्तिपूजा – ईर्ष्या की मूरत
“देख, उस फाटक के पास एक मूर्ति खड़ी है जो
ईर्ष्या की अग्नि को भड़काती है।”
परमेश्वर कहता है: “क्या तू देख रहा है कि मेरे घर में कैसे घृणित
काम हो रहे हैं, जिससे मेरी महिमा दूर हो रही है?”
🗿
सीख: जब परमेश्वर के स्थान में
मूर्तिपूजा आती है, तो उसकी उपस्थिति वहाँ से हट जाती है।
🔹
7-13 पद: दीवार के पीछे का पाप – गुप्त मूर्तिपूजा
एक छेद के माध्यम से यहेजकेल को अंदर जाने कहा गया, जहाँ उसने दीवारों पर रेंगने वाले जीवों और घृणित देवताओं की मूर्तियाँ
देखीं।
70 प्राचीन – जो इस्राएल के अगुवे थे – धूप जलाकर गुप्त रूप से इन
देवताओं की पूजा कर रहे थे।
👁️
सीख: जो पाप छुपा होता है, वह परमेश्वर की दृष्टि से कभी छुपा नहीं होता।
🔹
14-15 पद: तम्मूज़ के लिए रोना – आत्मिक व्यभिचार का एक और रूप
महिलाएँ यहोवा के मंदिर के द्वार पर बैठकर “तम्मूज़” नामक देवी के
लिए रो रही थीं – एक प्राचीन मसीह विरोधी मूर्ति-पूजा।
परमेश्वर कहता है – “क्या तू इससे भी बड़े घृणित काम देखेगा?”
🔥
सीख: भावनात्मकता अगर सत्य से अलग हो
जाए, तो वह भी आत्मिक धोखा बन सकती है।
🔹
16-18 पद: सूर्य-पूजा – सबसे बड़ा अपमान
मंदिर के आँगन में 25 पुरुष पूर्व की ओर मुँह
करके सूर्य की पूजा कर रहे थे – और पीठ परमेश्वर की ओर थी!
परमेश्वर कहता है: “अब मैं न दया करूँगा, न
क्षमा करूँगा।”
☀️
सीख: जब हम संसार की ओर मुँह करते हैं,
तो अक्सर परमेश्वर को पीठ दिखा देते हैं।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर हमारे बाहरी धार्मिकता से नहीं, आंतरिक
पवित्रता से प्रसन्न होता है।
✝️
मंदिर (या आज के समय में – हृदय) में कोई भी "ईर्ष्या की
मूर्ति" परमेश्वर को अप्रसन्न करती है।
✝️
छुपे हुए पाप न्याय को आमंत्रित करते हैं।
✝️
धार्मिकता का मुखौटा ओढ़कर किया गया पाप सबसे बड़ा धोखा है।
✝️
जब परमेश्वर की महिमा हटने लगती है, वह पहले
चेतावनी देता है – ताकि हम लौट सकें।
📌
याद रखने योग्य वचन
“वे मेरे भवन में घृणित काम करते हैं... परन्तु मैं भी क्रोध में
उनसे व्यवहार करूँगा; और मैं न तो दया करूँगा और न सुनूँगा।”
(यहेजकेल 8:18)
📖 यहेजकेल
अध्याय 9 – चिन्हित और अचिन्हित: न्याय की रेखा स्पष्ट है
(Ezekiel 9 – Marked and Unmarked: The Line of Judgment is
Clear)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय स्वर्गीय न्याय के दृश्य को दर्शाता है। यहेजकेल एक भयानक
दर्शन देखता है जिसमें छह नाश करने वाले स्वर्गदूत और एक व्यक्ति स्याही की दवात
लिए हुए आते हैं। परमेश्वर का न्याय यरूशलेम पर शुरू होने वाला है — और वह मंदिर
से शुरू होता है। लेकिन इससे पहले कि विनाश शुरू हो, एक
चिन्ह लगाया जाता है उन सभी पर जो पाप देखकर “आहें भरते और विलाप करते हैं।” यह
अध्याय बताता है कि परमेश्वर न्याय करते समय भी हर व्यक्ति की आत्मिक स्थिति को
ध्यान से देखता है।
🔹
1-2 पद: न्यायकर्ता तैयार हैं – सात व्यक्ति, विशेष कार्य
परमेश्वर यहेजकेल को एक दर्शन में दिखाता है कि यरूशलेम को दंड देने
वाले आ रहे हैं। छह जन हथियारों से लैस हैं, और सातवाँ
व्यक्ति एक स्याही की दवात लिए हुए है — वह चिन्ह लगाने वाला है।
⚖️
सीख: परमेश्वर का न्याय अंधा नहीं — वह
व्यवस्थित, उद्देश्यपूर्ण और सटीक होता है।
🔹
3-4 पद: चिन्ह का कार्य – आँसू वालों की सुरक्षा
परमेश्वर कहता है: “जो लोग इस नगर में किए गए घिनौने कामों के कारण
आहें भरते और विलाप करते हैं, उनके माथे पर चिन्ह लगा दो।”
यह चिन्ह उन्हें न्याय से बचाएगा।
🖋️
सीख: जो पाप से दुखी होते हैं, परमेश्वर उन्हें पहचानता है और सुरक्षित रखता है — वे उसकी दृष्टि में
अनमोल हैं।
🔹
5-7 पद: विनाश का आदेश – बिना तरस के न्याय
बाकी लोगों पर न्याय का आदेश होता है: “बूढ़ा, जवान, कन्या, बालक, स्त्री – किसी को मत छोड़ना... पर जिनके माथे पर चिन्ह है, उन्हें न छूना।”
और यह सब मंदिर से शुरू होता है।
🏛️
सीख: परमेश्वर का न्याय पहले उसके घर
से शुरू होता है — क्योंकि जिन पर ज़्यादा विश्वास किया गया है, उनसे ज़्यादा अपेक्षा भी होती है।
🔹
8-10 पद: यहेजकेल की दुहाई और परमेश्वर का उत्तर
यहेजकेल रोता है: “क्या तू सारे इस्राएल को नाश कर देगा?”
परमेश्वर उत्तर देता है: “उनका अधर्म बहुत बढ़ गया है... मेरी आँखें
तरस नहीं खाएँगी।”
💧
सीख: परमेश्वर की दया महान है, पर जब लोग बार-बार उसकी अवहेलना करते हैं, तो दया भी
एक समय के बाद पीछे हट जाती है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर पाप से दुःखी होने वालों को चिन्हित करता है और उन्हें
न्याय से बचाता है।
✝️
न्याय पहले परमेश्वर के घर से शुरू होता है — इसलिए आत्मिक लोगों को
सजग रहना चाहिए।
✝️
पाप के प्रति हमारी प्रतिक्रिया — उदासी या उदासीनता — यह तय करती
है कि हम किस ओर खड़े हैं।
✝️
परमेश्वर का न्याय न्यायपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण है — कोई अकारण नहीं
मारा जाता।
📌
याद रखने योग्य वचन
“उनके माथे पर चिन्ह लगा दो जो नगर में किए गए घिनौने कामों के कारण
आहें भरते और विलाप करते हैं।”
(यहेजकेल 9:4)
📖 यहेजकेल
अध्याय 10 – परमेश्वर की महिमा का विदाई-यात्रा
(Ezekiel 10 – The Departure of God’s Glory from the
Temple)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय परमेश्वर की महिमा के मंदिर से हटने की अलौकिक और भयावह
झलक है। यहेजकेल एक बार फिर स्वर्गीय रथ, करूबों और महिमा के
बादलों को देखता है – लेकिन इस बार दृश्य में एक उदासी है, क्योंकि
परमेश्वर अपने ही घर से विदा ले रहा है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि जब पाप अपने
चरम पर पहुँचता है, तो परमेश्वर की उपस्थिति धीरे-धीरे हट
जाती है – और यह किसी भी राष्ट्र, कलीसिया या जीवन के लिए
सबसे बड़ा संकट है।
🔹
1-2 पद: स्वर्णासन के ऊपर परमेश्वर का सिंहासन
यहेजकेल मंदिर के अंदर उस स्थान को देखता है जहाँ करूबों के बीच
“नीलम के समान” एक सिंहासन दिखाई देता है – यह परमेश्वर की महिमा और न्याय का
प्रतीक है।
परमेश्वर उस व्यक्ति (अध्याय 9 में वर्णित
स्वर्गदूत समान प्राणी) से कहता है: “करूबों के बीच से जलते अंगारे भर और उन्हें
नगर पर बिखेर।”
🔥
सीख: जब परमेश्वर न्याय करता है,
तो वह अपने सिंहासन से ही आदेश देता है — यह पवित्र और उचित होता
है।
🔹
3-5 पद: करूबों की उपस्थिति और परमेश्वर की महिमा का बादल
करूब मंदिर के दक्षिण भाग में खड़े हैं और मंदिर धुएँ से भर जाता है
— जैसे पवित्रता और न्याय का मेल हो रहा हो।
परमेश्वर की महिमा करूबों के ऊपर है, और उनके
पंखों की आवाज़ सर्वशक्तिमान की आवाज़ जैसी गूंजती है।
🕊️
सीख: परमेश्वर की उपस्थिति केवल
सांत्वना नहीं, न्याय और अधिकार की भी प्रतीक है।
🔹
6-8 पद: अंगारों का उठाया जाना – न्याय का प्रतीकात्मक चित्र
जब व्यक्ति करूबों के बीच से अंगारे उठाता है, तो एक करूब अपने हाथ को आगे बढ़ाकर आग से भरने में सहायता करता है।
यह आग कोई विनाशकारी क्रोध नहीं, बल्कि शुद्ध
करने और न्याय लाने वाली आग है।
🔥
सीख: परमेश्वर की आग तब विनाशक बनती है
जब मनुष्य पश्चाताप से मुँह मोड़ लेता है।
🔹
9-17 पद: करूबों की महिमा और रहस्यमय गति
यहेजकेल करूबों के चार चेहरे, उनके चार पंख,
और उनके साथ चलते हुए पहियों को देखता है — हर एक चेहरा (मनुष्य,
सिंह, बैल, उकाब) एक
विशेष आत्मिक गुण दर्शाता है।
पहिए, जो आत्मा की दिशा में चलते हैं, इस बात को दर्शाते हैं कि परमेश्वर की गति रहस्यमयी लेकिन पूर्णतः
नियंत्रित होती है।
👁️
सीख: परमेश्वर की कार्यप्रणाली हमें
उलझी हुई लग सकती है, लेकिन उसमें दिव्य उद्देश्य और समन्वय
होता है।
🔹
18-22 पद: महिमा का मंदिर से निकलना – पहला चरण
सबसे हृदयविदारक क्षण – परमेश्वर की महिमा मंदिर के द्वार की देहली
से निकलकर करूबों पर जाती है, और फिर धीरे-धीरे शहर से बाहर
की ओर।
यह परमेश्वर की उपस्थिति के धीरे-धीरे विदा लेने का पहला दृश्य है।
🛑
सीख: जब हम परमेश्वर की उपस्थिति को
हल्के में लेते हैं, तो वह चुपचाप चली जाती है — और यही सबसे
बड़ा संकट है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर न्याय करता है, लेकिन वह जल्दबाज़
नहीं — वह चेतावनी देता है।
✝️
उसकी महिमा केवल शोभा नहीं, बल्कि पवित्रता की
मांग करती है।
✝️
जब पाप मंदिर में जगह पा लेता है, तो परमेश्वर
वहाँ से हटने को विवश हो जाता है।
✝️
करूबों और पहियों की गति यह दिखाती है कि परमेश्वर सब पर अधिकार
रखता है – चाहे वह स्वर्ग हो या पृथ्वी।
✝️
आत्मिक जीवन में सबसे बड़ा खतरा है – परमेश्वर की महिमा का चुपचाप
विदा हो जाना।
📌
याद रखने योग्य वचन
“तब यहोवा की महिमा मंदिर के देहली से उठकर करूबों के ऊपर जा
ठहरी।”
(यहेजकेल 10:18)
📖 यहेजकेल
अध्याय 11 – बिखराव, न्याय और आशा की
किरण
(Ezekiel 11 – Scattering, Judgment, and a Ray of Hope)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक अनोखा मिश्रण है — एक ओर परमेश्वर यरूशलेम के नेताओं
को उनके दुष्ट विचारों और अहंकार के लिए कठोर चेतावनी देता है, वहीं दूसरी ओर बंधुआई में गए इस्राएलियों के लिए आशा और पुनर्स्थापना की
अद्भुत प्रतिज्ञा भी देता है।
यह अध्याय दिखाता है कि परमेश्वर केवल न्यायी नहीं, बल्कि पुनः बहाल करने वाला परमेश्वर भी है।
🔹
1-4 पद: दुष्ट सलाहकार – जो शहर को गुमराह कर रहे हैं
परमेश्वर यहेजकेल को उन 25 प्रमुखों को दिखाता
है जो यरूशलेम में झूठी आशा और गलत सलाह दे रहे हैं।
वे कहते थे: “यह शहर हांडी है, और हम उसका
मांस हैं” – यानी हम सुरक्षित हैं, कोई कुछ नहीं कर सकता।
🧠 सीख: गलत आत्मविश्वास और अहंकार विनाश का बीज होता है, खासकर
जब नेतृत्व ग़लत दिशा में हो।
🔹
5-12 पद: झूठी सुरक्षा का भ्रम – न्याय नज़दीक है
परमेश्वर कहता है: “तुम्हारे विचारों को मैं जानता हूँ... तुम तलवार
से मारे जाओगे।”
वे जो सोचते थे कि वे सुरक्षित हैं, वे ही
सबसे पहले दंडित होंगे।
तब सब जानेंगे: “मैं ही यहोवा हूँ!”
⚖️
सीख: परमेश्वर न केवल हमारे कर्मों को,
बल्कि हमारे विचारों और योजनाओं को भी जाँचता है।
🔹
13 पद: एक नायक का पतन – और यहेजकेल का दुःख
जब पलटायाह (एक प्रमुख नेता) की मृत्यु होती है, यहेजकेल काँप उठता है और पूछता है:
“क्या तू पूरे इस्राएल को नाश कर देगा?”
