1 पतरस - हर अध्याय की व्याख्या | 1 Peter - All Chapters Explained in Hindi
📖 1 पतरस
– अध्याय 1: नई आशा, पवित्र जीवन और
शुद्ध विश्वास
🌟 अध्याय की झलक:
1 पतरस का पहला अध्याय सताव में जी रहे विश्वासियों को आशा, आत्मिक दृढ़ता
और पवित्र जीवन के लिए प्रेरित करता है। इसमें मसीह के पुनरुत्थान से प्राप्त नई
आशा, भविष्य की विरासत, और पवित्रता का बुलावा है।
🔹 1-2 पद: पत्र
का अभिवादन
📌 लेखक:
- प्रेरित पतरस — यीशु मसीह के प्रत्यक्ष शिष्य और प्रारंभिक
कलीसिया के प्रमुख अगुआ।
📌 प्राप्तकर्ता:
- वे लोग जो "परदेशी" हैं — पृथ्वी पर
अस्थायी निवासी, जो एशिया माइनर (आज का तुर्की) में सताव सह रहे
हैं।
📌 आत्मिक पहचान:
- ये लोग परमेश्वर के पूर्व-ज्ञान, पवित्र
आत्मा की पवित्रता, और
यीशु मसीह की आज्ञा और उसके लहू के
छिड़काव द्वारा चुने गए हैं।
✅ सीख:
- मसीही की असली पहचान उसके चुने
जाने और
पवित्र किए जाने में है।
- हम इस पृथ्वी में परदेशी हैं; हमारी असली नागरिकता स्वर्ग में है।
🔹 3-5 पद: नई
आशा और अमर विरासत
📌 पद 3:
"धन्य है परमेश्वर... जिसने हमें यीशु मसीह के मरने में से जी
उठने के द्वारा जीवित आशा दी।"
📌 विषय:
- नया जन्म → एक जीवित आशा की ओर।
- आत्मिक विरासत → जो अमर, निष्कलंक
और अविनाशी है।
- परमेश्वर की सामर्थ्य से सुरक्षित → उद्धार के
लिए तैयार, जो अंतिम समय में प्रकट होगा।
✅ सीख:
- हमारी आशा स्थायी है क्योंकि यह मसीह के पुनरुत्थान पर आधारित
है।
- हमारी विरासत धन
या संपत्ति नहीं, बल्कि अनंत जीवन और स्वर्गीय राज्य है।
🔹 6-9 पद:
क्लेशों में आनन्द और विश्वास की परीक्षा
📌 पद 6:
"इस कारण तुम आनंद करते हो, यद्यपि
अब थोड़े समय के लिए..."
📌 आत्मिक
सिद्धांत:
- क्लेश क्षणिक हैं लेकिन आत्मिक परिपक्वता लाते हैं।
- विश्वास की परीक्षा सोने से भी कीमती है — यह परमेश्वर की दृष्टि में बहुमूल्य है।
📌 पद 8-9:
"जिस पर तुम विश्वास करते हो, यद्यपि
उसे नहीं देखा... और उद्धार पाते हो अपनी आत्माओं का।"
✅ सीख:
- सच्चा विश्वास वह है जो बिना देखे भी प्रेम करता और आनन्दित रहता है।
- मसीह में विश्वास का अंतिम परिणाम है — आत्मा का उद्धार।
🔹 10-12 पद: भविष्यवाणी और मसीह का रहस्य
📌 विषय:
- भविष्यद्वक्ताओं ने उसी उद्धार की खोज और जांच की
थी जिसकी पूर्ति मसीह में हुई।
- उन्हें यह प्रकट हुआ कि वे अपने
नहीं, हमारे लिए यह सेवकाई
कर रहे थे।
📌 विशेष तथ्य:
- स्वर्गदूत भी इस रहस्य को झाँककर
देखना चाहते हैं (पद 12)
— यह मसीह में उद्धार का अद्भुत रहस्य
है।
✅ सीख:
- मसीह में जो कुछ हमें मिला है, वह सदियों से छिपा परम रहस्य है।
- हम वह अनुभव कर रहे हैं जिसे भविष्यद्वक्ता
और स्वर्गदूत भी देखने को लालायित थे।
🔹 13-16 पद: पवित्र जीवन का बुलावा
📌 मुख्य आज्ञा:
"अपने मन की कमर कसो, और चैतन्य रहो..." (पद 13)
📌 पवित्रता का
कारण:
- हम परमेश्वर के बच्चे हैं — हमें
उस पवित्र के समान पवित्र बनना है।
