बाइबल में कौन सी पुस्तकें होंगी और कौन सी नहीं – ये कैसे तय हुआ? | Canon of the Bible Explained in Hindi
✝️ कौन सी पुस्तक बाइबल में रहेगी और कौन सी नहीं – यह कैसे तय किया गया?
बाइबल 66 पुस्तकों का एक पवित्र संग्रह है –
- 39
पुस्तकें पुराना नियम (Old Testament)
- 27
पुस्तकें नया नियम (New Testament)
पर सवाल यह है:
👉
इन 66 किताबों को ही क्यों चुना गया?
👉
दूसरी धार्मिक या ऐतिहासिक पुस्तकों को क्यों नहीं जोड़ा गया?
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि
बाइबल का Canon (अर्थात मान्य पुस्तकों का संग्रह) कैसे
बना, और क्या मानदंड अपनाए गए।
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Canon का अर्थ क्या होता है?
"Canon" शब्द
यूनानी भाषा के κανών
(kanon) से लिया गया है, जिसका
अर्थ है – "मापदंड", "कसौटी", या "नियम"।
बाइबल में Canon का मतलब है – वह पुस्तकें
जिन्हें परमेश्वर प्रेरित, प्रमाणिक और पवित्र माना
गया है, और जो धर्मशास्त्र का हिस्सा बनने योग्य हैं।
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पुराने नियम की Canon कैसे बनी?
📖
1. यहूदी परंपरा और इतिहास
पुराना नियम यहूदी धर्म का पवित्र
शास्त्र है।
यह पुस्तकें मूसा, दाऊद, यशायाह, यिर्मयाह, आदि
द्वारा लिखी गईं।
यहूदी धार्मिक नेताओं ने उन्हें प्रेरित और परमेश्वर से प्रेरित
माना।
🧱 2. मानदंड क्या थे?
- लेखक नबी या ईश्वर प्रेरित व्यक्ति होना चाहिए।
- पुस्तक की शिक्षाएं परमेश्वर के स्वभाव से मेल खाएं।
- पूरे समुदाय में पुस्तक को मान्यता प्राप्त हो।
- भविष्यवाणी की सटीकता और नैतिक अधिकार।
पुराने नियम की Canon
को 325 ईसा पूर्व तक यहूदी समाज में स्थिर रूप से स्वीकार कर लिया गया था।
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नए नियम की Canon कैसे तय हुई?
यीशु मसीह के जीवन,
मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद उनके चेले और प्रेरितों ने जो कुछ देखा,
सुना और सीखा, उसे लिखा।
इनमें मुख्य रूप से:
- चार सुसमाचार (Gospels): मत्ती, मरकुस, लूका,
यूहन्ना
- प्रेरितों के काम
- पौलुस और अन्य प्रेरितों के पत्र
- प्रकाशितवाक्य
📅
इतिहास के अनुसार:
- 100
ईस्वी तक अधिकांश
पुस्तकें चर्चों में पढ़ी जा रही थीं।
- 150–200
ईस्वी तक अधिकांश
चर्चों में एक समान पुस्तकों को Canon माना गया।
- 367
ईस्वी में, अलेक्ज़ांद्रिया के एथानासियस ने 27 पुस्तकों की
सूची दी – जो आज भी नया नियम है।
- 397
ईस्वी, कार्थेज परिषद (Council of Carthage) में
इन्हें अधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।
✅ Canon में पुस्तकें चुनने के 5 मुख्य मानदंड
1. प्रेरितिक मूल (Apostolic Origin):
क्या यह पुस्तक किसी प्रेरित द्वारा
या उनके करीबी सहयोगी द्वारा लिखी गई है?
2. विश्वव्यापी स्वीकृति (Universal Acceptance):
क्या प्रारंभिक चर्चों ने इसे व्यापक
रूप से स्वीकार किया और इस्तेमाल किया?
3. सुसंगत शिक्षाएं (Doctrinal Consistency):
क्या पुस्तक की शिक्षाएं पहले से
स्थापित धार्मिक सच्चाइयों से मेल खाती हैं?
4. आध्यात्मिक प्रभाव (Spiritual Power):
क्या यह पुस्तक आत्मा को जाग्रत करती
है और ईश्वर के साथ संबंध को गहरा करती है?
5. ईश्वर की प्रेरणा (Divine Inspiration):
क्या इसके शब्दों में ऐसा बल है जो
मानवीय लेखन से ऊपर हो?
❌ कौन सी पुस्तकें Canon में क्यों नहीं आईं?
बाइबल के Canon
में कई “Apocrypha” या “Deuterocanonical”
ग्रंथों को शामिल नहीं किया गया।
क्यों?
- उनका प्रेरितिक मूल संदिग्ध था।
- उनमें ऐतिहासिक त्रुटियाँ पाई गईं।
- सभी चर्चों में उनकी स्वीकृति नहीं थी।
- उनकी शिक्षाएं बाइबिल के अन्य भागों से मेल नहीं खाती
थीं।
उदाहरण: टोबीत,
यशू की पुस्तक, मक्काबियों की पुस्तकें आदि।
इनमें से कुछ ग्रंथ कैथोलिक बाइबिल
में शामिल हैं, लेकिन प्रोटेस्टेंट
बाइबल उन्हें Canon में नहीं मानती।
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बाइबल का Canon आज भी क्यों महत्वपूर्ण है?
आज भी यह विषय प्रासंगिक है क्योंकि:
- नए धर्म और “गुप्त ग्रंथ” सामने आते रहते हैं।
- कुछ लोग बाइबिल के Canon को चुनौती देते हैं।
- Canon
का सही ज्ञान हमारे विश्वास की नींव को मजबूत करता है।
बिना एक निश्चित Canon
के, हम यह नहीं जान सकते कि कौन सा वचन
वास्तव में परमेश्वर का है।
Canon – ईश्वर की योजना का संरक्षित रूप
बाइबल का Canon
कोई इंसानों द्वारा रचा गया चौंकाने वाला चयन नहीं था,
बल्कि यह एक ईश्वरीय प्रक्रिया थी, जिसमें
पवित्र आत्मा ने मार्गदर्शन किया।
Canon की प्रक्रिया
हमें यह भरोसा देती है कि
जो पुस्तकें बाइबल में हैं – वे परमेश्वर के वचन की पूर्णता,
सच्चाई और प्रेरणा से युक्त हैं।