💔
सीख: सच्चे अगुवे केवल न्याय के घोषक
नहीं होते, वे लोगों के लिए मध्यस्थ भी बनते हैं।
🔹
14-21 पद: बंधुआ लोगों के लिए आशा – परमेश्वर लौटेगा और उन्हें
लौटाएगा
यहाँ अध्याय का सबसे सुंदर भाग आता है —
परमेश्वर कहता है: “मैं तुम्हें अन्यजातियों के बीच से इकट्ठा
करूँगा... और तुम्हें तुम्हारा देश फिर से दूँगा।”
और फिर वादा करता है:
🕊️
“मैं उन्हें एक मन दूँगा, और नई
आत्मा उनके अंदर डालूँगा।”
🪨 “मैं उनका पत्थर जैसा हृदय निकालकर मांस का
कोमल हृदय दूँगा।”
🌿
सीख: परमेश्वर का अंतिम लक्ष्य केवल
सज़ा नहीं, हृदय-परिवर्तन है। वह फिर से जुड़ाव चाहता है।
🔹
22-25 पद: महिमा का उठ जाना – और यहेजकेल का लौटना
परमेश्वर की महिमा नगर से उठती है और धीरे-धीरे चली जाती है — यह एक
भावनात्मक चित्र है कि परमेश्वर अब वहाँ नहीं है।
यहेजकेल बंधुओं के पास लौटता है और जो कुछ देखा वह सब कहता है।
🏙️
सीख: जब परमेश्वर की उपस्थिति किसी
स्थान से हटती है, तब उसका भविष्य भी डगमगा जाता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
झूठी सुरक्षा और अहंकार का परिणाम हमेशा विनाश होता है।
✝️
परमेश्वर बाहरी नहीं, हमारे दिलों और विचारों
को देखता है।
✝️
जब न्याय आता है, तब भी परमेश्वर अपनी आशा का
दरवाज़ा बंद नहीं करता।
✝️
परमेश्वर हमारे पत्थर जैसे हृदयों को बदलकर उन्हें कोमल और
आज्ञाकारी बना सकता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं उनका पत्थर जैसा हृदय निकाल दूँगा, और
मांस का हृदय उन्हें दूँगा।”
(यहेजकेल 11:19)
📖 यहेजकेल
अध्याय 12 – प्रतीकों के ज़रिए चेतावनी: पलायन और देरी का
भ्रम
(Ezekiel 12 – Prophetic Signs: Exile and the Illusion of Delay)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में यहेजकेल को दो प्रतीकात्मक कार्य करने का निर्देश
दिया जाता है — एक यहूदा के राजा और लोगों के निकट भविष्य में होने वाले पलायन का
चित्रण, और दूसरा उन झूठे विचारों का खंडन जो सोचते हैं कि
परमेश्वर का वचन देर से पूरा होता है। यह अध्याय दर्शाता है कि जब लोग चेतावनी को
अनसुना करते हैं, तो परमेश्वर उसे प्रतीकों और कार्यों के
ज़रिए और भी स्पष्ट कर देता है।
🔹
1-7 पद: भविष्यदर्शी का प्रतीकात्मक पलायन
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है: “तू ऐसे घर में रहता है जो देखने पर
देखता नहीं, और सुनने पर सुनता नहीं।”
फिर आदेश होता है कि वह "जैसे कोई बंधुआ देश निकाला जा रहा
हो" – वैसे दिन में अपना सामान बाँधकर और रात को दीवार फाड़कर निकल जाए।
🎭
सीख: जब लोग वचनों को अनसुना करते हैं,
तो परमेश्वर कार्यों के ज़रिए बोलता है — उसकी चेतावनी कभी अस्पष्ट
नहीं होती।
🔹
8-16 पद: यहूदा के राजा और लोगों के लिए भविष्यवाणी
यहेजकेल का यह प्रतीक ज़िदकिय्याह राजा और यरूशलेम के लोगों के लिए
भविष्यवाणी है।
राजा रात में गुप्त रूप से भागेगा, लेकिन
पकड़ा जाएगा और बाबुल ले जाया जाएगा — पर देख नहीं पाएगा (यह भविष्यवाणी बाद में
पूरी होती है)।
बाकी लोग बिखेर दिए जाएँगे ताकि उन्हें अपने पाप याद आएँ।
👑
सीख: कोई भी राजा या अगुवा परमेश्वर के
न्याय से नहीं बच सकता। पाप के पीछे न्याय चलकर आता है।
🔹
17-20 पद: डर और आतंक का प्रतीक
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह काँपते हुए रोटी खाए और डरते हुए
पानी पिए – ताकि लोग समझें कि यरूशलेम में किस प्रकार का भय और संकट आने वाला है।
🍞
सीख: परमेश्वर पहले भय की छाया दिखाता
है ताकि लोग पश्चाताप करें – वह अंतिम विनाश नहीं, पहले
चेतावनी देता है।
🔹
21-25 पद: देरी का भ्रम – परमेश्वर का उत्तर
लोग कह रहे थे, “वह जो कहता है, वह बहुत समय बाद पूरा होगा।”
परमेश्वर कहता है: “अब और देर न होगी... जो कुछ मैं कहूँगा, वह शीघ्र पूरा होगा।”
⌛
सीख: परमेश्वर की देरी, उसकी दया होती है — लेकिन जब समय पूरा होता है, तो
वह वचन ज़रूर पूरा करता है।
🔹
26-28 पद: झूठी आशा का अंत
लोगों में यह झूठी आशा थी कि “दूर का दर्शन है, अभी तो कुछ नहीं होगा।”
परमेश्वर कहता है: “अब से कोई दर्शन देर नहीं करेगा – जो मैं कहता
हूँ, वह होगा।”
🛑
सीख: जब हम बार-बार चेतावनी को
नजरअंदाज़ करते हैं, तो परमेश्वर की दया का समय भी समाप्त हो
सकता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर पाप के लिए हमेशा चेतावनी देता है – पहले वचन से, फिर प्रतीकों से।
✝️
राजाओं और आमजन – दोनों के लिए न्याय समान रूप से लागू होता है।
✝️
प्रतीकात्मक कार्य आत्मिक गहराई को व्यक्त करने का परमेश्वर का
तरीका है।
✝️
देरी का भ्रम आत्मिक निद्रा पैदा करता है — जबकि परमेश्वर कहता है,
“जागो, क्योंकि समय निकट है।”
✝️
सच्चा पश्चाताप देरी को रोक सकता है, लेकिन
उपेक्षा विनाश को आमंत्रित करती है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं यहोवा हूँ; जो वचन मैं बोलता हूँ वह
अब देर न करेगा, पर निश्चित रूप से अपने समय पर पूरा होगा।”
(यहेजकेल 12:28)
📖 यहेजकेल
अध्याय 13 – झूठे भविष्यवक्ता: शांति का झूठा सपना
(Ezekiel 13 – False Prophets: The Lie of “Peace”)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय परमेश्वर की गहरी नाराज़गी को दर्शाता है – उन लोगों के
लिए जो परमेश्वर की ओर से बोले बिना, उसका नाम लेकर झूठी
भविष्यवाणियाँ करते हैं।
वे कहते हैं, “शांति है,” जबकि परमेश्वर का न्याय दरवाज़े पर है।
यह न केवल पुरुषों पर बल्कि झूठी भविष्यदर्शी स्त्रियों पर
भी लागू होता है जो आत्माओं को फँसाने के लिए जादू-टोना करती थीं।
परमेश्वर यहाँ झूठे सन्देश और आत्मिक धोखे पर न्याय लाता है।
🔹
1-7 पद: अपना मन बोलना, परमेश्वर नहीं
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है:
“उन भविष्यवक्ताओं के विरुद्ध भविष्यवाणी कर जो अपनी मन की बात
कहते हैं, पर कहते हैं ‘यहोवा ने कहा।’”
ये लोग बिना कुछ देखे, बिना परमेश्वर की आवाज़
सुने लोगों को झूठी आशा देते हैं।
🗣️
सीख: परमेश्वर का वचन गम्भीर बात है –
उसमें मिलावट नहीं होनी चाहिए। जो मन से बोलते हैं, वे लोगों
को गुमराह करते हैं।
🔹
8-16 पद: झूठी दीवार और सफेदी – जो जल्द गिर जाएगी
परमेश्वर झूठी भविष्यवाणियों की तुलना एक कमज़ोर दीवार से
करता है जिस पर सिर्फ सफेदी पोती गई है।
जब तूफ़ान (जैसे बाबुल की सेनाएँ) आएगा, वह
दीवार गिर जाएगी – और तब सब जानेंगे कि वह झूठ थी।
🏚️
सीख: दिखावे की शांति असली संकट से
नहीं बचा सकती। आत्मिक सुरक्षा सच्चाई से ही आती है, छल से
नहीं।
🔹
17-19 पद: स्त्रियाँ जो आत्माओं को फँसाती थीं
परमेश्वर उन स्त्रियों की ओर भी ध्यान देता है जो झाड़-फूँक,
जादू, और ताबीज़ों से लोगों को धोखा देती थीं।
वे आत्माओं का “शिकार” करती थीं – निर्दोषों की जान लेती और दोषियों
को बचाती थीं।
🎭
सीख: जब धार्मिकता व्यापार या जादू बन
जाए, तो यह परमेश्वर के न्याय को न्यौता देता है।
🔹
20-23 पद: उद्धार की घोषणा – परमेश्वर सब धोखे मिटाएगा
परमेश्वर कहता है:
“मैं तुम्हारे ताबीज़ फाड़ डालूँगा... तुम्हारे हाथ से मेरे लोगों
को छुड़ाऊँगा... तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ।”
वह झूठे दर्शन, छल, और
अनगिनत बंधनों को तोड़ेगा।
🕊️
सीख: परमेश्वर अपने लोगों को आत्मिक
बंधनों और झूठे अगुवों से बचाता है। वह धोखा सदा नहीं चलने देता।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
झूठी भविष्यवाणी करना एक गम्भीर अपराध है – यह आत्माओं को गुमराह
करता है।
✝️
आत्मिक सच्चाई केवल परमेश्वर के वचन से आती है, न कि इंसानी कल्पना या व्यापार से।
✝️
जब दिखावे की धार्मिकता की दीवारें गिरती हैं, तब ही असली सत्य सामने आता है।
✝️
परमेश्वर अपने लोगों को धोखे से छुड़ाता है – वह उनका सच्चा रक्षक
है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“उन्होंने मेरे लोगों को झूठ बोल-बोलकर गुमराह किया... उन्होंने
शांति का वादा किया, जबकि कोई शांति नहीं थी।”
(यहेजकेल 13:10)
📖 यहेजकेल
अध्याय 14 – मूर्तियाँ दिल में: बाहर से नहीं, अंदर से देखता है परमेश्वर
(Ezekiel 14 – Idols in the Heart: God Looks Within)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय हमें सिखाता है कि मूर्तिपूजा केवल मंदिरों या मूर्तियों
तक सीमित नहीं होती — वह हमारे दिल के अंदर भी हो सकती है। परमेश्वर
यहेजकेल के पास आए पुराने लोगों को संबोधित करता है, जो
बाहर से धार्मिक दिखते हैं, लेकिन भीतर से उनके दिल में
मूर्तियाँ बसी हुई हैं।
यह अध्याय न्याय, व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी,
और परमेश्वर की खोज के बारे में बेहद गहरी बातें करता है।
🔹
1-5 पद: छिपे हुए देवता – पर परमेश्वर को सब पता है
कुछ अगुवे यहेजकेल के पास परमेश्वर का वचन सुनने आते हैं।
परमेश्वर कहता है:
👉
“ये लोग अपने दिलों में मूर्तियाँ रखते हैं और फिर मुझसे
मार्गदर्शन मांगते हैं?”
परमेश्वर इनसे कहता है – मैं उन्हें उनके अपने ही तरीकों में
फँसा दूँगा, ताकि वे अपने पाप की गहराई को समझें।
🪞 सीख: सच्ची आराधना केवल बाहरी नहीं होती – परमेश्वर हमारे दिल की प्राथमिकताओं
को देखता है।
🔹
6-8 पद: पश्चाताप का बुलावा – और चेतावनी
परमेश्वर फिर भी कहता है: “तौबा करो! अपने मूर्तियों से मुँह फेरो।”
लेकिन अगर वे न सुनें, तो परमेश्वर कहता है,
“मैं उनका सामना करूँगा और उन्हें उदाहरण बना दूँगा।”
⚠️
सीख: परमेश्वर की पहली पसंद हमेशा
पश्चाताप है, लेकिन इनकार करने वालों को वह नज़रअंदाज़ नहीं
करता।
🔹
9-11 पद: झूठे भविष्यवक्ता भी उत्तरदायी हैं
अगर कोई नबी किसी ऐसे व्यक्ति को मनपसंद बात कहे — जो
परमेश्वर ने कहा ही नहीं — तो वह भी दंड पाएगा।
परमेश्वर की इच्छा है कि लोग गुमराह न हों और फिर से उसके बन
जाएँ।
🗣️
सीख: न सच्चे अगुवे झूठ बोलें, और न लोग “मीठे झूठ” को सच्चाई समझें — दोनों का हिसाब होगा।
🔹
12-20 पद: जब देश पाप में डूब जाए – तो केवल व्यक्ति ही बच सकते
हैं
परमेश्वर कहता है: यदि कोई देश मुझसे विद्रोह करे, तो चाहे नूह, दानिय्येल, और
अय्यूब जैसे धर्मी वहाँ हों — वे केवल अपने ही प्राण बचा सकते हैं।
🧍♂️
सीख: आत्मिक विरासत सामूहिक नहीं होती
— हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के लिए ज़िम्मेदार होना पड़ता है।
🔹
21-23 पद: चार दंड – और एक उद्देश्य
परमेश्वर तलवार, अकाल, जंगली
जानवर और महामारी से न्याय लाता है। लेकिन फिर भी कुछ लोग बचेंगे।
वो जो बचेंगे, उन्हें देखकर यहेजकेल समझेगा कि
परमेश्वर का न्याय व्यर्थ नहीं था।
🌱
सीख: परमेश्वर के सभी कार्य, चाहे वे कठोर लगें, हमेशा न्याय और उद्देश्यपूर्ण
होते हैं।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर हमारे भीतर की मूर्तियों को भी देखता है — केवल
बाहरी व्यवहार नहीं।
✝️
पश्चाताप का रास्ता हमेशा खुला रहता है, पर
विलंब विनाश को बुलावा देता है।
✝️
आत्मिक ज़िम्मेदारी व्यक्तिगत होती है — दूसरों की धार्मिकता हमें
नहीं बचा सकती।
✝️
परमेश्वर का न्याय हमेशा न्यायपूर्ण और अर्थपूर्ण होता है, भले हमें तुरंत न दिखे।
📌
याद रखने योग्य वचन
“ये लोग अपने दिलों में मूर्तियाँ रखते हैं... तो क्या मैं उनकी
माँग का उत्तर दूँ?”
(यहेजकेल 14:3)
📖 यहेजकेल
अध्याय 15 – बेजान दाखलता: जब बुलाहट पर फल नहीं होता
(Ezekiel 15 – The Worthless Vine: A Calling Without Fruit)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक रूपक (parable) के रूप में है
जिसमें इस्राएल को एक दाखलता (grapevine) के समान
बताया गया है — जो फल नहीं लाती, केवल जलाने के काम आती है।
यह अध्याय हमें याद दिलाता है कि बुलाहट का सम्मान तभी है जब वह
फलवंत हो। बिना आज्ञाकारिता के बुलाहट भी व्यर्थ हो जाती है।
🔹
1-5 पद: दाखलता बनाम अन्य लकड़ी – क्या उपयोगिता है?
परमेश्वर पूछता है — "क्या दाखलता की लकड़ी किसी काम की है?
क्या उससे कोई वस्तु बनाई जाती है?"
उत्तर है – नहीं!
और यदि वह जल जाए, तो वह और भी व्यर्थ हो जाती
है।
🌿
सीख: यदि परमेश्वर की बुलाहट के बावजूद
जीवन में आत्मिक फल न हों, तो वह जीवन केवल न्याय के योग्य
रह जाता है।
🔹
6-8 पद: यरूशलेम की तुलना – बुलाए गए, पर
बर्बाद किए गए
परमेश्वर कहता है: जैसे बेजान दाखलता को आग में डाल दिया जाता है,
वैसे ही यरूशलेम के निवासियों को मैं आग में डालूँगा।
उन्होंने विश्वासघात किया, इसलिए मैं ने
मुँह फेर लिया और न्याय के लिए उन्हें सौंप दिया।
🔥
सीख: परमेश्वर की बुलाहट कोई
विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है। यदि उस पर चलें
नहीं, तो वही बुलाहट न्याय का आधार बनती है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर हमें फलवंत बनने के लिए बुलाता है, सिर्फ
बुलाए जाने से कुछ नहीं होता।
✝️
आत्मिक निष्फलता परमेश्वर की दृष्टि में घातक हो सकती है।
✝️
जब बुलाहट का अपमान होता है, तो न्याय
अपरिहार्य होता है।
✝️
परमेश्वर की दृष्टि में हमारी उपयोगिता केवल हमारे आज्ञाकारी जीवन
से आंकी जाती है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“जैसे दाखलता की लकड़ी आग में डाल दी जाती है… वैसे ही मैं
यरूशलेम के निवासियों को दूँगा।”
(यहेजकेल 15:6-7)
📖 यहेजकेल
अध्याय 16 – परमेश्वर का प्रेम, विश्वासघात
और करुणा की कहानी
(Ezekiel 16 – A Story of Love, Betrayal, and Unfailing Mercy)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय यरूशलेम के प्रति परमेश्वर के प्रेम, उसकी देखभाल और फिर उस प्रेम के घोर विश्वासघात का दिल तोड़ने वाला चित्रण
है।
यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि आत्मिक व्यभिचार (spiritual
adultery) परमेश्वर के प्रति गंभीर अपराध है, लेकिन
वह अब भी पश्चाताप करने वाले को करुणा के साथ स्वीकार करता है।
🔹
1-14 पद: परित्यक्त कन्या से रानी बनने तक का सफर
यरूशलेम को एक नवजात कन्या के रूप में दिखाया गया है — जिसे जनमते
ही छोड़ दिया गया था, नंगे और लहूलुहान हालत में।
परमेश्वर उसे उठाता है, उसकी देखभाल करता है,
और बड़े होने पर उसे सुंदर वस्त्रों, गहनों और
सम्मान से सजाता है।
"मैंने तुझसे वाचा बाँधी और तू मेरी बन गई," यह परमेश्वर का विवाह-संविधान है।
👑
सीख: परमेश्वर हमें वहाँ से उठाता है
जहाँ दुनिया ने हमें फेंक दिया हो, और हमें महिमा से भर देता
है — बिना हमारे योग्यता के।
🔹
15-34 पद: सुंदरता का अभिमान और आत्मिक व्यभिचार
यरूशलेम ने अपनी सुंदरता पर घमंड किया और उसे व्यभिचार के लिए
इस्तेमाल किया।
वह अन्य राष्ट्रों के साथ संधियाँ करके मूर्तिपूजा में लिप्त हुई।
"तू व्यभिचारिणी बन गई... न केवल देह से, पर आत्मा से भी।"
उसने अपने पुत्रों को मूर्तियों की बलि चढ़ाया।
🔥
सीख: आत्मिक विश्वासघात केवल मूर्ति की
पूजा नहीं, बल्कि परमेश्वर के बदले किसी और पर भरोसा करना भी
होता है।
🔹
35-52 पद: न्याय का निर्णय – सबूत सहित
परमेश्वर यरूशलेम के कर्मों को सामने लाता है और उसे चेतावनी देता
है कि उसकी नंगी अवस्था सभी के सामने प्रकट होगी।
"तू ने अपनी छोटी बहनें (सोदोम और सामरिया) से भी बढ़कर पाप
किया है।"
यरूशलेम जिसे निन्दा करती थी, अब उससे भी बदतर
बन गई थी।
⚖️
सीख: आत्मिक घमंड और दिखावटी धार्मिकता
सबसे बड़ा पाखंड बन जाती है जब हम खुद उस पाप में डूबे होते हैं जिसे हम दूसरों
में नापसंद करते हैं।
🔹
53-59 पद: न्याय के बाद भी आशा की किरण
परमेश्वर कहता है कि वह यरूशलेम और उसकी "बहनों" (सोदोम
और सामरिया) को लौटाएगा।
"मैं तेरे साथ की गई वाचा को स्मरण करूँगा..."
पर यह सब इसलिए नहीं होगा कि यरूशलेम इसके योग्य थी, बल्कि इसलिए कि परमेश्वर दयालु है।
🌈
सीख: जब हम टूटकर पश्चाताप करते हैं,
परमेश्वर हमारी शर्म को ढँक देता है — क्योंकि उसका प्रेम शाश्वत
है।
🔹
60-63 पद: अनन्त करुणा और नई वाचा
"मैं तेरी युवावस्था की वाचा को स्मरण करूँगा और तुझसे एक
अनन्त वाचा बाँधूँगा..."