- यह आज्ञा पुराने नियम से ली गई है: "पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।" (लैव्यवस्था
11:44)
✅ सीख:
- मसीही जीवन अनुग्रह से शुरू होता है पर पवित्रता में बढ़ता है।
- आज्ञाकारिता पवित्रता का प्रमाण है।
🔹 17-21 पद: परमेश्वर का भय और मसीह की बलि
📌 आत्मिक
दृष्टिकोण:
- परमेश्वर का न्याय निष्पक्ष है, इसलिए हमें भय और आदर में जीवन बिताना चाहिए।
- हमारा उद्धार सोने
या चाँदी से नहीं, बल्कि मसीह के निर्दोष और निष्कलंक
लहू से हुआ।
📌 मसीह का कार्य:
- मसीह की योजना संसार
की उत्पत्ति से पहले से थी, पर
अंतिम समय में प्रकट हुई।
- उसका पुनरुत्थान हमारे विश्वास
और आशा का केंद्र है।
✅ सीख:
- मसीह का बलिदान इतिहास
का नहीं, अनंत योजना का भाग था।
- एक भय और प्रेम से भरा जीवन मसीही का सच्चा उत्तर
है।
🔹 22-25 पद: सच्चा प्रेम और वचन की शुद्धता
📌 विषय:
- सच्चे प्रेम का स्रोत है — हृदय
की शुद्धता और सत्य का पालन।
- हमारा नया जन्म नाशमान
बीज से नहीं, परन्तु अविनाशी वचन से हुआ है। (पद 23)
📌 वचन की स्थिरता:
- "मनुष्य
का सब शरीर घास के समान है..." परन्तु "प्रभु का वचन सर्वदा बना रहेगा।" (यशायाह 40:6-8 से
उद्धृत)
✅ सीख:
- आत्मिक जीवन का विकास प्रेम
और परमेश्वर के वचन से होता है।
- यह वचन ही है जिसने हमें नया जन्म दिया है और यही
हमें अनंत जीवन तक बनाए रखेगा।
📌 सारांश में
शिक्षा:
विषय |
आत्मिक शिक्षा |
पहचान |
हम परमेश्वर के चुने हुए, परदेशी और
उद्धार पाए हुए लोग हैं |
आशा |
मसीह के पुनरुत्थान से जीवित आशा
मिली है |
क्लेश |
क्लेशों से विश्वास की परीक्षा
होती है और आत्मिक परिपक्वता आती है |
पवित्रता |
परमेश्वर के समान पवित्र जीवन
जीना हमारा बुलावा है |
उद्धार |
मसीह के लहू से मिला अमूल्य और
शाश्वत उद्धार |
प्रेम |
शुद्ध हृदय से एक-दूसरे से गहरा
और आत्मिक प्रेम |
वचन |
अविनाशी बीज, जो नया जन्म
और स्थिरता लाता है |
✝️ याद रखने योग्य वचन:
"धन्य है परमेश्वर... जिसने हमें जीवित आशा दी।"
(1 पतरस 1:3)
"सोने की कसौटी से बढ़कर तुम्हारे विश्वास की
परीक्षा..."
(1 पतरस 1:7)
"पवित्र बनो,
क्योंकि मैं पवित्र हूँ।"
(1 पतरस 1:16)
"तुम्हारा छुटकारा चाँदी या सोने से नहीं, परंतु
मसीह के बहुमूल्य लहू से हुआ है।"
(1 पतरस 1:18-19)
"परन्तु प्रभु का वचन सर्वदा बना रहेगा।"
(1 पतरस 1:25)
📖 1 पतरस – अध्याय 2:
आत्मिक घर, चुनी हुई जाति और मसीह का उदाहरण
🌟 अध्याय की झलक:
यह अध्याय मसीहियों को आत्मिक जीवन
में बढ़ने, मसीह में अपनी नई पहचान को समझने,
और सताव के बीच मसीह के उदाहरण का अनुसरण
करने की शिक्षा देता है। पतरस उन्हें याद दिलाता है कि वे “चुनी हुई जाति”,
“राजसी याजक” हैं और उन्हें हर हाल
में भले कामों से परमेश्वर की महिमा प्रकट करनी है।
🔹 1-3 पद:
आत्मिक वृद्धि के लिए आत्मिक भोजन
📌 मुख्य वचन:
"इसलिये सब प्रकार की बुराई, छल, कपट, डाह और
निन्दा को दूर करके..."
