मलाकी की पुस्तक - हर अध्याय की व्याख्या | Book of Malachi All Chapters Explained in Hindi
📖 मलाकी
अध्याय 1 – परमेश्वर का प्रेम और इस्राएल का उदासीनता
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अध्याय की झलक:
मलाकी का पहला अध्याय परमेश्वर के प्रेम और इस्राएल की उदासीनता के
बीच एक गहरे संवाद का परिचय है। यह अध्याय परमेश्वर के उस अटल प्रेम को प्रकट करता
है जो उसने याकूब से किया था और इस्राएल के कर्तव्यों की याद दिलाता है। यह
इस्राएल की आत्मिक स्थिति, याजकों की लापरवाही और परमेश्वर
की महिमा पर केन्द्रित है।
🔹
1-5 पद: परमेश्वर का अटल प्रेम
परमेश्वर का प्रेम:
- यहोवा इस्राएल से कहता है, "मैंने तुम से प्रेम किया है," लेकिन
इस्राएल उत्तर देता है, "तूने हमसे कैसे प्रेम
किया?" (पद 2)
- परमेश्वर उत्तर देता है कि उसने याकूब को चुना और एसाव को
ठुकरा दिया, जो इस्राएल के
प्रति उसके प्रेम का प्रमाण है। (पद 2-3)
- एसाव के वंशज एदोम को नष्ट किया गया और उसकी भूमि उजाड़
दी गई, जबकि याकूब (इस्राएल) को आशीष दी गई। (पद
3-4)
- यहोवा की महिमा इस्राएल से परे,
सभी राष्ट्रों में फैल जाएगी। (पद 5)
❤️
सीख:
- परमेश्वर का प्रेम चुने हुए लोगों के प्रति स्थायी और
अविचल है।
- वह अपने वचनों को कभी नहीं बदलता और अपने लोगों की भलाई
के लिए हमेशा कार्य करता है।
- हमारे संदेह और अविश्वास के बावजूद,
परमेश्वर का प्रेम अटल और अविरल है।
🔹
6-14 पद: याजकों की निन्दा और अशुद्ध बलिदान
याजकों की लापरवाही:
- यहोवा कहता है कि "पुत्र अपने पिता का आदर करता है और दास अपने स्वामी का,"
लेकिन याजक परमेश्वर का आदर नहीं कर रहे हैं। (पद 6)
- याजक अशुद्ध और अपूर्ण बलिदान चढ़ा रहे थे — अंधे,
लंगड़े और रोगी पशु, जो परमेश्वर की
व्यवस्था के विरुद्ध है। (पद 7-8)
- यहोवा इन्हें अस्वीकार करता है और याजकों से पूछता है,
"क्या तुम्हारे राज्यपाल तुम्हें इसके लिए स्वीकार
करेंगे?" (पद 8)
- यहोवा कहता है कि वह इन बलिदानों को स्वीकार नहीं करेगा
और अपने नाम की महिमा के लिए राष्ट्रों में अपना नाम महान करेगा। (पद 10-11)
- याजकों की यह लापरवाही और अनादर यहोवा के क्रोध को
उत्तेजित करता है। (पद 12-14)
🔥
सीख:
- परमेश्वर केवल बाहरी रीति-रिवाजों से संतुष्ट नहीं होता,
वह सच्चे हृदय और श्रद्धा की अपेक्षा करता है।
- अशुद्ध और अधूरे अर्पण परमेश्वर के अपमान के समान हैं।
- याजकों और नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे परमेश्वर के
सम्मान और महिमा को बनाए रखें।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
परमेश्वर का प्रेम स्थायी और अटल है — हमें इसे कभी नहीं भूलना
चाहिए।
✝️
हमारा अर्पण पवित्र, सम्पूर्ण और प्रेम से भरा
होना चाहिए।
✝️
परमेश्वर की महिमा और आदर करना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी
चाहिए।
✝️
परमेश्वर बाहरी दिखावे से अधिक हृदय की स्थिति को महत्व देता है।
📌
याद रखने योग्य वचन:
"मैं ने तुम से प्रेम किया है, यहोवा
का यही वचन है।" (मलाकी 1:2)
📖 मलाकी
अध्याय 2 – याजकों की निन्दा और विश्वासघात का दंड
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अध्याय की झलक:
मलाकी का दूसरा अध्याय याजकों की लापरवाही और इस्राएल के लोगों की
विश्वासघाती आदतों पर परमेश्वर की कड़ी चेतावनी है। यह अध्याय याजकों की अनदेखी,
विवाह की पवित्रता और परमेश्वर की सन्तान की पवित्रता पर जोर देता
है। परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि उसके लोग पवित्र, न्यायी
और वफादार हों।
🔹
