📖 यिर्मयाह अध्याय 1 – परमेश्वर की बुलाहट: डर नहीं, भरोसा रखो

(Jeremiah 1 – God’s Call: Don’t Fear, Trust Me)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में हमें यिर्मयाह की ज़िंदगी की शुरुआत और उसकी बुलाहट के बारे में पढ़ने को मिलता है। कैसे एक युवा, अनजान व्यक्ति को परमेश्वर ने राष्ट्रों के लिए भविष्यवाणी करने वाला नबी बनाया — यह अध्याय यही दर्शाता है। इसमें यह सिखाया गया है कि जब परमेश्वर बुलाता है, तो वह हमारी योग्यताओं की नहीं, बल्कि हमारी आज्ञाकारिता की तलाश करता है। डर और विरोध आएँगे, लेकिन परमेश्वर की उपस्थिति हमें मजबूती देती है।


🔹 1-3 पद: एक साधारण लड़का, एक असाधारण बुलाहट

यिर्मयाह याजकों के परिवार से था, और अनातोत नाम के छोटे गाँव से आता था। यहूदा के अंतिम तीन राजाओं के समय में उसे परमेश्वर ने बुलाया – एक कठिन समय जब लोग परमेश्वर से दूर जा चुके थे।

🕊सीख: परमेश्वर बड़े कामों के लिए छोटे लोगों को चुनता है।


🔹 4-10 पद: बुलाहट और डर – लेकिन परमेश्वर की शक्ति साथ थी

जब परमेश्वर ने यिर्मयाह को बुलाया, तो उसने डरते हुए कहा – “मैं तो बच्चा हूँ!”
परमेश्वर ने कहा – “मत डर, मैं तेरे साथ हूँ।”
उसने यिर्मयाह के मुँह को छुआ और कहा –

मैंने अपने वचन तेरे मुँह में रखे हैं... तू राष्ट्रों को उखाड़ेगा और बसाएगा।”

🔥 सीख: जब परमेश्वर बुलाता है, तो वह बोलने की शक्ति भी देता है।


🔹 11-16 पद: दो दर्शन – चेतावनी और न्याय

  1. 🌿 बादाम की छड़ीपरमेश्वर सतर्क है और अपने वचनों को शीघ्र पूरा करता है।
  2. उबलती हांडीउत्तर दिशा (बाबुल) से विपत्ति आ रही है, क्योंकि लोग परमेश्वर से मुँह मोड़ चुके हैं।

👁सीख: परमेश्वर पहले से चेतावनी देता है ताकि हम लौट सकें।


🔹 17-19 पद: खड़े हो जाओ – मैं तुम्हारे साथ हूँ

परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा:

डर मत… मैं तुझे एक मजबूत दीवार बना दूँगा… वे लड़ेंगे पर तुझे जीत नहीं पाएँगे।”

🛡सीख: जब परमेश्वर साथ हो, तो डरने की ज़रूरत नहीं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर हमें हमारे जन्म से पहले ही जानता और बुलाता है।
हमारी कमजोरी परमेश्वर के लिए बाधा नहीं होती – वह हमें तैयार करता है।
परमेश्वर का वचन हमें साहस और शक्ति देता है।
विरोध आएगा, लेकिन परमेश्वर की उपस्थिति हमें अडिग बनाएगी।


📌 याद रखने योग्य वचन

मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ और तुझे छुड़ाऊँगा।”
(
यिर्मयाह 1:8)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 2 – जब प्रेम को भुला दिया गया

(Jeremiah 2 – When Love Was Forgotten)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर अपने लोगों के प्रति एक टूटा हुआ दिल लेकर बोलता है। वह याद दिलाता है कि कैसे उन्होंने पहले प्रेम में उसकी पूरी निष्ठा से आराधना की थी, लेकिन अब उन्होंने उसे छोड़ दिया है और व्यर्थ के देवताओं की ओर मुड़ गए हैं। यह अध्याय एक आत्मिक आइना है — जो यह दिखाता है कि कैसे एक समय परमेश्वर के करीब रहे लोग धीरे-धीरे उससे दूर हो सकते हैं। इसमें चेतावनी, करुणा, और आत्मपरीक्षण का बुलावा है।


🔹 1-3 पद: पहला प्रेम – परमेश्वर को प्रिय

परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है –

मुझे तेरी जवानी का प्रेम और तेरे विवाह की भक्ति याद है।”
इज़राएल की आरंभिक भक्ति की याद परमेश्वर को आज भी भावुक कर देती है।

💡 सीख: परमेश्वर हमारे पहले प्रेम को नहीं भूलता।


🔹 4-8 पद: कहाँ चूक गए?

परमेश्वर पूछता है –

तुम्हारे पूर्वजों ने मुझमें क्या बुराई पाई कि वे मुझसे दूर चले गए?”
लोग उन बातों को भूल गए जो परमेश्वर ने उनके लिए की थीं — जैसे मिस्र से छुड़ाना, जंगल में मार्ग दिखाना, और समृद्ध देश देना।

👁सीख: जब हम आशीषों पर ध्यान करते हैं, तो परमेश्वर को भूलना आसान हो जाता है।


🔹 9-13 पद: दोहरा अपराध

उन्होंने दो बुराइयाँ कीं –
(1) मुझ, जीवन के जल के स्रोत को छोड़ दिया,
(2) अपने लिए टूटे हुए कुंड बनाए, जो पानी नहीं रखते।”

🌊 परमेश्वर की तुलना एक शुद्ध जल के स्रोत से की गई है – जिसे लोगों ने त्याग दिया।

⚠️ सीख: संसार की चीज़ें हमें तृप्त नहीं कर सकतीं – सिर्फ परमेश्वर ही जीवन का जल है।


🔹 14-19 पद: दास क्यों बन गया इज़राएल?

जो राष्ट्र कभी स्वतंत्र था, अब वह अन्य राष्ट्रों द्वारा दबाया जा रहा है – क्योंकि उसने अपने परमेश्वर को त्यागा।

🔔 सीख: जब हम आत्मनिर्भर बनते हैं और परमेश्वर को पीछे छोड़ देते हैं, तब विनाश आता है।


🔹 20-28 पद: आत्मिक व्यभिचार – मूर्तियों की ओर झुकाव

इज़राएल ने आत्मिक रूप से व्यभिचार किया – वह परमेश्वर को छोड़कर मूर्तियों और अन्य देवताओं की आराधना करने लगा।

किसी राष्ट्र ने अपने देवताओं को बदला है? परंतु मेरी प्रजा ने अपनी महिमा को व्यर्थ की चीज़ से बदल दिया है।”

🛑 सीख: जब हम अपनी प्राथमिकता परमेश्वर से हटा देते हैं, तो हम व्यर्थता की ओर गिरते हैं।


🔹 29-37 पद: उल्टा दोष और बर्बाद हुए प्रयास

परमेश्वर कहता है – "तुम मुझसे शिकायत करते हो, जबकि गलती तुम्हारी है!"
उन्होंने मिस्र और अश्शूर जैसे अन्य देशों में सहारा ढूँढ़ा, लेकिन वह व्यर्थ गया।

🧭 सीख: आत्मनिर्भरता और दुनिया की मदद परमेश्वर की जगह नहीं ले सकती।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ जब हम परमेश्वर को छोड़ते हैं, तो वह दुखी होता है – जैसे कोई प्रेमी जिससे विश्वासघात हुआ हो।
✝️ परमेश्वर के साथ हमारा "पहला प्रेम" मूल्यवान है – हमें उसे ताज़ा करना चाहिए।
✝️ संसार के उपाय कभी आत्मा की प्यास नहीं बुझा सकते – सिर्फ परमेश्वर जीवन का जल है।
✝️ जब हम मार्ग से भटकते हैं, तो परमेश्वर हमें फिर से पुकारता है – लौटने का अवसर देता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

मेरी प्रजा ने दो बुराइयाँ कीं – उन्होंने मुझे, जीवन के जल के सोते को, छोड़ दिया।”
(यिर्मयाह 2:13)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 3 – सच्चे मन से लौटो

(Jeremiah 3 – Return With a True Heart)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर एक टूटी हुई विवाह-संबंध की तस्वीर से समझाता है कि किस प्रकार इज़राएल ने विश्वासघात किया। लेकिन इस न्याय के बीच भी, परमेश्वर की दया झलकती है — वह बुला रहा है, "लौटो, हे भटकती हुई संतान!" यद्यपि इज़राएल और यहूदा दोनों ने पाप किया, फिर भी परमेश्वर restoration (पुनर्स्थापन) का द्वार खुला रखता है। यह अध्याय पश्चाताप की शक्ति और परमेश्वर की करुणा को दर्शाता है।


🔹 1-5 पद: विश्वासघात के बाद भी बुलावा

परमेश्वर कहता है –

क्या कोई पुरुष अपनी पत्नी को त्याग कर फिर उसे ग्रहण करेगा?”
लेकिन परमेश्वर, मानव से अलग है – वह अपनी विश्वासघाती पत्नी (इज़राएल) को भी फिर से स्वीकार करने को तैयार है।

💔 सीख: परमेश्वर की दया हमारी कल्पना से कहीं अधिक बड़ी है।


🔹 6-10 पद: उत्तरी राज्य (इज़राएल) का पतन और दक्षिणी राज्य (यहूदा) का दिखावटी पश्चाताप

परमेश्वर याद करता है कि कैसे इज़राएल ने आत्मिक व्यभिचार किया और इसलिए उसे नाश होना पड़ा।
फिर वह यहूदा की ओर देखता है – जो केवल ऊपर से परमेश्वर की ओर मुड़ा, लेकिन उसका हृदय सच्चा नहीं था।

⚠️ सीख: परमेश्वर बाहरी धर्म को नहीं, बल्कि सच्चे मन से प्रेम और भक्ति चाहता है।


🔹 11-13 पद: लौटने का निमंत्रण – दया अभी भी उपलब्ध है

हे भटकती हुई संतान, लौट आ; मैं कोप में नहीं आऊँगा।”
परमेश्वर पश्चाताप करने वाले से क्रोध नहीं करता, वह उन्हें क्षमा करने को तत्पर रहता है।

🙏 सीख: पश्चाताप के लिए परमेश्वर का निमंत्रण आज भी खुला है।


🔹 14-18 पद: भविष्य की आशा – सच्चा चरवाहा और एकजुटता

परमेश्वर वादा करता है कि वह अपने लोगों को फिर इकट्ठा करेगा और उन्हें ऐसे अगुवे देगा जो सच्चाई से चरवाही करेंगे।

वे फिर उस वाचा के सन्दूक की खोज नहीं करेंगे।”

🌍 सीख: परमेश्वर अपने लोगों को एकजुट करने और उन्हें नया भविष्य देने की योजना रखता है।


🔹 19-25 पद: पश्चाताप का दिल से इज़हार

यह भाग एक भावनात्मक संवाद जैसा है — जैसे कोई खोया हुआ पुत्र वापसी की बात कर रहा हो:

हम अपनी लज्जा में पड़े हैं, क्योंकि हम ने अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है।”

💡 सीख: सच्चा पश्चाताप खाली शब्द नहीं, बल्कि टूटा हुआ और विनम्र हृदय होता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर का प्रेम वफादार नहीं रहने पर भी समाप्त नहीं होता।
✝️ दिखावटी धर्म से परमेश्वर प्रसन्न नहीं होता – वह सच्चा और विनम्र हृदय चाहता है।
✝️ लौट आने का रास्ता हमेशा खुला है – जब तक हम सच्चे दिल से लौटें।
✝️ परमेश्वर restoration (पुनर्स्थापन) का परम गुरु है – वह बिखरे हुए जीवन को फिर से जोड़ सकता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

हे भटकती हुई संतान, लौट आ; क्योंकि मैं तेरा पति हूँ।”
(यिर्मयाह 3:14)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 4 – हृदय से पश्चाताप और आने वाला न्याय

(Jeremiah 4 – Heartfelt Repentance and Coming Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह एक बार फिर लोगों को सच्चे मन से परमेश्वर की ओर लौटने का आह्वान करता है। परमेश्वर चाहता है कि सिर्फ बाहरी नहीं, बल्कि भीतरी बदलाव हो। साथ ही वह आने वाले विनाश की गंभीर चेतावनी देता है – यदि लोग नहीं लौटे तो उत्तर से एक भयंकर विनाशक (शत्रु) आएगा। यह अध्याय हमें परमेश्वर की गंभीरता, न्याय, और फिर भी दया से भरे स्वभाव को दिखाता है।


🔹 1-4 पद: यदि तुम लौटोगे…

यदि तू लौटे, हे इस्राएल, तो मेरी ओर लौट।”
परमेश्वर खुला निमंत्रण देता है – लेकिन वह दिखावे से नहीं, बल्कि दिल से लौटने की माँग करता है।

अपनी भूमि जोत डालो और कांटेदार ज़मीन में न बोओ।”
👉 यह रूपक बताता है कि पहले अपने हृदय को तैयार करना ज़रूरी है – जैसे किसान ज़मीन तैयार करता है।

💡 सीख: सच्चा पश्चाताप आंतरिक होता है, केवल बाहरी धार्मिकता काफी नहीं।


🔹 5-18 पद: उत्तर से आने वाला विनाश

यिर्मयाह एक भयानक दृश्य का वर्णन करता है — एक शत्रु उत्तर की ओर से आ रहा है जो यहूदा को नाश करेगा।

शेर निकल पड़ा है, वह जातियों को नाश करने वाला है।”

🔔 यह एक चेतावनी है – अब भी समय है सुधरने का!

हे यरूशलेम, अपने हृदय को बुराई से धो ले, ताकि तू उद्धार पाए।”

⚠️ सीख: अगर चेतावनी को अनसुना किया जाए, तो न्याय निश्चित है।


🔹 19-26 पद: यिर्मयाह का दुःख और भविष्य की झलक

यिर्मयाह इस विनाश की कल्पना कर बहुत व्याकुल हो उठता है।

मेरा हृदय कंपकंपा रहा है… मैं शांत नहीं रह सकता।”

वह देखता है:
देश उजाड़ है
आकाश अंधकारमय है
नगर गिर चुके हैं

👉 यह दृश्य दिखाता है कि पाप का परिणाम कितना भयानक होता है।


🔹 27-31 पद: परमेश्वर का निर्णय अंतिम नहीं है

यद्यपि परमेश्वर कहता है कि “सारा देश उजड़ जाएगा,” लेकिन वह यह भी जोड़ता है:

मैं उसे पूर्ण रूप से नष्ट नहीं करूंगा।”

💔 इस दृश्य में एक स्त्री प्रसव पीड़ा में है – यह उस पीड़ा का प्रतीक है जो यहूदा पर आने वाली है।

🌱 आशा की झलक: परमेश्वर पूरी तरह नष्ट नहीं करता – उसकी दया में एक रास्ता बना रहता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ सच्चा पश्चाताप केवल बाहरी आचरण नहीं, हृदय का परिवर्तन है।
✝️ परमेश्वर बार-बार चेतावनी देता है – क्योंकि वह चाहता है कि हम लौट आएं।
✝️ पाप का परिणाम निश्चित होता है – यदि हम नहीं सुधरते तो न्याय आता है।
✝️ परमेश्वर का न्याय भी प्रेम से भरा होता है – वह पूर्ण विनाश नहीं चाहता, बल्कि उद्धार।


📌 याद रखने योग्य वचन

हे यरूशलेम, अपने हृदय को बुराई से धो ले, ताकि तू उद्धार पाए।”
(यिर्मयाह 4:14)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 5 – परमेश्वर की खोज, लोगों की हठधर्मीता और न्याय का निर्णय

(Jeremiah 5 – God’s Search, People’s Stubbornness, and the Verdict of Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर यरूशलेम में न्याय और सच्चाई की तलाश करता है। लेकिन अफसोस, वहाँ कोई भी सच्चा धर्मी नहीं मिलता। लोग चाहे गरीब हों या अमीर, सभी ने परमेश्वर को छोड़ दिया है। झूठे भविष्यवक्ता और भ्रष्ट अगुवे लोगों को गुमराह कर रहे हैं। परमेश्वर स्पष्ट करता है कि वह दंड जरूर देगा, लेकिन उसकी दया की झलक भी बनी रहती है।


🔹 1-5 पद: क्या कोई धर्मी है?

यरूशलेम की गलियों में दौड़ो… देखो कि क्या कहीं कोई न्यायकारी और सच्चाई का खोजी है।”

🔍 परमेश्वर एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में है जो सच्चा और ईमानदार हो — पर उसे कोई नहीं मिलता।

👉 गरीब लोग अज्ञानी हैं, और अमीर लोग जानबूझकर विद्रोह कर रहे हैं।

💡 सीख: ज्ञान और स्थिति चाहे जो भी हो, अगर परमेश्वर का भय न हो, तो सब व्यर्थ है।


🔹 6-9 पद: उनके अपराधों के कारण दंड

इस कारण जंगल का सिंह उन्हें मार डालेगा…”

लोगों ने परमेश्वर को त्यागा, व्यभिचार किया, और झूठ बोले।
👉 अब न्याय आएगा – शेर, भेड़िया, तेंदुआ जैसे चित्र विनाश के प्रतीक हैं।

क्या मैं इन बातों का बदला न लूं?” – यह प्रश्न परमेश्वर बार-बार पूछता है।


🔹 10-13 पद: झूठे भविष्यवक्ता और झूठा भरोसा

भविष्यवक्ता वायु बन गए हैं, और उनमें वचन नहीं है।”

लोग झूठे अगुवों पर भरोसा कर रहे हैं जिन्होंने उन्हें शांत रहने के झूठे वादे दिए – जबकि खतरा सामने है।

⚠️ सीख: जब अगुवे सत्य नहीं बोलते, तो पूरी प्रजा भ्रमित हो जाती है।


🔹 14-19 पद: परमेश्वर की आग और विदेशी हमला

मैं अपने वचन को तेरे मुख में आग करूँगा, और इस लोगों को लकड़ी – और वह उन्हें भस्म कर डालेगी।”

परमेश्वर कहता है कि उत्तरी राष्ट्र – एक अजनबी, बलवान और प्राचीन – आकर इस्राएल को नष्ट करेगा।

तब तुम कहोगे – यह सब क्यों हुआ?”
परमेश्वर उत्तर देता है – क्योंकि तुमने मुझे त्याग दिया और दूसरों की पूजा की।


🔹 20-31 पद: लोगों की आँखें बंद हैं – पर परमेश्वर सब देख रहा है

इस लोगों में न मूर्खता है, न उनमें समझ है… उनकी आँखें हैं पर वे देखते नहीं, उनके कान हैं पर वे सुनते नहीं।”

लोग परमेश्वर के अद्भुत कामों को देखकर भी अज्ञानी बने रहे।

तुम्हारे अगुवे झूठ बोलते हैं, और मेरी प्रजा इसे पसंद करती है!”

💔 यह एक राष्ट्र के नैतिक पतन का चित्र है – जहाँ सच्चाई दबा दी जाती है, और झूठ में आराम पाया जाता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर सच्चाई और न्याय की तलाश करता है – और उसे वह हर वर्ग में चाहिए।
✝️ जब लोग जानबूझकर सत्य से मुँह मोड़ते हैं, तो न्याय अपरिहार्य हो जाता है।
✝️ झूठे अगुवे सिर्फ दूसरों को नहीं, खुद को भी विनाश की ओर ले जाते हैं।
✝️ परमेश्वर न्याय अवश्य करता है – लेकिन पहले वह चेतावनी देकर सुधार का अवसर देता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

क्या मैं इन बातों का बदला न लूं? क्या ऐसी जाति से मेरा मन प्रतिशोध न ले?”
(यिर्मयाह 5:9)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 6 – यरूशलेम पर आनेवाले विनाश की चेतावनी

(Jeremiah 6 – Warning of Impending Destruction on Jerusalem)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय यरूशलेम को दी गई एक सख्त चेतावनी है। परमेश्वर कहता है कि उत्तर से एक सेना आ रही है, जो नगर को घेर लेगी और नाश कर देगी। लोग शांति की भविष्यवाणी सुनना चाहते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पाप के कारण विनाश आ रहा है। यह अध्याय एक बिगड़ी हुई प्रजा और उनके प्रति परमेश्वर के न्याय को दर्शाता है – और यह भी कि लोग चेतावनी को भी अनदेखा करते हैं।


🔹 1-8 पद: भागो – विनाश पास है!

बिन्यामीन के लोगो, यरूशलेम से भाग जाओ…”

परमेश्वर यरूशलेम के लोगों को चेतावनी देता है कि विनाश का दिन निकट है।
👉 उत्तर से दुश्मन आ रहा है और नगर को घेर लेगा।

यरूशलेम, तू शुद्ध हो जा… नहीं तो मैं तुझसे घृणा करूँगा।”

⚠️ सीख: परमेश्वर चाहता है कि लोग सुधरें – लेकिन अगर वे ज़िद पर अड़े रहते हैं, तो दंड आता है।


🔹 9-15 पद: लोगों का पाप और अगुवों की बेईमानी

सब छोटे-बड़े लालच में लगे हैं… भविष्यवक्ता और याजक – सब झूठ बोलते हैं।”

यहाँ पूरे समाज का नैतिक पतन दर्शाया गया है – अगुवे, याजक, भविष्यवक्ता – सभी भ्रष्ट हो गए हैं।

वे कहते हैं, ‘शांति है, शांति है’ – जबकि शांति नहीं है।”

👉 लोग झूठी आशा में जी रहे हैं, जबकि खतरा सामने खड़ा है।

💡 सीख: कभी-कभी सच्चाई कठोर होती है, लेकिन वही मुक्ति लाती है – झूठा भरोसा विनाश का कारण बनता है।


🔹 16-21 पद: प्राचीन मार्ग – और लोगों की अस्वीकार्यता

प्राचीन मार्गों में खड़े हो… और देखो कि कहाँ भलाई का मार्ग है – उसी पर चलो।”

परमेश्वर लोगों को पुराने, सच्चे मार्गों पर लौटने को कहता है – पर वे कहते हैं, “हम नहीं चलेंगे!”

मैं ने पहरे वाले रखे… पर उन्होंने नहीं सुना।”

👉 परमेश्वर ने अनेक बार चेताया, पर लोगों ने कान नहीं दिया।


🔹 22-30 पद: उत्तर से आने वाली सेना और शुद्धि की आग

देखो, एक जाति उत्तर देश से आती है… वे क्रूर और निष्ठुर हैं।”

दुश्मन की सेना इतनी भयानक होगी कि लोग काँप उठेंगे।
👉 परमेश्वर कहता है – वह अब लोगों की परीक्षा करेगा, जैसे चांदी को आग में तपाया जाता है।

इनकी बातों का कोई मूल्य नहीं – ये सब त्याज्य चांदी हैं।”

⚠️ अंतिम निष्कर्ष: जो सुधरना नहीं चाहते, वे त्याग दिए जाएँगे।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर हमें पहले चेतावनी देता है, फिर ही न्याय करता है।
✝️ झूठे अगुवे लोगों को शांतिपूर्ण झूठ देकर नाश की ओर ले जाते हैं।
✝️प्राचीन मार्ग” – यानी परमेश्वर के वचन और आज्ञाएँ – आज भी सही और जीवनदायक हैं।
✝️ अगर हम सुधार नहीं करते, तो हम भी उस अग्नि में तपा दिए जाते हैं जो शुद्ध और अशुद्ध में अंतर करती है।


📌 याद रखने योग्य वचन

प्राचीन मार्गों में खड़े हो, और देखो कि कहाँ भलाई का मार्ग है, और उसी पर चलो – तब तुम्हें चैन मिलेगा।”
(यिर्मयाह 6:16)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 7 – झूठी धार्मिकता और सच्ची आज्ञाकारिता

(Jeremiah 7 – False Religion vs True Obedience)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर यिर्मयाह को मंदिर के द्वार पर खड़े होकर लोगों को चेतावनी देने को कहता है। लोग सोचते हैं कि क्योंकि वे मंदिर में आते हैं, वे सुरक्षित हैं — लेकिन उनका जीवन पाप से भरा है। परमेश्वर बाहरी धार्मिकता से नहीं, बल्कि सच्चे मन से आज्ञाकारिता चाहता है। शीलो (Shiloh) का उदाहरण देकर परमेश्वर बताता है कि अगर लोग नहीं सुधरते, तो यरूशलेम का मंदिर भी नष्ट कर दिया जाएगा।


🔹 1-7 पद: मंदिर में आने से सुरक्षा नहीं

यहोवा की यह बात है – यहोवा के भवन के फाटक में खड़े होकर यह वचन सुनाओ…”

परमेश्वर लोगों से कहता है – तुम यह मत समझो कि मंदिर में आना ही तुम्हें बचा लेगा।
👉 अगर तुम्हारे काम बुरे हैं, तो उपासना व्यर्थ है।

क्या यहोवा का भवन चोरों की गुफा बन गया है?”