तू लज्जित होगी, पर मैं तुझ पर दया करूँगा।
💗
सीख: परमेश्वर का प्रेम ऐसा नहीं जो
केवल अच्छे समय में टिके — वह प्रेम अनुग्रह से भरा, निरंतर और पुनर्स्थापना देने वाला है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर हमारे जीवन को शून्य से महिमा तक उठा सकता है।
✝️
आत्मिक व्यभिचार — परमेश्वर के स्थान पर किसी और पर भरोसा करना — एक
गंभीर पाप है।
✝️
घमंड और आत्म-धोखा हमारी आत्मिक मृत्यु के कारण बन सकते हैं।
✝️
परमेश्वर का न्याय सच्चा और कठोर हो सकता है, लेकिन
उसका करुणा भाव और अधिक गहरा है।
✝️
पश्चाताप करने वाला कभी परमेश्वर की करुणा से दूर नहीं होता।
📌
याद रखने योग्य वचन
"मैं तेरी युवावस्था की वाचा को स्मरण करूँगा और तुझसे एक
अनन्त वाचा बाँधूँगा।"
(यहेजकेल 16:60)
📖 यहेजकेल
अध्याय 17 – दो गरुड़ और एक वाचा: राजनैतिक छल और परमेश्वर
की सच्ची योजना
(Ezekiel 17 – The Two Eagles and a Vine: Political
Betrayal and God's True Plan)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर एक गूढ़ दृष्टांत (parable) देता है जिसमें दो गरुड़, एक दाखलता, और लबानोन का एक सीधा वृक्ष प्रमुख पात्र हैं। यह रूपक यहूदाह के राजाओं
की बेवफाई और बाबुल के विरुद्ध मिस्र पर निर्भरता को उजागर करता है। लेकिन अंत में,
परमेश्वर स्वयं एक नया वृक्ष लगाता है — जो मसीह की
भविष्यवाणी है।
🔹
1-10 पद: पहला गरुड़, दाखलता और छिपा हुआ
विश्वासघात
- एक महान गरुड़ (बाबुल का राजा) लबानोन से एक ऊँचा कोंपल तोड़ लेता है (यहूदा का राजा
यहोयाकीन) और उसे एक व्यापारिक देश में रोपता है।
- फिर उसने यहूदाह में एक और राजा (सिदकियाह) को बिठाया —
जिससे वाचा की गई कि वह बाबुल के अधीन रहेगा।
- लेकिन यह दाखलता (यरूशलेम) एक दूसरे गरुड़ (मिस्र) की ओर
झुकने लगी।
🦅 सीख: परमेश्वर के द्वारा दी गई वाचा को तोड़ना आत्मघाती होता है — चाहे वह
राजनीतिक हो या आत्मिक।
🔹
11-21 पद: दृष्टांत का अर्थ – वाचा-भंग और दंड
- परमेश्वर स्पष्ट करता है कि सिदकियाह ने बाबुल की वाचा को
तोड़कर मिस्र से सहायता मांगी।
- यह विश्वासघात परमेश्वर के न्याय को बुलाता है: "उसने शपथ भंग की… इसलिए वह नहीं बचेगा।"
- मिस्र भी उसकी सहायता नहीं कर पाएगा,
और यहूदाह के लोग तलवार और बिखराव का सामना करेंगे।
⚖️
सीख: जो शांति और सुरक्षा केवल
परमेश्वर से आनी थी, वह अन्य राष्ट्रों पर भरोसा करके खो दी
गई। मनुष्यों से सहायता माँगना, जब परमेश्वर ने राह बनाई हो,
दुष्परिणाम लाता है।
🔹
22-24 पद: आशा की भविष्यवाणी – एक नई कोंपल से एक महान वृक्ष
- परमेश्वर कहता है: “मैं लबानोन की ऊँचाई से एक कोमल कोंपल लूँगा और उसे एक ऊँचे पर्वत पर
लगाऊँगा।”
- वह कोंपल महान वृक्ष बनेगा, पक्षी उसमें बसेरा करेंगे – सभी देखेंगे कि यहोवा ने ऐसा किया है।
🌿
सीख: यह मसीह की प्रतिज्ञा है — दाऊद
के वंश से एक राजा आएगा जो सच्चा और शाश्वत राज्य स्थापित करेगा।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर की वाचा को तोड़ना आत्मघात है, चाहे
वह व्यक्ति हो या राष्ट्र।
✝️
हमारे निर्णयों का परिणाम होता है — खासकर जब हम परमेश्वर की योजना
के खिलाफ जाते हैं।
✝️
परमेश्वर अंत में उद्धार की योजना लाता है, चाहे
परिस्थिति कितनी भी अंधकारमय हो।
✝️
मसीह ही वह नया पौधा है जो सभी राष्ट्रों को शरण और जीवन देगा।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं एक कोमल कोंपल को लूँगा… और उसे एक ऊँचे पर्वत पर लगाऊँगा…
और सब जानेंगे कि यहोवा ने नीच को ऊँचा किया।”
(यहेजकेल 17:22-24)
📖 यहेजकेल
अध्याय 18 – व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और परमेश्वर का
न्यायपूर्ण हृदय
(Ezekiel 18 – Personal Responsibility and the Just Heart
of God)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर एक आम गलत सोच को चुनौती देता है: कि बच्चों
को अपने माता-पिता के पापों की सज़ा भुगतनी पड़ती है।
परमेश्वर कहता है – "जो प्राणी पाप
करता है, वही मरेगा।"
यह अध्याय न्याय, दया, और
पश्चाताप के परमेश्वरी सिद्धांतों को दर्शाता है।
🔹
1-4 पद: एक गलत कहावत को खारिज किया गया
लोग कहते थे: "पिता ने खट्टूर अंगूर
खाए, और बेटों के दाँत खट्टे हो गए।"
परमेश्वर इस विचार को अस्वीकार करता है और कहता है – “हर प्राणी मेरा है… जो पाप करता है, वही मरेगा।”
🚫
सीख: परमेश्वर सामूहिक दोषारोपण नहीं
करता – वह व्यक्तिगत हृदय, जीवन और निर्णय को देखता
है।
🔹
5-18 पद: तीन पीढ़ियाँ, तीन रास्ते
परमेश्वर तीन उदाहरण देता है:
- एक धर्मी व्यक्ति – जो न्याय करता है, मूर्तिपूजा से दूर रहता है,
दीन-दुखियों की मदद करता है — वह जीवित रहेगा।
- उसका पुत्र – एक दुष्ट – जो हिंसा करता है, मूर्तिपूजा में लिप्त रहता
है — वह मरेगा।
- उस दुष्ट का पुत्र – जो धर्मी है
– वह अपने पिता के गलत कामों को नहीं अपनाता, बल्कि धर्म में चलता है — वह जीवित रहेगा।
⚖️
सीख: कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के
अच्छे या बुरे कर्मों से न तो बचाया जा सकता है, न ही दोषी
ठहराया जा सकता है — हर आत्मा खुद के कर्मों से न्याय पाएगी।
🔹
19-24 पद: प्रश्न और उत्तर – क्या यह उचित है?
लोग पूछते हैं: "क्यों न बेटा पिता के पाप का दंड पाए?"
परमेश्वर कहता है: अगर वह अपने पापों से मन फिराकर धर्मी बनता है,
तो वह जीवित रहेगा।
पर यदि धर्मी मनुष्य भी अपने धर्म से हटकर बुराई करे, तो वह भी मर जाएगा।
🔁
सीख: हमारा अतीत नहीं, बल्कि हमारा वर्तमान चाल-चलन ही परमेश्वर की दृष्टि में निर्णय का
आधार है।
🔹
25-29 पद: परमेश्वर की दृष्टि से न्याय कैसा है?
लोग कहते हैं – "यहोवा का मार्ग ठीक नहीं है!"
पर परमेश्वर उन्हें उत्तर देता है – "क्या मेरा मार्ग ठीक नहीं
है, या तुम्हारा मार्ग टेढ़ा है?"
🪞 सीख: जब हमें परमेश्वर का न्याय कठोर लगे, तो हमें अपना
दृष्टिकोण जाँचना चाहिए – क्योंकि वह तो पूर्ण रूप से न्यायी है।
🔹
30-32 पद: पश्चाताप की पुकार और जीवन की इच्छा
परमेश्वर अंत में कहता है – "तुम मन फिराओ… अपने अपराधों को
दूर करो… मैं किसी दुष्ट की मृत्यु में प्रसन्न नहीं होता।"
“इसलिए लौट आओ, ताकि तुम जीवित रहो।”
❤️
सीख: परमेश्वर न्याय ज़रूर करता है,
पर उसका दिल हमेशा चाहता है कि हम पश्चाताप करें और जीवित रहें।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
हर व्यक्ति अपने कर्मों का उत्तरदायी है – कोई भी विरासत से पवित्र
या दोषी नहीं होता।
✝️
धर्मी जीवन के निर्णय रोज़-रोज़ लेने होते हैं – पहले का धर्म अगले
दिन की गारंटी नहीं।
✝️
परमेश्वर की दृष्टि में न्याय का आधार निष्पक्ष और व्यक्तिगत है।
✝️
परमेश्वर की इच्छा कभी भी किसी के विनाश में नहीं, बल्कि पश्चाताप और जीवन में है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मुझे दुष्ट की मृत्यु में प्रसन्नता नहीं, वरन् यह कि वह अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे।”
(यहेजकेल 18:23)
📖 यहेजकेल
अध्याय 19 – यहूदा का शेर और दाखलता: खोई हुई महिमा का विलाप
(Ezekiel 19 – Judah’s Lion Cubs and the Withered Vine: A
Lament of Lost Glory)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक "शोकगीत" (lamentation) है — यहूदाह के दो राजाओं (यहोआहाज और यहोयाकीन/सिदकियाह) की हार का
प्रतीकात्मक वर्णन है।
एक माँ अपने शेरों को खो देती है, और एक राजसी
दाखलता बंजर हो जाती है। यह एक आत्मिक और राष्ट्रीय दुखगीत है, जो परमेश्वर की दी गई महिमा के खोने की पीड़ा को दर्शाता है।
🔹
1-4 पद: पहला शेर का बच्चा – यहोआहाज
- यहूदा को शेरनी (रानी हमूतल/यहूदा की माँ) के रूप में दर्शाया गया है।
- उसका एक बच्चा शेर बन गया
— वह राजा बना, लोगों को कुचलता रहा।
- लेकिन अन्य राष्ट्र (मिस्र) ने उसे पकड़ लिया और ज़ंजीरों
में बाँधकर ले गया।
🦁 सीख: जो राजा परमेश्वर के मार्ग पर नहीं चलता, उसकी
शक्ति क्षणिक होती है — और विनाश निश्चित।
🔹
5-9 पद: दूसरा शेर का बच्चा – यहोयाकीन/सिदकियाह
- शेरनी ने दूसरा बच्चा बड़ा किया — वह भी शेर बना और
आक्रामकता दिखाई।
- परंतु राष्ट्रों ने उसे भी जाल में फँसाया और बाबुल ले गए,
ताकि उसकी आवाज़ फिर धरती पर न सुनाई दे।
⛓️
सीख: लगातार नाफ़रमानी एक पूरे वंश और
राष्ट्र को मूक बना सकती है – उसकी आवाज़ खो जाती है।
🔹
10-14 पद: दाखलता जो अब जंगल में सूख चुकी है
- यहूदा को एक सुंदर दाखलता कहा गया था — मजबूत शाखाएँ,
राजसी ताज, गहरे जल के पास।
- लेकिन अब वह उखाड़ दी गई है,
जलाकर सूखा बना दी गई है, और उसकी मजबूत
शाखाएँ टूट गई हैं।
- यह एक संकेत है कि उसका राजवंश अब समाप्तप्राय है।
🌿
सीख: आत्मिक सुंदरता और स्थायित्व केवल
परमेश्वर के प्रति निष्ठा से बना रहता है — अन्यथा वह उजड़ जाता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
यहूदा के राजाओं ने परमेश्वर की बुलाहट और आशीष को हल्के में लिया,
और उसका परिणाम विनाश हुआ।
✝️
जब नेतृत्व परमेश्वर से भटकता है, तो पूरी
पीढ़ियाँ पीड़ित होती हैं।
✝️
परमेश्वर के दृष्टिकोण में इतिहास केवल घटनाएँ नहीं, बल्कि आत्मिक सबक हैं।
✝️
विलाप (lament) आत्मिक जागृति और पश्चाताप का
आरंभिक बिंदु हो सकता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“अब वह जंगल में है… उसकी शाखा आग में जल गई… और यह एक शोकगीत बन
गया।”
(यहेजकेल 19:13-14)
📖 यहेजकेल
अध्याय 20 – विद्रोह की विरासत और दया की परछाई
(Ezekiel 20 – The Legacy of Rebellion and the Shadow of
Mercy)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर इस्राएल के इतिहास को सामने लाते हैं — कैसे
उन्होंने बार-बार विद्रोह किया, लेकिन परमेश्वर ने अपने नाम
के कारण उन्हें नष्ट नहीं किया।
यह एक ऐसा आत्मिक आईना है जिसमें इस्राएल को अपनी आत्मिक
परछाइयाँ देखनी हैं। परमेश्वर न्याय का एलान करते हैं, लेकिन
फिर भी आशा की किरण को ज़िंदा रखते हैं।
🔹
1-3 पद: बुज़ुर्गों का प्रश्न, लेकिन परमेश्वर
का उत्तर तीखा
- इस्राएल के कुछ बुज़ुर्ग यहेजकेल के पास परमेश्वर से
पूछने आते हैं।
- लेकिन परमेश्वर कहते हैं: "क्या मैं तुम्हारी पूछ सुनूँ?"
यह सवाल नहीं, एक न्याय की पुकार है।
⚖️
सीख: जब मन पश्चाताप से खाली हो,
तो परमेश्वर मौन रह सकता है।
🔹
4-9 पद: मिस्र में विद्रोह – आरंभ से ही विरोध
- परमेश्वर याद दिलाते हैं कि जब वे उन्हें मिस्र से निकाल
रहे थे, तब भी वे उनके आदेशों का उल्लंघन कर रहे
थे।
- लेकिन उन्होंने उन्हें नष्ट नहीं किया,
अपने नाम की खातिर।
🌍
सीख: परमेश्वर की दया का आधार हमारी
योग्यता नहीं, बल्कि उसका नाम और चरित्र है।
🔹
10-26 पद: जंगल में अवज्ञा – व्यवस्था का तिरस्कार
- परमेश्वर ने उन्हें सब्त
(Sabbath) दिया, लेकिन उन्होंने उसका
अपमान किया।
- उन्होंने मूर्तियों को अपनाया,
जिससे परमेश्वर का क्रोध भड़का।
- फिर भी परमेश्वर ने उन्हें जंगल में ही नाश नहीं किया —
केवल अगली पीढ़ी को देश में प्रवेश दिया।
🔥
सीख: परमेश्वर का न्याय पीढ़ियों तक
जाता है, लेकिन उसका धैर्य भी अद्भुत है।
🔹
27-32 पद: कनान में विद्रोह – मूर्तिपूजा की लत
- कनान में आकर भी उन्होंने ऊँचे स्थान बनाए और मूर्तियों
की बलि दी।
- वे कहते हैं: “हम अन्य जातियों की तरह बनना चाहते हैं।”
परमेश्वर उत्तर देते हैं: “ऐसा कभी नहीं होगा।”
🛑
सीख: जब परमेश्वर ने हमें अलग किया है,
तो संसार जैसा बनने की इच्छा आत्मघाती है।
🔹
33-44 पद: न्याय और पुनर्स्थापन – सच्ची सेवा का वादा
- परमेश्वर कहते हैं: “मैं तुम पर राज्य करूंगा… छड़ी से और
क्रोध में।”
- वह उन्हें राष्ट्रों के मध्य से इकट्ठा करेगा,
उन्हें शुद्ध करेगा, और वहां की
अविश्वासी पीढ़ी को अलग करेगा।
- अंत में वे पश्चाताप करेंगे,
और परमेश्वर उन्हें फिर से स्वीकार करेगा।
🌈
सीख: परमेश्वर का उद्देश्य केवल न्याय
नहीं, बल्कि शुद्धि और पुनर्स्थापन है।
🔹
45-49 पद: दक्षिण की ओर अग्नि – रूपक के माध्यम से भविष्यवाणी
- परमेश्वर एक अग्नि की बात करते हैं जो दक्षिण को जलाएगी —
यह यहूदा पर आने वाले न्याय का संकेत है।
- लोग इसे दृष्टांत समझेंगे, लेकिन वह एक सच्ची चेतावनी है।
🔥
सीख: जब परमेश्वर चेतावनी देता है,
तो वह केवल रूपक नहीं — आने वाली सच्चाई होती है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर इतिहास को केवल बताने के लिए नहीं, बल्कि
चेताने के लिए याद दिलाते हैं।
✝️
बार-बार की अवज्ञा अंततः न्याय को अनिवार्य बनाती है।
✝️
फिर भी, परमेश्वर की योजना उद्धार की है — वह
हमें शुद्ध करना चाहता है, नष्ट नहीं।
✝️
पश्चाताप ही हमारी वास्तविक बहाली की शुरुआत है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं तुमको उन जातियों में से निकालूँगा… और तुम जानोगे कि मैं
यहोवा हूँ।”
(यहेजकेल 20:41-42)
📖 यहेजकेल
अध्याय 21 – न्याय की तलवार: जब परमेश्वर न्याय करता है,
तो देर नहीं होती
(Ezekiel 21 – The Sword of Judgment: When God Acts, Delay
Ends)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर यहेजकेल को एक शक्तिशाली दृष्टांत और
भविष्यवाणी देता है — एक तलवार की जो न केवल चमकाई गई है, बल्कि न्याय के लिए तैयार की गई है। यह तलवार यहूदा, यरूशलेम और उसके झूठे राजाओं के विरुद्ध है। अध्याय गंभीर है, लेकिन यह दर्शाता है कि परमेश्वर जब बोलता है, तो वह
हाथ भी बढ़ाता है।
🔹
1-7 पद: दक्षिण की ओर तलवार की चेतावनी
- परमेश्वर कहते हैं: “यहोवा की तलवार दक्षिण से उत्तर तक सबको काट डालेगी।”
- यह तलवार जंगल को भी नहीं छोड़ेगी।
- यहेजकेल को रोने और कराहने को कहा गया — ताकि लोग पूछें,
“तू क्यों रो रहा है?” और उन्हें उत्तर
मिले – “क्योंकि न्याय आ गया है!”
⚔️
सीख: जब परमेश्वर न्याय लाता है,
तो नबी का काम केवल बोलना नहीं, बल्कि महसूस
करना होता है।
🔹
8-17 पद: चमकाई गई और आज़माई गई तलवार
- यह तलवार युद्ध के लिए तैयार की गई है — चमकाई गई है,
तेज की गई है।
- राजा और प्रजा, दोनों इसके लक्ष्य हैं।
- परमेश्वर कहते हैं: “तू फिर हाथ पर हाथ मार — क्योंकि यह न्याय की तलवार है।”
🔥
सीख: परमेश्वर की तलवार अंधी नहीं होती
— वह सत्य और न्याय से चलती है।
🔹
18-27 पद: बाबुल का राजा और दो रास्ते
- बाबुल का राजा दो राहों पर खड़ा है: यरूशलेम या अम्मोन।
- वह तीरों से, मूर्तियों से और यक़ीन से यरूशलेम को चुनता है।
- सिदकियाह (यहूदा का राजा) के बारे में कहा गया: “उसका ताज उतार दो… यह उस व्यक्ति का नहीं है।”
- लेकिन फिर एक रहस्यमयी वाक्य: “जब तक वह न आए जिसे यह अधिकार है… और मैं उसे दूँगा।”
👑
सीख: यह मसीह की भविष्यवाणी है – सच्चे
राजा की जो अधिकार सहित आएगा।
🔹
28-32 पद: अम्मोन पर भी न्याय
- अम्मोन यह न सोचे कि वह बच गया।
- उसके खिलाफ भी तलवार उठेगी, और वह न्याय से नहीं बचेगा।
- परमेश्वर कहते हैं: “तेरा स्मरण फिर नहीं होगा।”
🗡️
सीख: परमेश्वर सभी राष्ट्रों के
न्यायाधीश हैं — वह किसी को नहीं भूलता।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर का न्याय अचानक और स्पष्ट रूप से आता है — तैयारी का समय
सीमित है।
✝️
मनुष्य की शक्ति, राजा की सत्ता — परमेश्वर के
सामने कुछ नहीं।
✝️
झूठे मार्गदर्शन और विकल्प अंततः विनाश की ओर ले जाते हैं।
✝️
परमेश्वर का अंतिम उद्देश्य — उस सच्चे राजा का आगमन है जो
मसीह है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“ताज को उतार दो… यह उसी का होगा जो इसके योग्य है।”
(यहेजकेल 21:26-27)
📖 यहेजकेल
अध्याय 22 – पाप की परतें: जब शहर खुद अपने ख़ून से भर जाता
है
(Ezekiel 22 – Layers of Sin: When a City Becomes Full of Blood)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर यरूशलेम के गहरे और व्यापक पापों को उजागर
करते हैं — खून, भ्रष्टाचार, अन्याय,
धर्मत्याग और धोखा।
यह एक ऐसा अध्याय है जहाँ परमेश्वर न्याय के लिए एक व्यक्ति
खोजते हैं जो इस टूटे हुए शहर के लिए खड़ा हो, लेकिन कोई
नहीं मिलता।
🔹
1-16 पद: यरूशलेम की लज्जाजनक सूची
- परमेश्वर कहते हैं: “क्या तू न्याय के दिन अपने को शुद्ध समझेगा?”