"...नवजात बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक
दूध की लालसा करो।" (पद 1-2)
📌 विषय:
- आत्मिक वृद्धि के लिए आत्मिक
स्वच्छता जरूरी है।
- पवित्र आत्मा से प्रेरित वचन ही निर्मल आत्मिक दूध है।
- जैसे शिशु दूध के बिना जीवित नहीं रह सकते, वैसे ही
मसीही वचन के बिना आत्मिक रूप से नहीं बढ़ सकते।
✅ सीख:
- आत्मिक भूख होना स्वस्थ मसीही जीवन की पहचान है।
- आत्मा का दूध है — परमेश्वर
का वचन, जिससे आत्मा पुष्ट होती है।
🔹 4-8 पद:
जीवित पत्थर और आत्मिक घर
📌 पद 4:
"उस जीवते पत्थर के पास आओ, जिसे
मनुष्यों ने तो ठुकरा दिया, परन्तु परमेश्वर के दृष्टिकोण में वह चुना हुआ और बहुमूल्य
है।"
📌 सिद्धांत:
- मसीह है मूल जीवित पत्थर — आधारशिला (cornerstone)।
- हम भी जीवते पत्थर हैं जो मिलकर आत्मिक भवन बना रहे हैं।
- मसीही समाज एक आध्यात्मिक
याजकीय मंडली है — बलिदान चढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि भक्ति और आराधना का जीवन जीने के लिए।
📌 पुराने नियम से
तुलना:
- यशायाह 28:16, भजन संहिता
118:22, यशायाह 8:14 से पुष्टि कि मसीह ठुकराया गया पत्थर है जो अब
कोने का पत्थर बना।
✅ सीख:
- हमारी पहचान केवल “विश्वासी” नहीं, बल्कि मसीह के भवन के हिस्से हैं।
- वह जिसने मसीह को ठुकरा दिया, वह ठोकर खाता है।
- मसीह की स्वीकारोक्ति ही आत्मिक स्थिरता का आधार
है।
🔹 9-10 पद: चुनी
हुई जाति और नई पहचान
📌 पद 9:
"पर तुम चुनी हुई जाति, राजसी याजकता, पवित्र
राष्ट्र और परमेश्वर की निज प्रजा हो..."
📌 मसीहियों की
आत्मिक पहचान:
आत्मिक विशेषता |
उद्देश्य |
चुनी हुई जाति |
हम परमेश्वर की इच्छा से चुने गए
हैं |
राजसी याजकता |
हमें सेवा, मध्यस्थता, और आराधना के
लिए बुलाया गया है |
पवित्र राष्ट्र |
अलग और पवित्र जीवन के लिए बुलाए
गए |
निज प्रजा |
परमेश्वर के अपने होने का सौभाग्य |
✅ सीख:
- हमारा उद्देश्य: "जिसने हमें अंधकार से अपनी अद्भुत ज्योति में
बुलाया है, उसके गुणों का प्रचार करें।" (पद 9)
- यह पद पुराने नियम के इज़राइल से लिया गया है,
पर अब मसीह में विश्वासियों पर लागू
होता है।
🔹 11-12 पद: परदेशियों के समान जीवन
📌 विषय:
- मसीही इस संसार में परदेशी
और यात्री हैं।
- हमें शारीरिक वासनाओं से दूर रहना है, क्योंकि ये आत्मा से युद्ध करती हैं।
- भले कामों के द्वारा हमें
अन्यजातियों के बीच में परमेश्वर की महिमा प्रकट करनी है।
✅ सीख:
- हमारी आत्मिक स्थिति संसार में अस्थायी निवासियों की तरह है।
- दूसरों को हमसे भले
कार्यों के द्वारा मसीह की ज्योति देखनी चाहिए।
🔹 13-17 पद: अधिपति के अधीन रहना
📌 विषय:
- हर मानव प्रबन्ध के अधीन रहो — राजा, अधिकारियों, न्यायियों
आदि के।
- इसका उद्देश्य है मसीह
के नाम की महिमा और दूसरों को मुँह बंद करना।
📌 पद 16:
"स्वतंत्र होकर भी अपनी स्वतंत्रता को बुराई का बहाना न बनाओ, परन्तु
