प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मार्टिन लूथर का जन्म 10 नवम्बर 1483 को जर्मनी के आधुनिक राज्य सक्सोनी के ईसलाइबेन शहर में हुआ था। वे हैंस और मार्गरेथे लूथर के दूसरे पुत्र थे। उनके पिता एक खनिक थे, जो बाद में कॉपर स्मेल्टर (तांबा गलाने वाले) बन गए, जिससे परिवार की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ।

लूथर की प्रारंभिक शिक्षा मांसफेल्ड के स्थानीय विद्यालयों में हुई। 1501 में उन्होंने एर्फ़ुर्ट विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने 1502 में स्नातक और 1505 में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। शुरू में वे कानून की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन एक जीवन बदल देने वाली घटना ने उनका मार्ग बदल दिया।

धार्मिक परिवर्तन की शुरुआत

1505 में एक भयानक तूफ़ान के दौरान मृत्यु के निकट अनुभव के बाद, लूथर ने मन्नत मांगी कि यदि वे जीवित बचे, तो वे भिक्षु बनेंगे। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा निभाते हुए उसी वर्ष एर्फ़ुर्ट के अगस्तीनियन मठ में प्रवेश किया। 1507 में उन्हें पादरी के रूप में अभिषिक्त किया गया और उन्होंने धर्मशास्त्र की पढ़ाई शुरू की, जिसमें उन्होंने 1512 में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।

निन्यानवे थीसिस (Ninety-Five Theses)

मार्टिन लूथर का सबसे प्रसिद्ध कार्य 31 अक्टूबर 1517 को विटनबर्ग के कैसल चर्च के द्वार पर "निन्यानवे थीसिस" चिपकाना था। ये थीसिस रोमन कैथोलिक चर्च की कुछ प्रथाओं, विशेष रूप से पापमुक्ति पत्रों (Indulgences) की बिक्री के खिलाफ थीं, जिन्हें पापों की सज़ा को कम करने वाला बताया जाता था।

लूथर का मानना था कि मोक्ष केवल विश्वास (Sola Fide) के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है, न कि कर्मों या पापमुक्ति पत्रों की खरीद से। उनका कहना था कि चर्च ने मसीही धर्म के सच्चे संदेश को भ्रष्ट कर दिया है और आर्थिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह किया है।

चर्च से टकराव

लूथर की बातों को पूरे यूरोप में तेज़ी से समर्थन मिलने लगा। 1520 में पोप लियो दशम ने एक धार्मिक आदेश जारी कर लूथर की शिक्षाओं की निंदा की और उन्हें 60 दिनों के भीतर माफ़ी मांगने को कहा। लेकिन लूथर ने खुलेआम उस आदेश को जला दिया।

1521 में उन्हें चर्च से बहिष्कृत कर दिया गया और Diet of Worms में तलब किया गया, जहाँ उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक उन्हें बाइबल या तर्क से गलत साबित नहीं किया जाएगा, वे अपनी बातों से पीछे नहीं हटेंगे। इसी घटना ने उन्हें प्रोटेस्टेंट सुधार आंदोलन (Protestant Reformation) का प्रमुख चेहरा बना दिया।

सुधार आंदोलन और उसका प्रभाव

Diet of Worms के बाद लूथर को गद्दार और विधर्मी (Heretic) घोषित कर दिया गया। लेकिन सैक्सोनी के राजा फ्रेडरिक द वाइज़ ने उन्हें संरक्षण दिया और वे एक वर्ष तक वॉर्टबर्ग किला में छिपे रहे। इस दौरान उन्होंने नए नियम (New Testament) का जर्मन भाषा में अनुवाद किया, जिससे आम लोगों को बाइबल समझना आसान हुआ।

उनके विचारों से कई नए प्रोटेस्टेंट संप्रदायों का जन्म हुआ। "केवल विश्वास द्वारा मोक्ष" (Justification by Faith Alone), "हर विश्वासी एक याजक" (Priesthood of All Believers) और "केवल धर्मग्रंथ सर्वोच्च" (Sola Scriptura) उनके प्रमुख सिद्धांत बने। उनकी लेखनी और अनुवादों ने शिक्षा और बाइबल अध्ययन को आम लोगों तक पहुँचाया।

बाद का जीवन और विरासत

1525 में लूथर ने कैथरीना वॉन बोरा नामक एक पूर्व नन से विवाह किया। उनके छह बच्चे हुए और उन्होंने एक साधारण पारिवारिक जीवन जिया। वे जीवन के अंत तक लिखते और उपदेश देते रहे। 18 फरवरी 1546 को उनकी मृत्यु हुई।

मार्टिन लूथर की स्थायी विरासत

मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च की सत्ता और प्रथाओं को चुनौती दी और ईसाई धर्म में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। उन्होंने व्यक्तिगत विश्वास, धर्मग्रंथ की सर्वोच्चता और समान याजकत्व पर ज़ोर दिया, जिसने ईसाई धर्मशास्त्र और धार्मिक जीवन को नया स्वरूप दिया।

उनका प्रभाव केवल धर्म तक सीमित नहीं था। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक स्कूलों की नींव रखने में योगदान दिया और उनकी बाइबल का जर्मन अनुवाद जर्मन भाषा और साहित्य के विकास में मील का पत्थर साबित हुआ।