- यरूशलेम को “खून से भरे शहर” के रूप में पुकारा गया है।
- हत्या, माता-पिता
का तिरस्कार, विधवाओं और परदेशियों का शोषण, यौन अनाचार, रिश्वत, मूर्तिपूजा
— यह सब यहाँ पनप चुका है।
💔
सीख: जब समाज पाप को सामान्य मान ले,
तब विनाश एक न्यायसंगत परिणाम होता है।
🔹
17-22 पद: पिघलाए गए लोगों का दृष्टांत
- परमेश्वर यरूशलेम को एक भट्टी के समान बताते हैं — जिसमें
सोना, चाँदी, लोहा सब
मिलाकर पिघलाया जा रहा है।
- यह एक शुद्धि नहीं, बल्कि न्याय की आग है।
🔥
सीख: जब लोग परमेश्वर को तुच्छ समझते
हैं, तो वह आग के द्वारा उन्हें जाँचता है।
🔹
23-29 पद: भ्रष्ट नेतृत्व – भविष्यवक्ता से लेकर याजक तक
- भविष्यवक्ता झूठी आशा देते हैं।
- याजक मेरी व्यवस्था को अपवित्र करते हैं।
- हाकिम खून बहाते हैं और लालच से भरे हैं।
- जनता दूसरों को कुचलती है, विधवा और अनाथ को तुच्छ जानती है।
⚖️
सीख: जब नेतृत्व भ्रष्ट हो जाए,
तो समाज का पतन तय है।
🔹
30-31 पद: एक मनुष्य की तलाश – लेकिन कोई नहीं
- परमेश्वर कहते हैं: “मैं एक मनुष्य खोज रहा था, जो दीवार में खड़ा
हो… पर मुझे कोई न मिला।”
- इसलिए उसका क्रोध भड़कता है और वह अपने न्याय को उन पर
उड़ेलता है।
😭
सीख: कभी-कभी सबसे बड़ा शोक यह होता है
कि कोई मध्यस्थ नहीं होता – कोई भी परमेश्वर के सामने खड़ा नहीं होता।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
सामाजिक और आध्यात्मिक भ्रष्टता मिलकर एक राष्ट्र को पतन की ओर ले
जाती है।
✝️
जब भविष्यवक्ता, याजक, राजा
और लोग — सभी परमेश्वर से भटक जाएँ, तो न्याय अपरिहार्य होता
है।
✝️
परमेश्वर हमेशा किसी एक को खोजना चाहता है जो उसके सामने खड़ा हो —
क्या हम वह होंगे?
✝️
आग केवल विनाश के लिए नहीं, शुद्धि के लिए भी
आती है — यह हमारे रवैये पर निर्भर करता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं एक मनुष्य ढूँढ़ता रहा… पर मुझे कोई न मिला।”
(यहेजकेल 22:30)
📖 यहेजकेल
अध्याय 23 – ओहोला और ओहोलिबा: आत्मिक व्यभिचार की कहानी
(Ezekiel 23 – Oholah and Oholibah: A Tale of Spiritual
Adultery)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय प्रतीक और रूपकों के ज़रिए इस्राएल और यहूदा के आत्मिक
पतन को दर्शाता है। ओहोला (शमरोन / इस्राएल) और ओहोलिबा (यरूशलेम / यहूदा) दो
बहनें हैं जिन्होंने परमेश्वर के साथ अपने वफादार संबंध को छोड़कर अन्य राष्ट्रों
के साथ व्यभिचार किया — यह मूर्तिपूजा और विदेशी सहायता पर निर्भरता का प्रतीक है।
यह अध्याय कठोर, स्पष्ट और आत्मनिरीक्षण के
लिए अत्यंत ज़रूरी है।
🔹
1-10 पद: ओहोला – शमरोन की कहानी
- ओहोला ने अशूरियों के साथ व्यभिचार किया।
- उसने विदेशी सैनिकों और उनकी ताकत पर मोहित होकर परमेश्वर
को छोड़ दिया।
- इसलिए परमेश्वर ने उसे अशूरियों के ही हाथों सौंप दिया —
जिन्होंने उसे नंगा किया और नाश किया।
⚠️
सीख: जब हम जिन पर भरोसा करते हैं,
वही हमारे विरुद्ध हो जाते हैं — यह आत्मिक विश्वासघात का फल है।
🔹
11-21 पद: ओहोलिबा – यरूशलेम की बढ़ी हुई भ्रष्टता
- ओहोलिबा ने ओहोला की गलतियों को देखा,
लेकिन उनसे सीखा नहीं — बल्कि उससे भी आगे बढ़ गई।
- उसने अशूरियों, फिर बाबुलियों से आत्मिक व्यभिचार किया।
- बचपन की मिस्र की यादें उसे फिर खींचती हैं — यह दर्शाता
है कि आत्मिक पतन कितनी गहराई तक होता है।
💔
सीख: जब चेतावनी अनसुनी हो जाए,
तो विनाश निश्चित हो जाता है।
🔹
22-35 पद: सजा – ओहोलिबा को धोखे का फल मिलेगा
- परमेश्वर कहते हैं: “मैं उन्हीं को तेरे विरुद्ध लाऊँगा
जिनसे तूने प्रेम किया।”
- वे तुझ पर न्याय करेंगे और तुझे दंड देंगे।
- तेरा प्याला कड़वा होगा — शर्म,
अपमान, और बर्बादी से भरा।
🥀 सीख: पाप का आनंद क्षणिक होता है, लेकिन उसका फल
दीर्घकालीन और घातक होता है।
🔹
36-49 पद: दोनों बहनों का न्याय
- परमेश्वर यहेजकेल से कहते हैं: “इन दोनों के लिए न्याय
सुनाओ।”
- उन्होंने अपने बच्चों को मूर्तियों के लिए बलिदान किया।
- परमेश्वर कहता है: “वे व्यभिचारी हैं और उनके हाथ खून से
भरे हैं।”
- लोगों के सामने उनका न्याय होगा — ताकि सब जानें कि यहोवा
धर्मी है।
⚖️
सीख: जो गुप्त पाप है, परमेश्वर उसे उजागर करता है ताकि पूरे समाज को चेतावनी मिले।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
आत्मिक विश्वासघात (Spiritual adultery) परमेश्वर
के दृष्टिकोण में अत्यंत गंभीर अपराध है।
✝️
परमेश्वर धैर्यवान है, परंतु जब माफी को
ठुकराया जाता है, तो वह न्याय करता है।
✝️
हम जिन चीज़ों पर मोहित होते हैं, वही हमारे
विनाश का कारण बन सकती हैं।
✝️
चेतावनी को अनदेखा करना सबसे बड़ा आत्मिक अंधापन है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“इसलिए मैं तुझ पर तेरे ही प्रेमियों को चढ़ा दूँगा… और वे तेरा
नाश करेंगे।”
(यहेजकेल 23:22)
📖 यहेजकेल
अध्याय 24 – उबलती हांडी और टूटा दिल: परमेश्वर का अंतिम
संकेत
(Ezekiel 24 – The Boiling Pot and the Broken Heart: God’s
Final Sign)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय यहेजकेल की भविष्यवाणियों में एक निर्णायक मोड़ है। उसी
दिन जब बाबुल की सेना ने यरूशलेम को घेरना शुरू किया, परमेश्वर
ने यहेजकेल को दो शक्तिशाली प्रतीक दिए — एक उबलती हांडी, और
दूसरा उसकी अपनी पत्नी की मृत्यु।
पहला चित्र यरूशलेम की भीतर की गंदगी को दर्शाता है, और दूसरा एक नबी की पीड़ा को, जो राष्ट्र की पीड़ा
का प्रतीक बनता है।
🔹
1-14 पद: उबलती हांडी का दृष्टांत – यरूशलेम का अंदरूनी सड़ाव
- यह वही दिन था जब बाबुल की घेराबंदी शुरू हुई।
- परमेश्वर कहते हैं: “एक हांडी रखो… उसमें मांस,
हड्डियाँ, और टुकड़े डालो।”
- हांडी यरूशलेम है, और मांस उसके लोग हैं।
- परंतु यह हांडी गंदी है — उसे जितना भी उबाला जाए,
उसमें की गंदगी नहीं निकलती।
🔥
सीख: परमेश्वर बाहर की नहीं, अंदर की अशुद्धता पर न्याय करता है — जो भीतर से सड़ चुका है, वह अब और नहीं टिक सकता।
🔹
15-24 पद: यहेजकेल की पत्नी की मृत्यु – मौन शोक का आदेश
- परमेश्वर कहते हैं: “मैं आज तेरी आँखों की प्रिय वस्तु को
ले लूँगा।”
- उसी शाम उसकी पत्नी मर जाती है,
लेकिन परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह न तो रोए, न शोक करे।
- यह एक प्रतीक है — जैसे यहेजकेल का दुःख भीतर रहेगा,
वैसे ही यरूशलेम का दुःख ऐसा होगा जिसे रोया भी नहीं जा सकेगा,
क्योंकि चारों ओर केवल विनाश होगा।
💔
सीख: नबी का जीवन केवल संदेश नहीं,
एक जीवित प्रतीक भी होता है — परमेश्वर कभी-कभी सबसे कठिन तरीकों से
बात करता है।
🔹
25-27 पद: भविष्यवाणी की समाप्ति — और एक नई शुरुआत का संकेत
- परमेश्वर कहते हैं: “जिस दिन यरूशलेम का भाग्य तय होगा, उस दिन तेरी
चुप्पी टूटेगी।”
- यह संकेत है कि न्याय के बाद एक नई दिशा आएगी — जहाँ वचन
फिर बोले जाएँगे, परंतु तब तक मौन
ही संदेश होगा।
🕊️
सीख: कभी-कभी मौन ही सबसे ज़्यादा
बोलता है — परमेश्वर की मौन उपस्थिति न्याय के समय एक भारी सत्य बन जाती है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर समय के साथ कार्य करता है — उसकी चेतावनियाँ अचानक
कार्यवाही में बदल सकती हैं।
✝️
अंदरूनी पाप (जैसे गर्व, स्वार्थ, धोखा) बाहर की धार्मिकता को व्यर्थ कर देते हैं।
✝️
नबी का जीवन केवल वचन नहीं, प्रमाण भी होता
है।
✝️
शोक भी एक संदेश बन सकता है — जब परमेश्वर आदेश देता है, तो संवेदनाएँ भी समर्पण में आ जाती हैं।
📌
याद रखने योग्य वचन
“देख, मैं आज तेरी आँखों की प्रिय वस्तु को
तुझसे छीन लूँगा… पर तू रोए न और न शोक करे।”
(यहेजकेल 24:16)
📖 यहेजकेल
अध्याय 25 – चार राष्ट्र, एक न्याय:
परमेश्वर के लोगों पर हँसी उड़ाना महँगा पड़ता है
(Ezekiel 25 – Four Nations, One Justice: Mocking God's
People Comes at a Cost)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर यहेजकेल के द्वारा चार पड़ोसी राष्ट्रों – अम्मोन,
मोआब, एदोम और पलिश्तियों – के विरुद्ध न्याय की घोषणा करते हैं। इन राष्ट्रों ने इस्राएल की पीड़ा पर
हँसी उड़ाई, उसे धोखा दिया, और उसमें
नमक छिड़का।
परमेश्वर न केवल अपने लोगों को न्याय के लिए दंडित करता है, बल्कि उन पर हाथ उठाने वालों से भी पूरा हिसाब करता है।
🔹
1-7 पद: अम्मोन – जब तू ने “वाह वाह!” कहा
- जब यरूशलेम गिरा, अम्मोन ने ताली बजाई और खुशी मनाई।
- परमेश्वर कहता है: “मैं तेरे देश को पूर्व दिशा के लोगों
को दे दूँगा… तू नष्ट हो जाएगा और तू जान जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।”
⚠️
सीख: दूसरों के दुःख पर आनंद मनाना
हमें न्याय के योग्य बना देता है।
🔹
8-11 पद: मोआब – “यह भी तो बाकी जातियों जैसा है!”
- मोआब ने इस्राएल की पवित्रता का मज़ाक उड़ाया,
उसे आम राष्ट्रों जैसा बताया।
- परमेश्वर कहता है: “मैं उसकी सीमाओं को तोड़ दूँगा… और
उसे पूर्वी लोगों को दे दूँगा।”
🧱 सीख: जो परमेश्वर की पहचान और बुलाहट को तुच्छ समझते हैं, वे उसकी महिमा को अनुभव नहीं कर पाते।
🔹
12-14 पद: एदोम – प्रतिशोध की आग में जलते हुए
- एदोम ने यहूदा से बदला लिया – एक पुराने भाई से।
- परमेश्वर कहता है: “मैं एदोम से अपने हाथ से बदला लूँगा,
इस्राएल के द्वारा।”
🔥
सीख: बदला लेना मनुष्य का कार्य नहीं –
परमेश्वर न्याय स्वयं करता है।
🔹
15-17 पद: पलिश्ति – पुराने बैर का बदला
- पलिश्तियों ने “पुरानी बैरभावना” से शत्रुता दिखाई और
विनाश के इरादे से वार किया।
- परमेश्वर कहता है: “मैं उन पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा… और वे
जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ।”
⚔️
सीख: जब शत्रुता न्याय के बजाय क्रूरता
बन जाए, तो परमेश्वर हस्तक्षेप करता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर केवल अपने लोगों का न्याय नहीं करता, बल्कि उनके शत्रुओं का भी।
✝️
दूसरों की कमजोरी पर उपहास या लाभ उठाना परमेश्वर के सामने घोर
अपराध है।
✝️
परमेश्वर याद रखता है – सब हँसी, सब घाव,
और हर धोखा।
✝️
परमेश्वर का न्याय व्यापक है – वह सीमाओं, भाषाओं
और जातियों से परे है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“और वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ, जब मैं
अपना पलटा उन पर उतारूँगा।”
(यहेजकेल 25:17)
📖 यहेजकेल
अध्याय 26 – तीरुस का विनाश: जब घमंड समुद्र में डूबता है
(Ezekiel 26 – The Fall of Tyre: When Pride Sinks into the
Sea)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर एक महान व्यापारिक नगर तीरुस
(Tyre) के विरुद्ध भविष्यवाणी करता है। तीरुस, जो समृद्धि और समुद्री व्यापार के कारण “समुद्र की रानी” कहलाता था,
यरूशलेम के पतन पर प्रसन्न हुआ।
परमेश्वर उसके घमंड और निर्दयता के कारण उसे समुद्र में गिराने का
निर्णय करता है। यह अध्याय न केवल एक नगर का, बल्कि एक
संस्कृति और साम्राज्य के अंत की भी गाथा है।
🔹
1-6 पद: यरूशलेम की तबाही पर तीरुस की खुशी
- तीरुस ने सोचा: “अब यरूशलेम उजड़ गया है,
उसका व्यापार मेरे पास आएगा।”
- परमेश्वर कहता है: “मैं बहुत सी जातियों को समुद्र की
लहरों की तरह तेरे विरुद्ध लाऊँगा।”
⚠️
सीख: जब हम दूसरों की तबाही में अवसर
ढूँढ़ते हैं, तो परमेश्वर उसे गंभीर अपराध मानता है।
🔹
7-14 पद: नबूकदनेस्सर का आक्रमण – परमेश्वर का हथियार
- परमेश्वर नबूकदनेस्सर, बाबुल के राजा को तीरुस के विरुद्ध उठाता है।
- वह नगर की दीवारें ढहाएगा, उसके भवन तोड़ेगा, और उसकी धूल को समुद्र में
फैला देगा।
- तीरुस “चट्टानों पर सूखी जगह” बन जाएगा – जहाँ मछलियाँ
सुखाई जाती हैं।
⚔️
सीख: परमेश्वर की दृष्टि में घमंड और
आत्मनिर्भरता का पतन निश्चित है।
🔹
15-18 पद: समुद्री राष्ट्रों का विलाप
- तीरुस के पतन से अन्य समुद्री व्यापारी और राष्ट्र काँप
उठेंगे।
- वे कहेंगे: “कौन तुझ-जैसा महान नगर अब मिट्टी में मिल गया?”
- तीरुस, जो
समुद्र में स्वर्ग-सा लगता था, अब डर का कारण बन गया।
💔
सीख: जो लोग हमें सराहते हैं, वे भी हमारे पतन पर आँसू बहा सकते हैं – लेकिन हमें बचा नहीं सकते।
🔹
19-21 पद: स्थायी विनाश – तीरुस अब कभी पहले जैसा नहीं होगा
- परमेश्वर कहता है: “मैं तुझे गहरे पानी में डुबा दूँगा...
तू फिर कभी न बसाया जाएगा।”
- “मैं तुझे मिटा डालूँगा, तू फिर कभी नहीं
मिलेगा।”
🌊
सीख: कुछ विनाश ऐसे होते हैं जो
चेतावनी नहीं बल्कि न्याय होते हैं – पूर्ण और अंतिम।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर राष्ट्रों के घमंड और लालच को देखता है और समय पर न्याय
करता है।
✝️
दूसरों की पीड़ा पर लाभ ढूँढ़ना आत्मिक दृष्टि से घातक होता है।
✝️
परमेश्वर के न्याय से कोई नगर, राष्ट्र या
साम्राज्य बड़ा नहीं होता।
✝️
महानता स्थायी नहीं होती – यदि वह न्याय और दया पर आधारित न हो।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं तुझे चट्टान पर सूखी जगह बनाऊँगा… तू फिर कभी बसाया न
जाएगा।”
(यहेजकेल 26:14)
📖 यहेजकेल
अध्याय 27 – सोर का विलाप: वैभव से विनाश तक
(Ezekiel 27 – The Lament for Tyre: From Glory to Ruin)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक शोकगीत (lament) है – एक
वैभवशाली शहर “सोर” (Tyre) के लिए जो व्यापार, सुंदरता और ताकत का प्रतीक था।
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह उसके लिए विलाप करे, क्योंकि उसकी घमंड और वैभवपूर्ण जीवनशैली अंततः समुद्र में डूब जाएगी।
यह अध्याय हमें सिखाता है कि कितनी भी बुलंदियों पर कोई हो, अगर वह घमंड में परमेश्वर को भूल जाए, तो उसका पतन
निश्चित है।
🔹
1-4 पद: सोर – समुद्र की रानी
परमेश्वर कहता है, “हे सोर, तू कहती थी, ‘मैं सुंदरता की परिपूर्णता हूँ।’”
यह शहर समुद्र के बीच बसा था, जहाजों की तरह
बना, व्यापार का केंद्र था, और अपनी
सुंदरता पर गर्व करता था।
🌊
सीख: जब कोई स्थान या व्यक्ति अपनी
सुंदरता और सफलता को अपना “ईश्वर” बना लेता है, तब पतन पास आ
जाता है।
🔹
5-11 पद: शानदार जहाज़ – सोर का समुद्री वैभव
सोर को एक भव्य जहाज के रूप में दिखाया गया है, जो उत्तम लकड़ी, बढ़िया पाल, और
कुशल नाविकों से बना है।
तरह-तरह की कौमों और राष्ट्रों से उसके चालक, सैनिक
और कारीगर आए थे।
🚢
सीख: संगठन और समृद्धि कोई सुरक्षा
नहीं — अगर नींव घमंड पर हो।
🔹
12-25 पद: व्यापार का स्वर्ण युग – वैश्विक संपर्क
सोर ने तरशीश, यावान, अराब,
अश्शूर, यहूदा, दान और
मिस्र जैसे देशों से व्यापार किया — सोना, चाँदी, ताम्बा, लोहा, मसाले, कपड़े, घोड़े, और इंसानों तक
का व्यापार।
💰
सीख: आर्थिक सफलता आत्मिक सुरक्षा की
गारंटी नहीं होती। पूरी दुनिया से संबंध होने के बाद भी पतन हो सकता है।
🔹
26-36 पद: तूफान आया – और जहाज़ डूब गया
फिर वह दृश्य बदलता है — सोर का वैभवशाली जहाज़ अब समुद्र के बीच तूफान
में फँस गया है।
उसके नाविक, व्यापारी, योद्धा
— सब समुद्र में बह जाते हैं।
दूसरे राष्ट्र खड़े होकर विलाप करते हैं:
“तेरी सुंदरता समुद्र में गिर गई... तेरे व्यापारी सन्न हो गए।”
⚓
सीख: घमंड का जहाज़ चाहे जितना भव्य हो,
परमेश्वर के तूफान से नहीं टिक सकता।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
जो खुद को “सुंदरता की परिपूर्णता” समझते हैं, वे सबसे पहले गिरते हैं।
✝️
वैश्विक व्यापार, शक्ति, और समृद्धि आत्मिक सच्चाई का विकल्प नहीं हो सकते।
✝️
परमेश्वर समय देता है – पर जब न्याय आता है, तो
वैभव भी बचा नहीं सकता।
✝️
हमारे जीवन का जहाज़ नम्रता, सच्चाई और
परमेश्वर पर आधारित होना चाहिए — तभी वह तूफानों में टिकेगा।
📌
याद रखने योग्य वचन
“हे सोर, तू समुद्र के बीच गिर गई... तेरी
सुंदरता सब डूब गई।”
(यहेजकेल 27:27-28)
📖 यहेजकेल
अध्याय 28 – घमंड की गहराई: एक राजा या स्वर्गदूत गिरा?