परमेश्वर के दास बनो।"
✅ सीख:
- मसीही स्वतंत्रता = आत्मिक जिम्मेदारी, कानून
विरोध नहीं।
- आज्ञाकारी जीवन ही सच्चे मसीही चरित्र को प्रकट
करता है।
🔹 18-25 पद: मसीह का उदाहरण — पीड़ा में भी धीरज
📌 सन्दर्भ:
- गुलामों को अपने स्वामी के अधीन धैर्य से
सहने की आज्ञा।
- यह शिक्षाएँ आज भी किसी
भी कार्यस्थल, संबंध या सताव की स्थिति
में लागू होती हैं।
📌 मसीह का आदर्श:
मसीह ने क्या किया |
हमें क्या करना है |
पाप नहीं किया |
पवित्रता में चलना |
बदले में गाली नहीं दी |
सहनशीलता और क्षमा |
न्याय करनेवाले को सौंप दिया |
परमेश्वर पर भरोसा करना |
हमारे पापों को क्रूस पर उठाया |
पाप से छुटकारा पाना और धार्मिकता
में जीना |
उसके कोड़े से हमें चंगा किया |
आध्यात्मिक चंगाई |
✅ सीख:
- मसीह ने केवल हमारे लिए बलिदान नहीं दिया, बल्कि जीवन जीने का तरीका भी दिखाया।
- धैर्य, प्रेम और क्षमा मसीही जीवन के स्तंभ हैं।
📌 सारांश में
शिक्षा:
विषय |
आत्मिक शिक्षा |
आत्मिक दूध |
वचन की लालसा से आत्मिक वृद्धि |
जीवते पत्थर |
मसीह ही नींव है, हम उसमें
जुड़कर आत्मिक घर बनते हैं |
चुनी हुई जाति |
हमारी नई पहचान सेवा और प्रचार के
लिए |
परदेशी जीवन |
पवित्र, भले कार्यों
से भरपूर जीवन |
आज्ञाकारिता |
व्यवस्था और अधिकारियों के अधीन
होना आत्मिक अनुशासन है |
मसीह का उदाहरण |
दुख में धैर्य, प्रेम में
बलिदान, जीवन में पवित्रता |
✝️ याद रखने योग्य वचन:
"नवजात बच्चों की नाईं आत्मिक दूध की लालसा करो..."
(1 पतरस 2:2)
"तुम चुनी हुई जाति, राजसी याजकता, पवित्र
राष्ट्र हो..."
(1 पतरस 2:9)
"जिसके कोड़े से तुम चंगे हुए।"
(1 पतरस 2:24)
📖 1 पतरस – अध्याय 3:
घर, समाज और सताव में मसीही चरित्र
🌟 अध्याय की झलक:
1 पतरस 3 में पतरस हमें सिखाते हैं कि घर में, समाज में, और सताव के
बीच मसीही कैसे व्यवहार करें। यह अध्याय विशेष रूप से स्त्रियों और
पतियों, फिर पूरे समुदाय और अंततः सताव सहते हुए मसीह का उदाहरण
अपनाने पर केंद्रित है।
🔹 1-7 पद:
विवाह संबंध में आत्मिक व्यवहार
📌 स्त्रियों को
शिक्षा (1-6 पद)
मुख्य वचन:
"हे पत्नियों,
अपने-अपने पति के अधीन रहो..." (पद 1)
विषय:
- विश्वास न रखने वाले पति भी पत्नी
के चरित्र और भक्ति देखकर
प्रभु की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
- बाहरी सौंदर्य नहीं, बल्कि भीतर
का सौंदर्य, अर्थात नम्र और शांत आत्मा, परमेश्वर
के लिए बहुमूल्य है।
- पवित्र स्त्रियाँ जैसे सारा — जिन्होंने भय के बिना अधीनता और विश्वास से जीवन
जीया।
✅ सीख:
- एक पत्नी का आत्मिक जीवन उसके परिवार के लिए गवाही और मसीही प्रभाव बन सकता
है।
- बाहरी सजावट से बढ़कर आत्मिक
नम्रता और भक्ति परमेश्वर को प्रिय है।
📌 पतियों को
शिक्षा (पद 7)
"हे पतियों,
ज्ञानपूर्वक अपनी पत्नी के साथ निवास
करो..."
