📖 2 पतरस – अध्याय 1: आत्मिक वृद्धि, प्रेरित की गवाही और भविष्यवाणी का महत्व

🌟 अध्याय की झलक:

2 पतरस 1 का मुख्य उद्देश्य यह है कि विश्वासी मसीह में आत्मिक रूप से परिपक्व बनें। पतरस यह भी स्पष्ट करता है कि उसका सुसमाचार कल्पना या मनगढ़ंत कथा नहीं, बल्कि व्यक्तिगत अनुभव और पवित्र भविष्यवाणी पर आधारित है।


🔹 1-2 पद: आत्मिक जीवन की नींव – मसीह में समान विश्वास

📌 पद 1:

"शमौन पतरस, यीशु मसीह का दास और प्रेरित..."

  • पतरस सभी विश्वासियों को याद दिलाता है कि वे भी उसके समान मूल्यवान विश्वास के भागी हैं।
  • विश्वास का स्रोत: यीशु मसीह की धार्मिकता

📌 पद 2:

"परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु की पहचान से तुम्हें अनुग्रह और शांति और अधिक प्राप्त हो।"

सीख:

  • विश्वास में कोई छोटा-बड़ा नहींपतरस जैसा प्रेरित और सामान्य विश्वासी, दोनों का विश्वास एक ही प्रभु पर आधारित है।
  • परमेश्वर की पहचान से ही अनुग्रह और शांति में बढ़ोतरी होती है।

🔹 3-4 पद: आत्मिक जीवन के लिए आवश्यक हर बात हमें दी गई है

📌 पद 3:

"जिसने हमें अपनी महिमा और भलाई के द्वारा बुलाया है..."

  • परमेश्वर की दिव्य सामर्थ्य ने हमें हर आवश्यक आत्मिक वस्तु दी है:
    • जीवन के लिए
    • भक्ति के लिए

📌 पद 4:

"उसने हमें अनमोल और अत्यंत बड़े प्रतिज्ञाएँ दी हैं..."

  • ताकि हम दिव्य स्वभाव में सहभागी बनें।
  • इस संसार की दुष्ट वासनाओं से बच सकें।

सीख:

  • मसीह में हमें कोई आत्मिक कमी नहीं।
  • प्रतिज्ञाएँ केवल जानने के लिए नहीं, बल्कि उसमें चलने के लिए हैं।

🔹 5-11 पद: आत्मिक गुणों में वृद्धि

📌 आत्मिक सीढ़ी (Faith Ladder):

पद 5-7 में एक आत्मिक विकास क्रम (spiritual growth process) बताया गया है:

क्रम

गुण

1

विश्वास (Faith)

2

सद्गुण (Virtue – नैतिक उत्कृष्टता)

3

ज्ञान (Knowledge)

4

संयम (Self-control)

5

धीरज (Perseverance)

6

भक्ति (Godliness)

7

भाईचारा प्रेम (Brotherly kindness – φιλαδελφία)

8

अगापे प्रेम (Agape – परम प्रेम)

📌 पद 8:

"यदि ये सब तुम्हारे पास विद्यमान हों और बढ़ते रहें, तो वे तुम्हें प्रभु यीशु मसीह की पहचान में आलसी या निष्फल न बनाएँगे।"

📌 पद 10-11:

  • यदि तुम इन गुणों में स्थिर रहते हो, तो कभी ठोकर न खाओगे।
  • और तुम्हें स्वर्ग के राज्य में भरपूर प्रवेश प्राप्त होगा।

सीख:

  • आत्मिक वृद्धि स्वचालित नहीं होतीप्रयास करना होता है।
  • यह "नियमों से धार्मिकता" नहीं, बल्कि "परमेश्वर के साथ सहभागिता" का फल है।
  • मसीही जीवन का उद्देश्य केवल उद्धार पाना नहीं, बल्कि फलदायक जीवन जीना है।