⚠️ यह एक गंभीर चेतावनी है – कि परमेश्वर पवित्रता चाहता है, न कि पाखंड।


🔹 8-15 पद: शीलो का उदाहरण – चेतावनी का इतिहास

तुम झूठी बातों पर भरोसा करते हो…”

लोग सोचते हैं कि परमेश्वर का मंदिर उन्हें सजा से बचाएगा, लेकिन वे चोरी, हत्या, व्यभिचार और मूर्तिपूजा में लगे हुए हैं।

जाओ शीलो को देखो… जहाँ मैं ने अपने नाम को रखा था – और फिर उसे कैसे नाश किया।”

👉 परमेश्वर कहता है – जैसे शीलो नाश हुआ, वैसे ही यह मंदिर भी नाश होगा अगर लोग नहीं सुधरे।


🔹 16-20 पद: प्रार्थना करना भी व्यर्थ होगा

इन लोगों के लिए प्रार्थना न कर।”

यहाँ तक कि यिर्मयाह को लोगों के लिए प्रार्थना करने से भी मना किया गया, क्योंकि वे इतने जिद्दी हो गए थे।

बेटे लकड़ियाँ बटोरते हैं… स्त्रियाँ आटा गूंथती हैं… ताकि स्वर्ग की रानी के लिए मिष्ठान्न बनाएँ।”

👉 पूरा परिवार मिलकर मूर्तिपूजा कर रहा था – और फिर भी मंदिर में आकर पूजा करते हैं।


🔹 21-28 पद: बलिदान से अधिक आज्ञाकारिता

मैं ने न तो तुम्हारे पूर्वजों से बलिदानों की बात की… पर मैं ने यह कहा – मेरी बात मानो।”

परमेश्वर को बलिदान नहीं चाहिए – वह आज्ञाकारिता चाहता है।

यह एक ऐसी जाति है जो नहीं सुनती… सत्य लुप्त हो गया है।”

💡 परमेश्वर का सबसे बड़ा आदेश – उसकी आज्ञा मानना और सच्चाई में चलना है।


🔹 29-34 पद: दुख और विनाश की घोषणा

अपनी लट कटवा डालो… विलाप करो…”

अब परमेश्वर ने निश्चय किया है कि विनाश आएगा – और यह भी कहा कि हिनोम की घाटी अब 'वध की घाटी' (Valley of Slaughter) कहलाएगी।

क्योंकि उन्होंने अपने पुत्रों और पुत्रियों को आग में चढ़ाया…”

⚠️ यह सबसे घिनौना पाप था – बच्चों की बलि देना – और यही विनाश का कारण बना।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ केवल धार्मिक रीति-रिवाज़ों से नहीं, बल्कि जीवन की सच्ची आज्ञाकारिता से परमेश्वर प्रसन्न होता है।
✝️ परमेश्वर पाखंडी भक्ति को अस्वीकार करता है – चाहे वह मंदिर में हो या घर में।
✝️ शीलो का उदाहरण हमें सिखाता है कि परमेश्वर का धैर्य सीमित है।
✝️ जब लोग बार-बार चेतावनी को अनदेखा करते हैं, तो न्याय निश्चित होता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैं ने यह नहीं कहा कि मुझे बलिदान दो, पर यह कहा कि मेरी बात मानो।”
(यिर्मयाह 7:23)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 8 – ठुकराई गई चेतावनियाँ और हृदयहीनता

(Jeremiah 8 – Rejected Warnings and Hardened Hearts)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह यह बताते हैं कि लोग किस तरह परमेश्वर की बातों को बार-बार अनदेखा करते हैं। उनके पास भविष्यवाणी थी, पर वे अपने ही झूठे नबियों की सुनते रहे। परमेश्वर की चेतावनियाँ स्पष्ट थीं, लेकिन फिर भी लोगों ने पश्चाताप नहीं किया। दुख की बात यह है कि पूरे समाज – राजा से लेकर साधारण लोगों तक – सब ने सत्य को छोड़ दिया।


🔹 1-3 पद: दुष्टों की बेइज्जती के बाद

उनके पूर्वजों की हड्डियाँ कब्रों से निकाली जाएँगी…”

परमेश्वर कहता है कि उनके मृतकों का भी अपमान होगा – यह उनकी दुष्टता का परिणाम है।

👉 जो लोग परमेश्वर को जीवन में नहीं मानते, उनकी मृत्यु के बाद भी सम्मान नहीं होता।


🔹 4-7 पद: गिर कर भी न सुधरना

क्या कोई गिर कर नहीं उठेगा? फिर ये लोग क्यों नहीं उठते?”

परमेश्वर को हैरानी होती है – ये लोग बार-बार गिरते हैं, पर पछताते नहीं।

पंछी भी अपने समय को जानता है, पर मेरे लोग नहीं।”

👉 प्रकृति के जीव भी समय पहचानते हैं, लेकिन लोग परमेश्वर की चेतावनियों को नहीं पहचानते।


🔹 8-12 पद: झूठे नबी और पाखंड

हम बुद्धिमान हैं, और हमारे पास यहोवा की व्यवस्था है – पर देखो, यह झूठ बन गई है।”

झूठे नबियों और याजकों ने लोगों को धोखा दिया – “शांति, शांति” कह कर जब कोई शांति थी ही नहीं।

क्या वे अपने पाप पर लज्जित हुए? नहीं! उन्हें लज्जा करना भी नहीं आता था।”

⚠️ जब पाप सामान्य लगने लगे, और शर्म भी न बचे – तब विनाश निकट होता है।


🔹 13-17 पद: फलहीनता और दंड

मैं ने फलों की आशा की, पर कुछ नहीं पाया।”

परमेश्वर को अपने लोगों में भलाइयों की आशा थी – पर उन्होंने निराश किया।

साँप भेजूँगा, जो मोहित न होंगे और डसेंगे।”

👉 यह दंड का प्रतीक है – जिससे कोई बच नहीं पाएगा।


🔹 18-22 पद: यिर्मयाह का दुःख

मेरे हृदय में दुःख है… मेरी आत्मा व्याकुल है…”

यिर्मयाह लोगों के लिए रो रहे हैं – उन्हें अपने देश और लोगों की चिंता है।

क्या गिलाद में मरहम नहीं है? क्या वहाँ वैद्य नहीं?”

👉 यह एक दर्दभरा सवाल है – कि इलाज होते हुए भी लोग बर्बाद क्यों हो रहे हैं? क्योंकि वे इलाज (परमेश्वर) को अपनाते नहीं!


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ चेतावनी सुनने के बावजूद अगर कोई पश्चाताप नहीं करता, तो न्याय निश्चित होता है।
✝️ बाहरी धार्मिकता और झूठी शांति की बातों से आत्मा नहीं बचती।
✝️ परमेश्वर हमें लगातार अवसर देता है, पर हमें उसका उत्तर देना होता है।
✝️ सच्चे सेवक (जैसे यिर्मयाह) अपने लोगों के लिए दुःख और करूणा से भर जाते हैं।
✝️ इलाज (उद्धार) उपलब्ध है, लेकिन हमें उसे स्वीकार करना होगा।


📌 याद रखने योग्य वचन

क्या गिलाद में कोई मरहम नहीं? क्या वहाँ कोई वैद्य नहीं?”
(यिर्मयाह 8:22)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 9 – लोगों का पतन और परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 9 – The People’s Corruption and God’s Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह अपने लोगों की स्थिति देखकर अत्यंत दुखी हैं। वह चाहते हैं कि उनकी आँखें आँसुओं की धारा बन जाएँ। झूठ, धोखा और विश्वासघात पूरे समाज में फैल गया है। परमेश्वर लोगों की इस आत्मिक भ्रष्टता को देखता है और स्पष्ट करता है कि न्याय अवश्य आएगा। लेकिन बीच में एक गहरा सत्य भी आता है – परमेश्वर किस पर घमंड करने को कहता है?


🔹 1-6 पद: यिर्मयाह का दुःख और समाज की भ्रांति

भला होता कि मेरा सिर जल बनता, और मेरी आँखें आँसुओं का सोता बन जातीं…”

यिर्मयाह के दिल में गहरी वेदना है – वह दिन-रात अपने मारे गए लोगों के लिए रोना चाहते हैं।

एक भाई दूसरे को धोखा देता है… कोई भी सच्चाई से नहीं बोलता।”

👉 समाज में न रिश्तों का सम्मान बचा है, न सच्चाई की कोई क़द्र। हर कोई धोखे और चालाकी से भरा है।


🔹 7-11 पद: परमेश्वर का न्याय तय

मैं उन्हें कैसे न दंड दूँ?”

परमेश्वर स्पष्ट करता है – अब समय आ गया है कि वह अपने न्याय को लागू करे।

यरूशलेम ढेरों में बदल जाएगा, और गीदड़ों का स्थान बनेगा।”

👉 यह एक चेतावनी है – अगर लोग नहीं सुधरे, तो पूरा नगर बर्बाद होगा।


🔹 12-16 पद: न्याय का कारण

क्यों यह देश उजाड़ हुआ?”

उत्तर है – क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था को ठुकरा दिया।

उन्होंने अपने मन की ज़िद की, और बाल देवता के पीछे चले।”

⚠️ धार्मिक धोखा, मूर्तिपूजा और आत्म-अहंकार परमेश्वर को क्रोधित करते हैं।


🔹 17-22 पद: शोक और रोने की पुकार

रोनेवालियों को बुलाओ… ताकि वे विलाप करें…”

यहाँ परमेश्वर कहता है – यह समय रोने का है, क्योंकि मृत्यु और विनाश ने हर घर को छू लिया है।

👉 बच्चों से लेकर जवानों तक – सबपर संकट आएगा।


🔹 23-24 पद: सच्चा घमंड किस बात का?

बुद्धिमान अपनी बुद्धि पर घमंड न करे…”

परमेश्वर कहते हैं – घमंड करो तो इस पर करो:

कि तुम मुझे जानते हो और समझते हो कि मैं करुणामय, न्यायी और धर्मी परमेश्वर हूँ।”

यह इस अध्याय का मुख्य संदेश है – परमेश्वर को जानना सबसे बड़ा गौरव है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ झूठ और धोखा समाज को अंदर से नष्ट कर देते हैं।
✝️ जब कोई समाज परमेश्वर की व्यवस्था को छोड़ता है, तो न्याय निश्चित है।
✝️ सच्चा दुख वही है जो दूसरों के पापों और विनाश को देखकर दिल से रोए।
✝️ घमंड का विषय धन, बुद्धि या ताकत नहीं होना चाहिए – बल्कि परमेश्वर को जानना और समझना होना चाहिए।
✝️ परमेश्वर दया, न्याय और धर्म में प्रसन्न होता है – हमें भी वही जीवन जीना चाहिए।


📌 याद रखने योग्य वचन

जो घमंड करे, वह इसी बात पर घमंड करे कि वह मुझे जानता और समझता है…”
(यिर्मयाह 9:24)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 10 – मूर्तिपूजा की मूर्खता और सच्चे परमेश्वर की महिमा

(Jeremiah 10 – The Foolishness of Idols and the Greatness of God)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह मूर्तिपूजा पर तीखा प्रहार करते हैं। वे लोगों को चेतावनी देते हैं कि विदेशी जातियों की रीति न अपनाएँ, क्योंकि मूर्तियाँ न बोल सकती हैं, न कुछ कर सकती हैं। फिर वह सच्चे परमेश्वर की महिमा और उसकी शक्ति को दर्शाते हैं – जिसने सारी सृष्टि को बनाया और जो जीवित है। अंत में, यिर्मयाह प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर अपने लोगों पर दया करे।


🔹 1-5 पद: मूर्तिपूजा की मूर्खता

अन्यजातियों की रीति को मत सीखो…”

यिर्मयाह साफ़ कहते हैं – लोगों को उन राष्ट्रों की नक़ल नहीं करनी चाहिए जो खगोलीय घटनाओं से डरते हैं और लकड़ी की मूर्तियाँ बनाते हैं।

क्योंकि वे लकड़ी हैं… चाँदी और सोने से सजाए जाते हैं… वे बोल नहीं सकते, चल नहीं सकते।”

👉 मूर्तियाँ केवल मानव निर्मित वस्तुएँ हैं – उनमें कोई जीवन नहीं, कोई शक्ति नहीं।


🔹 6-10 पद: सच्चे परमेश्वर की महिमा

हे यहोवा, तेरे तुल्य कोई नहीं है; तू महान है…”

यिर्मयाह परमेश्वर की महानता की घोषणा करते हैं। वे कहते हैं:

परमेश्वर सच्चा है, वह जीवित परमेश्वर और सनातन राजा है।”

जब वह क्रोधित होता है, तो पृथ्वी कांपती है – मूर्तियाँ ऐसा कुछ नहीं कर सकतीं।


🔹 11-16 पद: मूर्तियाँ व्यर्थ हैं, परमेश्वर सृष्टिकर्ता है

वे परमेश्वर नहीं हैं, इसलिए वे नाश हो जाएँगे।”

👉 मूर्तियाँ न तो सृष्टि कर सकती हैं, न बचा सकती हैं।

यहोवा ही वह भाग है जो याकूब को मिला है… वही सारी सृष्टि का रचयिता है।”

यिर्मयाह परमेश्वर को “इस्राएल की छड़ी” कहते हैं – वह जो अपने लोगों की अगुवाई करता है।


🔹 17-22 पद: संकट और बिखराव की चेतावनी

बोझ उठाओ और निकल जाओ…”

यहाँ एक भविष्यवाणी है – आने वाला विनाश बहुत भयावह होगा। येरूशलेम उजाड़ होगा, और चरवाहे (नेता) अपने काम में विफल होंगे।

👉 यिर्मयाह राष्ट्र की आत्मिक अवस्था को देखकर व्याकुल हैं।


🔹 23-25 पद: यिर्मयाह की विनती

हे यहोवा, मुझे ज्ञात है कि मनुष्य की चाल उसके अपने वश में नहीं…”

यिर्मयाह परमेश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं – वे कहते हैं कि तू न्याय कर, लेकिन करुणा के साथ।

अपने क्रोध को उन जातियों पर उंडेल… जिन्होंने तुझे नहीं जाना।”

👉 वह चाहते हैं कि दंड केवल सुधार के लिए हो, न कि विनाश के लिए।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ मूर्तिपूजा सिर्फ मूर्खता नहीं, आत्मिक अंधकार है।
✝️ सच्चा परमेश्वर जीवित है – वह सुनता, बोलता और कार्य करता है।
✝️ परमेश्वर ही सृष्टि का रचयिता और नियंत्रणकर्ता है – उसका कोई विकल्प नहीं है।
✝️ परमेश्वर का न्याय सच्चा है, लेकिन वह अपने लोगों के लिए करुणामय भी है।
✝️ कठिन समय में हमें नम्र होकर परमेश्वर से मार्गदर्शन और दया माँगनी चाहिए।


📌 याद रखने योग्य वचन

यहोवा सच्चा परमेश्वर है; वह जीवित परमेश्वर और सनातन राजा है।”
(यिर्मयाह 10:10)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 11 – वाचा का उल्लंघन और परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 11 – The Broken Covenant and God’s Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर यहूदा और येरूशलेम के लोगों को उनके पापों की याद दिलाते हैं – उन्होंने मूसा के समय की वाचा को तोड़ा है। यिर्मयाह को यह सन्देश देना होता है कि अब दंड निश्चित है। साथ ही, यिर्मयाह को अपनी ही जन्मभूमि अनातोत से मारने की धमकियाँ मिलती हैं। यह अध्याय परमेश्वर की पवित्रता, उसकी वाचा की गंभीरता, और भविष्यवक्ता के संघर्ष को दर्शाता है।


🔹 1-8 पद: परमेश्वर की टूटी हुई वाचा

इस वाचा के वचनों को सुनो और उनको करो…”

परमेश्वर याद दिलाते हैं कि उन्होंने मिस्र से निकलने पर इस्राएलियों से एक वाचा की थी – यदि वे उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे तो आशीर्वाद मिलेगा।

किन्तु उन्होंने नहीं सुना… हर कोई अपने बुरे मन की ज़िद में चला।”

👉 लोगों ने वाचा तोड़ी, मूर्तिपूजा की और परमेश्वर को तुच्छ जाना।


🔹 9-13 पद: यहूदा की बगावत और मूर्तिपूजा

यहूदा और येरूशलेम के लोगों ने षड्यंत्र रचा है…”

परमेश्वर कहते हैं – उन्होंने अपने पूर्वजों की बुराइयों को दोहराया है।

तू जो शहरों में रहते हो, उन्होंने असंख्य देवताओं को स्थापित किया है।”

👉 मूर्तिपूजा इतनी बढ़ गई कि हर शहर और गली में एक देवता बना लिया गया।


🔹 14-17 पद: यिर्मयाह को प्रार्थना न करने की आज्ञा

तू इस जाति के लिए प्रार्थना न कर…”

परमेश्वर यिर्मयाह को कहते हैं कि अब उनकी दया की सीमा समाप्त हो रही है – अब वे उनकी विनती नहीं सुनेंगे।

मेरे घर में उन्होंने बुराई की… अब मैं उन्हें उखाड़ फेंकूंगा।”

⚠️ यह परमेश्वर के न्याय का गंभीर चित्र है।


🔹 18-23 पद: यिर्मयाह की हत्या की साजिश

मैं तो निर्दोष भेड़ के समान था…”

यिर्मयाह को अचानक यह पता चलता है कि अनातोत (उसका गाँव) के लोग उसे मारना चाहते हैं क्योंकि वह सच्चाई बोलता है।

यहोवा… तू धर्मी है… तू मन और हृदय को परखता है।”

👉 यिर्मयाह अपनी रक्षा के लिए परमेश्वर पर भरोसा करता है।

मैं उन पर विपत्ति लाऊँगा…”

परमेश्वर कहते हैं कि वे यिर्मयाह के विरुद्ध षड्यंत्र करने वालों को दंडित करेंगे।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर की वाचा कोई हल्की बात नहीं – उसकी आज्ञाओं का पालन करना आवश्यक है।
✝️ मूर्तिपूजा और अवज्ञा परमेश्वर के न्याय को बुलाते हैं।
✝️ जब लोग लगातार इनकार करते हैं, तो परमेश्वर कभी-कभी प्रार्थनाएँ भी सुनना बंद कर देता है।
✝️ सच्चे सेवक को विरोध झेलना पड़ता है – यहाँ तक कि अपनों से भी।
✝️ संकट में परमेश्वर ही हमारी शरण और न्याय देने वाला है।


📌 याद रखने योग्य वचन

यहोवा… तू धर्मी है; तू मन और हृदय को परखता है।”
(यिर्मयाह 11:20)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 12 – क्यों दुश्मन फलते-फूलते हैं? और परमेश्वर की योजना

(Jeremiah 12 – Why Do the Wicked Prosper? And God's Answer)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह एक गहरे सवाल के साथ परमेश्वर से बात करता है – "दुष्ट लोग क्यों फलते-फूलते हैं?" वह ईमानदारी से अपनी व्यथा और अन्याय की पीड़ा को परमेश्वर के सामने रखता है। परमेश्वर उत्तर देते हैं, लेकिन साथ ही उसे और बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार होने को कहते हैं। अंत में परमेश्वर अपने लोगों के लिए न्याय और दया का संतुलन दिखाते हैं।


🔹 1-4 पद: यिर्मयाह का सवाल – दुष्ट क्यों सफल हैं?

हे यहोवा, तू धर्मी है, फिर भी मैं तुझसे मुक़दमा करना चाहता हूँ…”

यिर्मयाह पूछता है – जो लोग दुष्ट हैं, वे क्यों चैन से हैं? क्यों वे उन्नति कर रहे हैं जबकि वे तुझसे दूर हैं?

तू उन्हें लगाया है, वे जड़ पकड़ते हैं, बढ़ते हैं, और फल देते हैं…”

👉 यिर्मयाह का दर्द यह है कि ईमानदार लोग दुःख सहते हैं जबकि पापी फलते-फूलते हैं।


🔹 5-6 पद: परमेश्वर का उत्तर – बड़ी दौड़ के लिए तैयार हो

यदि पैदल चलने वालों ने तुझे थका दिया, तो तू घोड़ों के साथ कैसे दौड़ेगा?”

परमेश्वर यिर्मयाह से कहते हैं – यह तो सिर्फ शुरुआत है, अभी और कठिन समय आने वाला है।

तेरे अपने भाइयों ने तुझ पर विश्वासघात किया है…”

👉 यिर्मयाह को अपने ही लोगों से धोखा मिला है, फिर भी उसे मजबूती से खड़ा रहना है।


🔹 7-13 पद: परमेश्वर की पीड़ा और दंड की घोषणा

मैंने अपने घर को छोड़ दिया, अपनी प्रिय वस्तु को त्याग दिया…”

परमेश्वर अपने लोगों से दुखी हैं क्योंकि उन्होंने वाचा तोड़ी है।

मेरा भाग शेर की तरह गुर्राता है, इसलिए मैं उससे घृणा करता हूँ।”

👉 वह कहता है कि अब उसकी आशीषें बंद हो रही हैं और उसकी भूमि उजाड़ हो जाएगी।


🔹 14-17 पद: दया का आश्चर्यजनक प्रस्ताव

मैं उन सारी दुष्ट जातियों को उखाड़ फेंकूँगा…”

परमेश्वर कहता है कि वह न्याय करेगा – केवल यहूदा ही नहीं, अन्य राष्ट्र भी दंडित होंगे।

लेकिन…

यदि वे मेरे लोगों के मार्ग पर चलना सीखें… तो वे मेरे लोगों में स्थापित होंगे।”

👉 परमेश्वर न्याय के बाद भी दया का द्वार खुला रखता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर के सामने अपने सवाल और संघर्ष ईमानदारी से रखना गलत नहीं है।
✝️ परमेश्वर हमें बड़ी जिम्मेदारियों के लिए कठिनाईयों के द्वारा तैयार करता है।
✝️ हमें तब भी खड़ा रहना है जब अपनों से भी विरोध मिले।
✝️ परमेश्वर का न्याय निश्चित है, लेकिन उसकी दया भी अद्भुत है।
✝️ परमेश्वर उन सभी को अपनाता है जो दिल से उसकी ओर लौटते हैं – चाहे वे कोई भी हों।


📌 याद रखने योग्य वचन

यदि पैदल चलने वालों ने तुझे थका दिया, तो तू घोड़ों के साथ कैसे दौड़ेगा?”
(यिर्मयाह 12:5)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 13 – कमरबंद का दृष्टान्त और इस्राएल का अभिमान

(Jeremiah 13 – The Parable of the Linen Belt and Israel’s Pride)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर एक प्रतीकात्मक दृष्टान्त द्वारा यहूदा और यरूशलेम के अभिमान और भ्रष्टता को उजागर करते हैं। एक साधारण कमरबंद (belt) के माध्यम से यह दिखाया जाता है कि कैसे लोग पहले परमेश्वर से जुड़े थे, लेकिन अब अपने पापों और घमंड से सड़ गए हैं। परमेश्वर न्याय की घोषणा करता है, लेकिन उसमें भी एक चेतावनी और सुधार का अवसर छिपा है।


🔹 1-7 पद: लिनन के कमरबंद का दृष्टान्त

जा, एक लिनन का कमरबंद ले… और उसे पहन, परंतु पानी में मत धोना।”

यिर्मयाह एक नया लिनन का कमरबंद पहनता है। फिर परमेश्वर उसे कहता है – इसे यूफ्रात नदी के पास चट्टान में छिपा दो।

कुछ समय बाद जब वह उसे निकालता है – वह सड़ चुका होता है, काम का नहीं रहा।

👉 यह दृष्टान्त यहूदियों की स्थिति को दर्शाता है – वे एक समय परमेश्वर से जुड़े थे, लेकिन अब वे बेकार हो गए हैं।


🔹 8-11 पद: व्याख्या – जैसे कमरबंद सड़ गया, वैसे ही लोग भ्रष्ट हो गए

यह बन्ध कमर से चिपका रहता है… वैसे ही मैंने इस्राएल और यहूदा को अपने लिए बाँध रखा था।”

परमेश्वर कहता है – वे मेरे थे, मेरी महिमा के लिए, पर उन्होंने मेरी बात नहीं मानी।

👉 उनका घमंड और पाप उन्हें परमेश्वर से दूर ले गया।


🔹 12-14 पद: मदिरा के पात्रों का दृष्टान्त

हर पात्र दाखमधु से भर जाएगा…”

परमेश्वर कहता है – वे समझते हैं कि सब कुछ ठीक है, लेकिन वह सबको एक साथ चूर-चूर कर देगा – राजा से लेकर आम जनता तक।

👉 यह न्याय की भविष्यवाणी है – घमंड के परिणामस्वरूप विनाश निश्चित है।


🔹 15-17 पद: चेतावनी – अभिमान से सावधान रहो

अभिमान न करो, क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।”

परमेश्वर विनम्रता की ओर बुलाता है। यिर्मयाह रोते हुए कहता है – यदि तुम नहीं सुनोगे, तो मेरी आत्मा दुःख से रो पड़ेगी।

👉 यह चेतावनी प्रेम से भरी है – ताकि लोग बदल जाएँ और बच जाएँ।


🔹 18-27 पद: राजा, रानी और यरूशलेम की शर्मनाक स्थिति

तुम्हारा अभिमान नीचे कर दिया जाएगा।”

राजा और रानी को सिंहासन से हटाया जाएगा, लोग कैद में ले जाए जाएँगे।

क्या कूशवासी अपना रंग बदल सकता है, या चीता अपने धब्बे?”

👉 जैसे कोई अपने स्वभाव को खुद नहीं बदल सकता, वैसे ही तुम अपने पापों के आदी हो गए हो।

परिणाम? – तूफ़ान जैसा न्याय।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर प्रतीकों के माध्यम से भी गहरी सच्चाइयाँ सिखाता है।
✝️ हम परमेश्वर के लिए मूल्यवान हैं – जब तक हम उससे जुड़े रहते हैं।
✝️ घमंड और आज्ञा उल्लंघन हमें परमेश्वर से अलग कर देते हैं।
✝️ विनम्र बनो, समय रहते लौट आओ – वरना परिणाम गंभीर होते हैं।
✝️ जब हम अपने पाप पहचानते हैं, तो परमेश्वर हमें फिर से बहाल कर सकता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

क्या कूशवासी अपना रंग बदल सकता है, या चीता अपने धब्बे? वैसे ही तुम भी भलाई नहीं कर सकते, जो बुराई करने के आदी हो।”
(यिर्मयाह 13:23)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 14 – अकाल की मार और झूठे भविष्यवक्ताओं का पर्दाफाश

(Jeremiah 14 – The Drought and Exposure of False Prophets)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय एक गंभीर संकट को प्रस्तुत करता है — देश में अकाल पड़ा है। यह केवल भौतिक अकाल नहीं, बल्कि आत्मिक स्थिति का भी संकेत है। यिर्मयाह इस्राएल के लिए प्रार्थना करता है, लेकिन परमेश्वर उसका उत्तर देता है – जब लोग उसके मार्गों से भटकते हैं, तो कठिनाई आती है। साथ ही, परमेश्वर झूठे भविष्यवक्ताओं के बारे में चेतावनी देता है जो लोगों को झूठी आशा देते हैं।


🔹 1-6 पद: देश में अकाल की गंभीर स्थिति

यह यहोवा का वचन है जो यिर्मयाह को अकाल के विषय में मिला।”

धरती सूख चुकी है, किसान निराश हैं, जानवर तक प्यासे और परेशान हैं।

👉 यह अकाल पाप का प्रत्यक्ष फल है – जब राष्ट्र परमेश्वर से दूर चला जाता है।


🔹 7-9 पद: यिर्मयाह की विनती – प्रभु, अपने नाम के कारण दया कर

हे यहोवा, यद्यपि हमारे अधर्म हमारे विरुद्ध गवाही देते हैं…”

यिर्मयाह ईमानदारी से स्वीकार करता है कि लोग दोषी हैं, फिर भी वह परमेश्वर से कृपा की प्रार्थना करता है।

👉 वह परमेश्वर की उपस्थिति को चाहता है, जैसे कोई प्रियजन संकट में साथ हो।


🔹 10-12 पद: परमेश्वर का उत्तर – लोग अपनी राहों में अड़े हैं

इन लोगों ने अपनी ही इच्छा की चाल चली है… मैं अब उनकी प्रार्थना नहीं सुनूँगा।”

परमेश्वर कहता है – यह संकट चेतावनी के बाद भी बदलाव न करने का परिणाम है।

👉 प्रार्थनाएँ तभी प्रभावी होती हैं जब पश्चाताप सच्चा हो।


🔹 13-16 पद: झूठे भविष्यवक्ताओं की पोल खुलती है

वे कहते हैं – तुम्हें तलवार या अकाल न होगा…”

परमेश्वर कहता है – ये भविष्यवक्ता मेरे नहीं हैं; वे झूठे दर्शन और धोखे से लोगों को बहका रहे हैं।

👉 उनका दंड निश्चित है – वे खुद और जिनके लिए वे भविष्यवाणी करते हैं, सब नाश होंगे।


🔹 17-18 पद: यिर्मयाह का दुःख – वह राष्ट्र के लिए रोता है

मेरी आँखें आँसू बहाते-बहाते थकती नहीं…”

यिर्मयाह एक सच्चे अगुवे के रूप में लोगों की स्थिति से टूटा हुआ है।

👉 वह सिर्फ प्रचार नहीं करता – वह परमेश्वर के हृदय को अपने भीतर लिए जीता है।


🔹 19-22 पद: एक और विनती – क्या तू इस्राएल को एकदम ठुकरा देगा?