विषय:
- पत्नी को कमजोर पात्र मानते हुए आदर देना चाहिए
— आत्मिक उत्तराधिकार में वह समान है।
- यदि पतियों का व्यवहार कठोर या तिरस्कारपूर्ण होगा, तो उनकी प्रार्थनाएँ रुक सकती हैं।
✅ सीख:
- पति-पत्नी को आत्मिक
सहयोगी बनना है — केवल भावनात्मक नहीं, आध्यात्मिक
एकता में भी।
- सम्मान और समझ मसीही विवाह की नींव है।
🔹 8-12 पद:
एक-दूसरे से प्रेम और दया
📌 मुख्य निर्देश:
- "सब एक मन के, सहानुभूति रखनेवाले, भाईचारे में प्रेम रखनेवाले, दयालु और नम्र हो..." (पद 8)
- बुराई के बदले बुराई नहीं, बल्कि आशीष दो,
क्योंकि तुम आशीष पाने के लिए बुलाए
गए हो।
📌 पद 10-12:
भजन संहिता 34 से उद्धरण — जो
जीवन से प्रेम करता है, वह अपनी जीभ को बुराई से रोके, और शांति की
खोज करे।
✅ सीख:
- मसीही समाज भाईचारे, क्षमा,
और शुद्ध वाणी पर आधारित होना चाहिए।
- परमेश्वर धर्मी की सुनता है पर दुष्टों के विरुद्ध उसका मुख
होता है।
🔹 13-17 पद: सताव में भी भलाई करते रहना
📌 पद 14:
"यदि तुम धर्म के कारण दुख भी उठाओ, तो धन्य
हो।"
विषय:
- सताव से डरना नहीं, बल्कि ह्रदय
में मसीह को प्रभु मानकर पवित्र करना।
- जब लोग हमारे जीवन में आशा का कारण पूछें, तो नम्रता और भय के साथ
उत्तर देना।
📌 व्यवहार का
उद्देश्य:
- जिन लोगों का हमारे
विरुद्ध झूठा आरोप हो, वे
हमारे भले चालचलन को देखकर लज्जित हों।
- अगर कष्ट उठाना पड़े, तो बुराई
के कारण नहीं, भलाई के कारण उठाना बेहतर है।
✅ सीख:
- सताव में मसीहियों का आचरण मौन
प्रचार बन जाता है।
- हमारी आशा केवल सिद्धांत नहीं, वह एक
जीवित गवाही है।
🔹 18-22 पद: मसीह का बलिदान और विजयी आत्मा
📌 पद 18:
"क्योंकि मसीह ने भी, अधर्मियों के लिये एक बार पापों के
लिये दुःख उठाया..."