🔹 12-15 पद: सत्य की स्मृति

📌 पतरस की चिंता:

  • पतरस जानता है कि उसका मृत्यु का समय निकट है।
  • इसलिए वह चाहता है कि विश्वासी इन बातों को स्मरण रखेंताकि वह मरने के बाद भी वे स्थिर रहें।

सीख:

  • एक सच्चे आत्मिक अगुवा का उद्देश्य है कि लोग परमेश्वर के सत्य में स्थिर रहेंउसके बिना भी।
  • सत्य की स्मृति मसीही जीवन में लगातार नवीनीकरण लाती है।

🔹 16-18 पद: मसीह की महिमा का प्रत्यक्षदर्शी

📌 पद 16:

"क्योंकि जब हमने तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के सामर्थ्य और आगमन का समाचार दिया, तो चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुकरण नहीं किया..."

  • पतरस ने मसीह के परिवर्तन रूप (Transfiguration) को आंखों से देखा था
  • उन्होंने स्वर्ग से आए उस आवाज़ को सुना — "यह मेरा प्रिय पुत्र है।"

(देखें: मत्ती 17:1–5)

सीख:

  • मसीही विश्वास कल्पना या मिथक पर नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है।
  • पतरस का साक्ष्य मसीह की महिमा, deity और दूसरे आगमन की पुष्टि करता है।

🔹 19-21 पद: भविष्यवाणी का वचन और उसका महत्व

📌 पद 19:

"और हमारे पास भविष्यवाणी का और भी दृढ़ वचन है..."

  • यह वचन अंधकार में जलते दीपक के समान है, जब तक कि "भोर का तारा" अर्थात मसीह **तुम्हारे हृदय में उदय न हो।"

📌 पद 20-21:

  • कोई भी भविष्यवाणी निजी व्याख्या से नहीं निकली।
  • यह मनुष्यों की इच्छा से नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर परमेश्वर की ओर से बोली गई।

सीख:

  • पवित्र शास्त्र की भविष्यवाणी परमेश्वर का वचन है — न कि मानव कल्पना।
  • हमें वचन को विनम्रता और पवित्र आत्मा के प्रकाश में समझना चाहिए।
  • वचन विश्वास को मजबूत करता है, और अंधकार में दिशा देता है।

📌 अध्याय 1 की संक्षिप्त आत्मिक शिक्षाएँ:

विषय

आत्मिक सच्चाई

विश्वास

मसीह में सभी विश्वासियों की समान स्थिति

आत्मिक सामर्थ्य

परमेश्वर ने सब कुछ दिया है

आत्मिक विकास

गुणों में निरंतर वृद्धि आवश्यक

प्रेरित की गवाही

मसीह की महिमा का प्रत्यक्ष साक्षी

भविष्यवाणी

परमेश्वर का निश्चल और सटीक वचन


✝️ याद रखने योग्य वचन:

"उसकी दिव्य सामर्थ्य ने हमें जीवन और भक्ति के लिये सब वस्तुएँ दी हैं..."
(2
पतरस 1:3)

"यदि ये सब तुम्हारे पास विद्यमान हों... तो तुम्हें आलसी या निष्फल न बनाएँगे।"
(2
पतरस 1:8)

"भविष्यद्वाणी कभी मनुष्य की इच्छा से नहीं हुई..."
(2
पतरस 1:21)


📖 2 पतरस – अध्याय 2: झूठे शिक्षक और उनका न्याय

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय सिखाता है कि जैसे पुराने समय में झूठे भविष्यवक्ता थे, वैसे ही आज झूठे शिक्षक भी होंगे। पतरस स्पष्ट करता है कि परमेश्वर झूठ और दुष्टता को कभी अनदेखा नहीं करता, और एक दिन निश्चित न्याय आएगा।


🔹 1-3 पद: झूठे शिक्षक का आगमन और उनका विनाश

📌 पद 1:

"पर जैसे उन लोगों में झूठे भविष्यद्वक्ता थे, वैसे ही तुम में भी झूठे शिक्षक होंगे..."