1-9 पद: याजकों की लापरवाही और चेतावनी
याजकों के लिए चेतावनी:
- परमेश्वर याजकों से कहता है कि यदि वे उसके नाम का आदर
नहीं करेंगे और उसकी महिमा का प्रचार नहीं करेंगे,
तो वह उनके आशीर्वाद को श्राप में बदल देगा। (पद 1-2)
- परमेश्वर उनकी संतानों पर भी श्राप लाएगा और उनकी
पवित्रताओं को अपवित्र कर देगा। (पद 3)
- लेवी के साथ परमेश्वर का वाचा था — जीवन और शांति का वाचा,
जो याजकों को श्रद्धा और सत्यनिष्ठा से जीने की प्रेरणा देता
है। (पद 4-5)
- लेवी वंश के याजक ज्ञान के शिक्षक थे और उनके होंठों से
सत्य निकलता था। लेकिन अब याजक सत्य से भटक गए हैं। (पद 6-8)
- उन्होंने इस्राएल को पाप की राह पर डाला,
इसलिए परमेश्वर उन्हें पूरे समाज में तुच्छ और नीचा करेगा। (पद
9)
⚠️
सीख:
- धार्मिक नेताओं पर विशेष जिम्मेदारी है कि वे सत्य का
प्रचार करें और पवित्रता का उदाहरण बनें।
- यदि वे अपने कर्तव्यों को अनदेखा करेंगे,
तो वे परमेश्वर के न्याय का सामना करेंगे।
- पवित्रता, सत्य और न्याय से समझौता करना परमेश्वर के क्रोध को बुलाना है।
🔹
10-16 पद: विवाह की पवित्रता और विश्वासघात
विश्वासघात और विवाह की पवित्रता:
- इस्राएल के लोग परमेश्वर के साथ अपने वाचा को तोड़ रहे थे
और अन्यजातियों से विवाह कर रहे थे, जो परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा को कमज़ोर कर रहा था। (पद 10-11)
- परमेश्वर ऐसे विश्वासघात से घृणा करता है और उन्हें अपनी
उपासना से वंचित करता है। (पद 12)
- लोग परमेश्वर से आशीष की प्रार्थना करते हैं,
लेकिन उनके आँसू और विलाप भी उसे प्रभावित नहीं करते, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनसाथियों के साथ विश्वासघात किया है। (पद 13-14)
- परमेश्वर ने विवाह को एक पवित्र बंधन बनाया है,
जिसमें दोनों एक देह बनते हैं और यह पवित्र वंश उत्पन्न करने
के लिए है। (पद 15)
- परमेश्वर कहता है, "मैं विवाह-विच्छेद से घृणा करता हूँ," और इसलिए हमें अपने जीवनसाथियों के प्रति विश्वासयोग्य होना चाहिए।
(पद 16)
💔
सीख:
- विवाह एक पवित्र बंधन है और इसे तोड़ना परमेश्वर के वचन
का उल्लंघन है।
- विश्वासघात और छल परमेश्वर के आशीर्वाद को रोकता है।
- हमें अपने जीवनसाथियों के प्रति प्रेम,
आदर और वफादारी से जीवन जीना चाहिए।
🔹
17 पद: न्याय की खोज
परमेश्वर की न्यायप्रियता:
- लोग पूछते हैं, "परमेश्वर कहाँ है?" और "बुराई करने वाले क्यों फलते-फूलते हैं?" (पद 17)
- परमेश्वर उन्हें उत्तर देता है कि उनका अधर्म और अन्याय
उसे क्रोधित करता है और वह शीघ्र ही न्याय करेगा।
⚖️
सीख:
- परमेश्वर का न्याय अवश्य होगा — उसे न तो अनदेखा किया जा
सकता है, न ही चुनौती दी
जा सकती है।
- धार्मिकता और न्याय के मार्ग पर चलना ही परमेश्वर की
प्रसन्नता का मार्ग है।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
धार्मिक नेताओं को सत्य और पवित्रता का उदाहरण होना चाहिए।
✝️
विवाह की पवित्रता का आदर करना परमेश्वर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण
है।
✝️
विश्वासघात और छल परमेश्वर के न्याय को बुलाता है।
✝️
हमें अपने कार्यों में न्याय, सत्य और
विश्वासयोग्यता बनाए रखनी चाहिए।
📌
याद रखने योग्य वचन:
"मैं विवाह-विच्छेद से घृणा करता हूँ," यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर, यह
कहता है। (मलाकी 2:16)
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अध्याय 3 – न्याय का दिन और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता
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अध्याय की झलक:
मलाकी का तीसरा अध्याय एक शक्तिशाली भविष्यवाणी है जो मसीह के आने,
न्याय के दिन और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर केंद्रित है। यह
अध्याय पवित्रता, शुद्धिकरण, न्याय और
विश्वासयोग्यता की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देता है।
🔹
1-5 पद: भविष्यवक्ता और प्रभु का आगमन
मसीह का अग्रदूत:
- यहोवा कहता है, "देखो, मैं अपना दूत भेजूंगा जो मेरे आगे मार्ग
तैयार करेगा।" (पद 1)
- यह दूत योहन बपतिस्मा देनेवाला का प्रतीक है,
जो मसीह के मार्ग को तैयार करने वाला था। (मत्ती 11:10)
- प्रभु अचानक अपने मंदिर में आएगा — यह मसीह के पहले और
दूसरे आगमन का संकेत है।
- "वह शुद्ध करने वाले की तरह आएगा,"
जो सोने और चांदी को शुद्ध करता है, और
लेवी की सन्तान को पवित्र करेगा ताकि वे परमेश्वर को सच्चे हृदय से भेंट चढ़ा
सकें। (पद 2-3)
- परमेश्वर न्याय करने के लिए आएगा और जादूगरों,
व्यभिचारियों, झूठे साक्षियों और गरीबों
पर अत्याचार करने वालों का न्याय करेगा। (पद 5)
🔥
सीख:
- मसीह का आगमन न केवल उद्धार का,
बल्कि न्याय का भी समय है।
- परमेश्वर पवित्रता की अपेक्षा करता है और अपने लोगों को
शुद्ध करता है।
- अधर्म और पाप का अंत निश्चित है — परमेश्वर न्यायी और
सत्य है।
🔹
6-12 पद: परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और दशमांश
परमेश्वर का अटल स्वभाव:
- परमेश्वर कहता है, "मैं यहोवा हूँ, मैं नहीं बदलता,"
इसलिए याकूब की सन्तान नष्ट नहीं हुई। (पद 6)
- इस्राएल से कहा जाता है कि वे परमेश्वर की ओर फिरें और वह
भी उनकी ओर फिरेगा। (पद 7)
- इस्राएल परमेश्वर से पूछता है,
"हम किस बात में तेरी ओर फिरें?"
- परमेश्वर उन्हें बताता है कि उन्होंने दशमांश और भेंटों
में उसे ठगा है। (पद 8)
- परमेश्वर उन्हें चुनौती देता है कि वे अपने दशमांश उसकी
भंडार गृह में लाएँ और देखें कि वह कैसे उनके लिए आकाश के खिड़कियाँ खोलता है
और आशीषों की वर्षा करता है। (पद 10)
- वह उनकी फसलें नाश होने से बचाएगा और उन्हें राष्ट्रों के
बीच धन्य कहेगा। (पद 11-12)
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सीख:
- परमेश्वर की आशीषें उसकी विश्वासयोग्यता पर निर्भर हैं।
- हमें अपनी संपत्ति और समय का एक हिस्सा परमेश्वर को
अर्पित करना चाहिए।
- परमेश्वर हमें विश्वास में कदम उठाने और उसकी आशीष का
अनुभव करने के लिए आमंत्रित करता है।
🔹
13-18 पद: धर्मी और अधर्मी का न्याय
परमेश्वर के प्रति मनोभाव:
- कुछ लोग कहते हैं, "परमेश्वर की सेवा करना व्यर्थ है," क्योंकि
अधर्मी फलते-फूलते दिखते हैं। (पद 14-15)
- लेकिन परमेश्वर उनके प्रति ध्यान देता है जो उसका भय
मानते हैं और उसका नाम स्मरण करते हैं। (पद 16)
- वह उन्हें अपनी "विशेष संपत्ति"
कहता है और न्याय के दिन उन्हें बचाएगा। (पद 17)
- उस दिन धर्मी और अधर्मी का स्पष्ट अंतर प्रकट होगा। (पद 18)
🕊️
सीख:
- परमेश्वर के प्रति वफादारी और भय का प्रतिफल अवश्य
मिलेगा।
- अधर्मी और धर्मी का अंत अलग-अलग होगा — परमेश्वर का न्याय
अचूक है।
- हमें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके वचन के प्रति
सच्चे बने रहना चाहिए।
✅
इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
मसीह का मार्ग तैयार करने का आह्वान हम सभी के लिए है।
✝️
परमेश्वर हमारी पवित्रता, वफादारी और सच्चाई
की अपेक्षा करता है।
✝️
आशीष और न्याय परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर निर्भर हैं।
✝️
हमें दशमांश और भेंटों में सच्चाई और उदारता से देना चाहिए।