हे यहोवा, हम जानते हैं कि हमने पाप किया है…”

यिर्मयाह फिर परमेश्वर की दया की याचना करता है – वह याद दिलाता है कि आशा केवल प्रभु में ही है, किसी और में नहीं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ जब एक राष्ट्र या व्यक्ति पाप में चलता है, तो उसका प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में दिखता है।
✝️ सच्चा अगुवा केवल प्रचार नहीं करता, बल्कि लोगों के लिए रोता और प्रार्थना करता है।
✝️ झूठे संदेश सांत्वना देते हैं, पर अंत में विनाश लाते हैं।
✝️ परमेश्वर की दया महान है, लेकिन वह पश्चाताप की अपेक्षा करता है।
✝️ कठिन समय में केवल प्रभु ही हमारी सच्ची आशा है।


📌 याद रखने योग्य वचन

हे यहोवा, यद्यपि हमारे अधर्म हमारे विरुद्ध गवाही देते हैं, तौभी तू अपने नाम के निमित्त काम कर।”
(यिर्मयाह 14:7)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 15 – परमेश्वर का कठोर न्याय और यिर्मयाह की आंतरिक पीड़ा

(Jeremiah 15 – God’s Severe Judgment and Jeremiah’s Inner Struggle)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में हम परमेश्वर के न्याय की गहराई और यिर्मयाह की आंतरिक वेदना को देखते हैं। परमेश्वर कहता है कि इस्राएल ने उसकी बात बार-बार अनसुनी की है, इसलिए अब दया का समय समाप्त हो चुका है। यिर्मयाह अकेला, दुखी और परेशान है, लेकिन परमेश्वर उसे बुलाता है – “अगर तू लौटे, तो मैं तुझे फिर खड़ा करूँगा।”


🔹 1-4 पद: मूसा और शमूएल भी प्रार्थना करें, तो भी मैं नहीं मानूंगा

चाहे मूसा और शमूएल मेरे सामने खड़े हों, फिर भी मैं इस प्रजा पर दया नहीं करूँगा।”

👉 यह वचन परमेश्वर के न्याय की गंभीरता को दर्शाता है – लोगों ने उसका धैर्य समाप्त कर दिया है।

मैं चार प्रकार की विपत्तियाँ लाऊँगा – तलवार, कुत्ते, पक्षी और जानवर…”

👉 ये प्रतीक हैं पूर्ण विनाश के – आत्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और शारीरिक रूप से।


🔹 5-9 पद: यरूशलेम की स्थिति दयनीय है

हे यरूशलेम, तुझे कौन दया से देखेगा?”

नगर को छोड़ दिया गया है, बच्चे मारे जा रहे हैं, और माताएँ शोक में हैं।

👉 परमेश्वर इस पीड़ा का कारण बताता है – बार-बार चेतावनी के बावजूद लोग नहीं लौटे।


🔹 10-14 पद: यिर्मयाह की शिकायत – मैं क्यों पैदा हुआ?

हाय, मेरी माता! तू ने मुझे क्यों जन्म दिया…?”

यिर्मयाह दुखी और अकेला है, क्योंकि वह सच्चाई बोलता है और लोग उसे शत्रु समझते हैं।

👉 वह दूसरों के लिए दुख सहता है, लेकिन उसे कोई सांत्वना नहीं देता।


🔹 15-18 पद: यिर्मयाह की प्रार्थना – तू मुझे न भूल

हे यहोवा, मुझे स्मरण कर, और मुझ से पलटा खा…”

वह कहता है – “मैंने तेरा वचन खाया और वह मेरे लिए आनंद का कारण बना… पर मैं अकेला बैठा रहा।”

👉 यिर्मयाह का दर्द गहरा है – वह परमेश्वर के लिए जी रहा है, फिर भी पीड़ा में है।


🔹 19-21 पद: परमेश्वर का उत्तर – लौट आ, मैं तुझे फिर खड़ा करूँगा

यदि तू लौट आए, तो मैं तुझे फिर खड़ा करूँगा…”

परमेश्वर यिर्मयाह को याद दिलाता है – तू मेरी सच्ची बात बोले, तो मैं तुझे लोहे की दीवार की तरह मज़बूत करूँगा।

👉 प्रतिरोध होगा, पर हार नहीं – क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ जब लोग लगातार परमेश्वर की बात अनसुनी करते हैं, तो न्याय आता है।
✝️ सच्चा सेवक (जैसे यिर्मयाह) अकेलापन, विरोध और गहरी वेदना झेलता है।
✝️ परमेश्वर की उपस्थिति ही हमारी सच्ची ताकत है – भले दुनिया विरोध करे।
✝️ शिकायत के बाद भी अगर हम परमेश्वर की ओर लौटें, तो वह हमें फिर उठाता है।
✝️ परमेश्वर हमें लोहे की दीवार बना सकता है – मज़बूत और अडिग।


📌 याद रखने योग्य वचन

यदि तू लौट आए, तो मैं तुझे फिर खड़ा करूँगा… मैं तुझे इस प्रजा के विरुद्ध एक पक्की कांसे की दीवार बनाऊँगा।”
(यिर्मयाह 15:19-20)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 16 – यिर्मयाह के जीवन के माध्यम से भविष्यवाणी और परमेश्वर का कठोर न्याय

(Jeremiah 16 – Prophetic Symbolism Through Jeremiah’s Life and God’s Severe Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर यिर्मयाह को एक अनोखा आदेश देता है — वह विवाह नहीं करेगा और न ही संतान उत्पन्न करेगा। उसका जीवन स्वयं एक चेतावनी बन जाता है। साथ ही, परमेश्वर उस भयानक दंड को प्रकट करता है जो आने वाला है। लेकिन अंत में, एक आशा की किरण भी दिखाई देती है — परमेश्वर अपने लोगों को वापस लाने का वादा करता है।


🔹 1-4 पद: विवाह और संतान का निषेध

तू न विवाह करना, न पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न करना…”

👉 यह परमेश्वर का संकेत है कि इस देश में पैदा होने वाले बच्चों का भविष्य भयानक होगा — बीमारी, युद्ध, और अकाल से उनकी मृत्यु होगी।

🔸 यह आज्ञा एक शक्तिशाली प्रतीक है — जब स्थिति इतनी खराब हो कि जीवन को आगे बढ़ाना ही व्यर्थ लगे।


🔹 5-9 पद: शोक और उत्सव से दूर रहना

शोक के घर में न जाना, और न मातम मानना…”

👉 यिर्मयाह को न केवल शादी से दूर रहना है, बल्कि शोक और उत्सवों से भी।

🔸 परमेश्वर कहता है कि वह इस देश से शांति, प्रेम और आनंद हटा देगा।

💡 यह एक नबी के जीवन के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का अनोखा तरीका है।


🔹 10-13 पद: लोग पूछेंगे, “ऐसा क्यों हो रहा है?”

जब तू कहेगा कि यह विपत्ति क्यों आई?”
तब उन्हें कहना — “क्योंकि तुमने अपने पूर्वजों की तरह मेरी बात नहीं मानी।”

👉 परमेश्वर लोगों के पाप गिनवाता है — मूर्तिपूजा, अन्य देशों के देवताओं की सेवा और उसकी आज्ञाओं को ठुकराना।


🔹 14-15 पद: आशा की झलक – वापसी की भविष्यवाणी

अब वह समय आएगा जब लोग यह नहीं कहेंगे कि ‘यहोवा जो इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया’…”

👉 बल्कि वे कहेंगे — “यहोवा जो उन्हें उत्तर दिशा और अन्य देशों से वापस लाया।”

🔸 यह निर्वासन के बाद पुनर्स्थापन (restoration) की भविष्यवाणी है।


🔹 16-18 पद: परमेश्वर मछुआरे और शिकारी भेजेगा

मैं बहुत से मछुआरे भेजूँगा… फिर बहुत से शिकारी…”

👉 यह उन लोगों का प्रतीक है जिन्हें परमेश्वर भेजेगा ताकि बचे हुए लोगों को इकट्ठा किया जाए — पर पहले दंड आएगा।


🔹 19-21 पद: राष्ट्र परमेश्वर की ओर लौटेंगे

हे यहोवा, तू मेरी शरण, मेरा बल और संकट के समय में मेरी शांति है।”

🔸 यिर्मयाह एक भविष्य की आशा देखता है — जब अन्यजातियाँ (nations) भी कहेंगी कि हमने व्यर्थ की बातों में भरोसा किया।

💡 परमेश्वर कहता है, “मैं उन्हें अपना हाथ दिखाऊँगा, जिससे वे जानेंगे कि मैं ही यहोवा हूँ।”


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ कभी-कभी परमेश्वर अपने सेवकों के जीवन से ही संदेश देता है — यह बड़ी जिम्मेदारी है।
✝️ जब समाज पूरी तरह पाप में डूब जाए, तो परमेश्वर न्याय करने को बाध्य होता है।
✝️ परमेश्वर हमें हमारे पूर्वजों के पापों के लिए भी चेतावनी देता है – पर व्यक्तिगत उत्तरदायित्व भी मांगता है।
✝️ परमेश्वर न्यायी है, पर वह उद्धार की योजना भी रखता है।
✝️ एक दिन हर राष्ट्र जान जाएगा — सच्चा परमेश्वर वही है।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैं उन जातियों को जानाऊँगा, और उन्हें दिखाऊँगा कि मेरा हाथ और मेरा बल कैसा है; तब वे जानेंगे कि मेरा नाम यहोवा है।”
(यिर्मयाह 16:21)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 17 – मनुष्य का हृदय, विश्‍वास की शक्ति और विश्राम का दिन

(Jeremiah 17 – The Heart of Man, Power of Trust, and the Sabbath Day)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय मनुष्य के हृदय की गहराई, आशीष और श्राप का अंतर, और विश्राम दिन (Sabbath) के प्रति आज्ञाकारिता पर केंद्रित है। परमेश्वर स्पष्ट करता है कि जो मनुष्य पर भरोसा करते हैं वे श्रापित हैं, और जो उस पर भरोसा करते हैं वे आशीषित। यह अध्याय हमें अपने अंदर झाँकने और परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए चुनौती देता है।


🔹 1-4 पद: यहूदा के पाप – गहरे और स्थायी

उनका पाप लोहे की लेखनी और हीरे की नोंक से लिखा गया है…”

👉 परमेश्वर कहता है कि उनका पाप उनके हृदय पर गहराई से अंकित हो गया है – जैसे वह मिटाया नहीं जा सकता।

🔸 मूर्तियों की पूजा, पहाड़ों पर बलि चढ़ाना, और अपने ही बच्चों को बलिदान करना उनके अपराध हैं।

💡 यह दर्शाता है कि जब पाप हमारे हृदय में गहराई से बस जाता है, तो न्याय अवश्य आता है।


🔹 5-8 पद: दो प्रकार के लोग – श्रापित और आशीषित

जो मनुष्य पर भरोसा करता है वह श्रापित है…”
जो यहोवा पर भरोसा करता है वह आशीषित है…”

👉 मनुष्य पर भरोसा करना – सुखद लेकिन अस्थायी; परमेश्वर पर भरोसा – स्थायी और फलदायक।

🔸 मनुष्य की तरह सोचने वाला सुखे रेगिस्तान जैसा है, जबकि परमेश्वर पर भरोसा करने वाला हरा-भरा पेड़ जैसा है।

💡 यह सबसे शक्तिशाली सच्चाई है – हमारा भरोसा हमारा भविष्य तय करता है।


🔹 9-10 पद: हृदय – सबसे कपटी और धोखा देने वाला

मनुष्य का हृदय सबसे अधिक छलपूर्ण होता है…”

👉 हम खुद को भी धोखा दे सकते हैं, लेकिन परमेश्वर हमारे हृदय को परखता और जानता है।

🔸 वह हमारे कामों के अनुसार प्रतिफल देता है।


🔹 11-13 पद: अनुचित लाभ और परमेश्वर की आशा

जो अनुचित रीति से धन कमाता है, वह अपने जीवन के बीच में ही मूर्ख बन जाएगा…”

👉 यह चेतावनी है उन लोगों के लिए जो ईमानदारी छोड़कर संपत्ति के पीछे भागते हैं।

🔸 परमेश्वर को छोड़ने वाला “शर्मिंदा होगा”, क्योंकि वही हमारी आशा का स्रोत है।


🔹 14-18 पद: यिर्मयाह की व्यक्तिगत प्रार्थना

हे यहोवा, मुझे चंगा कर, तब मैं चंगा हो जाऊँगा…”

👉 यिर्मयाह खुद के लिए चंगाई और सुरक्षा की प्रार्थना करता है। वह कहता है कि लोग उसे ताने मारते हैं, पर वह डिगा नहीं।

🔸 वह परमेश्वर से कहता है कि वह उसके विरोधियों को लज्जित करे – क्योंकि उसने परमेश्वर की आज्ञा मानी है।


🔹 19-27 पद: विश्राम दिन (Sabbath) की आज्ञा

विश्राम दिन को पवित्र मानो…”

👉 परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है – यरूशलेम के फाटकों पर खड़े होकर सबको कह, "विश्राम दिन का अपमान मत करो!"

🔸 यदि लोग आज्ञा मानें, तो राजा और समृद्धि आएगी। अगर नहीं, तो आग लगेगी और नगर भस्म होगा।

💡 विश्राम दिन केवल नियम नहीं है – यह परमेश्वर के साथ संबंध और भरोसे का प्रतीक है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ हमारा हृदय धोखा दे सकता है, लेकिन परमेश्वर सब कुछ जानता है।
✝️ मनुष्य पर नहीं, परमेश्वर पर भरोसा करें – वही हमारी स्थायी आशा है।
✝️ परमेश्वर हमें हमारे कर्मों के अनुसार न्याय देगा – इसलिए पवित्र जीवन जरूरी है।
✝️ Sabbath का पालन केवल धार्मिकता नहीं, परमेश्वर की आज्ञाकारिता और विश्वास का प्रतीक है।
✝️ यिर्मयाह की तरह हमें भी कठिन समय में परमेश्वर की शरण लेनी चाहिए।


📌 याद रखने योग्य वचन

धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा करता है, और जिसकी आशा यहोवा है।”
(यिर्मयाह 17:7)

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 18 – कुम्हार और मिट्टी: परमेश्वर की संप्रभुता और मनुष्य की जिम्मेदारी

(Jeremiah 18 – The Potter and the Clay: God’s Sovereignty and Man’s Responsibility)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय एक गहरे प्रतीकात्मक दर्शन से शुरू होता है — परमेश्वर कुम्हार है और हम उसकी मिट्टी हैं। परमेश्वर कैसे किसी राष्ट्र या व्यक्ति को बदल सकता है, यह इस दर्शन में स्पष्ट होता है। यह अध्याय हमें पश्चाताप की ताकत, परमेश्वर की योजना को मानने, और कठोरता के परिणामों को समझने की चुनौती देता है।


🔹 1-6 पद: कुम्हार का घर और परमेश्वर का दृष्टांत

देख, जैसे कुम्हार की मिट्टी, वैसे ही तुम मेरे हाथ में हो, हे इस्राएल…”

👉 परमेश्वर यिर्मयाह को कुम्हार के घर भेजता है। वह देखता है कि कुम्हार एक बर्तन बनाता है, फिर उसे बिगड़ने पर दोबारा बनाता है।

🔸 यह दर्शाता है कि परमेश्वर अपनी इच्छा के अनुसार मनुष्यों और राष्ट्रों को गढ़ता है।

💡 हम उसके हाथ की मिट्टी हैं — यदि हम नम्र हैं, तो वह हमें सुंदर रूप में गढ़ेगा।


🔹 7-10 पद: परमेश्वर की चेतावनी और न्याय का सिद्धांत

यदि कोई जाति पश्चाताप करे, तो मैं भी उस पर ठानकर की गई विपत्ति को टाल दूँगा।”

👉 यह पद परमेश्वर की दया और न्याय को संतुलन में दिखाता है।

🔸 यदि कोई राष्ट्र या व्यक्ति पश्चाताप करता है, तो परमेश्वर उस पर आनेवाले दंड को रोक सकता है।

🔸 लेकिन यदि कोई अच्छा राष्ट्र बुराई करने लगे, तो वह उस पर आशीष रोक सकता है।

💡 परमेश्वर की योजना हमारी प्रतिक्रिया पर निर्भर भी हो सकती है — यही उसकी जीवित संप्रभुता है।


🔹 11-12 पद: यहूदा की हठधर्मिता

हम तो अपनी ही युक्ति पर चलेंगे, और अपने मन की दुष्टता के अनुसार काम करेंगे।”

👉 यहूदा के लोग परमेश्वर की चेतावनी को ठुकरा देते हैं और कहते हैं कि वे अपनी मर्ज़ी से ही चलेंगे।

🔸 यह हृदय की कठोरता और आत्म-अहंकार को दर्शाता है।


🔹 13-17 पद: यहूदा का पाप और परिणाम

क्या किसी जाति ने अपनी शुद्ध जलधारा को छोड़ दिया है?”

👉 यहूदा ने परमेश्वर की आत्मिक जलधारा को छोड़कर मूर्तियों और व्यर्थ चीज़ों का अनुसरण किया।

🔸 परमेश्वर कहता है कि वह उन्हें ऐसे तितर-बितर करेगा कि उनकी दुर्दशा देखने लायक होगी।

💡 जब हम परमेश्वर के मार्गों से मुड़ते हैं, तो हम जीवन की मुख्य धारा को खो देते हैं।


🔹 18-23 पद: यिर्मयाह का विरोध और प्रार्थना

आओ हम यिर्मयाह के विरुद्ध कोई युक्ति सोचें…”

👉 लोग यिर्मयाह की निंदा और विरोध करने लगते हैं — वे उसे मारना और चुप कराना चाहते हैं।

🔸 यिर्मयाह अपनी रक्षा में परमेश्वर से न्याय की प्रार्थना करता है — वह कहता है कि उन्होंने बुराई के बदले भलाई को ठुकराया।

💡 जब हम सच्चाई बोलते हैं, तो हमें विरोध का सामना करना पड़ सकता है — लेकिन परमेश्वर हमारी ढाल है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

हम परमेश्वर के हाथ में मिट्टी हैं — जितना नम्र होंगे, उतना सुंदर गढ़े जाएँगे।
परमेश्वर की चेतावनियाँ उसके न्याय से पहले दया का द्वार होती हैं।
पश्चाताप करने पर परमेश्वर अपने न्याय को भी रोक सकता है — वह कृपालु है।
अपनी योजनाओं पर ज़िद करने से जीवन में विनाश आता है — परमेश्वर की योजना श्रेष्ठ है।
जब आप सच्चाई के लिए खड़े होते हैं, विरोध होगा — लेकिन परमेश्वर आपको न्याय देगा।


📌 याद रखने योग्य वचन

जैसे कुम्हार की मिट्टी, वैसे ही तुम मेरे हाथ में हो।”
(
यिर्मयाह 18:6)

 

 📖 यिर्मयाह अध्याय 19 – टूटा हुआ मिट्टी का घड़ा: कठोर न्याय की घोषणा

(Jeremiah 19 – The Broken Jar: Prophetic Sign of God’s Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में परमेश्वर यिर्मयाह को एक मिट्टी का घड़ा खरीदने और उसे तोड़ने का आदेश देता है। यह प्रतीक है यहूदा और यरूशलेम के विरुद्ध आने वाले कठोर और अंतिम न्याय का। यह अध्याय हमें सिखाता है कि बार-बार चेतावनी देने के बाद यदि पश्चाताप न हो तो परमेश्वर का धैर्य समाप्त हो सकता है, और तब न्याय अपरिवर्तनीय हो जाता है।


🔹 1-2 पद: यिर्मयाह को मिट्टी का घड़ा खरीदने और जनता को बुलाने का आदेश

एक कुम्हार का घड़ा ले, और कुछ बुजुर्गों और याजकों को अपने साथ लेकर निकल।”

👉 परमेश्वर यिर्मयाह को प्रतीकात्मक कार्य करने को कहता है।

🔸 उसे पुराने बर्तनखाने के फाटक पर जाना है — वहीं पर न्याय की भविष्यवाणी होगी।

💡 भविष्यवक्ता का काम केवल बोलना नहीं, कभी-कभी परमेश्वर की बात को क्रियात्मक रूप से दिखाना भी होता है।


🔹 3-9 पद: यरूशलेम पर आने वाली भयावह सज़ा

मैं ऐसा विपत्ति लाऊँगा कि जो भी सुनेगा उसके कान बज उठेंगे।”

👉 यहूदा के लोगों ने बेताल (Baal) की पूजा की, अपने बच्चों की बलि दी, और निर्दयता की हदें पार कर दीं।

🔸 इसलिए परमेश्वर कहता है कि वह ऐसी विपत्ति लाएगा जो भयानक होगी:

  • नगर सुनसान हो जाएगा
  • लोग एक-दूसरे का मांस खाने लगेंगे
  • हर कोई भय और घृणा से भर जाएगा

💡 परमेश्वर दयालु है, लेकिन न्यायपूर्ण भी है — जब उसकी सीमाओं को पार किया जाए, तो परिणाम बहुत कठोर हो सकते हैं।


🔹 10-13 पद: घड़े को तोड़ने की भविष्यवाणी

इस घड़े को लोगों के सामने तोड़, जैसे एक बर्तन फिर से जोड़ा नहीं जा सकता।”

👉 यिर्मयाह प्रतीकात्मक रूप से घड़े को तोड़ता है — यह दर्शाता है कि यहूदा का विनाश अब निश्चित है।

🔸 तोपा (Topheth), जहाँ बच्चों की बलि दी जाती थी, वह अब “हत्या की घाटी” कहलाएगा।

🔸 यरूशलेम और यहूदा के घर, जो झूठे देवताओं से भरे हैं, वे अपवित्र किए जाएँगे।

💡 टूटे घड़े की तरह, कुछ निर्णय परमेश्वर के न्याय में वापस नहीं लिए जाते — इसलिए पश्चाताप समय रहते करना चाहिए।


🔹 14-15 पद: मन्दिर में अंतिम घोषणा

देखो, मैं इस नगर पर और उसके सब नगरों पर वह विपत्ति लाऊँगा…”

👉 यिर्मयाह प्रभु के भवन (मन्दिर) में जाकर यह घोषणा करता है।

🔸 लोगों ने परमेश्वर की बात को ठुकरा दिया, इसलिए अब उनकी हालत बदतर होगी।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर हमें बार-बार चेतावनी देता है, लेकिन हमेशा इंतज़ार नहीं करता।
✝️ घमंड और मूर्तिपूजा के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
✝️ टूटे घड़े की तरह, जीवन भी टूट सकता है यदि हम परमेश्वर की बात न मानें।
✝️ हमारे कार्यों के गंभीर परिणाम होते हैं — आत्मिक निर्णयों को हल्के में न लें।
✝️ भविष्यवक्ता का काम कठिन हो सकता है, लेकिन उसे परमेश्वर की बात को निर्भयता से सुनाना होता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

इस घड़े को ऐसे तोड़ कि फिर से जोड़ा न जा सके।”
(यिर्मयाह 19:11)

📖 यिर्मयाह अध्याय 20 – जब भविष्यवक्ता टूटता है

(Jeremiah 20 – When the Prophet Breaks Down)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय एक बहुत ही मानवीय और भावनात्मक चित्र प्रस्तुत करता है – एक भविष्यवक्ता की आंतरिक पीड़ा। यिर्मयाह को शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहना पड़ता है, और वह अपने जीवन पर भी प्रश्न उठाता है। यह अध्याय दिखाता है कि परमेश्वर की सेवा हमेशा आसान नहीं होती, लेकिन परमेश्वर की सच्चाई अग्नि की तरह हमारे भीतर जलती है।


🔹 1-2 पद: यिर्मयाह को मारा और बंद किया गया

पशहूर यिर्मयाह को मारा और उसे करागार में डाल दिया।”

👉 पशहूर, जो कि याजक और प्रभु के भवन का मुख्य अधिकारी था, यिर्मयाह की भविष्यवाणी से क्रोधित हो गया।

🔸 उसने यिर्मयाह को पकड़कर सजा दी और लोगों के सामने अपमानित किया।

💡 जब आप सच्चाई बोलते हैं, तो सबसे अधिक विरोध अक्सर धार्मिक नेताओं से ही आता है।


🔹 3-6 पद: पशहूर का नाम बदला – “भय चारों ओर”

तेरा नाम अब पशहूर नहीं, बल्कि ‘मगोर मिस्सब्बीब’ होगा।”

👉 यिर्मयाह ने साहस के साथ पशहूर को बताया कि अब उसका नया नाम “चारों ओर भय” होगा, क्योंकि वह, उसके परिवार और उसके दोस्त – सब बाबुल की बंदीगिरि में जाएँगे।

🔸 यह एक नबी का असाधारण साहस है — जो उसे पीटे, उसके सामने भी भविष्यवाणी करता है।

💡 परमेश्वर का वचन देने वाला सच्चा सेवक लोगों से नहीं डरता — वह सिर्फ परमेश्वर से डरता है।


🔹 7-10 पद: यिर्मयाह की पीड़ा और अंदरूनी संघर्ष

हे यहोवा, तू ने मुझे फुसलाया, और मैं फँस गया।”

👉 यिर्मयाह अपनी भावनाओं को परमेश्वर के सामने खोलकर रखता है। उसे लगता है कि परमेश्वर ने उसे मुश्किल सेवा में धकेल दिया।

🔸 लोग उसका उपहास करते हैं, उसका मज़ाक उड़ाते हैं, और वह निराश हो जाता है।

🔸 वह कहता है, “मैं तेरे नाम का प्रचार नहीं करूंगा,” लेकिन फिर मानता है – “तेरा वचन मेरी हड्डियों में जलती आग बन गया।”

💡 जब परमेश्वर का वचन आपके भीतर होता है, तो आप उसे रोक नहीं सकते — वह भीतर से आपको जलाता है।


🔹 11-13 पद: यिर्मयाह का फिर से विश्वास में खड़ा होना

परन्तु यहोवा मेरे साथ एक शक्तिशाली वीर के समान है।”

👉 यिर्मयाह अपनी शिकायतों से बाहर निकलकर परमेश्वर में फिर से भरोसा करता है।

🔸 वह जानता है कि उसके विरोधी पराजित होंगे और परमेश्वर उसकी रक्षा करेगा।

🔸 वह गाता है: “यहोवा की स्तुति करो, क्योंकि वह दरिद्र का उद्धार करता है!”