वे क्या करते हैं:

  • गुप्त रूप से विध्वंसकारी बातों को घुसाते हैं
  • मालिक का इनकार करते हैं जिसने उन्हें खरीदा।
  • स्वयं विनाश की ओर जाते हैं और दूसरों को भी खींचते हैं।

📌 पद 2-3:

  • बहुत लोग उनके दुराचार का अनुसरण करेंगे।
  • उनके कारण सत्य के मार्ग की निन्दा होगी
  • वे लालच से झूठे शब्दों द्वारा तुम्हें ठगेंगे।

सीख:

  • झूठे शिक्षक बाहर से धार्मिक, भीतर से स्वार्थी होते हैं।
  • उनका उद्देश्य आत्मिक नहीं, बल्कि लाभ और लालच होता है।
  • सच्चे मसीही को वचन में स्थिर रहकर इनसे बचना चाहिए।

🔹 4-10 पद: परमेश्वर न्याय करता है – तीन ऐतिहासिक उदाहरण

📌 उदाहरण 1: गिरते हुए स्वर्गदूत (पद 4)

  • परमेश्वर ने पाप करनेवाले स्वर्गदूतों को नरक में डाल दिया और अंधकार की जंजीरों में बाँध दिया

📌 उदाहरण 2: नूह और जलप्रलय (पद 5)

  • केवल नूह और उसका परिवार बचे; बाकियों पर न्याय आया।

📌 उदाहरण 3: सदोम और अमोरा (पद 6–8)

  • ये नगर दुराचार में लिप्त थे, और परमेश्वर ने उन्हें भस्म कर दिया
  • लूत, जो धर्मी था, उसे छुड़ा लिया।

📌 निष्कर्ष (पद 9-10):

"प्रभु भक्तों को परीक्षा से निकालना जानता है, और अधमिर्यों को न्याय के दिन तक दंडित रखने को भी।"


🔹 10-16 पद: झूठे लोगों का चरित्र

📌 उनके गुण:

  • शारीरिक वासनाओं के पीछे चलते हैं
  • सत्ता का तिरस्कार करते हैं, और अभिमानी व स्वेच्छाचारी हैं।
  • देवदूतों की निंदा करते हैं, जिन्हें वे समझते भी नहीं।

📌 पद 15:

"उन्होंने सीधे मार्ग को छोड़कर बिल्लाम के मार्ग में चलना शुरू किया..."

  • बिल्लाम, जो लोभ के कारण परमेश्वर के विरुद्ध चला, उसका उल्लेख है।
  • गधे के द्वारा चेतावनी मिली, फिर भी वह पाप में लीन रहा।

सीख:

  • जब कोई शिक्षक आत्मिक से अधिक भौतिक और स्वार्थी हो जाए, तो वह बिल्लाम के मार्ग पर है।
  • अभिमान, अधिकार की निंदा, और वासनाओं में जीनाझूठी आत्मिकता की पहचान हैं।

🔹 17-22 पद: अंतिम चेतावनी – उनसे सावधान रहो

📌 पद 17:

"ये ऐसे सोते हैं जिनमें जल नहीं, आँधी से उड़ाए गए बादल हैं..."