📌 मसीह का कार्य:
- उसने एक बार सदा के लिए पापों का
दंड उठाया।
- शरीर में मारा गया, पर आत्मा में जिलाया गया।
- मसीह ने आत्माओं को जाकर प्रचार किया — यह एक
रहस्यमयी बात है जिसे विद्वान अलग-अलग तरीके से समझते हैं, पर यह उसकी विजयी आत्मा को दर्शाता है।
📌 नूह और
बपतिस्मा:
- जैसे नूह के समय कुछ लोग जल से बचाए गए, वैसे ही बपतिस्मा भी अब हमें बचाता है — यह शरीर की
गंदगी धोने का प्रतीक नहीं, बल्कि शुद्ध अंतःकरण की गवाही है।
✅ सीख:
- मसीह का बलिदान एक बार हुआ, और वह पर्याप्त है।
- बपतिस्मा एक आत्मिक उत्तर है — यह उद्धार का प्रतीक है, कारण नहीं।
- मसीह अब परमेश्वर की दाहिनी ओर विराजमान है,
और हर
अधिकार उसके अधीन है।
📌 सारांश में
शिक्षा:
विषय |
आत्मिक शिक्षा |
स्त्री-पुरुष संबंध |
भक्ति, नम्रता, आदर और आत्मिक
एकता |
समाज में मसीही व्यवहार |
प्रेम, दया, क्षमा, और शुद्ध वाणी |
सताव का सामना |
मसीह की आशा से प्रेरित होकर
नम्रता से उत्तर देना |
मसीह का बलिदान |
एक बार का, परिपूर्ण और
विजयी |
बपतिस्मा |
बाहरी नहीं, बल्कि शुद्ध
अंतःकरण की अभिव्यक्ति |
✝️ याद रखने योग्य वचन:
"भीतर में उस आशा का कारण जो तुम में है, उसके
विषय में पूछने वालों को नम्रता और भय के साथ उत्तर दो।"
(1 पतरस 3:15)
"मसीह ने अधर्मियों के लिए दुःख उठाया, ताकि
हमें परमेश्वर के पास पहुँचाए।"
(1 पतरस 3:18)
"बपतिस्मा... अब तुम्हें भी बचाता है; यह शरीर
की गंदगी धोना नहीं, परन्तु परमेश्वर के प्रति शुद्ध अंतःकरण का उत्तर है।"
(1 पतरस 3:21)
📖 1 पतरस – अध्याय 4:
दुख सहना, पवित्र जीवन और आत्मिक सतर्कता
🌟 अध्याय की झलक:
यह अध्याय मसीहियों को सिखाता है कि
दुख और क्लेश मसीही जीवन का भाग हैं, और उन्हें
पवित्रता, प्रार्थना, सेवा और
प्रेम के साथ जीना है। यह अध्याय विशेष रूप से अंत समय की चेतावनी
और आत्मिक सतर्कता पर बल देता है।
🔹 1-6 पद: मसीह
की तरह दुख सहो और पवित्र जीवन जियो
📌 पद 1:
"जब मसीह ने शरीर में दुःख उठाया, तो तुम
भी उसी मनसा को अपनाओ..."
📌 सिद्धांत:
- जो व्यक्ति शारीरिक दुःख सहता है, वह पाप से दूर हो जाता है।
- अब समय शारीरिक वासनाओं में नहीं, बल्कि परमेश्वर की इच्छा में जीने का है।
📌 पहले और अब का
अंतर:
- पहले: भोग-विलास, नशा, मूर्तिपूजा
- अब: आत्मिक जागृति और पवित्रता
✅ सीख:
- दुःख एक आत्मिक प्रशिक्षण है, जो हमें पाप से दूर करता है।
- मसीही को अपने पुराने जीवन से पीछे नहीं
देखना चाहिए।
- मसीह में नया जीवन – नया
लक्ष्य और नई इच्छा लेकर आता है।
🔹 7-11 पद: अंत
निकट है — आत्मिक जीवन को सजग बनाओ
📌 पद 7:
"सब बातों का अंत निकट है, इसलिये
संयमी और प्रार्थना में चैतन्य रहो।"
📌 आत्मिक आदर्श:
आदेश |
उद्देश्य |
संयमी बनो |
ताकि प्रार्थना में स्थिर रहो |
प्रेम रखो |
क्योंकि प्रेम बहुत पापों को ढाँप
देता है |
आतिथ्य करो |
बिना कुड़कुड़ाए |
आत्मिक वरदानों से सेवा करो |
जैसे परमेश्वर ने दिया |
📌 सेवा की भावना:
- कोई बोले,
तो परमेश्वर की वाणी के समान बोले।
- कोई सेवा करे, तो परमेश्वर की दी गई सामर्थ्य
से करे।
- उद्देश्य: “सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की
महिमा हो।” (पद 11)
✅ सीख:
- मसीही जीवन का केंद्र है — प्रार्थना, प्रेम और सेवा।
- हर आत्मिक वरदान, चाहे वह
वचन हो या सेवा, परमेश्वर की महिमा के लिए प्रयोग होना चाहिए।
🔹 12-19 पद: सताव में मसीह के नाम का गौरव समझो
📌 पद 12:
"हे प्रियो,
जो अग्नि की सी परीक्षा तुम्हारे बीच होती
है, उससे अचंभा न करो..."