(Ezekiel 28 – The Fall of Pride: A King or an Angel
Fallen?)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय पहले तो सोर के राजा को संबोधित करता है — जो खुद
को “ईश्वर” समझ बैठा था।
लेकिन फिर भाषा और चित्रण अचानक ऐसे बदलते हैं कि यह केवल किसी
इंसान पर लागू नहीं होता — यह एक आध्यात्मिक पतन की भी झलक देता है,
जिसे कुछ विद्वान शैतान के पतन से जोड़ते हैं।
फिर इस अध्याय का अंत सिदोन (Sidon) के
विरुद्ध न्याय और इस्राएल के लिए आशा के साथ होता है।
🔹
1-10 पद: “मैं ईश्वर हूँ!” – सोर का राजा और उसका घमंड
राजा कहता है: “मैं परमेश्वर हूँ, समुद्र के
बीच परमेश्वर की गद्दी पर बैठा हूँ।”
लेकिन परमेश्वर कहता है — “तू इंसान है, ईश्वर
नहीं।”
राजा को अपनी बुद्धि, व्यापार और वैभव पर घमंड
था, पर उसी घमंड ने उसे विनाश की ओर ले जाया।
⚖️
सीख: जब कोई खुद को ईश्वर समझने लगे,
तो उसका अंत निश्चित होता है — चाहे वह राजा हो या साधारण जन।
🔹
11-19 पद: “तू सिद्ध था… जब तक पाप न मिला” – एक स्वर्गिक प्राणी
की झलक
अब एक और विलाप शुरू होता है, लेकिन यह किसी
साधारण राजा की तरह नहीं लगता:
👉
“तू सिद्धता की मिसाल था... एदन की वाटिका में था...”
👉
“तेरे ऊपर रत्नों की शोभा थी...”
👉
“तू अभिषिक्त करूब था...”
👉
“तू निर्दोष था... जब तक तुझ में पाप न पाया गया।”
इन वचनों में ऐसा प्रतीत होता है कि
यह कोई स्वर्गिक प्राणी था जो घमंड के कारण गिर गया।
यहाँ “शैतान” के पतन की तुलना की जाती है — एक दिन जब उसने ईश्वर
बनना चाहा, और स्वर्ग से गिरा।
🔥
सीख: परमेश्वर के निकट होने से कोई
स्थायी नहीं हो जाता – विनम्रता ही हमें टिकाए रखती है।
🔹
20-24 पद: सिदोन के विरुद्ध न्याय
अब परमेश्वर सिदोन (Tyre के पास का नगर) को भी
चेतावनी देता है – “मैं उसमें न्याय भेजूँगा, और वह जानेंगे
कि मैं यहोवा हूँ।”
वह कहता है कि वह उस नगर को रोग, खून और आतंक
से मार डालेगा।
🩸 सीख: न्याय सबको मिलेगा — सिर्फ बड़े राष्ट्र नहीं, पास
के छोटे नगर भी नहीं बचेंगे।
🔹
25-26 पद: इस्राएल के लिए आशा
फिर परमेश्वर कहता है:
“मैं अपने लोगों को इकट्ठा करूँगा… वे अपने देश में शांति से
बसेंगे… और फिर वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ।”
यहाँ, पूरे अध्याय के शोक के बीच, एक आशा की किरण चमकती है।
🌈
सीख: परमेश्वर का अंतिम उद्देश्य न्याय
नहीं, बहाली है — वह अपने लोगों को लौटाता और पुनःस्थापित
करता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
जो खुद को ईश्वर समझता है, वह जल्दी या देर से
गिरेगा।
✝️
आत्मिक ऊँचाई विनम्रता मांगती है — घमंड पतन लाता है, चाहे वह राजा हो या करूब।
✝️
परमेश्वर हर घमंडी को नीचे लाता है, पर अपने
लोगों को उठाता भी है।
✝️
आशा और उद्धार हमेशा उसकी योजना का हिस्सा होते हैं — वह केवल नाश
नहीं करता।
📌
याद रखने योग्य वचन
“तेरा मन घमंड से फूल गया... तू सोचता है कि मैं ईश्वर हूँ... पर तू
मनुष्य है, ईश्वर नहीं।”
(यहेजकेल 28:2)
📖 यहेजकेल
अध्याय 29 – फ़िरौन की मूर्खता: नील का मगरमच्छ नहीं,
मिट्टी का आदमी
(Ezekiel 29 – The Foolish Pharaoh: Not Nile’s Crocodile
but Dust of the Earth)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय मिस्र के राजा फ़िरौन के खिलाफ परमेश्वर के न्याय की
उद्घोषणा है।
फ़िरौन ने खुद को “नील नदी का स्वामी” कहा, खुद
को मगरमच्छ (जल का महान प्राणी) समझा — पर परमेश्वर उसे हुक में फँसी मछली की तरह
खींच लेगा।
यह अध्याय बताता है कि परमेश्वर किसी भी राष्ट्र को घमंड में टिकने
नहीं देता – और न ही उसे जो झूठी सुरक्षा देता है।
🔹
1-7 पद: फ़िरौन – “नील मेरा है, मैंने उसे
बनाया है!”
परमेश्वर फ़िरौन से कहता है:
“तेरा मन ऊँचा हो गया है… तू कहता है, ‘नील
नदी मेरी है, मैंने उसे बनाया है।’”
परमेश्वर कहता है, “मैं तेरे जबड़े में काँटा
लगाऊँगा, और तुझे नदी से निकाल फेंकूँगा – तू और तेरी सारी
मछलियाँ मैदान में गिरोगे।”
🐊
सीख: जो अपने संसाधनों और सामर्थ्य को
अपनी महिमा मानता है, वह परमेश्वर की दृष्टि में मूर्ख है।
🔹
8-12 पद: मिस्र का उजाड़ बनना – 40 वर्षों
का बनवास
परमेश्वर कहता है, “मैं मिस्र को उजाड़ कर
दूँगा… मनुष्य और पशु नहीं रहेंगे… और वह 40 वर्षों तक उजड़ा
रहेगा।”
यहाँ मिस्र के लिए एक प्रतीकात्मक निर्वासन है — जो न केवल
भौगोलिक, बल्कि आत्मिक भी है।
⏳ सीख: परमेश्वर राष्ट्रों को समय देता है – लेकिन जब धैर्य का अन्त होता है,
तो न्याय आता है।
🔹
13-16 पद: बहाली – लेकिन महिमा नहीं
परमेश्वर कहता है कि 40 साल बाद वह मिस्र को
फिर से बसाएगा — लेकिन अब वह “दूसरे राज्यों में सबसे नीचा” रहेगा।
वह फिर कभी “इस्राएल का सहारा” नहीं बनेगा।
🪨 सीख: परमेश्वर क्षमा करता है, पर घमंड की ऊँचाई फिर से
नहीं लौटती। जो टूटा, वह फिर से टिका, लेकिन
पहले जैसा नहीं रहा।
🔹
17-21 पद: बाबुल को मिस्र की मजदूरी मिलेगी
यहाँ एक दिलचस्प और अनोखा खंड आता है — परमेश्वर बाबुल को “मिस्र की
लूट” देने का वचन देता है।
नेबूकदनेस्सर ने सोर (Tyre) पर मेहनत की थी
लेकिन कुछ न पाया।
इसलिए मिस्र अब इनाम बनेगा — एक तरह से ईश्वर का न्याय का
औज़ार बन कर बाबुल को पुरस्कृत करेगा।
💼
सीख: परमेश्वर राष्ट्रों का उपयोग करता
है — अपने उद्देश्य पूरे करने के लिए, भले ही वे खुद उसे न
जानते हों।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
घमंड का अंत लज्जा है — चाहे व्यक्ति हो या राष्ट्र।
✝️
परमेश्वर नदियों और राजाओं दोनों का स्वामी है – केवल वही कह सकता
है “यह मेरा है।”
✝️
असली सुरक्षा परमेश्वर में है, न कि किसी झूठे
सहारे (जैसे मिस्र)।
✝️
परमेश्वर अपने उद्देश्य के लिए राष्ट्रों को स्थानांतरित, गिरा और उठाता है – वह सर्वोच्च राजा है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मैं मिस्र को उजाड़ कर दूँगा... और वह दूसरी राजगद्दियों में सबसे
नीचा रहेगा।”
(यहेजकेल 29:15)
📖 यहेजकेल
अध्याय 30 – यहोवा का दिन: अंधकार और विनाश का समय
(Ezekiel 30 – The Day of the Lord: A Time of Doom and Darkness)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय मिस्र पर आने वाले विनाश की एक गहन भविष्यवाणी है।
परमेश्वर यह स्पष्ट करता है कि न केवल मिस्र, बल्कि
उसके सहयोगी राष्ट्र (कूश, पूत, लूद,
कूब, और अन्य) भी इस न्याय में गिरेंगे।
"यहोवा का दिन" — एक ऐसा समय है जब परमेश्वर हस्तक्षेप
करता है और संसार के घमंड को तोड़ता है।
🔹
1-5 पद: यहोवा का दिन — न्याय की घोषणा
परमेश्वर कहता है, “हाय! वह दिन निकट है —
यहोवा का दिन निकट है।”
यह दिन बादलों से ढका हुआ अंधकारमय दिन होगा।
मिस्र और उसके मित्र राष्ट्र (कूश, पूत,
लूद आदि) तलवार से गिरेंगे।
🌩️
सीख: यहोवा का दिन केवल आशा का दिन
नहीं है — यह न्याय और शुद्धि का भी दिन है।
🔹
6-9 पद: घमंड का पतन
परमेश्वर विशेष रूप से कहता है कि मिस्र का घमंड — उसकी शक्ति और
प्रतिष्ठा — तोड़ दी जाएगी।
देश भर में अफरा-तफरी और भय फैल जाएगा।
"जो लोग मिस्र को सहारा देते थे, वे भी
गिरेंगे।"
⚔️
सीख: जिन पर हम भरोसा करते हैं अगर वे
परमेश्वर से दूर हैं, तो वे खुद भी गिर जाएंगे और हमें भी
गिरा देंगे।
🔹
10-12 पद: बाबुल द्वारा न्याय
परमेश्वर स्पष्ट करता है कि वह बाबुल के राजा नेबूकदनेस्सर को मिस्र
पर चढ़ाई करने के लिए भेजेगा।
वह मिस्र की नदियों को सूखा कर देगा, और उसके
अहंकारी शहरों को नष्ट कर देगा।
🪓 सीख: परमेश्वर किसी भी राष्ट्र को न्याय के लिए अपने औज़ार के रूप में
इस्तेमाल कर सकता है — यहाँ तक कि एक दुष्ट राष्ट्र को भी।
🔹
13-19 पद: मिस्र के प्रमुख शहरों का पतन
परमेश्वर मिस्र के महान शहरों (नोफ, पथ्रोस,
सिऊन, थेबेस आदि) का विशेष रूप से उल्लेख करता
है।
सबका विनाश निश्चित है — वे शोक करेंगे, भय से
भरेंगे और उजाड़ हो जाएंगे।
🏙️
सीख: चाहे शहर कितना भी शक्तिशाली हो,
परमेश्वर के सामने वह मिट्टी के घर जैसा है।
🔹
20-26 पद: फिरौन की टूटी भुजा
परमेश्वर एक प्रतीकात्मक दृश्य देता है —
"मैं फ़िरौन की भुजा तोड़ दूँगा... और बाबुल के राजा की भुजा
को मजबूत करूँगा।"
फ़िरौन का बल, उसकी सेना, सब टूट जाएंगे।
लेकिन बाबुल की शक्ति समय के लिए परमेश्वर की योजना का हिस्सा होगी।
🦴 सीख: शक्ति परमेश्वर देता है और वही वापस भी ले सकता है — चाहे वह राजा हो,
राष्ट्र हो, या व्यक्ति।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
“यहोवा का दिन” चेतावनी का दिन है — नम्र होने का समय है।
✝️
घमंड, झूठी शक्ति और गलत सहारे अंततः हमें
धोखा देंगे।
✝️
परमेश्वर का न्याय निष्पक्ष और अपरिहार्य है — वह देर कर सकता है,
पर टालता नहीं।
✝️
सिर्फ परमेश्वर में भरोसा करने से ही हम स्थिर रह सकते हैं जब बाकी
सब गिर रहा हो।
📌
याद रखने योग्य वचन
“हाय! वह दिन निकट है... यहोवा का दिन निकट है — बादलों का दिन होगा,
वह जातियों का समय होगा।”
(यहेजकेल 30:3)
📖 यहेजकेल
अध्याय 31 – असीरिया की गिरी हुई महानता: मिस्र के लिए
चेतावनी
(Ezekiel 31 – The Fall of Assyria: A Warning to Egypt)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर मिस्र से कहता है:
"अगर असीरिया जैसा महान राष्ट्र भी अपने घमंड के कारण गिर सकता
है, तो तुम कैसे बचोगे?"
असीरिया को एक विशाल, भव्य देवदार वृक्ष के
रूप में चित्रित किया गया है — ऊँचा, सुंदर और सब राष्ट्रों
से ऊपर — लेकिन अंत में वह भी नीचे गिरा दिया गया।
🔹
1-9 पद: असीरिया – एक विशाल देवदार
परमेश्वर असीरिया को लेबानोन के एक भव्य देवदार वृक्ष जैसा बताता
है:
👉
उसकी ऊंचाई आकाश को छूती थी।
👉
उसकी शाखाओं में अन्य राष्ट्रों के पक्षी बसे थे।
👉
उसकी जड़ें गहरी थीं, और बहुत से देश उससे
लाभान्वित हो रहे थे।
🌲
सीख: महानता जब परमेश्वर के प्रति नम्र
नहीं होती, तो वह खतरे में पड़ जाती है।
🔹
10-14 पद: ऊंचाई का घमंड — और पतन
फिर परमेश्वर कहता है:
“क्योंकि वह अपने ऊँचाई के कारण घमंड करने लगा था, इसलिए मैंने उसे दुष्ट राष्ट्रों के हाथ में सौंप दिया।”
असीरिया गिरा — और सारे राष्ट्र चकित हो गए।
⚡
सीख: घमंड, चाहे
कितना भी छिपा हो, परमेश्वर की दृष्टि से नहीं बच सकता। वह
घमंड को गिरा ही देता है।
🔹
15-17 पद: गहरा शोक – नीचे का संसार भी काँप उठा
जब असीरिया गिरा, तो न केवल पृथ्वी, बल्कि अधोलोक (पाताल) भी हिल गया।
गिरे हुए राष्ट्र उसके साथ नीचे चले गए।
चारों ओर भय, शोक और सन्नाटा छा गया।
💀
सीख: बड़े पतन सिर्फ व्यक्तियों के
नहीं, राष्ट्रों और सभ्यताओं के भी होते हैं — और उनका
प्रभाव गहरा और दूरगामी होता है।
🔹
18 पद: मिस्र, तेरा भी वही हाल होगा
परमेश्वर अब मिस्र से सीधा कहता है:
"अब तू भी अपने गौरव के कारण असीरिया की तरह गिर पड़ेगा।"
यह एक गंभीर चेतावनी थी कि मिस्र अपनी महानता पर न इतराए।
🪞 सीख: दूसरों के पतन को देखकर खुद को बदल लेना ही सच्ची बुद्धिमानी है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
ऊंचाई घमंड पैदा कर सकती है — सावधानी रखो।
✝️
परमेश्वर महानता देता है, लेकिन वह चाहता है
कि हम उसमें नम्र बने रहें।
✝️
अन्य राष्ट्रों और व्यक्तियों का पतन हमारे लिए चेतावनी है — हमें
उनसे शिक्षा लेनी चाहिए।
✝️
परमेश्वर का न्याय हर जगह पहुँचता है — चाहे धरती हो या पाताल।
📌
याद रखने योग्य वचन
“क्योंकि वह अपनी ऊँचाई के कारण घमंड करने लगा था... इसलिए मैं ने
उसे दुष्टतम जाति के हाथ में सौंप दिया।”
(यहेजकेल 31:10-11)
📖 यहेजकेल
अध्याय 32 – मिस्र का अंतिम शोकगीत: घमंड का अंधकार में
डूबना
(Ezekiel 32 – The Final Lament for Egypt: Pride Sinks into Darkness)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय मिस्र के विनाश का चित्रण शोकगीत (lament) के रूप में करता है।
मिस्र के राजा फिरौन को एक शक्तिशाली मगरमच्छ बताया गया है, जिसे परमेश्वर पकड़ कर मिट्टी और रक्त में गिरा देगा।
अध्याय का अंत हमें पाताल (Sheol) में ले जाता
है, जहाँ फिरौन दूसरे गिरे हुए राष्ट्रों के बीच अपमानित
होकर पड़ा रहेगा।
🔹
1-16 पद: मिस्र के लिए शोकगीत
परमेश्वर कहता है, "तू महान था — मगर अब
तेरा अहंकार तुझे नाश कर देगा।"
फिरौन को एक मगरमच्छ के रूप में दिखाया गया है जो नील नदी में सबको
डराता था, लेकिन अब उसे हुक में फँसाकर बाहर खींच लिया
जाएगा।
उसे मैदान में फेंक दिया जाएगा — उसका
खून नदियों और पर्वतों तक फैलेगा।
सूरज, चाँद, तारे — सब
अंधकार से ढक जाएँगे जब मिस्र का पतन होगा।
🌑
सीख: जब परमेश्वर न्याय करता है,
तो उसका असर पृथ्वी और आकाश दोनों पर दिखाई देता है।
🔹
17-32 पद: अधोलोक (पाताल) में गिरना — अपमान और भय
इस भाग में फिरौन और उसकी सेनाएँ पाताल (मृतकों की दुनिया) में
उतरती हैं।
वहाँ वे असीरिया, एराम (अरामी लोग), मेषेक, तूबल, एदोम और अन्य
गिरे हुए राष्ट्रों के बीच पड़ी रहेंगी — अपमान और शर्म के साथ।
"वे सब तलवार से
घिरे हुए, अपमानित होकर नीचे ले जाए गए।"
फिरौन भी अब उन सब के बीच गिरे हुए की तरह गिना जाएगा।
🕳️
सीख: नाश के बाद सभी घमंडी राष्ट्र एक
साथ पाताल में पड़े रहते हैं — और यह एक स्थायी चेतावनी बन जाते हैं।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर के सामने कोई भी घमंड टिक नहीं सकता।
✝️
परमेश्वर न्याय करता है — चाहे वह कितना भी बड़ा राष्ट्र या नेता
हो।
✝️
शक्ति और वैभव अस्थायी हैं — सच्चा वैभव नम्रता और परमेश्वर के भय
में है।
✝️
मृत्यु के बाद कोई भी घमंड, महिमा या
प्रतिष्ठा काम नहीं आती — केवल परमेश्वर का न्याय शेष रहता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“जब मैं तेरा दिया बुझाऊँगा, तब मैं आकाश को
अंधकारमय कर दूँगा, और उसके तारों को भी ढाँप दूँगा।”
(यहेजकेल 32:7)
📖 यहेजकेल
अध्याय 33 – रक्षक की जिम्मेदारी और पश्चाताप का आह्वान
(Ezekiel 33 – The Watchman's Duty and the Call to
Repentance)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर यहेजकेल से कहता है कि वह एक
"रक्षक" है — यानी उसे लोगों को चेतावनी देनी है।
अगर नबी चुप रहता है, तो लोगों का खून उसके
सिर होगा; अगर वह चेतावनी देता है, तो
उसकी ज़िम्मेदारी पूरी मानी जाएगी।
साथ ही, परमेश्वर इस बात पर जोर देता है कि वह
दुष्ट की मृत्यु में प्रसन्न नहीं होता — बल्कि चाहता है कि वे लौट आएं और जीवित
रहें।
🔹
1-9 पद: रक्षक का बुलावा — चेतावनी देना अनिवार्य है
परमेश्वर ने यहेजकेल से कहा:
"मैंने तुझे इस्राएल के घराने का रक्षक नियुक्त किया है।"
अगर तुम दुष्ट को उसके पाप के बारे में चेतावनी नहीं दोगे, तो उसकी मृत्यु का दोष तुम पर होगा।
लेकिन अगर तुम चेतावनी दोगे, तो भले वह न माने,
तुम निर्दोष रहोगे।
🚨
सीख: परमेश्वर के संदेशवाहक का काम है
सत्य बताना, चाहे लोग सुनें या न सुनें।
🔹
10-20 पद: पश्चाताप और न्याय का सिद्धांत
लोगों ने कहा: "हम अपने अपराधों के कारण नष्ट हो गए हैं!"