💡 सच्चे विश्वास की गहराई यही है – आँसू के बीच भी स्तुति उठती है।


🔹 14-18 पद: यिर्मयाह की व्यक्तिगत निराशा और हताशा

जिन दिन मैं जन्मा, वह शापित हो!”

👉 अध्याय का अंतिम भाग यिर्मयाह की गंभीर भावनात्मक स्थिति दिखाता है।

🔸 वह अपने जन्म को भी कोसता है, जैसे अय्यूब ने किया था।

🔸 लेकिन यह उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ईमानदारी है — वह परमेश्वर के सामने अपने दिल को खुला रखता है।

💡 आत्मिक जीवन में कभी-कभी गहरे अंधेरे आते हैं — लेकिन परमेश्वर हमारी हर पीड़ा को जानता और संभालता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

सच्ची सेवा में दुःख और अपमान भी सहना पड़ता है।
जब सब छोड़ दें, तब भी परमेश्वर का वचन हमारी हड्डियों में आग की तरह जलता है।
आंतरिक संघर्ष का अर्थ यह नहीं कि आप असफल हैं — यह दिखाता है कि आप सच्चे हैं।
परमेश्वर का साथ हमारे जीवन की सबसे बड़ी ढाल है।
हमारी भावनात्मक कमजोरियों के बीच भी, परमेश्वर हमें नहीं छोड़ता।


📌 याद रखने योग्य वचन

तेरा वचन मेरी हड्डियों में जलती आग सा है... मैं उसे रोक नहीं सकता।”
(
यिर्मयाह 20:9)

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 21 – निर्णय की घड़ी

(Jeremiah 21 – The Hour of Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यहूदा के राजा और धार्मिक नेता, जो पहले यिर्मयाह की चेतावनियों को नजरअंदाज करते रहे थे, अब संकट में पड़कर यिर्मयाह से मदद की उम्मीद करते हैं। लेकिन परमेश्वर का उत्तर स्पष्ट है – अब बहुत देर हो चुकी है। यह अध्याय न्याय और करुणा के बीच परमेश्वर के संतुलन को प्रकट करता है।


🔹 1-2 पद: राजा की मदद की गुहार

राजा सिदकिय्याह ने पशहूर और सपन्याह को यिर्मयाह के पास भेजा…”

👉 जब बाबुल की सेना यहूदा पर आक्रमण करती है, तब राजा डरकर यिर्मयाह से प्रार्थना करवाने को कहता है।

🔸 लेकिन यह प्रार्थना पश्चाताप के कारण नहीं, बल्कि बचाव के लिए है।

💡 बहुत से लोग परमेश्वर को संकट में ही ढूंढते हैं — लेकिन बिना सच्चे पश्चाताप के वह कृपा नहीं दिखाता।


🔹 3-7 पद: परमेश्वर का उत्तर – तलवार, भूख और महामारी

देखो, मैं नगर के विरुद्ध अपनी ही सेना को लाऊँगा।”

👉 परमेश्वर स्पष्ट रूप से कहता है कि वह अब यहूदा के विरुद्ध स्वयं युद्ध करेगा।

🔸 बाबुल की सेना इस्राएल को दंड देने के लिए परमेश्वर का उपकरण है।

🔸 राजा, उसके सेवक, और प्रजा – सभी बाबुल के हाथ में सौंप दिए जाएँगे।

💡 जब परमेश्वर न्याय करता है, तो कोई भी बच नहीं सकता — चाहे वह राजा ही क्यों न हो।


🔹 8-10 पद: जीवन और मृत्यु के बीच चुनाव

जो नगर में रहेगा वह मरेगा… और जो निकलकर बाबुलियों के पास जाएगा वह जीवित बचेगा।”

👉 यिर्मयाह लोगों को एक विचित्र संदेश देता है: यदि तुम जीवित रहना चाहते हो, तो समर्पण करो।

🔸 यह एक कठिन निर्णय था — आत्मसमर्पण करना या अपने घमंड के साथ मर जाना।

💡 कभी-कभी आत्मसमर्पण ही सच्चा विश्वास होता है।


🔹 11-14 पद: राजा के घर के लिए न्याय का संदेश

हे दाऊद का घर! न्याय का कार्य करो…”

👉 यिर्मयाह विशेष रूप से राजा के घर को संबोधित करता है।

🔸 उन्हें अन्याय छोड़कर न्याय करने की चेतावनी दी जाती है — वरना परमेश्वर की आग उनका अंत कर देगी।

💡 जिन पर नेतृत्व की ज़िम्मेदारी होती है, उनसे परमेश्वर सबसे अधिक जवाबदेही माँगता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

संकट के समय परमेश्वर को पुकारना अच्छा है, लेकिन सच्चा पश्चाताप ज़रूरी है।
परमेश्वर की चेतावनियों को नजरअंदाज करना अंत में महंगा पड़ता है।
आत्मसमर्पण कभी-कभी जीवन का मार्ग होता है — घमंड मृत्यु का।
नेतृत्व करने वालों को न्याय और दया के साथ शासन करना चाहिए।
परमेश्वर न्यायप्रिय है — वह पाप को अनदेखा नहीं करता।


📌 याद रखने योग्य वचन

जो नगर में रहेगा वह मरेगा... और जो बाबुलियों के पास जाएगा वह जीवित बचेगा।”
(
यिर्मयाह 21:9)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 22 – राजाओं के लिए चेतावनी

(Jeremiah 22 – Warning to the Kings of Judah)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय यहूदा के शाही परिवार के लिए एक गंभीर चेतावनी है। परमेश्वर नबियों के द्वारा बता रहा है कि यदि राजा और उसके अधिकारी न्याय नहीं करेंगे, तो वे परमेश्वर की आशीष खो देंगे। यह अध्याय उन राजाओं की तुलना करता है जिन्होंने धर्म का पालन किया और उन राजाओं की निंदा करता है जो भ्रष्ट और अन्यायी थे।


🔹 1-5 पद: राजा का कर्तव्य – न्याय करना

हे दाऊद के घर! यहोवा का वचन सुन।”

👉 परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है कि वह राजा को न्याय और धार्मिकता के मार्ग की याद दिलाए।

🔸न्याय करो, दीन-दुखियों और परदेशियों की रक्षा करो।”

💡 किसी भी देश की स्थिरता और आशीर्वाद उसके नेतृत्व की धार्मिकता पर निर्भर होती है।


🔹 6-9 पद: अगर तुम नहीं मानोगे…

तू गिलाद के समान था… पर मैं तुझे उजाड़ और निर्जन बनाऊँगा।”

👉 यदि राजा और प्रजा परमेश्वर की आज्ञाओं की अवहेलना करेंगे, तो वह नगर और महलों को नष्ट कर देगा।

🔸 आनेवाले लोग कहेंगे, “यहोवा ने ऐसा क्यों किया?” उत्तर होगा – क्योंकि उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया।

💡 परमेश्वर के न्याय से कोई नहीं बच सकता, चाहे वह कितना ही ऊँचे पद पर क्यों न हो।


🔹 10-12 पद: शल्लूम (यहोआहाज) के लिए भविष्यवाणी

जो चला गया, उसके लिए मत रोओ, पर जो लौटकर नहीं आएगा उसके लिए रोओ।”

👉 शल्लूम को मिस्र ले जाया गया और वह फिर कभी वापस नहीं आया।

🔸 यह उसके अविश्वास और अधर्म का परिणाम था।


🔹 13-19 पद: यहोयाकीम की निंदा

हाय उस पर जो अपने लिए अन्याय से महल बनाता है…”

👉 यहोयाकीम ने गरीबों को सताकर अपने लिए महल बनवाया, लेकिन परमेश्वर ने उसे दंड देने का निर्णय लिया।

🔸उसे मरने पर कोई रोएगा नहीं… गधे की तरह घसीटा जाएगा।”

💡 जो राजा अपनी प्रजा के लिए नहीं जीते, उनका अंत अपमानजनक होता है।


🔹 20-23 पद: यहूदा का विलाप

तू जब प्रसन्न थी, तब तूने मेरी नहीं सुनी…”

👉 परमेश्वर याद दिलाता है कि जब समय अच्छा था, तब भी यहूदा ने उसकी नहीं मानी।

🔸 अब जब संकट आया है, तो कोई तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाएगा।


🔹 24-30 पद: कोन्याह (यहोयाकीन) को शाप

चाहे तू मेरी दाहिनी उंगली की मुहर हो… फिर भी मैं तुझे फेंक दूँगा।”

👉 कोन्याह को यह कहकर शापित किया जाता है कि उसकी संतान कभी सिंहासन पर नहीं बैठेगी।

🔸यह आदमी क्यों लिखा गया कि संतानहीन है…?”

💡 परमेश्वर का वचन राजा के कुल पर स्थायी प्रभाव डालता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर राजा और नेता से न्याय और दया की अपेक्षा करता है।
भ्रष्टाचार और अन्याय परमेश्वर के क्रोध को बुलाते हैं।
कोई भी पद या रुतबा हमें परमेश्वर के न्याय से नहीं बचा सकता।
परमेश्वर का वचन पीढ़ियों तक असर डालता है — आशीष और श्राप दोनों रूपों में।
संकट में पछतावा देर से आता है — सच्चा परिवर्तन पहले होना चाहिए।


📌 याद रखने योग्य वचन

हाय उस पर जो अपने लिए अन्याय से घर बनाता है… क्या तेरा राज्य इस पर आधारित है कि तू देवदार के भवन में रहता है?”
(
यिर्मयाह 22:13-15)

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 23 – झूठे अगुवों पर न्याय और आनेवाले सच्चे राजा की आशा

(Jeremiah 23 – Judgment on False Shepherds & Hope of the Righteous King)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय झूठे अगुवों (पास्तोरों, नबियों और राजाओं) की कड़ी निंदा करता है, जिन्होंने परमेश्वर की भेड़ों को बिखेर दिया। लेकिन साथ ही एक महान आशा की घोषणा करता है — एक धर्मी शाखा (Messiah) आने वाला है, जो सच्चे न्याय से शासन करेगा। यह अध्याय मसीह की भविष्यवाणी और झूठे नबियों की असलियत दोनों को उजागर करता है।


🔹 1-4 पद: झूठे अगुवों पर हाय

हाय उन चरवाहों पर जो मेरी भेड़ों को नाश और तितर-बितर करते हैं!”

👉 परमेश्वर अपने लोगों की रक्षा की जिम्मेदारी अगुवों को देता है। लेकिन इन अगुवों ने अपने स्वार्थ के लिए उन्हें गुमराह किया।

🔸 परमेश्वर कहता है, “मैं उनके बुरे कामों का दंड दूँगा।”

💡 हर अगुवा, चाहे वह चर्च में हो या समाज में — जवाबदेह है।


🔹 5-8 पद: “धर्मी शाखा” का वादा – मसीह की भविष्यवाणी

मैं दाऊद के लिए एक धर्मी शाखा उत्पन्न करूँगा…”

👉 एक दिन एक सच्चा राजा आएगा (यीशु मसीह), जो न्याय और धार्मिकता से राज्य करेगा।

🔸 उसका नाम होगा – “यहोवा हमारी धार्मिकता” (Jehovah Tsidkenu)

💡 यह मसीह की एक शानदार भविष्यवाणी है जो बताती है कि असली उद्धार मनुष्यों से नहीं, परमेश्वर से आता है।


🔹 9-15 पद: झूठे भविष्यवक्ताओं की निंदा

मेरे मन में भविष्यद्वक्ताओं के कारण टूटन है…”

👉 यिर्मयाह को गहरा दुख है क्योंकि झूठे नबी लोगों को पाप में बनाए रख रहे हैं।

🔸 वे व्यभिचार करते हैं, झूठ बोलते हैं, और बुराइयों में दूसरों को मज़बूत करते हैं।

💡 झूठी शिक्षा आत्मिक विनाश लाती है।


🔹 16-22 पद: परमेश्वर का वचन बनाम मन की कल्पना

वे तुम्हें व्यर्थ की आशा देते हैं… वे अपने ही मन की बातें कहते हैं।”

👉 परमेश्वर कहता है, “यदि वे मेरे सभा में खड़े होते, तो मेरे लोगों को मेरे वचन सिखाते।”

🔸 आज भी कई लोग परमेश्वर का नाम लेकर अपनी राय बाँटते हैं।

💡 सच्चे अगुवे वही हैं जो परमेश्वर की बात को निर्भीकता और सच्चाई से सिखाते हैं।


🔹 23-32 पद: सच्चे और झूठे वचनों के बीच का अंतर

क्या मेरा वचन आग के समान नहीं… जो चट्टानों को टुकड़े कर देता है?”

👉 परमेश्वर कहता है कि उसका वचन जीवित, प्रभावशाली और परिवर्तनकारी है।

🔸 झूठे नबी केवल सपने, दृष्टि और नकली प्रेरणा से लोगों को बहकाते हैं।

💡 सपना और दर्शन केवल तभी सही हैं जब वे परमेश्वर के वचन के अनुरूप हों।


🔹 33-40 पद: "यहोवा का भार" कहने वालों पर दंड

तुम यहोवा के भार की बात बार-बार क्यों करते हो?”

👉 लोग मज़ाक उड़ाने लगे थे — “क्या आज फिर कोई भारी संदेश है?”
🔸 परमेश्वर कहता है: अब मैं तुमसे यह वचन छीन लूँगा और तुम्हें दंड दूँगा।

💡 जब लोग परमेश्वर के वचन का सम्मान नहीं करते, तो वे आत्मिक अंधकार में चले जाते हैं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

अगुवों को परमेश्वर की भेड़ों की देखरेख का उत्तरदायित्व गंभीरता से लेना चाहिए।
झूठे उपदेश और शिक्षा समाज और आत्मा दोनों को भ्रष्ट करती हैं।
मसीह ही सच्चे धार्मिक और न्यायी राजा हैं – हमें उन्हीं की ओर देखना चाहिए।
परमेश्वर का वचन आग और हथौड़े के समान है – यह बदलता और शुद्ध करता है।
हमें उन वचनों से सावधान रहना चाहिए जो परमेश्वर के नाम पर होते हुए भी उसकी आत्मा से नहीं होते।


📌 याद रखने योग्य वचन

क्या मेरा वचन आग के समान नहीं है? और उस हथौड़े के समान नहीं है जो चट्टानों को चूर कर देता है?”
(
यिर्मयाह 23:29)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 24 – दो टोकरियाँ अंजीरों की दृष्टि

(Jeremiah 24 – The Vision of Two Baskets of Figs)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह को एक दर्शन दिखाया जाता है — दो टोकरियाँ अंजीरों की। एक में अच्छे अंजीर हैं, जो बहुत स्वादिष्ट हैं; दूसरी में बेहद खराब अंजीर हैं, जो खाने लायक नहीं। इस दृष्टि के ज़रिए परमेश्वर यहूदा के लोगों की दो अलग-अलग अवस्थाओं को दर्शाता है — जो बन्दी बनाकर बाबुल ले जाए गए वे “अच्छे अंजीर” हैं; और जो यरूशलेम में बचे रह गए, वे “बुरे अंजीर” हैं। यह अध्याय बताता है कि परमेश्वर का न्याय और दया किस प्रकार एक साथ कार्य करते हैं।


🔹 1-3 पद: दो टोकरियों का दर्शन

देख, यहोवा ने मुझे दो टोकरियाँ अंजीरों की दिखाई...”

एक टोकरी में बहुत अच्छे अंजीर थे — जैसे पहली फसल के।
दूसरी में बेहद खराब अंजीर थे — जो खाए नहीं जा सकते थे।

💡 दृष्टान्त सरल था, लेकिन अर्थ गहरा।


🔹 4-7 पद: अच्छे अंजीर – बाबुल में बंधुआई में गए लोग

मैं उन्हें भलाई के लिए ध्यान में रखूँगा...”

बाबुल ले जाए गए लोग परमेश्वर की दृष्टि में “अच्छे अंजीर” हैं।
परमेश्वर कहता है, “मैं उन्हें एक ऐसा मन दूँगा जिससे वे जान सकें कि मैं यहोवा हूँ।”
वह उन्हें फिर से अपने पास लाएगा, और वे उसकी प्रजा होंगे।

💡 परमेश्वर का उद्देश्य केवल दंड नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्स्थापन है।


🔹 8-10 पद: बुरे अंजीर – जो यरूशलेम में रह गए

जैसे वे बुरे अंजीर, जो खाए नहीं जा सकते... वैसे ही मैं यहूदा के राजा और उसके बाकी लोगों को कर दूँगा...”

यरूशलेम में बचे लोग परमेश्वर से नहीं डरे, उन्होंने पश्चाताप नहीं किया।
वे बुरे अंजीरों की तरह नष्ट होंगे — वे तलवार, अकाल और महामारी से नाश होंगे।

💡 बाहरी सुरक्षा नहीं, बल्कि आंतरिक पश्चाताप परमेश्वर की कृपा लाता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर बाहरी स्थिति नहीं, हृदय की स्थिति देखता है।
बंधुआई (captivity) परमेश्वर के सुधार का एक माध्यम हो सकता है।
परमेश्वर हमें नया मन और पहचान देने को तैयार है – यदि हम पश्चाताप करें।
जो लोग अपने पापों में अड़े रहते हैं, वे परमेश्वर के न्याय के पात्र बनते हैं।
उद्धार का मार्ग हमेशा विनम्रता और परमेश्वर पर भरोसे से होकर गुजरता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैं उन्हें एक ऐसा मन दूँगा जिससे वे जान सकें कि मैं यहोवा हूँ; वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका परमेश्वर होऊँगा।”
(
यिर्मयाह 24:7)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 25 – सत्तर वर्षों की बंधुआई और परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 25 – The 70-Year Captivity and God's Judgment on the Nations)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह एक निर्णायक भविष्यवाणी करता है — यहूदा राष्ट्र 70 वर्षों तक बाबुल की बंधुआई में रहेगा। यह उन वर्षों की ऊँची कीमत है जो उन्होंने परमेश्वर की बात को नजरअंदाज करके चुकाई। लेकिन परमेश्वर सिर्फ अपने लोगों को नहीं, बल्कि अन्य सभी राष्ट्रों को भी उनके पापों का उत्तरदायी ठहराएगा। यह अध्याय दिखाता है कि परमेश्वर न्यायी है – चाहे वह अपनी प्रजा हो या अन्यजातियाँ।


🔹 1-7 पद: 23 वर्षों की चेतावनी, लेकिन कोई बदलाव नहीं

मैं ने तुम्हें बोल-बोल कर चेताया, पर तुम ने न सुना...”

यिर्मयाह ने लगातार 23 वर्षों तक चेतावनी दी।
लोगों ने न यिर्मयाह की सुनी, न अन्य भविष्यद्वक्ताओं की।
वे मूर्तिपूजा और बुराई में डूबे रहे।

💡 परमेश्वर बहुत धैर्य रखता है, पर उसका न्याय भी निश्चित है।


🔹 8-11 पद: 70 वर्षों की बाबुली बंधुआई

यहूदा देश और उसके चारों ओर की जातियाँ 70 वर्षों तक बाबुल के राजा की सेवा करेंगी।”

यहूदा और आसपास के राष्ट्रों को बाबुल की गुलामी सहनी होगी।
यह सज़ा उनके लगातार अवज्ञाकारी व्यवहार का परिणाम है।
देश उजाड़ हो जाएगा, और लोग बंधुआई में रहेंगे।

💡 परमेश्वर का न्याय समय पर आता है – और वह सटीक होता है।


🔹 12-14 पद: बाबुल पर भी आएगा न्याय

जब 70 वर्ष पूरे होंगे, तब मैं बाबुल के राजा और उसकी जाति को उनके पापों के कारण दंड दूँगा।”

बाबुल सिर्फ एक उपकरण है — जब उसका कार्य पूरा होगा, वह भी न्याय का सामना करेगा।
परमेश्वर सभी राष्ट्रों से न्याय करेगा, उनके कर्मों के अनुसार।

💡 परमेश्वर का न्याय निष्पक्ष है — हर कोई उत्तरदायी है।


🔹 15-29 पद: राष्ट्रों के लिए क्रोध का प्याला

ले यह प्याला और उन सब जातियों को पिला...”

परमेश्वर यिर्मयाह को प्रतीकात्मक रूप से एक प्याला देता है – क्रोध का प्याला।
यिर्मयाह को वह प्याला सब राष्ट्रों को “पिलाना” है – यानी उन्हें परमेश्वर के न्याय की सूचना देना है।
यहूदा, मिस्र, पलिश्त, एदों, मोआब, अम्मोन, तीर, सिदोन, और यहां तक कि बाबुल – सब पर न्याय आएगा।

💡 परमेश्वर सार्वभौमिक न्यायी राजा है – वह सभी राष्ट्रों पर ध्यान देता है।


🔹 30-38 पद: यहोवा की गर्जना और न्याय की व्यापकता

यहोवा अपनी जगह से गरजेगा... वह पृथ्वी के सब निवासियों के विरुद्ध न्याय करेगा।”

यह एक डरावनी भविष्यवाणी है – युद्ध, मृत्यु और विनाश की।
परमेश्वर का न्याय सीमित नहीं है – वह पूरी पृथ्वी को छान डालेगा।

💡 जब परमेश्वर न्याय करता है, तो वह सम्पूर्ण और अंतिम होता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर चेतावनी देने में धीमा है, लेकिन न्याय में दृढ़ है।
लंबे समय तक अनसुना किया गया सत्य अंततः परिणाम लाता है।
परमेश्वर का नियंत्रण सिर्फ यहूदा पर नहीं, सभी राष्ट्रों पर है।
न्याय और दया — दोनों परमेश्वर के चरित्र का हिस्सा हैं।
परमेश्वर के क्रोध का प्याला कोई टाल नहीं सकता – पश्चाताप ही एकमात्र रास्ता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

जब सत्तर वर्ष पूरे हो जाएँगे, तब मैं बाबुल के राजा और उसके राष्ट्र को उनके अधर्म के कारण दंड दूँगा।”
(
यिर्मयाह 25:12)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 26 – सच्चाई बोलने की कीमत

(Jeremiah 26 – The Cost of Speaking the Truth)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह की जान को खतरा है – क्यों? क्योंकि वह परमेश्वर का सच्चा संदेश सुनाता है, जो लोगों को पसंद नहीं आता। जब कोई सत्य बोलता है, तो वह अक्सर विरोध और खतरे का सामना करता है। लेकिन यह अध्याय यह भी दिखाता है कि परमेश्वर अपने सेवकों की रक्षा करता है। यह सिखाता है कि कैसे भविष्यवक्ता को कभी भी डरकर पीछे नहीं हटना चाहिए, भले ही भीड़ उसकी हत्या की मांग करे।


🔹 1-6 पद: मंदिर में कठोर संदेश

यदि तुम मेरी न सुनोगे... तो मैं इस मंदिर को शीलो के समान कर दूँगा।”

यिर्मयाह यहोवा के आदेश से मंदिर प्रांगण में जाकर संदेश सुनाता है।
वह चेतावनी देता है: यदि तुम न सुधरे तो यह स्थान शीलो (जहाँ कभी परमेश्वर का निवास था) की तरह उजाड़ हो जाएगा।
यह एक गंभीर चेतावनी है जो लोगों को बहुत चुभती है।

💡 सच्चा संदेश कभी-कभी कटु होता है, लेकिन यह ज़रूरी होता है।


🔹 7-11 पद: भविष्यद्वक्ता के विरुद्ध षड्यंत्र

इस मनुष्य को अवश्य मार डालना चाहिए!”

याजक, भविष्यवक्ता और आम लोग क्रोधित हो जाते हैं।
वे यिर्मयाह को देशद्रोही कहकर मार डालने की माँग करते हैं।
वे मंदिर का अपमान और अशुभ भविष्यवाणी को बर्दाश्त नहीं कर पाते।

💡 जब सच्चाई सामने आती है, तो अक्सर लोग उसे दबाने की कोशिश करते हैं।


🔹 12-15 पद: यिर्मयाह का साहसिक उत्तर

मैं तुम्हारे हाथ में हूँ... यदि तुम मुझे मार डालो तो निर्दोष का खून तुम्हारे सिर होगा।”

यिर्मयाह डरता नहीं; वह नम्रता से लेकिन दृढ़ता से कहता है कि वह परमेश्वर की आज्ञा से बोल रहा है।
वह खुद को जनता के निर्णय के सामने प्रस्तुत करता है, लेकिन वह सच्चाई से पीछे नहीं हटता।

💡 आत्मा से भरा हुआ सेवक जान की चिंता किए बिना सत्य बोलता है।


🔹 16-19 पद: यिर्मयाह की जान बचती है

यह मनुष्य यहोवा के नाम से हम से बात करता है... हमें उसे न मारना चाहिए।”

कुछ वरिष्ठ लोग और अधिकारी यिर्मयाह के पक्ष में खड़े होते हैं।
वे याद करते हैं कि कैसे पहले भी भविष्यद्वक्ता (जैसे मीकाह) ने चेतावनी दी थी।
राजा हिजकिय्याह ने उन बातों को माना और राष्ट्र को सुधार दिया — यही अब भी किया जा सकता है।

💡 इतिहास से सीखना समझदारी है – और जान बचा सकता है।


🔹 20-24 पद: उरिय्याह का दुखद अंत और यिर्मयाह की सुरक्षा

उरिय्याह मारा गया... पर अहीकाम के कारण यिर्मयाह की जान बची।”

एक अन्य भविष्यद्वक्ता उरिय्याह ने भी वही संदेश दिया, लेकिन डरकर मिस्र भाग गया।
राजा यहोयाकीम ने उसे मरवा डाला।
लेकिन यिर्मयाह को अहीकाम नामक अधिकारी का समर्थन मिला, जिससे उसकी जान बची।

💡 परमेश्वर अपने सेवकों की रक्षा करने के लिए सही समय पर सही लोगों को खड़ा करता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

सत्य बोलना आसान नहीं होता — इसमें साहस लगता है।
परमेश्वर का वचन बोलने वालों को विरोध सहना पड़ता है।
डरकर भागने से नहीं, डटे रहने से परमेश्वर की महिमा होती है।
कभी-कभी मनुष्य की दृष्टि में “हार” भी आत्मिक दृष्टि से “विजय” होती है।
परमेश्वर अपने सेवकों की रक्षा करता है, चाहे स्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।


📌 याद रखने योग्य वचन

यिर्मयाह ने कहा – यदि तुम मुझे मार डालो तो निर्दोष का खून तुम्हारे सिर होगा।”
(
यिर्मयाह 26:15)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 27 – आज्ञाकारिता या विरोध?