  • उनके वचनों में कोई आत्मिक जल नहींकेवल दिखावा है।
  • वे दूसरों को मुक्ति का वादा करते हैं, पर स्वयं पाप के दास हैं।

📌 पद 20-21:

"यदि वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की पहचान से सांसारिक मलिनताओं से बचकर फिर उनमें फँसें, तो उनकी पिछली दशा पहले से भी बुरी होती है।"

  • यह जागरूक मसीही को चेतावनी है — जो सत्य को जानकर फिर पीछे मुड़ता है।

📌 पद 22:

"कुत्ता अपनी उलटी की ओर लौटता है..." और "धोई हुई सूअर कीचड़ में लौट जाती है।"

  • यह नकली परिवर्तन और असली पश्चाताप के बीच अंतर दिखाता है।

📌 अध्याय 2 की आत्मिक शिक्षाएँ:

विषय

सीख

झूठे शिक्षक

बाहर से धार्मिक, अंदर से लोभी और धोखेबाज

परमेश्वर का न्याय

निश्चित, समय पर और धर्म के पक्ष में

उदाहरण

स्वर्गदूत, नूह का युग, सदोम-अमोरा

बिल्लाम का मार्ग

आत्मिक वरदान को धन के लिए बेचना

धोखा

बड़े शब्दों और वचन से भोले लोगों को फँसाना

आत्मिक पतन

सत्य जानकर फिर पाप में लौटना और गंदगी में गिरना


✝️ याद रखने योग्य वचन:

"प्रभु भक्तों को परीक्षा से निकालना जानता है, और अधमिर्यों को न्याय के दिन तक दंडित रखने को भी।"
(2
पतरस 2:9)

"उन्होंने सीधे मार्ग को छोड़ दिया और बिल्लाम के मार्ग में चल पड़े..."
(2
पतरस 2:15)

"यदि कोई पाप के दास बन गया, तो वह जिससे हारा है, उसी का दास बनता है।"
(2
पतरस 2:19)

 

📖 2 पतरस – अध्याय 3: प्रभु के दिन की प्रतीक्षा और सतर्कता

🌟 अध्याय की झलक:

इस अंतिम अध्याय में पतरस मसीह के दूसरे आगमन की याद दिलाता है। वह यह स्पष्ट करता है कि कुछ लोग प्रभु के आने का उपहास करते हैं, परंतु प्रभु की देरी दयालुता और उद्धार का अवसर है। इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य है — पवित्रता, जागरूकता और प्रतिक्षा में स्थिर रहना।


🔹 1-2 पद: स्मरण दिलाना और चेतावनी

📌 पद 1:

"यह अब मेरी दूसरी पत्री है... ताकि तुम्हारे शुद्ध मन को स्मरण दिलाकर उत्तेजित करूँ।"

  • पतरस दोनों पत्रियों के माध्यम से विश्वासियों को सत्य की स्मृति में जगाना चाहता है।

📌 पद 2:

  • प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं के वचनों को भूलो नहींक्योंकि वे प्रभु की योजनाओं और आगमन की ओर संकेत करते हैं।

सीख:

  • हम अक्सर आत्मिक नींद में चले जाते हैं — इसलिए सतत स्मृति आवश्यक है।
  • वचन की चेतावनी और प्रतिज्ञा दोनों मूल्यवान हैं।

🔹 3-7 पद: ठठा करनेवालों की उपस्थिति और उनका अज्ञान

📌 पद 3:

"अंत के दिनों में ठठा करनेवाले आएंगे..."

  • वे कहेंगे: "प्रभु के आने का वादा कहाँ है?"

📌 उनकी सोच:

  • वे अपनी वासनाओं के अनुसार जीते हैं
  • उन्हें इतिहास की घटनाएँ जैसे सृष्टि, जलप्रलय, आदि की कोई परवाह नहीं।

📌 पद 5-7:

  • परमेश्वर का वचन ही:
    • सृष्टि का कारण बना,
    • जलप्रलय लाया,
    • और अब आग से न्याय को रोके हुए है।

सीख:

  • शरीरिक लोग आत्मिक सच्चाइयों का उपहास करते हैं।
  • परमेश्वर का वचन न केवल जीवन देता है, बल्कि न्याय भी लाता है।

🔹 8-10 पद: प्रभु का समय और न्याय

📌 पद 8:

"प्रभु के पास एक दिन हजार वर्षों के बराबर है..."