परमेश्वर ने उत्तर दिया:
"मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न नहीं होता; मैं चाहता हूँ कि वह अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे।"
यहाँ यह भी सिखाया गया है:
- अगर धर्मी व्यक्ति पाप करे, और उसमें बना रहे, तो उसकी धार्मिकता काम नहीं
आएगी।
- लेकिन अगर दुष्ट व्यक्ति पश्चाताप करे,
तो उसका पाप मिट जाएगा।
🔄
सीख: परमेश्वर वर्तमान ह्रदयावस्था को
देखता है — न कि केवल भूतकाल के कार्यों को।
🔹
21-22 पद: यरूशलेम के पतन का समाचार
इस समय एक व्यक्ति बचे हुओं में से यह समाचार लेकर आया:
"नगर (यरूशलेम) गिर गया!"
यह भविष्यवाणी अब पूरी हो चुकी थी — अब यहेजकेल का मुँह भी खुल गया
(जो कुछ समय से बंद था)।
🏛️
सीख: परमेश्वर के वचन समय पर पूरा होते
हैं — और सत्य उजागर होता है।
🔹
23-29 पद: भूमि पर घमंड करना व्यर्थ है
कुछ लोग यह सोच रहे थे कि अब तो जमीन खाली हो गई है, तो वे उस पर अधिकार कर सकते हैं।
लेकिन परमेश्वर ने कहा:
"तुम अपने पापों में बने हुए हो — खून करते हो, मूर्तिपूजा करते हो — इसलिए तुम भूमि पर बने नहीं रहोगे।"
🌾
सीख: भूमि का अधिकार धार्मिकता से आता
है, न कि दावे या संख्या से।
🔹
30-33 पद: लोग सुनते तो हैं, पर मानते नहीं
परमेश्वर ने यहेजकेल से कहा:
"लोग तुझसे बात करने आते हैं जैसे सभा में आते हैं, तेरा वचन सुनते हैं, लेकिन उसे पूरा नहीं
करते।"
वे तेरे वचन को एक मधुर गीत की तरह सुनते हैं, पर उसके अनुसार चलते नहीं।
पर जब तेरी बात पूरी होगी, तब वे जानेंगे कि
एक नबी उनके बीच था।
🎶
सीख: केवल सुनना काफी नहीं है — सच्ची
भक्ति आज्ञाकारी जीवन से प्रकट होती है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर चेतावनी देता है क्योंकि वह चाहता है कि हम जीवन पाएं।
✝️
सच्चा धर्म वही है जो वर्तमान में आज्ञाकारिता में प्रकट होता है।
✝️
घमंड और आत्मसंतोष का अन्त विनाश है।
✝️
परमेश्वर अपने वचन को समय पर पूरा करता है — इसलिए हमें उसकी
चेतावनी को गंभीरता से लेना चाहिए।
📌
याद रखने योग्य वचन
"मुझे दुष्ट की मृत्यु में प्रसन्नता नहीं है, परन्तु इस में है कि दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे। फिरो, फिरो, अपने बुरे मार्गों से!"
(यहेजकेल 33:11)
📖 यहेजकेल
अध्याय 34 – झूठे चरवाहों की निंदा और सच्चे चरवाहे का वादा
(Ezekiel 34 – Condemnation of False Shepherds and Promise
of the True Shepherd)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर इस्राएल के नेताओं (राजाओं, याजकों) को झूठे चरवाहे कहकर दोषी ठहराता है।
उन्होंने लोगों की सेवा करने के बजाय खुद के लिए लालच किया।
लेकिन परमेश्वर खुद वादा करता है कि वह अपना एक सच्चा चरवाहा भेजेगा
जो उनकी भेड़ों की देखभाल करेगा — और यही भविष्यवाणी अंततः यीशु मसीह में पूरी
होती है।
🔹
1-10 पद: झूठे चरवाहों की कठोर निंदा
परमेश्वर कहता है:
"अरे इस्राएल के चरवाहो, तुम अपनी भेड़ों
की रक्षा करने के बजाय खुद को चर रहे हो!"
- तुमने कमजोरों की सुध नहीं ली।
- तुमने बीमारों को चंगा नहीं किया।
- तुमने भटकी हुई भेड़ों को वापस नहीं लाया।
- तुमने बलपूर्वक प्रभुत्व किया।
इसलिए भेड़ें तितर-बितर हो गईं और
भेड़िए उन्हें निगल गए।
🐑
सीख: नेतृत्व सेवा के लिए होता है,
न कि स्वार्थ के लिए।
🔹
11-16 पद: परमेश्वर स्वयं अपनी भेड़ों की खोज करेगा
परमेश्वर कहता है:
"देखो, मैं स्वयं अपनी भेड़ों की खोज
करूँगा और उन्हें इकट्ठा करूँगा।"
- मैं उन्हें चराऊँगा।
- मैं उन्हें आराम दूँगा।
- मैं घायल को बाँधूँगा और बीमार को चंगा करूँगा।
- मैं मोटे और बलवान को न्यायपूर्वक संभालूँगा।
🌟
सीख: जब मनुष्य असफल होते हैं, तब परमेश्वर खुद आगे बढ़ता है।
🔹
17-24 पद: न्याय और दाऊद जैसा चरवाहा
परमेश्वर भेड़ों (लोगों) के बीच भी न्याय करेगा:
- कुछ भेड़ें अन्य भेड़ों को धक्का देती हैं और उन्हें दूर
भगाती हैं।
- घमंडी और क्रूर लोगों का न्याय होगा।
फिर परमेश्वर कहता है:
"मैं अपना दाऊद (मसीहा) उनके ऊपर एक चरवाहे के रूप में नियुक्त
करूँगा, जो उन्हें चराएगा।"
🦁 सीख: मसीहा (यीशु) ही वह चरवाहा है जो प्रेम और न्याय से अपनी भेड़ों की रक्षा
करता है।
🔹
25-31 पद: शांति की वाचा और आशीर्वाद
परमेश्वर "शांति की वाचा" (Covenant of Peace) करने का वादा करता है:
- हिंसक जानवर न होंगे।
- देश में सुरक्षा और आशीर्वाद होगा।
- वर्षा समय पर होगी।
- फलदायक फसलें होंगी।
- लोग जानेंगे कि वही उनका परमेश्वर है और वे उसकी प्रजा
हैं।
🌧️🌾
सीख: परमेश्वर का उद्देश्य हमेशा हमें
बहाल करना और हमें भरपूर जीवन देना है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
नेतृत्व एक जिम्मेदारी है — सेवा, देखभाल और
न्याय का कार्य।
✝️
जब मानव नेता असफल हो जाते हैं, परमेश्वर खुद
मार्गदर्शन करता है।
✝️
सच्चा चरवाहा (यीशु मसीह) हमारी आत्माओं की देखभाल करता है।
✝️
परमेश्वर की शांति की वाचा सुरक्षा, आशीर्वाद
और बहाली का वादा करती है।
📌
याद रखने योग्य वचन
"मैं स्वयं अपनी भेड़ों की खोज करूँगा और उन्हें ढूँढ़ निकालूँगा।"
(यहेजकेल 34:11)
📖 यहेजकेल
अध्याय 35 – सेईर पर्वत (एदोम) पर परमेश्वर का न्याय
(Ezekiel 35 – God's Judgment Against Mount Seir (Edom))
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर एदोम के विरुद्ध घोषणा करता है — क्योंकि
उन्होंने इस्राएल से शत्रुता की और उनके दुख के समय खुशियाँ मनाईं।
यह अध्याय बताता है कि जब कोई अन्याय और द्वेष को बढ़ावा देता है,
तो उसका अंत विनाश होता है।
परमेश्वर अपने लोगों के लिए न्याय करता है और उन पर अत्याचार करने
वालों को दंडित करता है।
🔹
1-4 पद: सेईर पर्वत के खिलाफ चेतावनी
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है:
"सेईर पर्वत की ओर मुँह कर के भविष्यवाणी कर और कह: हे सेईर
पर्वत, मैं तेरा विरोधी हूँ!"
- मैं तुझे उजाड़ कर दूँगा।
- मैं तेरे नगरों को नष्ट कर दूँगा।
- तू वीरान बन जाएगा और जान जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।
⚡
सीख: जो घृणा बोता है, वह न्याय का सामना करेगा।
🔹
5-9 पद: शाश्वत बैर और आक्रमण का दंड
परमेश्वर एदोम पर आरोप लगाता है:
"तू ने इस्राएल से शाश्वत बैर रखा और संकट के समय जब उनकी
विपत्ति चरम पर थी, उन पर हमला किया।"
परमेश्वर कहता है:
- मैं तुझे रक्त से भर दूँगा।
- रक्त तेरा पीछा करेगा।
- तू वीरान और सुनसान होगा।
- सेईर पर्वत और उसकी सारी भूमि उजाड़ दी जाएगी।
🩸 सीख: संकट में दूसरों को कुचलने का पाप परमेश्वर के सामने बहुत गंभीर है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर अन्याय और द्वेष को दंडित करता है।
✝️
दूसरों के दुख पर प्रसन्न होना भी एक गंभीर अपराध है।
✝️
परमेश्वर अपने लोगों की सुरक्षा के लिए न्याय करता है।
✝️
घमंड और बैर अंततः विनाश का कारण बनते हैं।
📌
याद रखने योग्य वचन
"क्योंकि तू ने शाश्वत बैर रखा और इस्राएल के वंश को उस समय
तलवार के हवाले किया जब वे विपत्ति और अधर्म के अंतिम समय में थे।"
(यहेजकेल 35:5)
📖 यहेजकेल
अध्याय 36 – नया हृदय और इस्राएल की बहाली
(Ezekiel 36 – A New Heart and the Restoration of Israel)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर इस्राएल से वादा करता है कि वह उन्हें बहाल
करेगा — न केवल भूमि में वापस लाएगा, बल्कि उनके हृदयों को
भी बदल देगा।
यह एक गहरी और सुंदर भविष्यवाणी है, जिसमें
परमेश्वर का उद्देश्य सिर्फ बाहरी सुधार नहीं बल्कि आंतरिक रूपांतरण भी है।
यह वादा आज भी आत्मिक रूप से हम सबके लिए लागू होता है!
🔹
1-15 पद: भूमि से बहाली का वादा
परमेश्वर इस्राएल के पहाड़ों से कहता है:
- तुमने बहुत अपमान सहा, लेकिन अब तुम फिर से फलवंत बनोगे।
- मैं लोगों को तुम्हारी ओर लौटाऊँगा।
- नगर फिर से बसेंगे, खंडहर फिर से बनेंगे।
- अब तुम्हें अपमान और उपहास नहीं सहना पड़ेगा।
🌄
सीख: परमेश्वर नष्ट भूमि को भी फिर से
जीवित कर सकता है।
🔹
16-21 पद: इस्राएल का पाप और परमेश्वर का नाम
परमेश्वर बताता है कि इस्राएल को उनकी अशुद्धता और मूर्तिपूजा के
कारण देश से निकाला गया।
लेकिन उनकी बहाली इसलिए होगी कि परमेश्वर अपने नाम का आदर फिर से
स्थापित करना चाहता है, जिसे अन्य जातियों के बीच अपवित्र
किया गया था।
⚡
सीख: परमेश्वर की महिमा सबसे ऊपर है —
और वह अपने नाम के लिए हमें सुधारता है।
🔹
22-32 पद: नया हृदय और नया आत्मा
यह अध्याय का सबसे शक्तिशाली भाग है!
परमेश्वर कहता है:
- "मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूँगा, और तुम शुद्ध
हो जाओगे।"
- "मैं तुम्हें नया हृदय दूँगा, और नया आत्मा
तुम्हारे भीतर डालूँगा।"
- "मैं तुम्हारे पत्थर जैसे हृदय को निकालकर मांस जैसा कोमल हृदय
दूँगा।"
- "मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर रखूँगा और तुम्हें अपनी विधियों पर
चलाऊँगा।"
🕊️
सीख: सच्चा परिवर्तन भीतर से शुरू होता
है — नया हृदय और आत्मा परमेश्वर का उपहार है।
🔹
33-38 पद: भूमि की बहाली और आशीर्वाद
परमेश्वर कहता है:
- जो भूमि उजाड़ थी, वह फिर से "उपजाऊ बगीचा" बन जाएगी।
- उजड़े हुए नगर फिर से आबाद होंगे।
- अन्य राष्ट्र देखेंगे और जानेंगे कि यह परमेश्वर का कार्य
है।
- परमेश्वर अपनी प्रजा की संख्या बढ़ाएगा जैसे भेड़ों का
झुंड भर दिया जाता है।
🌿
सीख: परमेश्वर न केवल हमारे हृदय को
बदलता है, बल्कि हमारी परिस्थितियों को भी आशीर्वादित करता
है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर हमारे पापों को शुद्ध करता है।
✝️
नया हृदय और आत्मा परमेश्वर का वरदान है, मेहनत
का फल नहीं।
✝️
हमारा परिवर्तन परमेश्वर की महिमा के लिए होता है।
✝️
बहाली बाहर से नहीं, भीतर से शुरू होती है।
📌
याद रखने योग्य वचन
"और मैं तुम्हें नया हृदय दूँगा, और नया
आत्मा तुम्हारे भीतर डालूँगा... और मैं तुम्हारे भीतर अपना आत्मा रखूँगा ताकि तुम
मेरी विधियों पर चलो।"
(यहेजकेल 36:26-27)
📖 यहेजकेल अध्याय 37 – सूखी हड्डियों की
घाटी और इस्राएल का पुनरुद्धार
(Ezekiel 37 – The Valley of Dry Bones and the Restoration of Israel)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय परमेश्वर के उस चमत्कारी सामर्थ्य को दर्शाता है जो मृत
चीजों को भी फिर से जीवित कर सकता है।
इस्राएल, जो निराशा और नाश की स्थिति में था,
उसे परमेश्वर आश्वस्त करता है कि वह उन्हें पुनर्जीवित करेगा,
एकजुट करेगा और फिर से स्थापित करेगा।
यह हम सबके लिए भी उम्मीद का संदेश है — कोई भी स्थिति इतनी बुरी
नहीं कि परमेश्वर उसे बदल न सके!
🔹
1-14 पद: सूखी हड्डियों की घाटी का दर्शन
यहेजकेल को एक दर्शन में परमेश्वर एक बहुत बड़ी घाटी में ले जाता है,
जो सूखी हड्डियों से भरी थी।
परमेश्वर पूछता है:
"क्या ये हड्डियाँ फिर से जीवित हो सकती हैं?"
यहेजकेल कहता है: "हे प्रभु यहोवा, तू ही
जानता है।"
फिर परमेश्वर आदेश देता है:
- हड्डियों पर भविष्यवाणी करो।
- मांस, त्वचा,
नसें फिर से जुड़ती हैं।
- फिर परमेश्वर सांस (आत्मा) फूंकता है — और वे जीवित सेना
बन जाती हैं!
🌬️
सीख: जहाँ इंसान केवल मृत्यु देखता है,
वहाँ परमेश्वर नया जीवन दे सकता है।
🔹
15-28 पद: इस्राएल और यहूदा का एकीकरण
परमेश्वर यहेजकेल से कहता है:
- दो लकड़ियाँ लो: एक यहूदा के लिए और दूसरी इस्राएल के
लिए।
- उन्हें आपस में जोड़ो ताकि वे एक हो जाएँ।
- यह प्रतीक है कि परमेश्वर अपने बिखरे हुए लोगों को फिर से
एक राष्ट्र में जोड़ेगा।
- "एक ही राजा उन सब पर राज्य करेगा," और वे
फिर कभी विभाजित नहीं होंगे।
यह राजा "दाऊद का दास" होगा — मसीह का
प्रतिरूप — जो हमेशा के लिए उनका चरवाहा और राजा बनेगा।
🕊️
सीख: परमेश्वर विभाजनों को समाप्त कर
एक नई एकता और शांति लाता है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
कोई भी परिस्थिति परमेश्वर के पुनरुद्धार से परे नहीं है।
✝️
परमेश्वर की आत्मा मृत को भी जीवन देती है।
✝️
परमेश्वर बिखरे हुए लोगों को एक करता है और एक सच्चे राजा के नीचे
लाता है।
✝️
मसीह में ही सच्ची एकता, जीवन और सुरक्षा है।
📌
याद रखने योग्य वचन
"हे सूखी हड्डियो, यहोवा का वचन
सुनो!"