📌 मसीह के नाम से
दुःख:
- यदि तुम मसीह के नाम पर अपमानित होते हो, तो धन्य हो,
क्योंकि महिमा
का आत्मा तुम पर ठहरा है।
- यदि तुम कोई गलत कार्य करके दुःख सहो (जैसे चोर, घातक आदि), तो वह शर्म
की बात है, पर मसीही नाम से दुःख सहना गौरव
की बात है।
📌 आत्मिक न्याय:
- न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है।
- यदि धर्मी ही कठिनाई से बचते हैं, तो दुष्टों और पापियों का क्या होगा?
📌 अंतिम शिक्षा
(पद 19):
"जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार दुःख उठाते हैं, वे अपनी
आत्माओं को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ सौंप दें और भलाई करते रहें।"
✅ अध्याय 4 से मुख्य
आत्मिक शिक्षाएँ:
विषय |
आत्मिक सीख |
मसीह के समान दुःख |
आत्मिक पवित्रता की ओर ले जाता है |
पवित्र जीवन |
भोग-विलास से दूरी, परमेश्वर की
इच्छा में चलना |
अंत समय की चेतावनी |
संयम, प्रार्थना, प्रेम और सेवा |
आत्मिक वरदान |
परमेश्वर की महिमा के लिए प्रयोग
करें |
सताव |
मसीही के लिए सौभाग्य है, शर्म की बात
नहीं |
न्याय की शुरुआत |
परमेश्वर के घर से होती है |
✝️ याद रखने योग्य वचन:
"सब बातों का अंत निकट है, इसलिये
संयमी बनो और प्रार्थना में चैतन्य रहो।"
(1 पतरस 4:7)
"प्रेम बहुत से पापों को ढाँप देता है।"
(1 पतरस 4:8)
"यदि कोई मसीही कहलाने के कारण दुःख उठाए, तो वह
लज्जित न हो..."
(1 पतरस 4:16)
"अपनी आत्माओं को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ सौंप दो और
भलाई करते रहो।"
(1 पतरस 4:19)
📖 1 पतरस – अध्याय 5:
अगुवों की जिम्मेदारी, नम्रता, और आत्मिक सतर्कता
🌟 अध्याय की झलक:
यह अध्याय मसीही अगुवों (leaders), युवाओं
और पूरे समुदाय को नम्रता, चौकसी, और धैर्य
के साथ जीने की शिक्षा देता है। साथ ही यह
शैतान के विरुद्ध आत्मिक युद्ध और परमेश्वर की स्थायी अनुग्रह में
स्थिर रहने की प्रेरणा देता है।
🔹 1-4 पद:
अगुवों (प्राचीनों) के लिए निर्देश
📌 पद 2:
"परमेश्वर के झुंड की, जो तुम्हारे बीच है, रखवाली
करो..."
📌 विषय:
- पतरस स्वयं एक प्राचीन और मसीह के दुःख का साक्षी होने के नाते यह आदेश देता
है।
- अगुवों को जबर्दस्ती से नहीं, बल्कि स्वेच्छा से और प्रेमपूर्वक सेवा करनी
चाहिए।
- वे
लाभ के लोभ में नहीं, बल्कि समर्पण और नम्रता से अगुवाई
करें।
📌 उद्देश्य:
- अगुवे झुंड पर प्रभुता
न करें, बल्कि
आदर्श बनें।
- जब
प्रधान रखवाला (Chief Shepherd) प्रकट होगा, तब वे महिमा का मुकुट पाएंगे।
✅ सीख:
- अगुवे केवल शिक्षक नहीं, बल्कि आदर्श और सेवक होते हैं।
- अगुवाई सत्ता नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और बलिदान है।
- प्रधान रखवाला — मसीह
स्वयं — ही अंतिम न्याय और पुरस्कार का स्रोत है।
🔹 5-7 पद:
नम्रता और परमेश्वर पर भरोसा
📌 पद 5:
"तुम सब एक-दूसरे के अधीन रहो, और
नम्रता को पहन लो..."