(Jeremiah 27 – Obedience or Rebellion?)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह एक अनोखा प्रतीकात्मक कार्य करता है—वह अपने गले में लकड़ी का जूआ (yoke) पहनता है। यह दिखाता है कि परमेश्वर ने विभिन्न देशों को बाबुल के अधीन कर दिया है, और यदि वे उसके अधीन नहीं होंगे, तो उन्हें दंड मिलेगा। यिर्मयाह सिखाता है कि कभी-कभी आज्ञा मानना ही सुरक्षा का मार्ग होता है—even if it feels like slavery.

यह अध्याय हमें सिखाता है कि हम परमेश्वर की योजना को नकारकर विपत्ति को न्योता देते हैं।


🔹 1-7 पद: प्रतीकात्मक संदेश – जूआ का बोझ

अपने गले में जूआ डाल और यह बात राष्ट्रों से कह।”

परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है कि वह लकड़ी का जूआ बनाकर अपने गले में पहने।
यह एक भविष्यवाणी है कि परमेश्वर ने बाबुल को कई राष्ट्रों का प्रभु बनाया है।
यहोवा का संदेश है – यदि ये राष्ट्र बाबुल के अधीन नहीं होंगे, तो वे नष्ट हो जाएंगे।

💡 परमेश्वर की आज्ञा का बोझ हल्का है, लेकिन विरोध का बोझ भारी पड़ता है।


🔹 8-11 पद: आज्ञा मानने की चेतावनी

जो राष्ट्र बाबुल की सेवा न करेगा, वह तलवार, अकाल और महामारी से नष्ट होगा।”

यिर्मयाह स्पष्ट करता है कि विरोध विनाश लाएगा।
झूठे भविष्यवक्ताओं से सावधान करें जो कहते हैं, “तुम स्वतंत्र रहोगे।”
वास्तव में, विनम्रता से अधीन होना ही सुरक्षा का मार्ग है।

💡 झूठी आशा शांति नहीं लाती; सत्य ही सुरक्षा देता है।


🔹 12-15 पद: यहूदा के राजा को निर्देश

बाबुल के राजा की सेवा करो और जीवित रहो।”

यिर्मयाह यह संदेश यहूदा के राजा और याजकों को भी देता है।
वह उन्हें आगाह करता है कि झूठे भविष्यवक्ता उन्हें भ्रमित कर रहे हैं।
सच्ची भक्ति का प्रमाण है – परमेश्वर की योजना को स्वीकार करना।

💡 आत्मिक समझ का मतलब है परमेश्वर की इच्छा को पहचानना – भले ही वह कठिन लगे।


🔹 16-22 पद: मंदिर के पात्रों के बारे में भविष्यवाणी

ये पात्र अब नहीं लौटेंगे, जब तक मैं उन्हें वापस न लाऊँ।”

झूठे भविष्यवक्ता दावा कर रहे थे कि बाबुल द्वारा लिए गए मंदिर के पवित्र पात्र जल्द ही वापस आ जाएंगे।
लेकिन यिर्मयाह कहता है – ऐसा नहीं होगा, बल्कि बाकी पात्र भी बाबुल चले जाएंगे।
परमेश्वर अपने समय पर उन्हें वापस लाएगा।

💡 परमेश्वर की योजना में देरी हो सकती है, लेकिन वह पूरी अवश्य होती है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

कभी-कभी आज्ञाकारिता का मार्ग सरल नहीं होता, लेकिन वही सुरक्षित होता है।
प्रतीकात्मक कार्य (जैसे जूआ पहनना) आत्मिक सच्चाइयों को गहराई से समझाते हैं।
झूठे भविष्यवक्ताओं से सावधान रहना ज़रूरी है – वे मीठी बातें कहकर नुकसान करते हैं।
परमेश्वर अपने समय पर सब कुछ बहाल करता है — धैर्य रखें।
आत्मिक दृष्टि यह पहचानने में है कि कब झुकना ही विजय है।


📌 याद रखने योग्य वचन

बाबुल के राजा की सेवा करो और जीवित रहो।”
(
यिर्मयाह 27:12)

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 28 – झूठे भविष्यवक्ता बनाम परमेश्वर का सत्य

(Jeremiah 28 – False Prophet vs God's Truth)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में एक झूठे भविष्यवक्ता हनन्याह का सामना यिर्मयाह से होता है। हनन्याह लोगों को दिलासा देता है कि बाबुल का शासन जल्द खत्म होगा और मंदिर के पात्र दो साल में लौट आएंगे। लेकिन परमेश्वर यिर्मयाह के द्वारा सच्चाई प्रकट करता है – न केवल हनन्याह की भविष्यवाणी झूठी है, बल्कि उसे इसका दंड भी मिलेगा।

यह अध्याय आज के युग में भी एक स्पष्ट चेतावनी है – मीठी बातों पर नहीं, सत्य पर विश्वास करो।


🔹 1-4 पद: हनन्याह की झूठी भविष्यवाणी

दो वर्ष के भीतर मैं बाबुल के राजा से सब कुछ वापस ले आऊँगा।”

हनन्याह, जो एक झूठा भविष्यवक्ता था, लोगों के सामने दावा करता है कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।
वह कहता है कि मंदिर के पवित्र पात्र और यहोयाकीन राजा भी वापस आ जाएंगे।
यह एक लोकप्रिय लेकिन झूठा संदेश था — जो लोगों को सच्चाई से भटका रहा था।

💡 लोकप्रियता हमेशा सच्चाई का प्रमाण नहीं होती।


🔹 5-9 पद: यिर्मयाह की उत्तरदाता प्रतिक्रिया

भविष्यवक्ता की सच्चाई तब प्रकट होती है, जब उसका वचन पूरा होता है।”

यिर्मयाह विनम्रता से कहता है, “काश ऐसा हो,” लेकिन फिर वह सच्चाई को दोहराता है।
वह एक सिद्धांत सिखाता है – सच्चा भविष्यवक्ता वही है, जिसकी बातें पूरी होती हैं।

💡 भविष्यवाणी की सच्चाई समय द्वारा प्रमाणित होती है, भावना या उत्साह से नहीं।


🔹 10-11 पद: यिर्मयाह का जूआ तोड़ा गया

हनन्याह ने यिर्मयाह के गले का जूआ तोड़ डाला।”

हनन्याह ने प्रतीकात्मक रूप से यिर्मयाह के गले से लकड़ी का जूआ तोड़ दिया, यह दिखाने के लिए कि बाबुल का जूआ भी टूट जाएगा।
लेकिन यह कार्य केवल दिखावा था – वह परमेश्वर के विरुद्ध जा रहा था।

💡 प्रतीकों का अपमान परमेश्वर के आदेश का अपमान है।


🔹 12-17 पद: परमेश्वर का न्याय – हनन्याह की मृत्यु

तू इस वर्ष मर जाएगा, क्योंकि तू ने परमेश्वर की ओर से नहीं कहा।”

परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा – अब लकड़ी के जूआ के स्थान पर लौह (iron) का जूआ होगा – अर्थात और भी कठोर बंधन।
हनन्याह को चेतावनी दी गई और उसी वर्ष उसकी मृत्यु हो गई।
यह परमेश्वर की गंभीर चेतावनी थी – झूठे भविष्यवक्ता न केवल स्वयं को, बल्कि दूसरों को भी नाश करते हैं।

💡 परमेश्वर का न्याय देर से आता है, लेकिन आता निश्चित है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

हर मीठी बात परमेश्वर की बात नहीं होती — सत्य को परखें।
सच्चा भविष्यवक्ता वही होता है जो परमेश्वर के वचन के अनुसार बोलता है।
झूठे भविष्यवक्ता लोगों को तात्कालिक सुकून देते हैं, लेकिन अंत में विनाश लाते हैं।
प्रतीकात्मक कार्यों के पीछे गहरा अर्थ होता है — उन्हें हल्के में न लें।
परमेश्वर का न्याय झूठ के विरुद्ध निश्चित है।


📌 याद रखने योग्य वचन

तू इस वर्ष मर जाएगा, क्योंकि तू ने यहोवा के विरुद्ध बलापूर्वक बातें की हैं।”
(
यिर्मयाह 28:16)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 29 – निर्वासन में आशा और झूठे भविष्यवक्ताओं के प्रति चेतावनी

(Jeremiah 29 – Hope in Exile & Warning Against False Prophets)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय यिर्मयाह द्वारा बाबुल में ले जाए गए यहूदी निर्वासितों को लिखे गए एक पत्र पर केंद्रित है। इसमें परमेश्वर का एक अद्भुत संदेश है – निर्वासन स्थायी नहीं है, आशा है!” लेकिन साथ ही परमेश्वर झूठे भविष्यवक्ताओं के प्रति चेतावनी भी देता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, परमेश्वर का उद्देश्य हमें आशा और भविष्य देना है।


🔹 1-7 पद: यिर्मयाह का पत्र – निर्वासन में जीवन जीने की शिक्षा

घर बनाओ, बाग लगाओ, विवाह करो… नगर की भलाई के लिए प्रार्थना करो।”

यिर्मयाह निर्वासितों से कहता है कि वे बाबुल में स्थायी रूप से बसें।
उन्हें कार्यशील रहना है, परिवार बसाना है, और नगर की भलाई के लिए प्रार्थना करनी है।
परमेश्वर कहता है: जहाँ तुम हो, वहीं फलो-फूलो

💡 जब परमेश्वर हमें कहीं भेजता है, वह वहाँ भी आशीष देने में सक्षम है।


🔹 8-9 पद: झूठे भविष्यवक्ताओं से सावधान रहने की चेतावनी

वे मेरे नाम से झूठी भविष्यवाणियाँ करते हैं; मैंने उन्हें नहीं भेजा।”

परमेश्वर स्पष्ट करता है कि कुछ लोग झूठे सपनों और शब्दों से लोगों को भ्रमित कर रहे हैं।
ऐसे लोग मनचाहा सुनाकर विश्वासियों को गुमराह करते हैं।

💡 मीठे झूठ से बेहतर है कड़वा सत्य।


🔹 10-14 पद: परमेश्वर की योजना और आशा का वादा

मैं तुम्हारी भलाई की ही योजना रखता हूँ... आशा और भविष्य देने के लिए।”

ये पद परमेश्वर के चरित्र को प्रकट करते हैं – वह न्याय करता है, परंतु दया से भरा है।
– 70
वर्षों के बाद वह अपने लोगों को वापस लाएगा।
प्रसिद्ध पद 11:

मैं तुम्हारे लिए जो योजना बनाए हूँ, उन्हें मैं जानता हूँ… आशा और भविष्य देने की।”

💡 परमेश्वर की योजना हमारी सोच से बड़ी और श्रेष्ठ होती है।


🔹 15-23 पद: झूठे भविष्यवक्ताओं के विरुद्ध न्याय की घोषणा

परमेश्वर झूठे प्रचारकों को दंड देने की बात करता है, जैसे अहाब और सिदकियाह
वह कहता है कि ऐसे लोग लोगों को पाप में गिराते हैं और परमेश्वर का नाम बदनाम करते हैं।

💡 सच्चा सेवक वही है जो पवित्रता और आज्ञाकारिता में चलता है।


🔹 24-32 पद: शेमायाह की साज़िश और परमेश्वर की प्रतिक्रिया

शेमायाह नामक व्यक्ति यिर्मयाह को चुप कराने का प्रयास करता है।

वह यिर्मयाह के विरुद्ध याजकों को भड़काता है।
लेकिन परमेश्वर स्वयं हस्तक्षेप करता है और शेमायाह को और उसके वंश को दंड देता है।

💡 जो परमेश्वर के सेवकों के विरुद्ध षड्यंत्र करता है, वह परमेश्वर से ही लड़ता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

जब हम निर्वासन (कठिन समय) में होते हैं, तब भी परमेश्वर हमारे साथ होता है।
हमें जहां परमेश्वर ने रखा है, वहां फलदायक जीवन जीना है।
झूठे वचनों और सपनों से सावधान रहो – सत्य को परखो।
परमेश्वर की योजना भले विलंबित लगे, लेकिन वह भलाई के लिए होती है।
जो परमेश्वर की योजना के विरुद्ध चलते हैं, वे न्याय का सामना करेंगे।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैं तुम्हारे लिए जो योजना बनाए हूँ, उन्हें मैं जानता हूँ... वे तुम्हें आशा और भविष्य देने के लिए हैं।”
(
यिर्मयाह 29:11)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 30 – बहाली और उद्धार का वादा

(Jeremiah 30 – Promise of Restoration and Deliverance)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय "शांति और आशा की किताब" की शुरुआत है (अध्याय 30–33)। परमेश्वर अपने लोगों के लिए बहाली, चंगाई और न्याय का संदेश देता है। वह कहता है कि हालांकि अभी पीड़ा है, लेकिन अंत में उद्धार और सम्मान मिलेगा। यह अध्याय बताता है कि परमेश्वर न केवल सज़ा देता है, बल्कि वह अपने प्रेम से पुनः स्थापित भी करता है।


🔹 1-3 पद: परमेश्वर का वादा – बंधुआई का अंत और बहाली

मैं अपने लोगों को उस देश में लौटा दूँगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।”

परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है कि वह इन वचनों को एक पुस्तक में लिखे।
वह वादा करता है कि इस्राएल और यहूदा दोनों को वह फिर से अपने देश में वापस लाएगा।

💡 परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को कभी नहीं भूलता।


🔹 4-7 पद: संकट का समय – लेकिन आशा भी है

यह महान संकट का समय है… परंतु याकूब को उससे बचा लिया जाएगा।”

यह समय अत्यंत पीड़ादायक होगा, जैसे प्रसव पीड़ा।
यह 'याकूब का संकट' कहलाता है – एक भविष्यवाणी जो मसीही अन्त-समय की ओर भी इशारा करती है।
लेकिन अंत में, परमेश्वर उद्धार देगा।

💡 संकट अस्थायी होते हैं, लेकिन परमेश्वर की दया स्थायी है।


🔹 8-11 पद: परमेश्वर का उद्धार और न्याय

मैं उनके जुए को तोड़ दूँगा… और वे फिर परदेसी की सेवा नहीं करेंगे।”

परमेश्वर वादा करता है कि वह अपने लोगों को दासता से छुड़ाएगा।
वे फिर केवल अपने परमेश्वर और अपने राजा दाऊद की सेवा करेंगे (यह मसीहा की ओर इशारा करता है)।
परमेश्वर दंड देता है, लेकिन “नाश नहीं करेगा” – यह न्याय में प्रेम का संतुलन दर्शाता है।

💡 परमेश्वर अनुशासन करता है, परन्तु कभी नष्ट नहीं करता।


🔹 12-17 पद: गहरे घाव – लेकिन परमेश्वर ही चंगाई देगा

तेरा घाव लाइलाज है… परंतु मैं तुझे चंगा करूंगा।”

यहूदी लोग अपने पापों और अपने नेताओं की गलती के कारण घायल हैं।
कोई उन्हें संभालने वाला नहीं है – सिवाय परमेश्वर के।
परमेश्वर वादा करता है कि वह उनके घावों को चंगा करेगा।

💡 हमारे गहरे घावों की चंगाई केवल परमेश्वर ही दे सकता है।


🔹 18-24 पद: यरूशलेम का पुनर्निर्माण और नेतृत्व की बहाली

उनका नगर फिर बसाया जाएगा… उनका सपूत उनमें प्रधान होगा।”

परमेश्वर कहता है कि नगर और मंदिर फिर से बनाए जाएँगे।
एक नया नेता (मसीह) आएगा जो परमेश्वर के करीब होगा।
परमेश्वर का क्रोध पापियों पर उतरेगा, लेकिन वह अपने लोगों को फिर से अपने पास लाएगा।

💡 परमेश्वर केवल पुनर्स्थापना नहीं करता – वह हमें अपनी उपस्थिति में लाता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर हमारी स्थिति कितनी भी खराब हो, उसे बहाल कर सकता है।
वह अपने अनुशासन में भी हमें नष्ट नहीं करता – बल्कि उद्धार की योजना तैयार करता है।
️ 'याकूब का संकट' हमें याद दिलाता है कि अन्त समय में भी परमेश्वर अपनी संतान को नहीं छोड़ता।
परमेश्वर घाव देता है, पर वही चंगाई भी लाता है।
अंत में, वह हमें पुनः बुलाकर अपने निकट लाता है – यह परमेश्वर की महिमा है!


📌 याद रखने योग्य वचन

तेरे घाव लाइलाज हैं… परन्तु मैं तुझे चंगा करूंगा।”
(
यिर्मयाह 30:12, 17)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 31 – नया वाचा और बहाली की प्रतिज्ञा

(Jeremiah 31 – Promise of a New Covenant and Restoration)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय परमेश्वर की गहरी करुणा, शाश्वत प्रेम, और एक नई वाचा (New Covenant) के प्रतिज्ञा की घोषणा करता है। यहाँ इस्राएल और यहूदा दोनों की आत्मिक और सामाजिक बहाली, और भविष्य में एक नवीन संबंध की बात होती है जो केवल नियमों पर नहीं, बल्कि दिल पर आधारित होगा।


🔹 1-6 पद: परमेश्वर का शाश्वत प्रेम और बहाली

मैंने तुझसे अनंतकाल से प्रेम किया है…”

परमेश्वर अपने लोगों को फिर से बुलाने और बहाल करने का वादा करता है।
कन्याओं, डफली और आनंद के गीतों के साथ लौटने की भविष्यवाणी होती है।
भविष्य में सामरिया फिर से फलदायक होगा और पहाड़ियों पर पुकार लगेगी: "आओ हम यहोवा की ओर चलें।"

💡 परमेश्वर का प्रेम अनंत है – वह हमें कभी नहीं छोड़ता।


🔹 7-14 पद: विजयी लौटाव और परमेश्वर का आनन्द

मैं उन्हें उत्तर देश से लाऊँगा… अंधे, लंगड़े, गर्भवती सभी आएँगे…”

वह हर प्रकार के लोगों को, जो तिरस्कृत थे, पुनः इकट्ठा करेगा।
वे रोते हुए आएँगे, लेकिन परमेश्वर उन्हें सांत्वना देगा और मार्ग दिखाएगा।
यहूदा को आनंद, उपहार और परमेश्वर की भलाई का अनुभव फिर से होगा।

💡 परमेश्वर सिर्फ स्थान नहीं लौटाता, वह दिल और गरिमा भी बहाल करता है।


🔹 15-17 पद: रACHEL का विलाप और आशा

रामाह में एक आवाज़ सुनी गई – रोना और बड़ा विलाप…”

यह पद माताओं के दुख को दर्शाता है जो अपने बच्चों के लिए रोती हैं (बाबुल के बंधुआई की पृष्ठभूमि में)।
यह पद मत्ती 2:18 में हेरोद के बच्चों की हत्या के संदर्भ में उद्धृत होता है।
लेकिन परमेश्वर कहता है – “तेरे आंसुओं का फल मिलेगा… तेरी संतान फिर अपने देश में आएगी।”

💡 परमेश्वर हर आँसू की गिनती करता है – और आशा प्रदान करता है।


🔹 18-22 पद: एफ्रैम की वापसी और प्रेम की पुकार

मैंने एफ्रैम को पुत्र के समान ताड़ना दी… लेकिन वह अब भी मेरा प्रिय है।”

एफ्रैम (उत्तरी इस्राएल) को पुत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है, उसके पश्चाताप पर।
परमेश्वर कहता है – "मैं उस पर फिर से दया करूंगा।"
एक नई और रहस्यमयी बात कही जाती है: “नारी पुरुष को घेर लेगी” – जिसे कुछ लोग मसीह के अद्भुत जन्म का संकेत मानते हैं।

💡 परमेश्वर की दया, पश्चाताप करने वालों के लिए सदैव खुली रहती है।


🔹 23-26 पद: यहूदा और यरूशलेम का पुनर्निर्माण

यहोवा तुझे फिर से बसाएगा… और तू फिर से आनंदित होगा।”

नगरों और पहाड़ियों पर फिर से जीवन और स्तुति की आवाज़ें सुनाई देंगी।
यिर्मयाह कहता है – “मैं जागा और मुझे मीठी नींद आई।” यह सपना भी सत्य के जैसा प्रतीत होता है।

💡 परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं हमारे सपनों से भी अधिक मधुर और सच्ची होती हैं।


🔹 27-30 पद: न्याय का सिद्धांत – व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी

हर कोई अपनी ही बुराई के कारण मरेगा।”

पहले की कहावत “पिता ने खट्टे अंगूर खाए, और बेटों के दाँत खट्टे हो गए” को अस्वीकार किया जाता है।
परमेश्वर स्पष्ट करता है कि हर कोई अपनी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी के अनुसार न्याय पाएगा।

💡 परमेश्वर न्याय में व्यक्तिगत होता है – हम सब अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी हैं।


🔹 31-34 पद: नई वाचा की भविष्यवाणी

मैं इस्राएल के घराने और यहूदा के घराने के साथ एक नई वाचा करूँगा…”

यह अद्भुत खंड भविष्य के उस समय की बात करता है जब परमेश्वर नियमों को तख्तियों पर नहीं, मन और हृदय में लिखेगा।
सब परमेश्वर को जानेंगे – छोटे से लेकर बड़े तक।
यह वाचा पापों को पूरी तरह माफ कर देगी।

👉 यह नई वाचा मसीह यीशु के द्वारा पूरी होती है (इब्रानियों 8:8–12)

💡 परमेश्वर बाहरी आज्ञाओं से आगे बढ़कर दिलों पर राज करना चाहता है।


🔹 35-40 पद: परमेश्वर की प्रतिज्ञा अडिग है

यदि आकाश की माप और पृथ्वी की गहराई मापी जा सके… तब ही मैं इस्राएल को त्यागूंगा।”

परमेश्वर बताता है कि जैसे आकाश और पृथ्वी स्थिर हैं, वैसे ही उसकी प्रतिज्ञाएं स्थिर हैं।
यरूशलेम फिर से बनाया जाएगा – और यह “कभी नष्ट न होगा।”

💡 परमेश्वर की वाचा और वचन अनंत हैं – कोई उन्हें मिटा नहीं सकता।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर का प्रेम अनंतकाल का है – वह हमें कभी नहीं छोड़ता।
रोना और दुःख अस्थायी हैं – परमेश्वर आशा देता है।
नई वाचा का वादा हमें यीशु की ओर इंगित करता है – जिसमें सच्ची क्षमा और अंतरंगता है।
परमेश्वर का उद्देश्य केवल बहाली नहीं, बल्कि रिश्ते की गहराई है।
हर व्यक्ति की ज़िम्मेदारी उसकी अपनी है – और परमेश्वर का न्याय निष्पक्ष है।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैंने तुझसे अनंतकाल से प्रेम किया है, इस कारण मैं तुझ पर करुणा करता आया हूँ।”
(
यिर्मयाह 31:3)

मैं उनकी बुराई क्षमा करूँगा और उनके पापों को फिर स्मरण न करूँगा।”
(
यिर्मयाह 31:34)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 32 – विश्वास का कार्य और परमेश्वर की योजना

(Jeremiah 32 – An Act of Faith and God’s Sovereign Plan)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह को एक अनोखा काम करने के लिए कहा जाता है — जब यरूशलेम दुश्मनों से घिरा होता है, तब वह एक खेत खरीदता है। यह परमेश्वर के भविष्य के बहाल करने वाले कार्य पर गहरी आशा और विश्वास को दर्शाता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि परमेश्वर का दृष्टिकोण हमसे बहुत बड़ा और दीर्घकालिक होता है।


🔹 1-5 पद: यिर्मयाह बंदीगृह में और राजा का विरोध

राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह को घर में बंद कर दिया था...”

यह अध्याय उस समय घटता है जब बाबुल की सेना यरूशलेम को घेरे हुए थी।
राजा सिदकिय्याह यिर्मयाह से नाराज है क्योंकि वह बार-बार यह भविष्यवाणी करता है कि बाबुल राजा आएगा और यरूशलेम को जीत लेगा।

💡 सच्चा सेवक वह होता है जो विरोध के बावजूद सत्य बोले।


🔹 6-15 पद: यिर्मयाह खेत खरीदता है – आशा का कार्य

खेत खरीद, क्योंकि तुझे उसका छुड़ानेवाला कुटुंबी कहा जाएगा।”

परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है कि वह अपने रिश्तेदार का खेत खरीदे।
वह सभी दस्तावेज़ों को कानूनन तरीके से सुरक्षित करता है।
इसका अर्थ है: भविष्य में फिर से लोग इस देश में खरीद-फरोख्त करेंगे।”

💡 परमेश्वर हमें निराशा में भी आशा के कार्य करने को कहता है।


🔹 16-25 पद: यिर्मयाह की प्रार्थना – परमेश्वर की महिमा और चिंता

हे प्रभु यहोवा! तू ने अपनी बड़ी शक्ति और बाहु के बल से आकाश और पृथ्वी को बनाया है।”

यिर्मयाह पहले परमेश्वर की सामर्थ्य, इतिहास और दया की प्रशंसा करता है।
फिर वह पूछता है – “जब नगर विनाश के कगार पर है, तब खेत खरीदने का क्या अर्थ है?”