(यहेजकेल 37:4)
और
"मैं अपनी आत्मा
तुम्हारे भीतर डालूँगा, और तुम जीवित हो जाओगे।"
(यहेजकेल 37:14)
📖 यहेजकेल
अध्याय 38 – गोग का आक्रमण और परमेश्वर का न्याय
(Ezekiel 38 – Gog’s Invasion and God's Judgment)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर एक शक्तिशाली भविष्यवाणी देता है — एक समय
आएगा जब एक राष्ट्र (गोग) अपने सहयोगियों के साथ इस्राएल पर आक्रमण करेगा।
लेकिन परमेश्वर स्वयं हस्तक्षेप करेगा, और इन
सेनाओं का विनाश करेगा।
यह अध्याय परमेश्वर की संप्रभुता और उसकी प्रजा की अंतिम विजय को
प्रकट करता है।
🔹
1-6 पद: गोग और उसकी सेनाएँ
परमेश्वर कहता है:
- "हे मनुष्य के सन्तान, गोग की ओर अपना मुँह कर
और भविष्यवाणी कर।"
- गोग — जो मगोग देश का प्रधान है,
और मेषेक और तूबाल का प्रधान — अनेक राष्ट्रों के साथ इस्राएल
पर चढ़ाई करेगा।
- फारस (ईरान), कूश (इथियोपिया), फूत (लीबिया), गोमेर और तोगरमा उसके साथ होंगे।
⚔️
सीख: अंतिम समय में अनेक राष्ट्र एकत्र
होंगे, लेकिन परमेश्वर की योजना सबसे बड़ी है।
🔹
7-16 पद: गोग की तैयारी और आक्रमण
गोग अपनी विशाल सेना तैयार करेगा और एक ऐसे समय में इस्राएल पर हमला
करेगा जब वे शांति से बस रहे होंगे।
गोग सोचेगा कि यह आसान शिकार है — "बिना दीवारों के
नगरों" को लूटने और नाश करने के लिए।
लेकिन परमेश्वर पहले से ही जानता है कि यह होगा, और वह उसे अपने ही उद्देश्य के लिए प्रयोग करेगा।
🛡️
सीख: परमेश्वर शत्रु की योजना को जानता
है और उसे अपने उद्धार की कहानी में बदल देता है।
🔹
17-23 पद: परमेश्वर का प्रतिशोध और महिमा
परमेश्वर गोग और उसकी सेनाओं के विरुद्ध क्रोध करेगा:
- एक बड़ा भूकंप होगा।
- पर्वत गिर पड़ेंगे, दीवारें ढह जाएँगी।
- गोग की सेनाएँ भ्रम और घबराहट में एक-दूसरे से लड़ेंगी।
- परमेश्वर बारिश, ओले, आग और गंधक से उनका नाश करेगा।
अंत में,
परमेश्वर कहता है:
"मैं अपने आप को महान और पवित्र ठहराऊँगा, और जातियों के सामने प्रकट करूँगा। और वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ।"
🔥
सीख: परमेश्वर अपनी महिमा प्रकट करने
के लिए शत्रु को भी उपयोग करता है — ताकि सब जानें कि वही सच्चा राजा है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
शत्रु कितने भी बड़े क्यों न हों, परमेश्वर का
हाथ उनसे भी शक्तिशाली है।
✝️
परमेश्वर अंतिम समय में अपने लोगों की रक्षा करेगा।
✝️
संकट के समय भी परमेश्वर की महिमा प्रकट होती है।
✝️
जो यहोवा पर विश्वास रखते हैं, उन्हें डरने की
आवश्यकता नहीं है।
📌
याद रखने योग्य वचन
"मैं अपने आप को महान और पवित्र ठहराऊँगा, और जातियों के सामने प्रकट करूँगा; और वे जानेंगे कि
मैं यहोवा हूँ।"
(यहेजकेल 38:23)
📖 यहेजकेल
अध्याय 39 – गोग की हार और इस्राएल की बहाली
(Ezekiel 39 – The Defeat of Gog and the Restoration of
Israel)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर गोग और उसकी सेनाओं पर अपना अंतिम और
निर्णायक न्याय प्रकट करता है।
यह सिर्फ दुश्मनों की हार की कहानी नहीं है — बल्कि इस्राएल की
आत्मिक और राष्ट्रीय बहाली का एक चमकदार वादा भी है।
परमेश्वर का उद्देश्य स्पष्ट है: कि सभी जातियाँ जानें कि वही सच्चा
परमेश्वर है।
🔹
1-8 पद: गोग का विनाश निश्चित
परमेश्वर कहता है:
- "हे मनुष्य के सन्तान, गोग के विरुद्ध
भविष्यवाणी कर।"
- परमेश्वर स्वयं गोग को उलझाएगा और उसे इस्राएल के पर्वतों
पर गिरा देगा।
- गोग और उसकी सेनाओं का शव मैदान में बिखरा होगा,
और जंगली पक्षी और जानवर उनका भक्षण करेंगे।
- यह सब परमेश्वर की महिमा को प्रकट करेगा।
⚡
सीख: परमेश्वर स्वयं अपने लोगों के लिए
लड़ता है, और शत्रु को नीचे गिराता है।
🔹
9-16 पद: युद्ध के बाद का दृश्य
- इस्राएल के लोग शत्रुओं के हथियारों का उपयोग सात वर्षों
तक ईंधन के रूप में करेंगे!
- गोग की सेनाओं के शवों को दफनाने में सात महीने लगेंगे।
- एक घाटी को "गोग की भीड़ की घाटी" कहा जाएगा,
जहाँ उन्हें दफनाया जाएगा।
- यह पूरी सफाई परमेश्वर के न्याय की गवाही होगी।
🔥
सीख: परमेश्वर पूरी तरह से विजय देता
है — अधूरी नहीं।
🔹
17-20 पद: परमेश्वर का बलिदान भोज
परमेश्वर पशुओं और पक्षियों को एक भोज के लिए बुलाता है:
- "आओ, बड़े भोज के लिए इकट्ठे हो जाओ,"
जहां गोग और उसकी सेनाएँ "भोजन" बनेंगे।
- यह दृश्य न्याय और न्यायी प्रतिशोध का प्रतीक है।
🕊️
सीख: परमेश्वर बुराई का निर्णायक अंत
लाता है।
🔹
21-29 पद: इस्राएल की आत्मिक बहाली
- परमेश्वर कहता है कि वह इस्राएल को बंधुआई से लौटा लाएगा।
- वह उन्हें फिर कभी नहीं छोड़ देगा।
- परमेश्वर अपना आत्मा इस्राएल पर उंडेलेगा।
- सारी पृथ्वी जान लेगी कि वही यहोवा है।
🌟
सीख: परमेश्वर का अंतिम उद्देश्य केवल
विनाश नहीं, बल्कि बहाली और स्थायी संबंध है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर अपने लोगों के शत्रुओं को पराजित करता है।
✝️
वह अपने वचनों को पूरा करने में विश्वासयोग्य है।
✝️
परमेश्वर का न्याय और दया दोनों महान हैं।
✝️
परमेश्वर हमें छोड़ता नहीं, बल्कि आत्मा से
भरकर नया जीवन देता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
"मैं अपना आत्मा इस्राएल के घराने पर उंडेलूँगा, यहोवा की यही वाणी है।"
(यहेजकेल 39:29)
📖 यहेजकेल
अध्याय 40 – नया मंदिर: आशा की आधारशिला
(Ezekiel 40 – The New Temple: A Blueprint of Hope)
🌟
अध्याय की झलक:
अब तक कई अध्यायों (यहेजकेल 1 से
39 तक) में
हमने न्याय, चेतावनी, और विनाश के विषयों को पढ़ा था — और
अब, अध्याय 40 से नई
शुरुआत और पुनःस्थापना का दर्शन शुरू होता है।
— एक नए मंदिर का दर्शन।
यह नया मंदिर न केवल एक इमारत है, बल्कि
परमेश्वर की उपस्थिति और उसके साथ पुनर्स्थापित संबंध का प्रतीक है।
यहेजकेल को एक स्वर्गदूत समान व्यक्ति दिखाया गया है, जो मापन की डोरी और डंडे से मंदिर का हर हिस्सा मापता है — सब कुछ सटीक और
व्यवस्थित।
🔹
1-4 पद: दर्शन का समय और स्थान
- “हमारे निर्वासन के पचीसवें वर्ष” में, यहेजकेल
को परमेश्वर एक उच्च पहाड़ पर ले जाता है।
- एक नगर जैसा ढांचा दिखता है,
और एक मनुष्य — कांसे जैसे तेजस्वी रूप में — मापने के यंत्रों
के साथ उसे मिलते हैं।
- उसे कहा जाता है: “देख अपनी आँखों से,
सुन अपने कानों से, और ध्यान से सब कुछ
ग्रहण कर।”
👁️
सीख: जब परमेश्वर दिखाता है, तो वह चाहता है कि हम गहरी नजर से देखें, न कि केवल
सतही तौर पर।
🔹
5-27 पद: बाहरी आंगन और फाटकों का मापन
- दीवारों, फाटकों,
सीढ़ियों और आंगनों के विवरण दिए गए हैं।
- पूर्वी, उत्तरी
और दक्षिणी फाटकों का विशेष विवरण — प्रत्येक समान योजना के अनुसार निर्मित।
- प्रत्येक फाटक की लंबाई, चौड़ाई, खिड़कियाँ, बरामदे
और स्तंभ मापे जाते हैं।
🏛️
सीख: परमेश्वर की योजना में सुंदरता भी
है और व्यवस्था भी — कुछ भी बिना माप या उद्देश्य के नहीं है।
🔹
28-47 पद: भीतरी आंगन, अन्य द्वार, और वेदी का स्थान
- भीतरी आंगन में फिर से तीनों दिशाओं से प्रवेश है।
- याजकों के विश्राम स्थल और बलिदान के स्थान भी मापे गए
हैं।
- बलि चढ़ाने के विशेष कमरे हैं जहाँ याजक तैयारियाँ करते
हैं।
🕊️
सीख: सेवा और भक्ति भी तैयारी और
पवित्रता माँगती है।
🔹
48-49 पद: मंदिर का मंडप
- मुख्य भवन का मंडप, उसके खंभे और चौखटों का विवरण दिया गया है।
- यह मंदिर एक नई शुरुआत का प्रतीक है — परमेश्वर का लोगों
के बीच निवास करने का वादा।
🌿
सीख: परमेश्वर हमसे बाहरी मंदिर नहीं,
बल्कि आंतरिक पवित्रता चाहता है — यह योजना उसके स्थायी निवास की
छाया है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर के पास पुनःस्थापना की योजनाएँ होती हैं, चाहे परिस्थिति कितनी भी टूटी हुई हो।
✝️
पवित्रता और व्यवस्था परमेश्वर के निवास के आवश्यक तत्व हैं।
✝️
जो कुछ भी परमेश्वर बनवाता है, वह माप और
उद्देश्य से बनता है।
✝️
परमेश्वर का साथ लौटता है जब हम उसके वचन और उसके मार्ग पर ध्यान
देते हैं।
📌
याद रखने योग्य वचन
“मनुष्य के सन्तान! जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूँ, उसे अपनी आँखों से देख, अपने कानों से सुन, और अपने मन में रख।”
(यहेजकेल 40:4)
📖 यहेजकेल
अध्याय 41 – मंदिर का आंतरिक दर्शन: पवित्रता और महिमा का
प्रतीक
(Ezekiel 41 – The Inner Temple: A Vision of Holiness and
Glory)
🌟
अध्याय की झलक:
यहेजकेल अब मंदिर के भीतर पहुँचता है। इस अध्याय में वह
मंदिर के मुख्य भवन, पवित्र स्थान, महापवित्र स्थान (Most Holy Place), और उसके
आसपास की संरचनाओं का मापन करता है।
यह विवरण यह दिखाता है कि परमेश्वर का निवास कितना व्यवस्थित,
अद्भुत और अत्यंत पवित्र है। हर आयाम, हर
दीवार और हर नक्काशी परमेश्वर की महिमा को दर्शाती है।
🔹
1-4 पद: मुख्य भवन और महापवित्र स्थान का मापन
- मुख्य भवन (नाव) की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई मापी गई।
- महापवित्र स्थान (अंदर का सबसे पवित्र कमरा) विशेष रूप से
अलग किया गया — जहाँ परमेश्वर की उपस्थिति मानी जाती थी।
👑
सीख: परमेश्वर के निकट आने के लिए गहरी
पवित्रता और सम्मान की आवश्यकता होती है।
🔹
5-11 पद: दीवारें, कमरे और अन्य ढाँचों का
मापन
- मंदिर की मोटी दीवारें मापी गईं — सुरक्षा और स्थिरता का
प्रतीक।
- मंदिर के चारों ओर छोटे-छोटे कमरे बने थे,
संभवतः याजकों और सेवकाई से जुड़ी वस्तुओं के लिए।
- इन कमरों की भी योजना व्यवस्थित थी — हर चीज़ का एक
निश्चित स्थान था।
🏛️
सीख: परमेश्वर की उपस्थिति को संभालने
के लिए संरचना और व्यवस्था ज़रूरी है।
🔹
12-14 पद: मंदिर के पीछे का बड़ा भवन
- मंदिर के पीछे एक विशाल संरचना का वर्णन है।
- यह भी मंदिर के परिशुद्ध वातावरण को बनाए रखने के लिए एक
सुरक्षात्मक क्षेत्र था।
🛡️
सीख: जो भी परमेश्वर के लिए अलग किया
गया है, उसे बाहरी प्रभावों से सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
🔹
15-26 पद: आंतरिक सजावट – नक्काशी और लकड़ी का काम
- मंदिर की दीवारों पर केरूब (स्वर्गदूत) और खजूर
के वृक्ष खुदे हुए थे।
- दरवाज़े लकड़ी के थे और उन पर भी केरूब और खजूर के वृक्ष
बने थे।
- महापवित्र स्थान के सामने एक विशेष लकड़ी का वेदी जैसा
ढाँचा था।
🌴
सीख: परमेश्वर का घर सुंदरता, पवित्रता और उसकी महिमा के चिन्हों से भरा होना चाहिए।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर का निवास स्थान उच्चतम पवित्रता और आदर का स्थान होता है।
✝️
हमारे जीवन में भी परमेश्वर के लिए एक पवित्र "मंदिर"
होना चाहिए।
✝️
सुंदरता, कला, और
व्यवस्था भी आत्मिक सेवा का हिस्सा हैं।
✝️
परमेश्वर के निकट आने के लिए तैयारी और अलगाव (separation) ज़रूरी है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“और मुझसे कहा गया: यह स्थान अत्यन्त पवित्र है।”
(यहेजकेल 41:4)
📖 यहेजकेल
अध्याय 42 – याजकों के कक्ष: सेवा और पवित्रता का केंद्र
(Ezekiel 42 – The Priests' Chambers: Center of Ministry
and Holiness)
🌟
अध्याय की झलक:
यहेजकेल अब मंदिर के उन विशेष कमरों का दर्शन करता है जहाँ
याजक अपनी सेवा के लिए तैयार होते थे।
ये कमरे बलिदानों से संबंधित वस्तुओं को रखने, याजकों के वस्त्र बदलने और परमेश्वर की सेवा की तैयारी के लिए थे।
यह अध्याय यह सिखाता है कि परमेश्वर के काम में शामिल हर चीज़ —
यहाँ तक कि पीछे की तैयारी भी — पवित्र और सम्मानपूर्ण होनी चाहिए।
🔹
1-14 पद: याजकों के लिए बने हुए पवित्र कक्ष
- मंदिर के बाहरी आंगन के उत्तर और दक्षिण ओर लंबे कमरे थे।
- ये कमरे खास याजकों के लिए थे,
जो परमेश्वर के सामने सेवा करते थे।
- वहाँ वे पवित्र वस्तुएँ रखते थे — जैसे बलिदान का
मांस, पवित्र वस्त्र, आदि।
- याजकों को वहाँ से निकलते समय अपने पवित्र वस्त्र बदलने
पड़ते थे, ताकि पवित्रता
बनी रहे।
🕊️
सीख: पवित्रता केवल बाहरी बलिदानों में
नहीं, बल्कि हमारे आंतरिक जीवन और आदतों में भी होनी चाहिए।
🔹
15-20 पद: पूरे मंदिर परिसर का मापन
- स्वर्गदूत समान व्यक्ति ने पूरे मंदिर का मापन किया।
- उत्तर, दक्षिण,
पूर्व, और पश्चिम — हर दिशा का विस्तार 500-500
गज़ (Cubit) था।
- पूरा स्थान चारों ओर से दीवार से घिरा हुआ था — यह
पवित्रता और अपवित्रता के बीच अंतर करने के लिए था।
🛡️
सीख: परमेश्वर के लिए अलग की गई जगह को
दुनिया की अपवित्रता से सुरक्षित और अलग रखना ज़रूरी है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर की सेवा में तैयारी, पवित्रता और आदर
अनिवार्य हैं।
✝️
छोटी-छोटी बातें भी परमेश्वर की दृष्टि में महत्वपूर्ण हैं।
✝️
हमें अपने जीवन के हर क्षेत्र को पवित्र बनाए रखने का प्रयास करना
चाहिए।
✝️
सेवा करने से पहले और बाद में भी पवित्रता बनाए रखना आत्मिक जीवन का
एक आवश्यक हिस्सा है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“और उन्होंने मुझे चारों ओर घेरी हुई वह भीत दिखाई, जिससे पवित्र स्थान अपवित्र स्थान से अलग किया गया था।”
(यहेजकेल 42:20)
📖 यहेजकेल
अध्याय 43 – परमेश्वर की महिमा लौटती है
(Ezekiel 43 – The Return of God's Glory)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में वह अद्भुत क्षण आता है जब परमेश्वर की महिमा फिर से
मंदिर में लौटती है!