📌 विषय:
- नम्रता मसीही जीवन की पहचान है।
- "परमेश्वर घमंडियों का विरोध करता है, पर नम्रों को अनुग्रह देता है।" (नीतिवचन 3:34)
📌 पद 6-7:
- अपने को दीन बनाओ, ताकि
परमेश्वर तुम्हें समय पर ऊँचा उठाए।
- अपने सारे चिंता उसके ऊपर डाल दो, क्योंकि वह तुम्हारी चिंता करता है।
✅ सीख:
- नम्रता के बिना अनुग्रह
नहीं मिलता।
- विश्वास का वास्तविक प्रमाण है — चिंता छोड़कर परमेश्वर पर भरोसा करना।
- प्रभु की देखभाल व्यक्तिगत और दयालु है।
🔹 8-9 पद:
आत्मिक चौकसी और शैतान से सामना
📌 पद 8:
"चैतन्य रहो,
और सावधान रहो; तुम्हारा
विरोधी शैतान गरजनेवाले सिंह की नाईं घूमता है..."
📌 विषय:
- शैतान की चालें असली हैं — वह धोखा, आत्मा को गिराना, और नाश करना चाहता है।
- मसीही को विश्वास में दृढ़ होकर उसका सामना करना चाहिए।
📌 पद 9:
- शैतान का सामना करते हुए जानो कि विश्वास में तुम्हारे भाई भी वही कष्ट भोग रहे हैं।
✅ सीख:
- आत्मिक युद्ध अकेले नहीं लड़ा जाता — सभी विश्वासी इसमें सहभागी हैं।
- चौकसी, प्रार्थना और वचन में स्थिरता ही शैतान का सामना करने का तरीका है।
🔹 10-11 पद: परमेश्वर की पुनःस्थापना की प्रतिज्ञा
📌 पद 10:
"परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का स्त्रोत है... तुम्हें सिद्ध, स्थिर, बलवन्त
और दृढ़ करेगा।"
📌 विषय:
- यह प्रतिज्ञा दुःख
के बाद की आशा है।
- परमेश्वर स्वयं हमें स्थिर
करने, बल देने,
और दृढ़
बनाने में सक्रिय है।
✅ सीख:
- परमेश्वर का अनुग्रह दुःख
के पार हमारी आत्मा को बहाल करता है।
- वह केवल छुटकारा देनेवाला नहीं, बल्कि सशक्त और सुसज्जित करनेवाला भी है।
🔹 12-14 पद: पत्र की समाप्ति
📌 पतरस द्वारा
उल्लेखित सहकर्मी:
- सिलवानुस (Silas): विश्वासयोग्य
सेवक के रूप में इस पत्र को पहुँचाने का ज़िम्मेदार।
- बेबीलोन
(संभावित रूप से रोम) से अभिवादन।
- मार्कुस
(Mark): पतरस का आत्मिक पुत्र।
📌 अंतिम शब्द:
- "एक-दूसरे को प्रेम की चुम्बन से नमस्कार करो। मसीह में
तुम्हें शांति मिले।"
📌 सारांश में
शिक्षा:
विषय |
आत्मिक शिक्षा |
अगुवों की सेवा |
नम्रता, प्रेम और
आदर्श का जीवन |
नम्रता |
परमेश्वर का अनुग्रह पाने की
कुंजी |
चिंता |
परमेश्वर पर सौंप दो — वह
तुम्हारी चिंता करता है |
शैतान से युद्ध |
चैतन्य रहो, विश्वास में
दृढ़ रहो |
अनुग्रह |
परमेश्वर हमें फिर से स्थापित
करता है |
भाईचारा |
प्रेम और शांति में जीवन जीओ |
✝️ याद रखने योग्य वचन:
"परमेश्वर घमण्डियों का विरोध करता है, परन्तु
नम्रों पर अनुग्रह करता है।"
(1 पतरस 5:5)
"तुम्हारी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि
वह तुम्हारी चिन्ता करता है।"
(1 पतरस 5:7)
"शैतान गरजनेवाले सिंह की नाईं घूमता है..."
(1 पतरस 5:8)
"वह तुम्हें सिद्ध, स्थिर, बलवन्त
और दृढ़ करेगा।"
(1 पतरस 5:10)