💡 विश्वास का कार्य करने के बाद भी सवाल उठ सकते हैं – और परमेश्वर सुनता है।


🔹 26-35 पद: परमेश्वर का उत्तर – न्याय उचित है

क्या मेरे लिए कोई बात कठिन है?”

परमेश्वर कहता है कि उसकी सामर्थ्य असीमित है।
परंतु इस्राएल ने मूर्तिपूजा और पापों से उसकी दया को ठुकराया।
विशेष रूप से, बच्चों की बलि और बैअल की पूजा के कारण यह न्याय आ रहा है।

💡 परमेश्वर कृपालु है, लेकिन वह न्याय से समझौता नहीं करता।


🔹 36-44 पद: बहाली का प्रतिज्ञा – नया मन, नया संबंध

मैं उन्हें एक ही मन और एक ही चाल चलने की रीति दूँगा...”

परमेश्वर कहता है कि वह अपने लोगों को फिर से इकट्ठा करेगा।
वह उनके साथ शाश्वत वाचा बाँधेगा।
खेत फिर से खरीदे और बेचे जाएंगे — जीवन बहाल होगा।

💡 परमेश्वर केवल दंड नहीं देता, वह बहाली की भी योजना रखता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर हमें आशा के साथ कदम उठाने को कहता है, भले ही परिस्थितियाँ निराशाजनक हों।
हमारी प्रार्थना में ईमानदारी और सवाल हो सकते हैं – परमेश्वर उत्तर देता है।
परमेश्वर न्याय में कठोर और बहाली में करुणामय है।
परमेश्वर की दृष्टि हमसे बड़ी है – वह भविष्य देखता है।
विश्वास का कार्य, दूसरों को परमेश्वर की योजना पर भरोसा करने की प्रेरणा देता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

हे प्रभु यहोवा! देख, तू ने अपनी बड़ी शक्ति और बाहु के बल से आकाश और पृथ्वी को बनाया है; और तेरे लिए कोई काम कठिन नहीं है।”
(
यिर्मयाह 32:17)

फिर इस देश में खेतों की खरीदी-बिक्री की जाएगी...”
(
यिर्मयाह 32:43)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 33 – बहाली की प्रतिज्ञा और मसीह की भविष्यवाणी

(Jeremiah 33 – Promise of Restoration and Prophecy of the Messiah)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय आशा से भरा है। जब यरूशलेम संकट में है, तब परमेश्वर नबी यिर्मयाह को एक अद्भुत संदेश देता है – वह फिर से अपने लोगों को बहाल करेगा। इस अध्याय में न केवल राष्ट्र की बहाली की बात होती है, बल्कि एक आने वाले धर्मी राजा (मसीह) की भी भविष्यवाणी की जाती है। यह अध्याय परमेश्वर की करुणा, वाचा की निष्ठा और भविष्य की महिमा को प्रकट करता है।


🔹 1-3 पद: बंदीगृह में भी परमेश्वर का वचन

यहोवा ने यिर्मयाह से दूसरी बार कहा जब वह अभी राजमहल के आंगन में बंदी था…”

यिर्मयाह बंदीगृह में है, फिर भी परमेश्वर उससे बात करता है।
परमेश्वर कहता है: “मुझे पुकार, और मैं तुझे उत्तर दूँगा।”
वह ऐसे महान और गूढ़ काम प्रकट करेगा जिन्हें यिर्मयाह नहीं जानता।

💡 कठिनाई के समय भी परमेश्वर का वचन और उत्तर मिलता है।


🔹 4-9 पद: नगर का विनाश और फिर बहाली

इस नगर को तोड़ा जाएगा, पर मैं उन्हें चंगा करूंगा और शांति दूंगा।”

यरूशलेम को विध्वंस का सामना करना पड़ेगा।
लेकिन उसके बाद, परमेश्वर चंगाई, क्षमा और समृद्धि देगा।
सब राष्ट्र देखेंगे कि परमेश्वर ने अपने लोगों पर दया की है।

💡 परमेश्वर के न्याय के बाद बहाली निश्चित है।


🔹 10-13 पद: नगर में फिर से जीवन की आवाज़ें

जहाँ अब सुनसान है... वहाँ फिर से हर्ष और आनन्द की ध्वनि सुनाई देगी।”

अब जो स्थान वीरान हैं, वहाँ फिर से विवाह, पूजा और धन्यवाद की आवाजें गूंजेंगी।
चरवाहे अपने झुंडों को फिर से चराएंगे – एक सामान्य, समृद्ध जीवन लौटेगा।

💡 परमेश्वर की बहाली व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों होती है।


🔹 14-18 पद: मसीहा की भविष्यवाणी – धर्मी शाखा

मैं दाऊद के लिये एक धर्मी शाखा उत्पन्न करूंगा...”

परमेश्वर एक नया राजा लाएगा जो दाऊद के वंश से होगा।
वह न्याय और धर्म से राज्य करेगा — यह मसीह येशु की स्पष्ट भविष्यवाणी है।
यरूशलेम का नाम होगा: “यहोवा हमारी धार्मिकता है (Jehovah Tsidkenu)।”

💡 मसीह ही हमारी सच्ची धार्मिकता और आशा हैं।


🔹 19-26 पद: परमेश्वर की वाचा अटल है

यदि तुम मेरे दिन और रात के नियम को तोड़ सको... तभी मेरी दाऊद से की गई वाचा टूटेगी।”

परमेश्वर कहता है कि जैसे दिन और रात का क्रम नहीं टूटता, वैसे ही उसकी वाचा भी नहीं टूटेगी।
दाऊद का वंश और लेवीय याजक सदा तक बने रहेंगे।
परमेश्वर अपने लोगों को फिर से स्वीकार करेगा।

💡 परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति निष्ठावान है — सदा।


इस अध्याय से क्या सिखें?

जब जीवन में सब कुछ उजड़ता दिखे, तब भी परमेश्वर बहाली की योजना बना रहा होता है।
परमेश्वर कठिन परिस्थितियों में भी अपने लोगों से बात करता है – हमें उसे पुकारना है।
मसीह ही हमारी धार्मिकता, न्याय और आशा हैं – वही परमेश्वर की अंतिम प्रतिज्ञा हैं।
परमेश्वर की वाचा अडिग है – वह अपने वचनों को कभी नहीं भूलता।
बंदीगृह, विनाश या संकट – कुछ भी परमेश्वर की योजना को रोक नहीं सकता।


📌 याद रखने योग्य वचन

मुझे पुकार, और मैं तुझे उत्तर दूँगा, और महान और गूढ़ बातें तुझ को बताऊंगा, जिन्हें तू नहीं जानता।”
(
यिर्मयाह 33:3)

उस समय मैं दाऊद के लिए एक धर्मी शाखा उत्पन्न करूंगा... और उसका नाम यहोवा हमारी धार्मिकता होगा।”
(
यिर्मयाह 33:15-16)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 34 – आज्ञा का उल्लंघन और परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 34 – Disobedience and Divine Judgment)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय यहूदा के राजा सिदकिय्याह और यरूशलेम के नेताओं के लिए परमेश्वर की चेतावनी लेकर आता है। परमेश्वर उन्हें कहता है कि बाबुल की सेना यरूशलेम को ले लेगी। इस अध्याय में एक विशेष घटना का वर्णन है: लोगों ने गुलामों को मुक्त करने की प्रतिज्ञा तो की, लेकिन फिर अपने वचन से पीछे हट गए। परमेश्वर इस वाचा-भंग पर गंभीर न्याय की घोषणा करता है।


🔹 1-7 पद: सिदकिय्याह के लिए भविष्यवाणी

बाबुल का राजा यरूशलेम और यहूदा के नगरों से युद्ध कर रहा है…”

परमेश्वर यिर्मयाह के द्वारा राजा सिदकिय्याह से कहता है कि वह बाबुल के हाथों पकड़ा जाएगा।
यद्यपि वह तलवार से नहीं मरेगा, लेकिन बंदी बनकर बाबुल जाएगा।
वह अपने पुरखाओं की तरह शांतिपूर्वक मरेगा, पर पराजित होकर।

💡 भविष्य की घटनाएँ स्पष्ट हैं, पर परमेश्वर फिर भी सिदकिय्याह को संदेश देता है – शायद वह पश्चाताप करे।


🔹 8-11 पद: गुलामों की स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा

राजा और प्रजा ने एक वाचा बाँधी कि वे अपने इब्री दासों को छोड़ देंगे…”

यहूदी नेताओं ने गुलामों को आज़ाद करने की प्रतिज्ञा की — जो मूसा की व्यवस्था में पहले से आज्ञा थी (देखें व्यवस्थाविवरण 15:12)
उन्होंने वाचा की, परमेश्वर के भवन में, और उन्हें मुक्त किया।

💡 एक पवित्र संकल्प – लेकिन आधे मन से।


🔹 12-16 पद: वाचा का उल्लंघन

तुमने अपने दासों और दासियों को फिर से पकड़ लिया…”

थोड़े समय बाद उन्होंने अपने पूर्व गुलामों को दोबारा पकड़ लिया और गुलामी में वापस कर लिया।
यह परमेश्वर के सामने विश्वासघात था।
उन्होंने न केवल लोगों को, बल्कि परमेश्वर की वाचा को भी तुच्छ जाना।

💡 जब लोग अपने लाभ के लिए पवित्र वचनों को तोड़ते हैं, तो परमेश्वर उस पर चुप नहीं रहता।


🔹 17-22 पद: परमेश्वर का न्याय – “मैं तुम्हें स्वतंत्र कर दूँगा…”

तुमने अपने भाइयों को मुक्त नहीं किया, इसलिए मैं तुम्हें तलवार, महामारी और अकाल के लिए मुक्त करता हूँ…”

परमेश्वर कहता है, “जैसे तुमने लोगों को स्वतंत्र नहीं किया, वैसे ही अब मैं तुम्हें मृत्यु और विनाश के लिए छोड़ता हूँ।”
वह उन्हें बाबुल के राजा के सामने समर्पित करेगा।
उनके नगर नष्ट हो जाएंगे, और देश वीरान होगा।

💡 जो वाचा को तोड़ते हैं, वे परमेश्वर की सुरक्षा से बाहर हो जाते हैं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

वचनों और वाचाओं को हल्के में लेना परमेश्वर के सामने बहुत बड़ा अपराध है।
जब हम स्वार्थ के कारण परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ते हैं, तो न्याय निश्चित होता है।
सच्चा पश्चाताप वह होता है जो टिकाऊ हो – केवल भावनात्मक नहीं, व्यवहारिक भी।
परमेश्वर दयालु है, लेकिन वह न्यायी भी है – वह बेवफाई को नजरअंदाज नहीं करता।
परमेश्वर अपने लोगों से ईमानदारी, करुणा और आज्ञाकारिता की अपेक्षा करता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

तुमने अपने दासों को छोड़ दिया, पर उन्हें फिर पकड़ लिया... इसलिये यहोवा कहता है, अब मैं तुम्हें तलवार, महामारी और अकाल के लिये छोड़ता हूँ।”
(
यिर्मयाह 34:17)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 35 – रेकाबी लोगों की आज्ञाकारिता और यहूदा की अवज्ञा

(Jeremiah 35 – The Obedience of the Rechabites and Judah's Disobedience)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है: रेकाबी नामक एक परिवार की आज्ञाकारिता को यहूदा की अवज्ञा के सामने रखा गया है। परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है कि वह इस परिवार की आज्ञाकारिता को जनता के सामने उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करे। यह अध्याय हमें दिखाता है कि कैसे एक सांसारिक पिता की आज्ञा का पालन करने वाला परिवार, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अवज्ञा को उजागर करता है।


🔹 1-2 पद: परमेश्वर का निर्देश

रेकाबियों के घराने को बुला और उन्हें यहोवा के भवन में दाखिल कर, दाखमधु पिलाने के लिए रख।”

यिर्मयाह को आदेश मिला कि वह रेकाबी लोगों को मंदिर में ले जाए और उन्हें दाखमधु (अंगूर की शराब) पिलाए।

💡 यह एक परीक्षण था, परमेश्वर की योजना के अनुसार।


🔹 3-11 पद: रेकाबी लोगों की आज्ञाकारिता

हम दाखमधु नहीं पिएंगे, क्योंकि हमारे पूर्वज योनादाब ने हमें यह आज्ञा दी थी…”

उन्होंने यिर्मयाह से स्पष्ट कहा कि वे दाखमधु नहीं पिएंगे, क्योंकि उनके पूर्वज योनादाब ने उन्हें यह आज्ञा दी थी।
उन्होंने केवल शराब नहीं, बल्कि घर बनाना, बीज बोना, दाख की खेती करना – ये सब भी त्याग दिया था, केवल तंबुओं में रहते थे।
उन्होंने अपने पूर्वज की आज्ञा को पीढ़ी दर पीढ़ी निभाया।

💡 उनकी यह आज्ञाकारिता उनकी निष्ठा और आत्म-अनुशासन को दर्शाती है।


🔹 12-17 पद: यहूदा की अवज्ञा

मैंने तुम से बार-बार कहा, ‘मुझसे डर कर चलो,’ पर तुमने न सुना।”

परमेश्वर तुलना करता है: रेकाबी लोग अपने मानव पिता की बात मानते हैं, लेकिन इस्राएल – जिनका पिता स्वर्गीय परमेश्वर है – उसकी बात नहीं मानते।
उन्होंने भविष्यद्वक्ताओं को, चेतावनियों को, और वचन को तुच्छ जाना।
परिणामस्वरूप, परमेश्वर न्याय लाने की घोषणा करता है।

💡 यह तुलना हमें चुनौती देती है: क्या हम परमेश्वर की बात को प्राथमिकता देते हैं?


🔹 18-19 पद: रेकाबी लोगों को आशीर्वाद

रेकाबियों के वंशजों में से कोई जन सदा मेरे सम्मुख खड़ा रहेगा।”

परमेश्वर रेकाबी लोगों की आज्ञाकारिता से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देता है।
उनके वंश का कोई व्यक्ति सदा परमेश्वर के सामने सेवा करता रहेगा – यह एक अद्भुत प्रतिज्ञा है।

💡 जो आज्ञा मानते हैं, वे परमेश्वर के सामने आदरणीय होते हैं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

सांसारिक पिता की आज्ञा मानने वाले रेकाबी, स्वर्गीय पिता की अवज्ञा करने वाले यहूदी नेताओं के लिए एक जीवित चुनौती बने।
परमेश्वर आज भी ऐसे लोगों को खोजता है जो वफादारी और अनुशासन से जीवन जीते हैं।
वाचा, प्रतिबद्धता और परंपराएं अगर सही तरीके से निभाई जाएं, तो वे महान आत्मिक गवाही बनती हैं।
आज्ञाकारिता सिर्फ शब्दों में नहीं, जीवनशैली में दिखनी चाहिए।
परमेश्वर वफादारों को न भूलने वाला परमेश्वर है – वह उन्हें आशीर्वाद देता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

रेकाबियों के वंशजों में से कोई जन सदा मेरे सम्मुख खड़ा रहेगा।”
(
यिर्मयाह 35:19)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 36 – यिर्मयाह की पुस्तक और यहोयाकीम का अभिमान

(Jeremiah 36 – The Scroll of Jeremiah and the Pride of Jehoiakim)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय परमेश्वर के वचन की शक्ति और मनुष्यों की प्रतिक्रिया को दर्शाता है। यिर्मयाह को परमेश्वर की ओर से एक स्क्रॉल (पुस्तक) लिखने का निर्देश मिलता है जिसमें पिछले वर्षों की सभी भविष्यवाणियाँ संकलित हों। लेकिन राजा यहोयाकीम उस वचन को तुच्छ समझता है और उसे जलाकर परमेश्वर की अवज्ञा करता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि चाहे कोई वचन को जला दे, परमेश्वर का उद्देश्य कभी रुकता नहीं।


🔹 1-4 पद: वचन को लिखने की आज्ञा

परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा: जो बातें मैंने तुझसे बोली हैं, उन्हें एक पुस्तक में लिख।”

यहोयाकीम के शासन के चौथे वर्ष में परमेश्वर ने यिर्मयाह को निर्देश दिया कि वह अपने सभी संदेशों को एक स्क्रॉल (scroll) में लिखे।
यिर्मयाह ने बारूक को बुलाकर उसे यह सब लिखवाया।

💡 यह हमें परमेश्वर के वचन को संजोने और प्रचार करने की गंभीरता सिखाता है।


🔹 5-10 पद: बारूक द्वारा वचन का पाठ

यिर्मयाह खुद मंदिर नहीं जा सका, इसलिए उसने बारूक को भेजा।
बारूक ने वह स्क्रॉल उपवास के दिन मंदिर में लोगों को पढ़कर सुनाया।

💡 उपवास के दिन यह वचन पढ़ा गया — परमेश्वर ने समय को बहुत सूझ-बूझ से चुना।


🔹 11-19 पद: अधिकारियों की प्रतिक्रिया

शाफान का पुत्र मीकायाह, और अन्य उच्च अधिकारी इस वचन को सुनते हैं और भयभीत होते हैं।
वे बारूक से पूछते हैं कि यह वचन कैसे लिखा गया — बारूक बताता है कि यिर्मयाह ने यह सब कहा और उसने लिखा।

💡 वे गंभीर थे, लेकिन डर के कारण यिर्मयाह और बारूक को छिप जाने को कहते हैं।


🔹 20-26 पद: राजा की अवज्ञा

राजा ने जैसे ही तीन-चार पंक्तियाँ सुनीं, उसने उसे चाकू से काट डाला और आग में डाल दिया।”

राजा यहोयाकीम ने परमेश्वर के वचन को तुच्छ समझा और पूरे स्क्रॉल को आग में जला डाला।
किसी ने भी उसे नहीं रोका — यह दर्शाता है कि राजा का हृदय कठोर था।
उसने यिर्मयाह और बारूक को पकड़ने का आदेश दिया, पर परमेश्वर ने उन्हें छिपा लिया।

💡 वचन को न मानना और उसका तिरस्कार करना परमेश्वर के न्याय को आमंत्रित करता है।


🔹 27-32 पद: वचन का फिर से लेखन

फिर यहोवा का वचन यिर्मयाह पर उतरा: फिर से वही सब बातें लिख।”

परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा कि वह फिर से वही स्क्रॉल लिखवाए, और उसमें यहोयाकीम के खिलाफ एक नया संदेश भी जोड़े।
यहोयाकीम को बताया गया कि उसके वंश का कोई भी सिंहासन पर नहीं बैठेगा।

💡 वचन जल सकता है, पर परमेश्वर का उद्देश्य नहीं। वह फिर से उत्पन्न होता है और और भी शक्तिशाली होता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर का वचन शाश्वत है – वह जलाया जा सकता है, पर मिटाया नहीं जा सकता।
जब हम परमेश्वर के वचन को तुच्छ समझते हैं, तो हम अपने जीवन में न्याय को आमंत्रित करते हैं।
राजा यहोयाकीम की तरह अहंकारी व्यवहार अंततः विनाश का कारण बनता है।
परमेश्वर अपने सेवकों की रक्षा करता है – यिर्मयाह और बारूक सुरक्षित रहे।
अधिकारियों को सच्चाई का भय था, लेकिन राजा ने उसे पूरी तरह अनदेखा किया — यह हमें निर्णय लेने में विवेक की आवश्यकता सिखाता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

फिर तू यरूशलेम और यहूदा के सब निवासियों के लिए वही सब वचन लिख जो पहले की पुस्तक में थे।”
(
यिर्मयाह 36:28)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 37 – ज़िदक्या का डर और यिर्मयाह की गिरफ़्तारी

(Jeremiah 37 – Zedekiah’s Fear and Jeremiah’s Arrest)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में हम ज़िदक्या राजा की कमजोर नेतृत्व क्षमता, उसके दोहरे व्यवहार और यिर्मयाह के प्रति शंका को देखते हैं। यिर्मयाह परमेश्वर का स्पष्ट वचन सुनाता है, लेकिन लोग उसे झूठा ठहराकर बंदी बना लेते हैं। यह अध्याय हमें बताता है कि जब हम सच्चाई को दबाते हैं या उससे डरते हैं, तो हम खुद को नुकसान पहुँचाते हैं।


🔹 1-2 पद: ज़िदक्या का राज्यारोहण

योशिय्याह का पुत्र ज़िदक्या, यहोयाकीम के बाद यहूदा का राजा बना।
पर न तो वह और न ही उसके अधिकारी और लोग यहोवा की बातों को मानते थे जो यिर्मयाह ने कही थीं।

💡 नया राजा, पुरानी गलती – वचन की अवज्ञा।


🔹 3-5 पद: छुपे हुए आश्वासन की तलाश

ज़िदक्या ने यिर्मयाह से प्रार्थना के लिए आग्रह किया।
मिस्र की सेना बाबिल से लड़ने के लिए निकली, तो बाबिली सेना यरूशलेम से हट गई।

💡 ज़िदक्या को लगता है कि शायद अब खतरा टल गया – लेकिन परमेश्वर का संदेश कुछ और था।


🔹 6-10 पद: झूठी आशा को तोड़ने वाला वचन

बाबिल की सेना फिर लौटकर इस नगर को जला देगी।”

परमेश्वर यिर्मयाह को कहता है कि वह ज़िदक्या को सच बताए – बाबिल लौटेगा और नगर को जला देगा।
परमेश्वर ने स्पष्ट किया कि मिस्र मदद नहीं कर पाएगा।

💡 कभी-कभी परमेश्वर की सच्चाई हमारी आशाओं से मेल नहीं खाती – लेकिन वही सच्ची होती है।


🔹 11-15 पद: यिर्मयाह की झूठे आरोप में गिरफ्तारी

जब बाबिल की सेना थोड़े समय के लिए हट गई, यिर्मयाह यBenjamin द्वार से बाहर जा रहा था।
एक पहरेदार ने उस पर बाबिलियों की ओर भागने का झूठा आरोप लगाया और उसे अधिकारियों के पास ले गया।
अधिकारियों ने उसे पीटा और बंदीगृह (कारागार) में डाल दिया।

💡 सच्चाई बोलने वालों पर अक्सर झूठे आरोप लगते हैं – यह यिर्मयाह के साथ बार-बार होता है।


🔹 16-21 पद: ज़िदक्या की छुपी चिंता और यिर्मयाह को रोटी

ज़िदक्या ने चुपचाप यिर्मयाह को बुलाया और पूछा कि “क्या कोई वचन है?”
यिर्मयाह ने कहा, “हाँ, तुम बाबिल के हाथ में दिए जाओगे।”
यिर्मयाह ने अपील की कि उसे कारागार में न डाला जाए।
राजा ने उसे राजमहल के आंगन में रखा और नियमित रूप से रोटी देने की व्यवस्था की जब तक रोटी शहर में रही।

💡 ज़िदक्या को सच्चाई की समझ थी, लेकिन वह उसमें चलने की हिम्मत नहीं रखता था।


इस अध्याय से क्या सिखें?