जहाँ पहले पाप और अवज्ञा के कारण महिमा चली गई थी (यहेजकेल 10
में), अब नया मंदिर तैयार है, और परमेश्वर अपनी उपस्थिति के साथ वापस आता है।
साथ ही, याजकों और लोगों के लिए नए नियम और
बलिदान की विधियाँ भी बताई जाती हैं, ताकि पवित्रता बनी रहे।
🔹
1-5 पद: महिमा का लौट आना
- यहेजकेल को एक दर्शन होता है — पूर्व दिशा से
परमेश्वर की महिमा आती है।
- वह महिमा ऐसी तेजस्वी और महिमामयी थी कि पूरे मंदिर को भर
दिया।
- यहेजकेल प्रभु के सामने मुँह के बल गिर पड़ा।
🌅
सीख: जब परमेश्वर की महिमा आती है,
तो वह सब कुछ बदल देती है — भय, आदर और आनन्द
एक साथ उत्पन्न होते हैं।
🔹
6-9 पद: एक वचन — इस स्थान में मैं सदा वास करूँगा
- परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की कि वह इस नए मंदिर में वास
करेगा।
- लेकिन चेतावनी भी दी — अब कोई अपवित्रता,
राजा का अहंकार या मूर्तिपूजा बर्दाश्त नहीं होगी।
- यह स्थान पूरी तरह से परमेश्वर के लिए पवित्र होना चाहिए।
🛐
सीख: परमेश्वर हमारे जीवन में तभी
स्थायी रूप से वास करते हैं जब हम अपने हृदय को शुद्ध और समर्पित रखते हैं।
🔹
10-12 पद: मंदिर का नक्शा और उसकी मर्यादा
- यहेजकेल को निर्देश मिला कि वह इस मंदिर का पूरा विवरण
इस्राएलियों को बताए।
- ताकि वे अपने पापों को पहचानें और परमेश्वर के घर का आदर
करना सीखें।
- एक स्पष्ट नियम दिया गया — मंदिर का हर क्षेत्र परमपवित्र
है।
🏛️
सीख: परमेश्वर की उपस्थिति की समझ हमें
पश्चाताप और आदर सिखाती है।
🔹
13-27 पद: वेदी का मापन और बलिदान का नया नियम
- बलिदान की वेदी का विस्तृत मापन बताया गया।
- सात दिन तक वेदी को शुद्ध करने और समर्पित करने का विशेष
अनुष्ठान करना था।
- याजकों को निर्दिष्ट बलिदान चढ़ाने थे — ताकि सब कुछ
परमेश्वर के लिए शुद्ध और स्वीकार्य बन सके।
🔥
सीख: परमेश्वर के साथ सही संबंध
स्थापित करने के लिए बलिदान, समर्पण और तैयारी ज़रूरी हैं।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
जब हम शुद्धता और समर्पण से तैयार होते हैं, तब
परमेश्वर की महिमा हमारे बीच आती है।
✝️
पवित्रता केवल बाहरी व्यवस्था नहीं, बल्कि दिल
की भी तैयारी है।
✝️
परमेश्वर अपने लोगों के बीच वास करना चाहते हैं — पर पवित्रता की
शर्त के साथ।
✝️
हमारा जीवन भी एक "मंदिर" है, जिसे
पवित्र बनाए रखना हमारी ज़िम्मेदारी है।
📌
याद रखने योग्य वचन
“और मैं उनके बीच वास करूँगा सदा के लिए।”
(यहेजकेल 43:7)
📖 यहेजकेल
अध्याय 44 – पवित्र आराधना और याजकों की जिम्मेदारियाँ
(Ezekiel 44 – Holy Worship and Duties of the Priests)
🌟
अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक नए मंदिर दर्शन का हिस्सा है, जहाँ
परमेश्वर आराधना की पवित्रता, याजकों के नियम और प्रवेश के
आदेश निर्धारित करता है।
यह हमें सिखाता है कि परमेश्वर के निकट आना एक विशेष सम्मान है,
जो पवित्रता और आज्ञाकारिता की मांग करता है।
🔹
1-3 पद: पूर्वी फाटक का बंद होना
- परमेश्वर ने कहा कि मंदिर का पूर्वी फाटक बंद रहेगा।
- यह वही फाटक है जिससे परमेश्वर की महिमा प्रवेश कर चुकी
थी।
- केवल एक शाही व्यक्ति (राजकुमार) ही इस फाटक से अंदर आ
सकता है, और वह भी भोजन
के समय तक सीमित रहेगा।
🕊️
सीख: जहाँ परमेश्वर की महिमा उतरती है,
वहाँ गहरी पवित्रता और आदर अपेक्षित है।
🔹
4-9 पद: इस्राएलियों को चेतावनी
- यहेजकेल को मंदिर के उत्तर फाटक से प्रवेश कराया गया।
- परमेश्वर ने डांटते हुए कहा कि अतीत में इस्राएलियों ने
मंदिर को अपवित्र किया था।
- अब अजनबी और अशुद्ध लोग परमेश्वर के पवित्र स्थान में
प्रवेश नहीं कर सकते।
⚡
सीख: पवित्र स्थानों और पवित्र
जिम्मेदारियों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
🔹
10-14 पद: भटकने वाले लेवीय याजक
- कुछ लेवी लोग जिन्होंने पिछली पीढ़ियों में परमेश्वर से
विश्वासघात किया था, उन्हें केवल
मंदिर की सेवा करने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन वे
परमेश्वर के निकट नहीं आ पाएँगे।
- वे साधारण कार्य (दरवाजे देखना,
बलि चढ़ाना) करेंगे, परंतु पवित्र स्थान
में प्रवेश नहीं कर पाएँगे।
🛡️
सीख: विश्वासघात के परिणाम होते हैं —
सेवा का सम्मान बना रहता है, लेकिन निकटता में फर्क आता है।
🔹
15-31 पद: सादोक के वंशजों के याजक
- केवल सादोक के वंशज, जिन्होंने परमेश्वर के प्रति वफादारी दिखाई थी, उन्हें परमेश्वर के निकट आने और सेवा करने का विशेष अधिकार मिलेगा।
- याजकों के लिए कई नियम तय किए गए:
- वे केवल विशेष वस्त्र पहनेंगे।
- वे बालों को संतुलित रूप से कटवाएँगे।
- वे शराब पीकर मंदिर में नहीं आएँगे।
- वे विधवा स्त्रियों से विवाह नहीं करेंगे,
केवल याजकों की विधवाओं या इस्राएल की कुँवारी कन्याओं से
विवाह कर सकते हैं।
- वे लोगों के बीच न्याय करना सिखाएँगे,
शुद्ध और अशुद्ध में भेद करना सिखाएँगे।
🌟
सीख: जो लोग परमेश्वर की उपस्थिति में
सेवा करते हैं, उन्हें उच्चतम स्तर की पवित्रता और
जिम्मेदारी निभानी होती है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर की उपस्थिति के प्रति आदर और पवित्रता अनिवार्य है।
✝️
सेवा एक विशेषाधिकार है, जो वफादारी और पवित्र
जीवन की मांग करता है।
✝️
जो परमेश्वर के निकट आते हैं, उन्हें शुद्धता
और न्याय के उदाहरण बनना चाहिए।
✝️
पिछली गलतियों के बावजूद सेवा का अवसर मिलता है, लेकिन निकटता और गहराई का फर्क रह सकता है।
📌
याद रखने योग्य वचन
"वे मेरे पास आएँगे कि मेरी सेवा करें और मेरे सामने खड़े
रहें... और मेरा वचन लोगों को सिखाएँगे।"
(यहेजकेल 44:15,23)
📖 यहेजकेल
अध्याय 45 – पवित्र भूमि का विभाजन और धार्मिक व्यवस्था
(Ezekiel 45 – Division of the Holy Land and Sacred Duties)
🌟
अध्याय की झलक:
इस अध्याय में परमेश्वर बताता है कि जब वह अपने लोगों को बहाल करेगा,
तो भूमि का नया विभाजन कैसे होगा।
एक विशेष "पवित्र भाग" होगा जो परमेश्वर और उसके मंदिर के
लिए अलग रखा जाएगा।
इसके साथ ही, राजा (राजकुमार) और लोगों के
दायित्व भी तय किए गए हैं — यह दर्शाता है कि परमेश्वर का राज्य पवित्रता, न्याय और उचित व्यवस्था पर आधारित होगा।
🔹
1-8 पद: पवित्र भूमि का आरक्षण
- जब भूमि का नया बँटवारा होगा,
तब उसमें से एक विशेष हिस्सा परमेश्वर के लिए अलग किया जाएगा।
- यह पवित्र भाग मंदिर के लिए,
याजकों के लिए और लेवियों के लिए होगा।
- इस क्षेत्र का एक भाग राजकुमार (शासक) के लिए भी
निर्धारित किया जाएगा ताकि वह लोगों पर अत्याचार न करे।
🏛️
सीख: परमेश्वर अपने घर और सेवकों के
लिए पहले स्थान को सुरक्षित रखता है।
🔹
9-12 पद: न्याय और ईमानदारी का आदेश
- परमेश्वर लोगों से कहता है कि अब अत्याचार और अनाचार बंद
होना चाहिए।
- निष्पक्ष तराजू, सही नाप और तोल का उपयोग करना चाहिए।
- "धोखेबाज़ नाप" और "बेईमानी" अब परमेश्वर के राज्य में
स्थान नहीं पाएंगे।
⚖️
सीख: परमेश्वर का राज्य सच्चाई और
न्याय पर आधारित होता है।
🔹
13-17 पद: अंश (Tax) और राजकुमार का
कर्तव्य
- प्रत्येक इस्राएली को कुछ अंश (दान या कर) देना होगा —
अन्न, तेल, भेड़-बकरियाँ
आदि — ताकि बलिदान और आराधना का प्रबंध हो सके।
- राजकुमार की जिम्मेदारी होगी कि वह इन अंशों को लेकर मंदिर
की सेवाओं का आयोजन करे और लोगों की ओर से बलिदान चढ़ाए।
🕊️
सीख: नेतृत्व सेवा का कार्य है —
दूसरों की ओर से परमेश्वर के सामने आना।
🔹
18-25 पद: विशेष पर्व और बलिदान
- हर वर्ष पहले महीने की पहली तारीख को मंदिर को शुद्ध करने
का पर्व होगा।
- फसह (Passover) का पर्व सात दिन तक बड़े विधिपूर्वक मनाया जाएगा।
- सातवें महीने में भी पर्व के समय बलिदान चढ़ाए जाएँगे।
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सीख: आराधना में पवित्रता और नियमितता
परमेश्वर को प्रिय है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर के लिए पहले स्थान को अलग करना चाहिए।
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सच्चाई, न्याय और ईमानदारी परमेश्वर के राज्य
के मूलभूत सिद्धांत हैं।
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नेतृत्व का अर्थ है सेवा और समर्पण।
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पवित्रता और आराधना का जीवन नियमित और गहन होना चाहिए।
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याद रखने योग्य वचन
"अब तुम लोग अपनी अन्यायपूर्ण बातें और दुष्ट कार्य छोड़ दो,
और न्याय और धर्म के काम करो।"
(यहेजकेल 45:9)
📖 यहेजकेल
अध्याय 46 – आराधना का क्रम और राजकुमार की भूमिका
(Ezekiel 46 – Order of Worship and the Prince's Role)
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अध्याय की झलक:
यह अध्याय आराधना में नियमितता, श्रद्धा और
पवित्रता पर केंद्रित है।
यह दिखाता है कि भविष्य के राज्य में कैसे हर दिन, हर सब्त, और हर पर्व परमेश्वर की महिमा के लिए अलग
किया जाएगा।
यह राजकुमार (शासक) के आचरण और लोगों के साथ उसके न्यायपूर्ण
व्यवहार को भी रेखांकित करता है।
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1-8 पद: फाटकों और आराधना का नियम
- पूर्वी फाटक सप्ताह के छह दिनों में बंद रहेगा,
लेकिन सब्त और नए चाँद के दिन (New Moon) खोला जाएगा।
- राजकुमार उस फाटक से प्रवेश करेगा और वहाँ से आराधना
करेगा।
- लोग भी फाटक के सामने से प्रभु की आराधना करेंगे,
लेकिन वे अन्दर नहीं आएँगे।
- राजकुमार विशिष्ट भेंटें चढ़ाएगा: भेड़,
मेमने, अनाज और तेल।
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सीख: आराधना के लिए निश्चित समय और
आदरपूर्वक व्यवस्था परमेश्वर को प्रिय है।
🔹
9-15 पद: आराधना में अनुशासन
- जो भी पर्वों के दिन आराधना के लिए आएगा,
वह जिस द्वार से आया है, उससे वापस नहीं
जाएगा — उसे दूसरे द्वार से बाहर निकलना होगा।
- सब को बिना खाली हाथ प्रभु के सामने नहीं आना चाहिए।
- हर सुबह एक वर्ष का निर्दोष मेमना होमबलि के लिए चढ़ाया
जाएगा, अनाज और तेल के साथ।
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सीख: परमेश्वर के सामने आना एक
विशेषाधिकार है, जिसे आदर और उदारता से निभाना चाहिए।
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16-18 पद: राजकुमार की संपत्ति के नियम
- यदि राजकुमार अपने बेटों को संपत्ति देना चाहे,
तो वह स्थायी होगी।
- यदि वह किसी सेवक को भूमि देता है,
तो वह केवल यौबेल वर्ष (Jubilee Year) तक
रहेगी और फिर वापस लौटेगी।
- राजकुमार को लोगों की भूमि छीनने की अनुमति नहीं है।
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सीख: नेतृत्व सेवा और न्याय का स्थान
है, न कि स्वार्थ और अत्याचार का।
🔹
19-24 पद: मंदिर की रसोई और कार्यक्षेत्र
- याजकों के लिए विशिष्ट स्थान होंगे जहाँ वे बलिदान के
मांस को पकाएँगे।
- जनता के लिए अलग रसोईघर होंगे जहाँ वे अपने बलिदान
पकाएँगे।
- यह सब व्यवस्था इस बात को सुनिश्चित करती है कि पवित्रता
बनी रहे और अराजकता न फैले।
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सीख: परमेश्वर का घर सुव्यवस्थित,
पवित्र और आदरपूर्ण होना चाहिए।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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आराधना के लिए एक पवित्र, व्यवस्थित और
सम्मानपूर्ण दृष्टिकोण होना चाहिए।
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जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, उनके जीवन में
अनुशासन और न्याय आवश्यक है।
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नेतृत्व का कर्तव्य है कि वह लोगों की भलाई के लिए कार्य करे,
न कि अपने स्वार्थ के लिए।
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छोटी-छोटी व्यवस्थाएँ भी परमेश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण होती
हैं।
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याद रखने योग्य वचन
"जब लोग प्रभु के सामने आएँ, तो वे उसी
द्वार से वापस न लौटें जिससे वे आए थे, परंतु दूसरे द्वार से
निकलें।"
(यहेजकेल 46:9)
📖 यहेजकेल
अध्याय 47 – जीवनदायक नदी और भूमि का नया बँटवारा
(Ezekiel 47 – The Life-Giving River and Division of the
Land)
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अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक शक्तिशाली दर्शन दिखाता है: एक नदी मंदिर से बहती है,
जो जहाँ जाती है वहाँ जीवन, चंगाई और बहाली
लेकर आती है।
यह परमेश्वर की पुनर्स्थापना की प्रतिज्ञा का प्रतीक है — जब वह
अपने लोगों को फिर से जीवित करेगा और उनकी भूमि को आशीषित करेगा।
🔹
1-12 पद: मंदिर से बहती जीवनदायक नदी
- यहेजकेल को दिखाया गया कि मंदिर के दक्षिणी ओर से एक
जलधारा बह रही है।
- वह नदी धीरे-धीरे गहरी होती जाती है:
- टखनों तक,
- घुटनों तक,
- कमर तक,
- फिर इतनी गहरी कि तैरा जा सके।
- यह नदी मृत सागर तक बहती है और उसके खारे पानी को मीठा
बना देती है।
- जहाँ-जहाँ यह नदी जाती है, वहाँ जीवन पनपता है: मछलियाँ, पेड़, फल और चंगाई।
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सीख: परमेश्वर की उपस्थिति से जीवन,
चंगाई और बहाली आती है।
🔹
13-21 पद: भूमि का नया विभाजन
- परमेश्वर ने इस्राएल के 12 गोत्रों के बीच भूमि को बाँटने का निर्देश दिया।
- जो विदेशी लोग इस्राएल के साथ रहेंगे,
उन्हें भी विरासत दी जाएगी — परमेश्वर का आशीर्वाद सबके लिए
है।
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सीख: परमेश्वर का राज्य सब जातियों के
लिए खुला है जो उसमें विश्वास करते हैं।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर की उपस्थिति शुष्क जीवन को भी हरा-भरा बना देती है।
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धीरे-धीरे बढ़ने वाला आत्मिक विकास गहराई लाता है।
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जहाँ परमेश्वर का जल बहता है, वहाँ मृत्यु
नहीं, जीवन होता है।
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परमेश्वर का आशीर्वाद और राज्य उन सबके लिए है जो उसमें भाग लेना
चाहते हैं।
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याद रखने योग्य वचन
"जहाँ कहीं वह नदी जाएगी, वहाँ सब जीवित
प्राणी जो इधर-उधर रेंगते हैं, जीवित रहेंगे।"
(यहेजकेल 47:9)
📖 यहेजकेल
अध्याय 48 – भूमि का अंतिम विभाजन और परमेश्वर का नया नगर
(Ezekiel 48 – The Final Division of the Land and the New
City of God)
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अध्याय की झलक:
यह अध्याय एक अद्भुत भविष्यदर्शन प्रस्तुत करता है: जब इस्राएल पूरी
तरह बहाल होगा, तो गोत्रों के बीच भूमि कैसे बाँटी जाएगी,
मंदिर और नगर कहाँ स्थित होंगे, और उस नए नगर
का नया नाम क्या होगा।
यह परमेश्वर की वफादारी और उसके लोगों के बीच उसकी सदा रहने वाली
उपस्थिति का चित्रण है।
🔹
1-7 पद: उत्तर से लेकर सात गोत्रों के लिए भूमि
- भूमि के उत्तरी हिस्से में दान से शुरू होकर आशेर,
नप्ताली, मनश्शे, एप्रैम,
रूबेन और यहूदा गोत्रों के लिए क्षेत्र बाँटा गया।
- हर गोत्र को समान चौड़ाई की पट्टियाँ दी गईं — उत्तर से
दक्षिण की ओर।
🧭 सीख: परमेश्वर न्यायपूर्वक और व्यवस्थित रूप से आशीषें बाँटता है।
🔹
8-22 पद: पवित्र अंश और मंदिर का स्थान
- यहूदा और बिन्यामीन के बीच एक "पवित्र भाग"
निकाला गया:
- मंदिर का क्षेत्र,
- याजकों और लेवियों के निवास स्थान,
- और नगर (नया यरूशलेम)।
- राजकुमार (शासक) के लिए भी आसपास भूमि तय की गई।
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सीख: परमेश्वर का घर उसके राज्य का
केंद्र बिंदु होता है।
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23-29 पद: दक्षिणी भाग के पाँच गोत्रों के लिए भूमि
- बिन्यामीन से शुरू होकर शिमोन,
इस्साकार, जबूलून और गाद के लिए भूमि
बाँटी गई।
- गाद का भाग सबसे दक्षिण में था,
एक नदी की सीमा तक।
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सीख: परमेश्वर हर गोत्र को उसके भाग का
उत्तरदायित्व सौंपता है।
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30-35 पद: नया नगर और उसके द्वार
- नगर के चारों ओर बारह द्वार होंगे — प्रत्येक द्वार एक
गोत्र के नाम पर।
- नगर का आकार: चारों ओर 4,500
नाप लंबाई।
- और नगर का नया नाम होगा:
👉 "यहोवा-शम्मा" (यानी "प्रभु वहीं है")।
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सीख: परमेश्वर की उपस्थिति ही उसकी
प्रजा के लिए सबसे बड़ी आशीष है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
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परमेश्वर अपने वचनों को पूरा करने वाला है — restoration निश्चित है।
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हर किसी के लिए परमेश्वर के राज्य में स्थान है।
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परमेश्वर की उपस्थिति हमारे जीवन का केंद्र बिंदु होना चाहिए।
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नया यरूशलेम सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि
परमेश्वर की नज़दीकी का प्रतीक है।
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याद रखने योग्य वचन
"उस नगर का नाम उस दिन से यह होगा: 'यहोवा-शम्मा'
(अर्थात 'प्रभु वहाँ है')"
(यहेजकेल 48:35)