📌
याद रखने योग्य वचन:
"मैं यहोवा हूँ, मैं नहीं बदलता;
इसी कारण हे याकूब की सन्तान, तुम नाश नहीं
हुए।" (मलाकी 3:6)
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अध्याय 4 – न्याय का दिन और धर्म का सूर्य
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अध्याय की झलक:
मलाकी का चौथा और अंतिम अध्याय परमेश्वर के न्याय, धर्म का उदय और अधर्म के नाश की भविष्यवाणी करता है। यह अध्याय न्याय के
दिन की गंभीरता और परमेश्वर की करुणा का प्रतीक है, जो उसके
भय मानने वालों के लिए आशा का संदेश लाता है।
🔹
1 पद: अधर्मियों का विनाश
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परमेश्वर का न्याय:
- यहोवा का दिन आने वाला है, जो भट्टी के समान जलता हुआ होगा।
- उस दिन सब अभिमानी और अधर्मी भूसे की तरह जलाए जाएंगे।
- कोई जड़ और शाखा नहीं बचेगी — सम्पूर्ण विनाश।
⚖️
सीख:
- परमेश्वर का न्याय निश्चित और सम्पूर्ण है।
- अभिमान और अधर्म का अंत पूर्ण विनाश है।
- यह चेतावनी है कि हमें अधर्म और पाप से दूर रहना चाहिए।
🔹
2-3 पद: धर्मियों का उद्धार
🌅
धर्म का सूर्य:
- जो यहोवा का भय मानते हैं, उनके लिए "धर्म का सूर्य" उदय होगा।
- वह चंगा करने वाली किरणें लाएगा और वे बछड़ों की तरह
उछलेंगे।
- वे अपने शत्रुओं पर जय पाएंगे और उन्हें अपने पैरों के
नीचे कुचलेंगे।
🕊️
सीख:
- परमेश्वर का न्याय धर्मियों के लिए उद्धार का दिन होगा।
- परमेश्वर का भय मानने वाले आशीषित और चंगे होंगे।
- सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वालों का अंत महिमा से भरा
होगा।
🔹
4 पद: मूसा की व्यवस्था का स्मरण
📜
वाचा का स्मरण:
- परमेश्वर अपने लोगों को मूसा की व्यवस्था और आज्ञाओं का
स्मरण कराता है।
- यह उन्हें पवित्र और न्यायी जीवन जीने की याद दिलाता है।
- यह व्यवस्था उनके लिए मार्गदर्शक और आशीष का मार्ग है।
📖
सीख:
- परमेश्वर के वचन को स्मरण और पालन करना हमारे जीवन की
दिशा और उद्धार का मार्ग है।
- आज्ञाकारिता से ही परमेश्वर की आशीष प्राप्त होती है।
- परमेश्वर की व्यवस्था में जीवन,
शांति और पवित्रता है।
🔹
5-6 पद: एलिय्याह का आगमन
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अंतिम भविष्यवाणी:
- परमेश्वर कहता है, "देखो, यहोवा के महान और भयानक दिन के पहले मैं
नबी एलिय्याह को भेजूंगा।"
- वह पिताओं का हृदय पुत्रों की ओर और पुत्रों का हृदय
पिताओं की ओर फेर देगा।
- यदि यह न हो तो पृथ्वी पर श्राप आएगा।
📅
सीख:
- यह भविष्यवाणी योहन बपतिस्मा देने वाले के रूप में पूरी
हुई, जो मसीह के मार्ग को तैयार करने आया।
(मत्ती 17:10-13)
- परमेश्वर का उद्देश्य मेल-मिलाप और पुनःस्थापना है।
- समय की पहचान करना और परमेश्वर के उद्देश्य को समझना
आवश्यक है।
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इस अध्याय से क्या सिखें?
✝️
न्याय का दिन निश्चित और शीघ्र है।
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परमेश्वर के भय से जीवन जीने वाले उद्धार और चंगाई पाएंगे।
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परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना अनिवार्य है।
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मेल-मिलाप और प्रेम से भरा जीवन ही परमेश्वर की इच्छा है।
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याद रखने योग्य वचन:
"परन्तु तुम जो मेरे नाम का भय मानते हो, तुम्हारे लिये धर्म का सूर्य उदय होगा, और उसकी
किरणों में चंगा करने की शक्ति होगी।" (मलाकी 4:2)