कभी-कभी सच्चे भविष्यवक्ताओं को झूठे आरोपों और पीड़ा का सामना करना पड़ता है।
डर और समझौता हमें सच्चाई से दूर कर सकता है – ज़िदक्या इसका उदाहरण है।
परमेश्वर का वचन लोगों की उम्मीदों के खिलाफ जा सकता है, लेकिन वही यथार्थ होता है।
जब भी संकट में हों, परमेश्वर के सेवक की सलाह लेना बुद्धिमानी है – लेकिन उस पर चलना उससे भी अधिक ज़रूरी है।
सच्चाई का दमन अस्थायी हो सकता है, लेकिन उसका प्रभाव स्थायी होता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

क्या यहोवा की ओर से कोई वचन है? यिर्मयाह ने उत्तर दिया, हाँ है।”
(
यिर्मयाह 37:17)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 38 – यिर्मयाह का कुएँ में फेंका जाना और ज़िदक्या से गुप्त वार्ता

(Jeremiah 38 – Jeremiah Thrown into a Cistern and the Secret Conversation with Zedekiah)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय एक सच्चे भविष्यवक्ता की पीड़ा और राजा की कमजोर इच्छा को उजागर करता है। यिर्मयाह को कुएँ में फेंका जाता है क्योंकि वह अप्रिय सत्य बोलता है, लेकिन एक इथियोपियाई सेवक के द्वारा परमेश्वर उसे बचाता है। ज़िदक्या यिर्मयाह से गुप्त रूप से परमेश्वर की बात पूछता है लेकिन डर के कारण उसपर चलने से कतराता है।


🔹 1-6 पद: यिर्मयाह को कुएँ में फेंका गया

यिर्मयाह ने कहा कि जो बाबिलियों के पास समर्पण करेगा, वह जीवित रहेगा।
अधिकारियों को यह बात बगावत जैसी लगी और उन्होंने राजा से अनुमति लेकर यिर्मयाह को राजमहल के आंगन से निकालकर एक गहरे, कीचड़ भरे कुएँ में फेंक दिया।
वह कुएँ में डूब गया, लेकिन मरने नहीं दिया गया।

💡 जब हम लोगों को नापसंद आनेवाली सच्चाई बताते हैं, वे अक्सर हमें "चुप" करवाना चाहते हैं।


🔹 7-13 पद: एबेद-मेलेक की साहसिक मदद

एबेद-मेलेक नामक एक इथियोपियाई सेवक ने राजा से निवेदन किया कि यिर्मयाह निर्दोष है और कुएँ में मारा जाएगा।
राजा ने अनुमति दी, और एबेद-मेलेक ने पुराने कपड़ों और रस्सी की मदद से यिर्मयाह को कुएँ से बाहर निकाला।

💡 परमेश्वर कभी-कभी अजनबियों के द्वारा भी अपने लोगों की रक्षा करता है।


🔹 14-23 पद: ज़िदक्या और यिर्मयाह की गुप्त वार्ता

ज़िदक्या ने यिर्मयाह को गुप्त रूप से बुलाया और पूछा कि क्या कोई वचन है।
यिर्मयाह ने कहा: यदि तू बाबिल के अधिकारियों के सामने समर्पण करेगा, तो तेरा जीवन और नगर दोनों बच जाएंगे।
यदि नहीं करेगा, तो तुझे बाबिल के हाथ में दे दिया जाएगा और नगर जला दिया जाएगा।
ज़िदक्या ने डर जताया कि यहूदी जो पहले ही बाबिलियों के पास चले गए हैं, वे उसे ताना मारेंगे।
यिर्मयाह ने कहा – “उनसे मत डर, बस आज्ञाकारी बन।”
ज़िदक्या ने यिर्मयाह को आदेश दिया कि यह वार्ता गुप्त रहे।

💡 ज़िदक्या को सत्य पता था, पर वह लोगों से डरता था। सच्चाई पर चलने के लिए साहस चाहिए।


🔹 24-28 पद: यिर्मयाह वापस आंगन में

राजा ने अधिकारियों को यह कहकर बहला दिया कि यिर्मयाह ने उससे प्रार्थना की थी।
यिर्मयाह ने किसी को असली वार्ता नहीं बताई।
वह राजमहल के आंगन में तब तक रहा जब तक यरूशलेम पर कब्ज़ा न हुआ।

💡 कभी-कभी परमेश्वर की योजना को पूरा करने के लिए मौन रहना भी आवश्यक होता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

सच्चाई बोलने वालों को अक्सर सताया जाता है – लेकिन परमेश्वर उनकी रक्षा करता है।
एबेद-मेलेक जैसा साहसी सेवक होना अनमोल है – जो सच्चाई के लिए खड़ा हो।
परमेश्वर का वचन स्पष्ट होता है – लेकिन अक्सर हम डर और दबाव के कारण उसपर नहीं चलते।
राजा ज़िदक्या की तरह दोहरेपन से बचें – सच्चाई को जानकर भी उसपर न चलना दुखद परिणाम लाता है।
परमेश्वर के सेवकों के लिए सही समय पर बोलना और चुप रहना – दोनों का संतुलन आवश्यक है।


📌 याद रखने योग्य वचन

यदि तू बाबिल के राजा के हाकिमों के पास निकल जाए, तो तेरा प्राण बचेगा।”
(
यिर्मयाह 38:17)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 39 – यरूशलेम पर कब्ज़ा और ज़िदक्या का दुखद अंत

(Jeremiah 39 – The Fall of Jerusalem and the Tragic End of Zedekiah)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय यरूशलेम की दुखद घड़ी को दर्शाता है – जब बाबिल की सेना ने नगर को जीत लिया। ज़िदक्या का भागना, उसका पकड़ा जाना, और उसके पुत्रों की मृत्यु जैसी घटनाएं इस अध्याय को बहुत मार्मिक और चेतावनी से भरा बनाती हैं। वहीं, यिर्मयाह और एबेद-मेलेक के लिए परमेश्वर की सुरक्षा और प्रतिफल दिखाई देता है।


🔹 1-3 पद: यरूशलेम का पतन

बाबिल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने यरूशलेम को घेरे रखा और 11वें वर्ष में शहर की दीवारें तोड़ दी गईं।
बाबिल के प्रमुख अधिकारी नगर के बीचवाले फाटक में बैठ गए — यह उनकी जीत की सार्वजनिक घोषणा थी।

💡 जब परमेश्वर की चेतावनियों को बार-बार अनदेखा किया जाता है, तो न्याय टलता नहीं।


🔹 4-10 पद: ज़िदक्या का दुखद अंत

ज़िदक्या और उसके सैनिक भागने लगे, लेकिन बाबिल की सेना ने उन्हें पकड़ लिया।
राजा ज़िदक्या को रिब्ला में नबूकदनेस्सर के सामने लाया गया, जहाँ उसके पुत्रों को उसके सामने मार डाला गया।
फिर ज़िदक्या की आंखें फोड़ दी गईं और उसे ज़ंजीरों में बाबिल ले जाया गया।
यरूशलेम को जला दिया गया और दीवारें तोड़ दी गईं।
गरीबों को देश में छोड़ दिया गया, ताकि वे खेत और दाख की बारी संभालें।

💡 राजा ज़िदक्या ने जब परमेश्वर की बात नहीं मानी, तो उसकी सत्ता, परिवार और दृष्टि – सब कुछ छिन गया।


🔹 11-14 पद: यिर्मयाह की रक्षा

नबूकदनेस्सर ने यिर्मयाह के प्रति सम्मान दिखाया और अपने सेनापति नबूज़रादन को आदेश दिया कि वह उसे हानि न पहुँचाए।
यिर्मयाह को बन्दीगृह के आंगन से निकाला गया और गदल्याह (शाफान के पुत्र) के पास ले जाया गया।
वहाँ वह लोगों के बीच रहने लगा।

💡 जो लोग परमेश्वर की आज्ञा में चलते हैं, वह उन्हें युद्ध और विपत्ति के मध्य भी सुरक्षित रखता है।


🔹 15-18 पद: एबेद-मेलेक के लिए परमेश्वर का इनाम

यिर्मयाह के द्वारा परमेश्वर ने एबेद-मेलेक को यह संदेश दिया कि तू इस विनाश से बच जाएगा।
तू तलवार से नहीं मरेगा, क्योंकि तूने मुझ पर भरोसा किया है।

💡 परमेश्वर उन्हें कभी नहीं भूलता जो न्याय और करुणा के साथ खड़े होते हैं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर की चेतावनियों को हल्के में लेना विनाश की ओर ले जाता है।
डर और लोगों की राय के कारण परमेश्वर की आज्ञा से पीछे हटना अंततः महंगा पड़ता है।
यिर्मयाह जैसे विश्वासयोग्य सेवक को परमेश्वर न्याय के दिन भी नहीं छोड़ता।
एबेद-मेलेक जैसा विश्वास परमेश्वर के संरक्षण को आकर्षित करता है।
परमेश्वर विनाश के बीच भी अपने चुने हुओं की रक्षा करता है – यह उसकी करुणा और विश्वासयोग्यता का प्रमाण है।


📌 याद रखने योग्य वचन

तू तलवार से न मरेगा, परन्तु तेरा प्राण बचा रहेगा, क्योंकि तू ने मुझ पर भरोसा रखा है।”
(
यिर्मयाह 39:18)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 40 – गदल्याह की नियुक्ति और यहूदियों की वापसी

(Jeremiah 40 – Gedaliah Appointed as Governor and the Return of the Jews)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में हम देखते हैं कि यरूशलेम के पतन के बाद परमेश्वर ने कैसे यिर्मयाह की रक्षा की और उसे स्वतंत्र किया। गदल्याह को यहूदियों के ऊपर अधिपति नियुक्त किया गया और बिखरे हुए यहूदी लोग धीरे-धीरे वापस लौटने लगे। यह एक नई शुरुआत का अवसर था, लेकिन इसके पीछे साज़िशें भी पनप रही थीं।


🔹 1-6 पद: यिर्मयाह की स्वतंत्रता

नबूज़रादन, जो बाबिल की सेना का प्रधान था, ने यिर्मयाह को रामाह में बन्दीगृह से मुक्त किया।
उसने यिर्मयाह से कहा कि यह सब विनाश इस्राएल की अवज्ञा के कारण हुआ है।
उसने यिर्मयाह को दो विकल्प दिए: या तो वह उसके साथ बाबिल चले, या यहूदा में कहीं भी जाकर स्वतंत्र रूप से रहे।
यिर्मयाह ने मिज़पा में गदल्याह के साथ रहना चुना।

💡 परमेश्वर का सेवक, भले ही विपत्ति में डाल दिया जाए, पर वह अपने उद्देश्य के लिए सुरक्षित रखा जाता है।


🔹 7-12 पद: गदल्याह के अधीन यहूदियों की वापसी

यहूदियों के सेनानायक और बचे हुए लोग जो इधर-उधर छिपे हुए थे, उन्होंने सुना कि गदल्याह को अधिपति बनाया गया है।
वे मिज़पा में गदल्याह के पास आए और वहां बसने लगे।
गदल्याह ने उन्हें शांति से रहने, बाबिल के राजा की सेवा करने, और भूमि की खेती करने के लिए प्रेरित किया।
लोगों ने अंगूर, अंजीर और तेल इकट्ठा किया और एक प्रकार से राष्ट्र का पुनर्निर्माण आरंभ हुआ।

💡 जब हम परमेश्वर की आज्ञाओं में लौटते हैं, वह पुनःस्थापना का मार्ग खोलता है।


🔹 13-16 पद: ईर्ष्या और साज़िश की शुरुआत

योहानान और अन्य सेनापतियों ने गदल्याह को चेतावनी दी कि इस्माएल नाम का एक व्यक्ति, जो राजा के वंश का था, उसे मारने की योजना बना रहा है।
उन्होंने गुप्त रूप से इस्माएल को मार डालने की पेशकश की, पर गदल्याह ने उन्हें ऐसा करने से रोका।
वह उनकी बात को झूठ समझ बैठा।

💡 अच्छे नेता को सावधान रहना चाहिए – भरोसा ज़रूरी है, लेकिन विवेक और जागरूकता भी आवश्यक है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर विपत्ति के बाद भी अपने लोगों को अवसर देता है पुनर्निर्माण का।
यिर्मयाह जैसे नबी परमेश्वर की दृष्टि में अनमोल होते हैं — वे सदा सुरक्षित रहते हैं।
सच्ची आज्ञाकारिता और नम्रता राष्ट्र के पुनर्स्थापन की नींव रखती है।
चेतावनी को अनदेखा करना कभी-कभी विनाश का द्वार खोल देता है।
परमेश्वर की योजना में भी शैतान साज़िशें करता है — सतर्क रहना ज़रूरी है।


📌 याद रखने योग्य वचन

तू जाकर गदल्याह... के पास रह, क्योंकि राजा ने उसे यहूदा के नगरों का अधिपति किया है, और लोगों के बीच में रह।”
(
यिर्मयाह 40:5)

 


📖 यिर्मयाह अध्याय 41 – इस्माएल की विश्वासघातपूर्ण हत्या

(Jeremiah 41 – The Treacherous Murder by Ishmael)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में हम एक दुखद और विश्वासघातपूर्ण घटना देखते हैं। गदल्याह, जिसे बाबिल के राजा ने यहूदा का अधिपति बनाया था, उसकी हत्या की जाती है। इस्माएल, जो एक राजवंशी था, मित्रता के बहाने मिज़पा आता है और फिर एक क्रूर षड्यंत्र को अंजाम देता है। यह अध्याय दिखाता है कि कैसे एक गलत निर्णय और अविश्वास ने शांति और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को खतरे में डाल दिया।


🔹 1-3 पद: इस्माएल का विश्वासघात

इस्माएल, जो एलिशामा का पुत्र था और राजा के वंश का था, दस आदमियों के साथ गदल्याह से मिलने मिज़पा आता है।
वे सभी मिलकर गदल्याह के साथ भोजन करते हैं।
उसी समय, इस्माएल और उसके लोग अचानक हमला कर गदल्याह को मार डालते हैं।
उन्होंने उसके साथियों और सैनिकों को भी मार डाला।

💡 मित्रता के मुखौटे के पीछे छुपा हुआ धोखा कितना घातक हो सकता है!


🔹 4-10 पद: निर्दोषों की हत्या और बंधकों की पकड़

दूसरे दिन, जब अभी तक किसी को हत्या की खबर नहीं थी, 80 आदमी शीलो, शेखेम और समारिया से बलिदान चढ़ाने के लिए मिज़पा आते हैं।
इस्माएल धोखे से रोता हुआ उनके पास जाता है और फिर उन्हें मार डालता है।
उनमें से 10 आदमी उसे मना लेते हैं कि वे मारे न जाएँ, क्योंकि उन्होंने छुपा कर अनाज, तेल और शहद रखा था।
इसके बाद इस्माएल ने बचे हुए लोगों – राजकुमारियों और अन्य लोगों को पकड़ लिया और अमूनियों के पास ले जाने को निकला।

💡 जब नेतृत्व का अभाव होता है, तब निर्दोषों का खून बहता है और लोग दासता में चले जाते हैं।


🔹 11-18 पद: योहानान की कार्रवाई

योहानान और उसके साथी जब इस्माएल की इस क्रूरता की खबर सुनते हैं, तो वे उसके पीछे जाते हैं।
उन्होंने गिबोन के पास उसे पकड़ लिया।
बंदी बनाए गए लोग, जैसे ही योहानान को देखते हैं, बहुत प्रसन्न होकर लौट आते हैं।
परंतु इस्माएल आठ आदमियों के साथ भाग जाता है और अमूनियों के पास चला जाता है।
योहानान और उसके लोग बचे हुए लोगों को लेकर मिस्र की ओर जाने का सोचने लगते हैं, क्योंकि उन्हें बाबिल से डर लगने लगा।

💡 डर और अविश्वास ने पुनः यहूदियों को अशांति और विस्थापन की ओर धकेल दिया।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ कभी-कभी अविश्वास और साज़िशें, पूरी व्यवस्था को हिला देती हैं।
✝️ नेतृत्व में विवेक और सावधानी की अत्यंत आवश्यकता होती है।
✝️ परमेश्वर की चेतावनी को अनदेखा करना भारी कीमत का कारण बन सकता है।
✝️ जब हम दूसरों के खिलाफ षड्यंत्र करते हैं, तो हम सिर्फ उन्हें नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था को चोट पहुँचाते हैं।
✝️ परमेश्वर हमेशा कुछ ऐसे लोगों को उठाता है (जैसे योहानान), जो सत्य और न्याय के लिए खड़े होते हैं।


📌 याद रखने योग्य वचन

तब योहानान... और उसके संग के सब सेनापति... इस्माएल... से लड़ने को गए और गिबोन के बड़े जलाशय के पास उसे पाया।”
(यिर्मयाह 41:12)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 42 – मिस्र जाने की जिद और परमेश्वर की चेतावनी

(Jeremiah 42 – The Stubborn Desire to Go to Egypt and God’s Warning)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय एक अत्यंत भावनात्मक दृश्य प्रस्तुत करता है जहाँ बचे हुए लोग परमेश्वर से मार्गदर्शन माँगते हैं, लेकिन पहले से ही अपने मन में निर्णय ले चुके होते हैं। वे भविष्यवक्ता यिर्मयाह से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके लिए परमेश्वर से पूछे कि उन्हें क्या करना चाहिए – यह सोचकर कि वे उसकी आज्ञा मानेंगे। लेकिन जब परमेश्वर उन्हें स्पष्ट रूप से कहता है कि मिस्र न जाएँ, तो उनके हृदय का वास्तविक भाव धीरे-धीरे उजागर होता है।


🔹 1-6 पद: मार्गदर्शन की प्रार्थना

योहानान और उसके साथी यिर्मयाह के पास आते हैं और कहते हैं: "हम बहुत थोड़े रह गए हैं, हमारे लिए अपने परमेश्वर से प्रार्थना कर कि वह हमें बताए कि हम कहाँ जाएँ और क्या करें।"
वे यिर्मयाह से यह वादा करते हैं कि चाहे बात कठिन हो या आसान, वे परमेश्वर की बात मानेंगे।

💡 कभी-कभी हम प्रार्थना करते तो हैं, लेकिन मन पहले से ही बना होता है!


🔹 7-12 पद: परमेश्वर का उत्तर – यहूदा में ही रहो

दस दिन बाद यिर्मयाह को परमेश्वर का संदेश मिलता है।
परमेश्वर कहता है: "यदि तुम इस देश में रहो, तो मैं तुम्हें बनाऊँगा, गिराऊँगा नहीं। डरो मत बाबिल के राजा से, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
वह उन्हें आश्वस्त करता है कि वह उनकी रक्षा करेगा और उन पर करुणा करेगा।

💡 परमेश्वर जब कहता है 'रुको', तो वह हमारी भलाई के लिए होता है।


🔹 13-18 पद: मिस्र जाने की चेतावनी

यदि वे मिस्र जाने का निश्चय करते हैं, यह सोचकर कि वहाँ युद्ध नहीं होगा, भोजन मिलेगा, और सुरक्षा रहेगी — तो वे धोखे में हैं।
परमेश्वर स्पष्ट करता है: "जिस तलवार से तुम डरते हो, वही मिस्र में तुम्हें पकड़ लेगी।"
अकाल, युद्ध और महामारी वहीं उनका पीछा करेंगे।

💡 हर जगह की सुरक्षा दिखने में अच्छी लगती है, लेकिन यदि वह परमेश्वर की योजना के विरुद्ध हो, तो वह विनाश बन जाती है।


🔹 19-22 पद: परमेश्वर की अंतिम चेतावनी

यिर्मयाह कहता है: "तुमने मुझसे प्रार्थना की थी, अब सुनो – परमेश्वर कहता है मिस्र न जाओ!"
लेकिन वे मन ही मन ठान चुके होते हैं कि वे मिस्र ही जाएँगे।
यिर्मयाह उन्हें अंतिम बार चेतावनी देता है कि यदि वे गए, तो वे तलवार, अकाल और महामारी से नष्ट हो जाएँगे।

💡 जब हम अपनी योजना को परमेश्वर की योजना से ऊपर रखते हैं, तब हम नाश के मार्ग पर होते हैं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर से मार्गदर्शन मांगना महत्वपूर्ण है, लेकिन उससे भी अधिक ज़रूरी है उसके मार्गदर्शन का पालन करना।
✝️ परमेश्वर की चेतावनियाँ हमारे भले के लिए होती हैं – उन्हें नजरअंदाज़ करना विनाश को बुलाना है।
✝️ दिखावटी विश्वास (surface-level faith) की बजाय सच्चा समर्पण आवश्यक है।
✝️ जब हम अपने डर और समझ के अनुसार चलने लगते हैं, तो हम परमेश्वर की योजना से भटक जाते हैं।
✝️ जो मार्ग परमेश्वर दिखाता है, वह भले ही कठिन लगे, लेकिन उसमें सुरक्षा और आशीष होती है।


📌 याद रखने योग्य वचन

यदि तुम इस देश में रहो, तो मैं तुम्हें बनाऊँगा और गिराऊँगा नहीं।”
(यिर्मयाह 42:10)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 43 – अवज्ञा का परिणाम: मिस्र की ओर प्रस्थान

(Jeremiah 43 – The Consequence of Disobedience: The Move to Egypt)

🌟 अध्याय की झलक:

यिर्मयाह 43 में, हम देखते हैं कि कैसे परमेश्वर की सीधी चेतावनी के बावजूद यहूदा के बचे हुए लोग उसकी आज्ञा की अवहेलना करते हैं और मिस्र की ओर चल पड़ते हैं। उनका यह कदम केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक रूप से भी एक विद्रोह है। इस अध्याय में भविष्यवक्ता यिर्मयाह एक प्रतीकात्मक कार्य के माध्यम से मिस्र में आने वाले न्याय की घोषणा करता है।


🔹 1-3 पद: यिर्मयाह पर झूठे आरोप

जब यिर्मयाह परमेश्वर की बात कहता है कि मिस्र मत जाओ, तब अज़र्याह और योहानान सहित कुछ अगुवे उस पर झूठा होने का आरोप लगाते हैं।
वे कहते हैं: "तू झूठ बोलता है! नबूकदनेस्सर के हित में हमें धोखा दे रहा है!"
वे यह मानने को तैयार नहीं कि यिर्मयाह परमेश्वर की सच्ची वाणी बोल रहा है।

💡 जब हम पहले से ही निर्णय ले चुके होते हैं, तो सच्चाई हमें असुविधाजनक लगती है।


🔹 4-7 पद: मिस्र की ओर विद्रोही यात्रा

योहानान, अगुवे और पूरी बचे हुई प्रजा यिर्मयाह और बारूक को भी साथ ले जाते हुए मिस्र की ओर प्रस्थान कर जाते हैं।
वे तपनहेस (Tahpanhes) नामक मिस्र के एक शहर में जाकर बस जाते हैं।
यह परमेश्वर की आज्ञा के पूर्ण विरुद्ध था।

💡 परमेश्वर की अवज्ञा करना हमें हमेशा उसकी सुरक्षा से बाहर कर देता है।


🔹 8-13 पद: भविष्यवाणी – मिस्र में बाबिल का आक्रमण

मिस्र में, परमेश्वर यिर्मयाह से कहता है कि वह तपनहेस में राजमहल के प्रवेश द्वार पर पत्थर छिपा दे।
फिर वह घोषणा करता है कि बाबिल का राजा नबूकदनेस्सर वहाँ आएगा और वही स्थान उसका सिंहासन बनेगा।
वह मिस्र के मंदिरों को जलाएगा और देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ेगा।

💡 परमेश्वर सर्वशक्तिमान है — वह केवल यहूदा का नहीं, समस्त राष्ट्रों का भी परमेश्वर है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ जब हम जानबूझकर परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना करते हैं, तो हम न्याय को न्योता देते हैं।
✝️ धार्मिक नेता भी कभी-कभी जनता को गुमराह कर सकते हैं — परमेश्वर की आज्ञा हमेशा सर्वोच्च है।
✝️ सच्चा विश्वास हमेशा आज्ञाकारिता में प्रकट होता है, भले ही वह कठिन क्यों न हो।
✝️ परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ समय पर पूरी होती हैं — चाहे हम उन्हें माने या नहीं।
✝️ अवज्ञा का मार्ग अंतिम रूप से विनाश की ओर ले जाता है, भले ही वह शुरुआत में सुरक्षित लगे।


📌 याद रखने योग्य वचन

देख, मैं मिस्र के देश में फ़िरौन के भवनों को आग लगवाऊँगा... और उन्हें आग में जलवाऊँगा।”
(यिर्मयाह 43:12)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 44 – मिस्र में यहूदी समुदाय की अंतिम चेतावनी

(Jeremiah 44 – God’s Final Warning to the Jews in Egypt)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह मिस्र में रहने वाले यहूदियों को अंतिम चेतावनी देता है। वे जो परमेश्वर की अवज्ञा करके मिस्र भागे थे, अब भी अपने पुराने पापों से नहीं लौटे। वे फिर से झूठे देवताओं की पूजा में लग गए हैं। यह अध्याय हमें बताता है कि परमेश्वर बार-बार चेतावनी देता है, लेकिन एक समय आता है जब न्याय टलता नहीं।


🔹 1-10 पद: मिस्र में यहूदियों की अवज्ञा

यिर्मयाह मिस्र के विभिन्न स्थानों – मपगदो, नोप और पठरोस – में बसे यहूदियों से बात करता है।
वह उन्हें याद दिलाता है कि कैसे यहूदा और येरूशलेम का विनाश उनके पापों और मूरत-पूजा के कारण हुआ।
वह कहता है: “क्या तुमने अब तक नहीं सीखा? तुम आज भी वही पाप कर रहे हो!”
यहूदी स्त्रियाँ तक झूठे देवताओं (विशेष रूप से "स्वर्ग की रानी" – Queen of Heaven) को धूप और अर्घ चढ़ा रही थीं।

💡 जब कोई व्यक्ति या समुदाय बार-बार परमेश्वर की चेतावनी को अनदेखा करता है, तो उसका अंत निश्चित होता है।


🔹 11-14 पद: परमेश्वर का न्याय घोषित

परमेश्वर कहता है कि जो लोग मिस्र में रहते हैं, वे युद्ध, अकाल और विनाश से नहीं बचेंगे।
केवल थोड़े से लोग ही वापिस इस्राएल लौटेंगे — अधिकांश का अंत मिस्र में ही होगा।
परमेश्वर की सुरक्षा की छाया से बाहर जाने का यही परिणाम है।


🔹 15-19 पद: लोगों की हठधर्मी प्रतिक्रिया

पुरुषों और स्त्रियों ने मिलकर यिर्मयाह की बात को नकार दिया।
स्त्रियों ने कहा: “जब हम स्वर्ग की रानी को धूप और अर्घ चढ़ाते थे, तब हमारे घर भरे रहते थे, और हम समृद्ध थे।”
वे मानते थे कि उनके संकट का कारण मूरत-पूजा छोड़ना है, न कि परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन!