  • यह समय की परमेश्वरी दृष्टि है — जो मानवीय समय से ऊपर है।

📌 पद 9:

"प्रभु अपनी प्रतिज्ञा में देर नहीं करता..."

  • यह देरी दयालुता है, ताकि और लोग मन फिराएं

📌 पद 10:

"प्रभु का दिन चोर के समान आएगा..."

  • तब:
    • आकाश शोर के साथ विलीन होगा,
    • तत्व जलकर नष्ट होंगे,
    • पृथ्वी और उस पर किए गए काम जांचे जाएंगे।

सीख:

  • देरी का मतलब अविश्वसनीयता नहीं, बल्कि उद्धार का अवसर है।
  • प्रभु का दिन अचानक, निश्चित, और पूर्ण न्याय के साथ आएगा।

🔹 11-14 पद: पवित्रता और प्रतीक्षा

📌 पद 11:

"जब ये सब वस्तुएँ इस रीति से नाश हो जाएँगी, तब तुम्हें कैसा पवित्र और भक्तिपूर्ण जीवन बिताना चाहिए?"

📌 पद 13:

"हम नए आकाश और नई पृथ्वी की आशा रखते हैं, जिसमें धर्म वास करता है।"

📌 पद 14:

"प्रयत्न करो कि वह तुम्हें शांति में निष्कलंक और निर्दोष पाए।"

सीख:

  • न्याय की जानकारी डराने के लिए नहीं, बल्कि पवित्रता के लिए प्रेरित करने के लिए है।
  • मसीही जीवन का लक्ष्य है:
    • निष्कलंकता,
    • प्रतीक्षा में दृढ़ता,
    • और धर्मी आशा।

🔹 15-16 पद: पौलुस की पत्रियाँ और वचन की समझ

📌 पद 15:

  • पतरस कहता है कि पौलुस की पत्रियाँ भी प्रभु के अनुग्रह और उद्धार को स्पष्ट करती हैं।

📌 पद 16:

  • कुछ लोग वचन को तोड़-मरोड़कर गलत अर्थ निकालते हैं — जिससे वे स्वयं को नाश में डालते हैं।

सीख:

  • वचन की गलत व्याख्या आत्मा के लिए हानिकारक हो सकती है।
  • पवित्र आत्मा की सहायता और नम्रता से वचन का अध्ययन जरूरी है।

🔹 17-18 पद: अंतिम चेतावनी और प्रेरणा

📌 पद 17:

"इसलिये हे प्रियो, जब तुम यह जान चुके हो, तो चौकसी करो..."

  • ताकि तुम दुष्टों की भूल में न बह जाओ

📌 पद 18:

"पर हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ते जाओ..."

  • अंत में — महिमा केवल मसीह को हो।

📌 अध्याय 3 की आत्मिक शिक्षाएँ:

विषय

आत्मिक शिक्षा

ठठा करनेवाले

विश्वास को हिलाने का प्रयास करते हैं

परमेश्वर का समय

हमारे समय से अलग है – वह धीरज रखता है

न्याय का दिन

निश्चित, अचानक और व्यापक

जीवन शैली

पवित्रता, प्रतीक्षा और जागरूकता में चलना

वचन

सच्चा, लेकिन गलत हाथों में खतरनाक

वृद्धि

अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ना — मसीही जीवन का लक्ष्य


✝️ याद रखने योग्य वचन:

"प्रभु अपनी प्रतिज्ञा में देर नहीं करता... वह नहीं चाहता कि कोई नाश हो, पर हर कोई मन फिराए।"
(2
पतरस 3:9)

"प्रभु का दिन चोर के समान आएगा..."
(2
पतरस 3:10)

"इसलिये प्रयत्न करो कि वह तुम्हें शांति में निष्कलंक और निर्दोष पाए।"
(2
पतरस 3:14)

"यीशु मसीह के अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ते जाओ..."
(2
पतरस 3:18)