💡 यह हृदय की कठोरता की चरम स्थिति है — जब लोग अपने पापों को सही ठहराते हैं।


🔹 20-30 पद: यिर्मयाह का अंतिम उत्तर और भविष्यवाणी

यिर्मयाह कहता है कि तुम्हारी ही मूरत-पूजा और विद्रोह यहूदा के विनाश का कारण बनी।
परमेश्वर अब और नहीं छोड़ेगा – मिस्र में तुम भी उसी तरह नष्ट होगे जैसे येरूशलेम नष्ट हुआ।
वह भविष्यवाणी करता है कि मिस्र का राजा फिरौन होपरा (Pharaoh Hophra) भी अपने शत्रुओं के हाथों मारा जाएगा।
यह इस बात का चिन्ह होगा कि परमेश्वर की बात अवश्य पूरी होगी।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ जब चेतावनियाँ बार-बार अनसुनी की जाती हैं, तो दंड निश्चित हो जाता है।
✝️ झूठे धर्म और बाहरी समृद्धि के भ्रम से बचें — वे लंबे समय तक नहीं टिकते।
✝️ धार्मिक बहाना और जिद्दी सोच आत्मिक मृत्यु की ओर ले जाती है।
✝️ परमेश्वर धीरज वाला है, परंतु अनंत काल तक चुप नहीं रहता।
✝️ परमेश्वर के विरुद्ध जाकर कोई स्थान सुरक्षा नहीं दे सकता — चाहे वह मिस्र ही क्यों न हो।


📌 याद रखने योग्य वचन

जैसे मैंने यरूशलेम के विरुद्ध बुराई की, वैसे ही मैं तुम लोगों के विरुद्ध मिस्र में बुराई करने पर तुला हूँ।”
(यिर्मयाह 44:11)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 45 – बारूक के लिए व्यक्तिगत संदेश

(Jeremiah 45 – A Personal Word to Baruch)

🌟 अध्याय की झलक:

यह छोटा लेकिन महत्वपूर्ण अध्याय यिर्मयाह के शिष्य और लेखक बारूक को दिया गया एक व्यक्तिगत सन्देश है। जब यिर्मयाह ने परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ बारूक से लिखवाईं, तो बारूक दुखी और निराश हो गया। परमेश्वर उसे ढाढ़स देता है और एक अनमोल सीख देता है – “अपने लिए बड़ी बातें मत ढूंढ़।”


🔹 1-3 पद: बारूक की शिकायत

यह संदेश उस समय का है जब यिर्मयाह ने बारूक से भविष्यवाणियाँ लिखवाईं (यहोयाकीम के चौथे वर्ष में)।
बारूक कहता है: “मुझे अफ़सोस है! मुझे दुख पर दुख मिल रहा है। मैं चैन नहीं पा रहा हूँ।”
उसकी निराशा यह दिखाती है कि वह यिर्मयाह के संदेशों का बोझ महसूस कर रहा था — वह देश के भविष्य से परेशान और अपने भविष्य से असमंजस में था।

💡 कभी-कभी जब हम परमेश्वर की सेवा करते हैं, तो हमारी आत्मा भारी हो सकती है, लेकिन उस स्थिति में भी परमेश्वर हमें देखता है।


🔹 4-5 पद: परमेश्वर का उत्तर

परमेश्वर कहता है: “मैं जो कुछ बनाया हूँ, उसे तोड़ने जा रहा हूँ।”
यानी, यहूदा का विनाश निश्चित है — उसे कोई रोक नहीं सकता।
बारूक को निर्देश दिया जाता है:
अपने लिए बड़ी बातें मत ढूंढ़, क्योंकि मैं सब जगह विपत्ति लाने वाला हूँ।”
लेकिन परमेश्वर बारूक से कहता है कि उसके जीवन को वह सुरक्षित रखेगा – “जहाँ-जहाँ तू जाएगा, वहाँ मैं तुझे जीवन दूँगा।”

💡 यह एक गहरी आत्मिक सीख है — जब संसार गिर रहा हो, उस समय स्वार्थ या महत्त्वाकांक्षा छोड़कर परमेश्वर की इच्छा में स्थिर रहना ही सही मार्ग है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर अपने सेवकों की व्यक्तिगत भावनाओं और संघर्षों को नजरअंदाज़ नहीं करता।
✝️ जब देश का न्याय तय हो, तब हमारी प्राथमिकता आत्मिक नम्रता और धीरज होनी चाहिए।
✝️ अपने लिए "बड़ी चीज़ें" चाहना तब गलत है जब परमेश्वर किसी अन्य उद्देश्य की ओर ले जा रहा हो।
✝️ परमेश्वर संकट के समय अपने जनों की रक्षा करता है — उनका जीवन उसकी नजर में अनमोल है।


📌 याद रखने योग्य वचन

अपने लिये बड़ी बातें न ढूंढ़; उन्हें मत ढूंढ़।”
(यिर्मयाह 45:5)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 46 – मिस्र के विरुद्ध परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 46 – God’s Judgment Against Egypt)

🌟 अध्याय की झलक:

यिर्मयाह 46 से एक नई खंड की शुरुआत होती है जिसमें राष्ट्रों के विरुद्ध भविष्यवाणियाँ दी गई हैं। इस अध्याय में परमेश्वर मिस्र पर न्याय सुनाता है, जो यहूदा की मदद करने के बजाय अपने घमंड और सैन्य शक्ति पर भरोसा कर रहा था। परमेश्वर स्पष्ट करता है कि चाहे मिस्र कितना भी ताकतवर क्यों न हो, वह बाबुल के द्वारा पराजित किया जाएगा।


🔹 1-12 पद: मिस्र की हार की भविष्यवाणी

युद्ध का दृश्य प्रस्तुत किया गया है: मिस्र की सेना युद्ध के लिए तैयार होती है, लेकिन वह घबरा जाती है और पीछे हट जाती है।
परमेश्वर कहता है कि वह उन्हें “डरा देगा” ताकि वे हार मान लें।
नीनवे के समान, मिस्र भी अब अपने घमंड के कारण गिरेगा।
मिस्र की ताकत को "नील नदी की बाढ़" की तरह बताया गया है, जो सब कुछ बहा ले जाना चाहता है — लेकिन वह खुद बह जाएगा।

💡 यह हमें याद दिलाता है कि अगर कोई राष्ट्र या व्यक्ति परमेश्वर को दरकिनार कर अपने बल पर घमंड करता है, तो वह अंततः गिरता है।


🔹 13-26 पद: मिस्र के राजा फaraoh (होपरा) का पतन

बाबुल का राजा नबूकदनेस्सर मिस्र पर चढ़ाई करेगा और विजय प्राप्त करेगा।
मिस्र को अपने योद्धाओं, घोड़ों, रथों, और गठबंधनों पर घमंड था, लेकिन ये सभी उसे बचा नहीं पाएँगे।
परमेश्वर कहता है: “उनका न्याय का दिन आ गया है” (पद 21)
मिस्र के देवता, विशेषकर आपिस, भी शर्मिंदा होंगे क्योंकि वे अपने लोगों को बचाने में असमर्थ होंगे।

💡 यह स्पष्ट होता है कि केवल सच्चा परमेश्वर ही संकट में सुरक्षा और उद्धार दे सकता है — मूर्तियाँ या सैन्य बल नहीं।


🔹 27-28 पद: यहूदा के लिए आशा

जबकि मिस्र पर न्याय आएगा, परमेश्वर अपने लोगों को ढाढ़स देता है।
वह कहता है: “हे मेरे दास याकूब, मत डर... मैं तुझे उद्धार दूँगा।”
परमेश्वर वादा करता है कि याकूब को नष्ट नहीं किया जाएगा, बल्कि सुधार के द्वारा पुनःस्थापित किया जाएगा।

💡 परमेश्वर के न्याय और प्रेम दोनों साथ-साथ चलते हैं — वह अपने लोगों को सुधारता है लेकिन उन्हें त्यागता नहीं।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर राष्ट्रों के घमंड और अन्याय का हिसाब अवश्य लेता है।
✝️ सैन्य शक्ति, गठबंधन और मूर्तिपूजा किसी को भी परमेश्वर के न्याय से नहीं बचा सकती।
✝️ परमेश्वर अपने लोगों को न्याय के बीच में भी आशा और संरक्षण का वचन देता है।
✝️ वह अपने लोगों को नाश नहीं करता, बल्कि सुधारता है ताकि वे पुनः जीवित हों।


📌 याद रखने योग्य वचन

हे मेरे दास याकूब, मत डर, मैं तेरे साथ हूँ।”
(यिर्मयाह 46:28)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 47 – पलिश्तियों के विरुद्ध परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 47 – God’s Judgment Against the Philistines)

🌟 अध्याय की झलक:

इस छोटे लेकिन गंभीर अध्याय में परमेश्वर की ओर से पलिश्तियों (Philistines) के विरुद्ध एक भविष्यवाणी दी गई है। ये वही पलिश्ती लोग हैं जो इतिहास में इस्राएल के साथ लम्बे समय तक शत्रुता में रहे। अब, परमेश्वर के न्याय का समय उनके लिए भी आ गया है — और यह बाबुल के हाथों से आएगा।


🔹 1-2 पद: उत्तर से आने वाली विनाश की बाढ़

यिर्मयाह देखता है कि एक “जलधारा उत्तर से उठेगी और देश को डुबो देगी।”
यह जलधारा प्रतीक है बाबुल की सेनाओं का, जो पलिश्ती प्रदेश में युद्ध और विनाश लाएंगी।
– "सब लोग रोएँगे और चिल्लाएँगे" – यह उस भारी दुःख और भय का संकेत है जो उन पर आने वाला है।

💡 जब परमेश्वर का न्याय आता है, तो कोई भी शक्ति, जाति या नगर उसे रोक नहीं सकता।


🔹 3-4 पद: युद्ध और विनाश का भय

घोड़ों की टापों और रथों की आवाज़ से लोग इतना डर जाएँगे कि पिता अपने बच्चों को छोड़कर भाग जाएँगे।
यह विनाश इतना व्यापक होगा कि टायर और सिदोन (Phoenician शहर) भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।
पलिश्ती लोग, जो समुद्र तटीय क्षेत्र में रहते थे, अब नष्ट कर दिए जाएँगे।

💡 यह दृश्य यह दर्शाता है कि परमेश्वर न्याय करते समय केवल इस्राएल ही नहीं, बल्कि सभी राष्ट्रों को उनके कर्मों के अनुसार देखता है।


🔹 5-7 पद: परमेश्वर की तलवार

अशकेलोन और शेष पलिश्ती नगरों को विशेष रूप से नाम लेकर न्याय सुनाया गया है।
यिर्मयाह एक काव्यात्मक प्रश्न पूछता है: “हे यहोवा की तलवार! तू कब तक शांत रहेगी?”
और फिर उत्तर आता है: “तब तक नहीं जब तक परमेश्वर अपनी आज्ञा पूरी न कर ले।”

💡 यह एक गहरा सत्य दर्शाता है — परमेश्वर का न्याय ठहरता नहीं है जब तक कि वह अपने उद्देश्य को पूरा न कर दे।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर सभी राष्ट्रों के ऊपर प्रभुता रखता है — कोई भी न्याय से बाहर नहीं।
✝️ घमंड, हिंसा और मूर्तिपूजा किसी भी राष्ट्र को परमेश्वर के क्रोध से नहीं बचा सकती।
✝️ जब परमेश्वर का न्याय आता है, तो वह निर्णायक और अपरिवर्तनीय होता है।
✝️ यिर्मयाह की तरह, हमें भी प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्वर अपनी तलवार को विश्राम दे — लेकिन साथ ही उसकी योजना को स्वीकार भी करना चाहिए।


📌 याद रखने योग्य वचन

हे यहोवा की तलवार! तू कब तक शांत रहेगी?”
(यिर्मयाह 47:6)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 48 – मोआब पर परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 48 – God’s Judgment on Moab)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय पूरे मोआब राष्ट्र के लिए परमेश्वर की कठोर चेतावनी है। मोआब एक घमंडी और आत्मनिर्भर देश था, जिसने बार-बार इस्राएल को सताया और परमेश्वर की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया। इस अध्याय में यिर्मयाह ने बड़े विस्तार से मोआब के नगरों, उसकी आत्म-श्लाघा, मूर्तिपूजा और आने वाले विनाश का वर्णन किया है।


🔹 1-10 पद: मोआब के नगरों पर विनाश

नेबो, किर्यातैम, हेशबोन, मिब्बा — कई नगरों का नाम लेकर उनके पतन की भविष्यवाणी की गई है।
मोआब का सम्मान और सामर्थ्य समाप्त हो जाएगा।
जो लोग परमेश्वर की तलवार से बचना चाहेंगे, वे भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।

💡 परमेश्वर की दृष्टि से कोई भी नगर या राष्ट्र बहुत बड़ा नहीं कि उसका न्याय न हो सके।


🔹 11-17 पद: मोआब का घमंड और आत्म-तुष्टि

मोआब को "सुगंधित दाखमधु" (perfumed wine) की तरह बताया गया है जो कभी इधर-उधर नहीं किया गया — यानी वह आराम में रहा।
पर अब परमेश्वर उसे "उलट देगा" और उसकी तुष्टि को समाप्त करेगा।
मोआब का घमंड और आत्म-श्लाघा उसका विनाश लाएंगे।

💡 आत्मतुष्टि (self-sufficiency) और अहंकार अंततः गिरावट की ओर ले जाते हैं।


🔹 18-25 पद: शक्तिशाली नगर भी नष्ट होंगे

दिवोन, अर, मेफात, कीरीओथ — सब गिरेंगे।
मोआब के "सींग" (शक्ति) और "भुजाएँ" (सामर्थ्य) तोड़ी जाएँगी।
उनके सैनिक पराजित होंगे और वीरता धूल में मिल जाएगी।


🔹 26-39 पद: मूर्तिपूजा और शर्म

मोआब का प्रमुख देवता "कमोश" भी उन्हें बचा नहीं पाएगा।
उनके लोग पलायन करेंगे, विलाप करेंगे, और हर नगर में हाहाकार मचेगा।
यिर्मयाह स्वयं मोआब के लिए रोता है — यह दिखाता है कि न्याय के बीच भी करुणा होनी चाहिए।

💡 परमेश्वर को केवल बाहरी धार्मिकता नहीं चाहिए — वह दिल की सच्चाई देखता है।


🔹 40-47 पद: अंतिम चेतावनी और आशा की झलक

– “एक चील उड़ती हुई आएगी” — यह बाबुल के आक्रमण का प्रतीक है।
लेकिन अंत में एक आशा की किरण है: “मैं अन्तकाल में मोआब के बंधुओं को लौटा लाऊँगा” (पद 47)
परमेश्वर का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि पश्चाताप और पुनःस्थापना भी है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ आत्मतुष्टि और घमंड परमेश्वर के विरुद्ध हैं और विनाश को बुलाते हैं।
✝️ मूर्तिपूजा और झूठी सुरक्षा की भावना अंत में हमें धोखा देती है।
✝️ परमेश्वर का न्याय गहरा और न्यायपूर्ण है — लेकिन उसकी दया अंत तक बनी रहती है।
✝️ पश्चाताप और नम्रता से हम पुनःस्थापना का अनुभव कर सकते हैं।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैं अन्तकाल में मोआब के बंधुओं को लौटा लाऊँगा।”
(यिर्मयाह 48:47)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 49 – राष्ट्रों पर परमेश्वर का न्याय

(Jeremiah 49 – God's Judgment on the Nations)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह भविष्यवाणी करता है कि परमेश्वर सिर्फ यहूदा और इस्राएल पर ही नहीं, बल्कि उनके आसपास के राष्ट्रों पर भी न्याय करेगा। यह अध्याय यह स्पष्ट करता है कि परमेश्वर सम्पूर्ण पृथ्वी का न्यायी है और कोई भी देश उसके निर्णय से अछूता नहीं रहेगा।


🔹 1-6 पद: अम्मोनियों पर न्याय

अम्मोन ने इस्राएल की भूमि पर अधिकार कर लिया था।
परमेश्वर कहता है कि वह उन्हें उनके अपराधों के लिए दंड देगा।
लेकिन बाद में उन्हें भी बहाल किया जाएगा (पद 6)

💡 परमेश्वर न्याय करता है, लेकिन बहाली (restoration) का वादा भी देता है।


🔹 7-22 पद: एदोम पर कठोर न्याय

एदोम को उसकी घमंड और बुद्धिमानी पर गर्व था।
परमेश्वर उसकी “बुद्धिमानी” को मूर्खता में बदल देगा।
वह “सालार” जैसे नगरों को उजाड़ देगा।
एक बड़ी तबाही और चील की तरह उड़ता विनाश आएगा।

💡 परमेश्वर के सामने घमंड और अपनी बुद्धि पर भरोसा करना विनाश की ओर ले जाता है।


🔹 23-27 पद: दमिश्क (सीरिया की राजधानी) का पतन

दमिश्क में संकट, भय और लज्जा का वर्णन है।
उसकी प्रसिद्धता और शक्ति भी नष्ट हो जाएगी।
परमेश्वर कहता है कि उसकी “युवा वीरता” और “सैनिक” खत्म हो जाएँगे।

💡 कोई भी देश इतना महान नहीं कि परमेश्वर के न्याय से बच सके।


🔹 28-33 पद: केदार और हासोर के खिलाफ

ये रेगिस्तान में रहने वाले जनजातियाँ थीं — व्यापार में समृद्ध, लेकिन असुरक्षित।
बाबुल उनके खिलाफ आएगा और उन्हें नष्ट करेगा।
वे भय, भगदड़ और उजाड़पन में बदल जाएंगे।

💡 जिन पर कोई भरोसा नहीं करता, उन्हें भी परमेश्वर देखता है — और उन्हें भी न्याय देता है।


🔹 34-39 पद: एलाम पर न्याय और बहाली

एलाम (फारस का हिस्सा) पर कठोर न्याय आएगा।
परमेश्वर उसकी शक्ति “तोड़ेगा” और चारों दिशाओं में तितर-बितर कर देगा।
लेकिन एक आशा है — अंत में परमेश्वर एलाम को पुनःस्थापित करेगा।

💡 परमेश्वर का न्याय कभी सिर्फ विनाश नहीं होता — उसमें दया और भविष्य की आशा छिपी होती है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर सभी राष्ट्रों का प्रभु है — वह सबका न्याय करता है।
✝️ घमंड, आत्म-निर्भरता और दूसरों पर अत्याचार परमेश्वर की दृष्टि में पाप है।
✝️ न्याय के बीच भी परमेश्वर भविष्य और बहाली की आशा देता है।
✝️ हर देश, हर जनजाति और हर व्यक्ति उसके न्याय के अधीन है।


📌 याद रखने योग्य वचन

मैं अन्तकाल में एलाम के बंधुओं को लौटा लाऊँगा।”
(यिर्मयाह 49:39)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 50 – बाबुल का विनाश और इस्राएल की बहाली

(Jeremiah 50 – The Fall of Babylon and Israel’s Restoration)

🌟 अध्याय की झलक:

इस अध्याय में यिर्मयाह एक महान और निर्णायक भविष्यवाणी करता है – शक्तिशाली बाबुल साम्राज्य के पतन की। यह वही साम्राज्य है जो यहूदा को बंधुआ बनाकर ले गया था। अब परमेश्वर स्वयं बाबुल पर न्याय लाने को तैयार है। साथ ही, यह अध्याय इस्राएल और यहूदा की बहाली और उनके वापस लौटने की आशा से भी भरपूर है।


🔹 1-10 पद: बाबुल पर संदेश

परमेश्वर बाबुल और उसके देवताओं बेल और मरदोके के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करता है।
उत्तरी राष्ट्रों की एक सेना बाबुल को नष्ट करेगी।
इस्राएल और यहूदा जो बिखर गए थे, अब पश्चाताप के साथ लौटेंगे।

💡 परमेश्वर अपने लोगों को नहीं भूलता — वह दंड देता है, लेकिन बहाल भी करता है।


🔹 11-20 पद: दमनकारियों का दंड और इस्राएल का उद्धार

बाबुल ने इस्राएल की विपत्ति का मज़ाक उड़ाया, इसलिए अब परमेश्वर उसका मज़ाक बनाएगा।
परमेश्वर कहता है कि वह अपने लोगों के पापों को क्षमा करेगा और उन्हें खोजने पर भी नहीं मिलेगा।

💡 परमेश्वर वह है जो पापों को मिटा देता है और पूरी तरह बहाल करता है।


🔹 21-32 पद: बाबुल की पूर्ण हार

परमेश्वर बाबुल की भूमि को उजाड़ देगा।
उसके सैनिक, नेता और बुद्धिमान लोग नीचे गिरेंगे।
उसका घमंड उसकी हार का कारण बनेगा।

💡 घमंड केवल विनाश की ओर ले जाता है — चाहे कोई भी राष्ट्र हो।


🔹 33-46 पद: इस्राएल की पीड़ा और परमेश्वर की प्रतिक्रिया

यहूदा और इस्राएल को बंधुआ बनाया गया, लेकिन अब उनका उद्धारकर्ता खड़ा हो गया है।
परमेश्वर बाबुल के राजा और उसके देवताओं को दंड देगा।
पूरी पृथ्वी उसके न्याय की गूंज से काँप उठेगी।

💡 परमेश्वर न्यायी और उद्धारकर्ता दोनों है — वह अपने लोगों को छुड़ाने के लिए उठता है।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ कोई भी राष्ट्र इतना शक्तिशाली नहीं कि परमेश्वर के न्याय से बच सके।
✝️ परमेश्वर अपने लोगों की पीड़ा को अनदेखा नहीं करता — वह समय पर हस्तक्षेप करता है।
✝️ परमेश्वर अपने लोगों को उनके पापों से शुद्ध करता है और उन्हें बहाल करता है।
✝️ घमंड और अन्याय का अंत हमेशा विनाश होता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

क्योंकि इस्राएल और यहूदा पर अत्याचार हुआ है... परन्तु उनका उद्धार करने वाला बलवान है।”
(यिर्मयाह 50:33-34)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 51 – बाबुल का अंतिम विनाश और यहूदा के लिए आशा

(Jeremiah 51 – Final Judgment on Babylon and Hope for Judah)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अध्याय यिर्मयाह की बाबुल के खिलाफ अंतिम और सबसे लंबी भविष्यवाणी है। परमेश्वर बाबुल के अहंकार, हिंसा और मूर्तिपूजा का अंत करने जा रहा है। साथ ही, यह अध्याय यहूदा के लिए आशा और छुटकारे की गारंटी भी देता है। यह अध्याय न्याय और करुणा का एक साथ प्रदर्शन है — दुष्टों के लिए विनाश और धार्मिकों के लिए उद्धार।


🔹 1-14 पद: परमेश्वर बाबुल के खिलाफ उठ खड़ा होता है

परमेश्वर “नाश करनेवाली हवा” भेजेगा जो बाबुल को उड़ा देगी।
शत्रु राष्ट्र आक्रमण करेंगे, और बाबुल की शक्ति टूट जाएगी।
परमेश्वर अपने लोगों का प्रतिशोध लेगा।

💡 परमेश्वर दुष्टता को लंबे समय तक सहन नहीं करता — न्याय निश्चित है।


🔹 15-26 पद: सृष्टिकर्ता का न्यायी कार्य

परमेश्वर याद दिलाता है कि उसने पृथ्वी को अपनी बुद्धि से बनाया।
वह न सिर्फ न्याय करता है, बल्कि अपने चुने हुए जनों को साधन बनाकर कार्य करता है।
बाबुल अब “थकाए जाने वाला हथौड़ा” नहीं, बल्कि खुद नाश होगा।

💡 जब परमेश्वर कार्य करता है, तो कोई भी राष्ट्र उसे रोक नहीं सकता।


🔹 27-44 पद: शत्रु एकत्र होंगे और बाबुल ध्वस्त होगा

परमेश्वर पृथ्वी के अन्य राष्ट्रों को बुला रहा है कि वे बाबुल को घेरें।
बाबुल की भूमि उजड़ जाएगी, और उसका राजा भयभीत होगा।
उसका देवता “बेल” शर्मिंदा और पराजित होगा।

💡 झूठे देवताओं की शक्ति हमेशा अस्थायी होती है।


🔹 45-58 पद: इस्राएल को बाबुल से निकलने की पुकार

परमेश्वर अपने लोगों से कहता है: “बाबुल से भागो!”
बाबुल की दीवारें गिरेंगी, उसकी घमंड की नींव हिल जाएगी।
पृथ्वी पर बाबुल की आवाज़ एक दिन चुप हो जाएगी।

💡 जब परमेश्वर बुलाए, तो तुरंत आज्ञा मानो — बचाव उसी में है।


🔹 59-64 पद: यिर्मयाह का संदेश नदी में डुबाया गया

यिर्मयाह बारूक के भाई सेरायाह को बाबुल जाते समय यह भविष्यवाणी देता है।
उसे यह स्क्रॉल पढ़ने और फिर नदी में डुबो देने का निर्देश मिलता है – यह दर्शाता है कि बाबुल डूबेगा और फिर उठेगा नहीं।

💡 परमेश्वर का वचन निश्चित रूप से पूरा होता है – चाहे उसे दुनिया नजरअंदाज़ करे।


इस अध्याय से क्या सिखें?

✝️ परमेश्वर इतिहास के हर भाग पर नियंत्रण रखता है — नाश भी और उद्धार भी।
✝️ जब परमेश्वर दुष्टता के विरुद्ध उठता है, तो कुछ भी उसे रोक नहीं सकता।
✝️ परमेश्वर अपने लोगों को न्याय के समय बचाने की राह दिखाता है।
✝️ हमें संसार की बर्बाद होती व्यवस्थाओं से अलग होकर परमेश्वर की ओर लौटना चाहिए।


📌 याद रखने योग्य वचन

बाबुल इस कारण समुद्र की लहरों की नाईं डूब गया, और उसका शोर बहुत हुआ।”
(यिर्मयाह 51:42)

 

 

📖 यिर्मयाह अध्याय 52 – यरूशलेम का विनाश और यहूदा के बंदीवास की पुष्टि

(Jeremiah 52 – The Fall of Jerusalem & Captivity of Judah)

🌟 अध्याय की झलक:

यह अंतिम अध्याय यिर्मयाह की भविष्यवाणियों की ऐतिहासिक पुष्टि है। इसमें बताया गया है कि कैसे नबूकदनेस्सर की अगुवाई में बाबुल की सेना ने यरूशलेम पर आक्रमण किया, शहर और मंदिर को नष्ट कर दिया, और यहूदा के लोगों को बंदी बनाकर बाबुल ले जाया गया। साथ ही, यह अध्याय यह भी दिखाता है कि परमेश्वर अपने दया से राजा यहोयाकीन को कैद से मुक्त करता है।


🔹 1-11 पद: राजा सिदकिय्याह का विद्रोह और दंड

सिदकिय्याह 21 वर्ष की उम्र में राजा बना और परमेश्वर के विरुद्ध चला।
बाबुल की सेना ने यरूशलेम को घेर लिया, और लगभग 2 वर्षों के बाद शहर में अकाल और तबाही फैल गई।
सिदकिय्याह भागा, लेकिन पकड़ लिया गया। उसके बेटों को उसके सामने मार डाला गया और उसकी आंखें फोड़ दी गईं।

💡 जो परमेश्वर के मार्ग से हटते हैं, उन्हें उसका न्याय सहना पड़ता है।


🔹 12-23 पद: मंदिर और यरूशलेम की पूर्ण तबाही

बाबुल के सेनापति नबूजरादान ने प्रभु के मंदिर, महलों और शहर को जला दिया।
मंदिर के बहुमूल्य वस्तुएं जैसे कांसे के खंभे, लैंप स्टैंड और अन्य पात्र लूट लिए गए।
यह मंदिर जो कभी परमेश्वर की महिमा का प्रतीक था, अब पूरी तरह से नष्ट हो गया।

💡 जब लोग परमेश्वर को त्यागते हैं, तो सबसे पवित्र चीजें भी सुरक्षित नहीं रहतीं।


🔹 24-30 पद: प्रमुख लोगों की हत्या और यहूदा का बंदीवास

याजकों, अधिकारियों और योद्धाओं सहित कई प्रमुखों को पकड़कर मार डाला गया।
कुल मिलाकर लगभग 4,600 लोग तीन बार में बंदी बनाकर बाबुल ले जाए गए।

💡 परमेश्वर की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करना पूरे राष्ट्र के लिए विनाशकारी हो सकता है।


🔹 31-34 पद: राजा यहोयाकीन की आश्चर्यजनक रिहाई

यह अध्याय एक आशा की झलक देता है: 37 वर्षों बाद, बाबुल का नया राजा एविल-मेरोदक यहोयाकीन को कैद से मुक्त करता है।
उसे सम्मान दिया गया, रोज़ाना भोजन मिला और एक राजा की तरह व्यवहार किया गया।

💡 परमेश्वर की दया हमेशा बनी रहती है – चाहे कितनी भी देर क्यों न हो।


इस अध्याय से क्या सिखें?

परमेश्वर का न्याय निश्चित होता है — जो वह कहता है, वह करता है।
हमें परमेश्वर की चेतावनियों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
यहां तक कि विनाश के बीच भी परमेश्वर अपनी दया और आशा का दरवाज़ा खुला रखता है।
कैद में भी परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को याद करता है और उन्हें सम्मान लौटाता है।


📌 याद रखने योग्य वचन

और उसने यहोयाकीन के बन्दीगृह के वस्त्र बदल दिए, और वह जीवन भर उसके संग भोजन करता रहा।”
(यिर्मयाह 52:33)