मनुस्मृति के श्लोक जो आज के आधुनिक भारत के मूल्यों से मेल नहीं खाते। Manusmriti Controversial Verses in Hindi
मनुस्मृति प्राचीन हिन्दू धर्मशास्त्रों
में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ मानी जाती है। परंतु इसके अनेक श्लोकों में वर्ण,
लिंग और सामाजिक भेदभाव की जड़ें दिखाई देती हैं। यह लेख मनुस्मृति
के उन श्लोकों की विवेचना करता है जो आज के लोकतांत्रिक, समतावादी
और आधुनिक भारत के मूल्यों से मेल नहीं खाते।
⚖️ स्त्रियों और शूद्रों के प्रति कट्टर दृष्टिकोण
1. स्त्री का अपमानजनक चित्रण
"भर्तारं
लङ्घयेद्या स्त्री ज्ञाति गुणदर्पिता। तां श्वाभिः खादयेद्राजा संस्थाने
बहुसंस्थिते।।"
(मनुस्मृति)
यह श्लोक स्त्रियों के लिए सार्वजनिक
दंड की बात करता है यदि वह पति की अवहेलना करें। यह विचार आज के समाज में
अस्वीकार्य और अमानवीय है।
2. शूद्रों के लिए जीवन के नियम
"शूद्रों का मुख्य
धर्म ब्राह्मणों की सेवा है। अन्य कर्म निष्फल हैं।"
"शूद्र को कभी भी धन संचय नहीं करना चाहिए क्योंकि वह
ब्राह्मणों को हानि पहुँचा सकता है।"
शूद्रों को सामाजिक,
आर्थिक और धार्मिक अधिकारों से वंचित करने की नीतियाँ स्पष्ट दिखाई
देती हैं।
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सत्ता और कानून में जातिगत भेदभाव
3. न्याय और शासन में भेद
"शूद्र अगर
न्यायाधीश बने तो राज्य को हानि होती है।"
"यदि शूद्र ब्राह्मण को अपशब्द कहे, तो
उसकी जीभ काट दी जाए।"
यह कठोर विधान आधुनिक संविधान और मानव
अधिकारों के खिलाफ हैं।
4. राजा और ब्राह्मण संबंध
"राजा को केवल
ब्राह्मणों की सेवा करनी चाहिए और उन्हीं से सलाह लेनी चाहिए।"
"ब्राह्मणों की संपत्ति नहीं छीनी जानी चाहिए, परंतु शूद्र की ली जा सकती है।"
यह सामाजिक असमानता और सत्ता के
केंद्रीकरण को बढ़ावा देने वाली अवधारणाएँ हैं।
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दंड विधान: अमानवीय और विभाजनकारी
5. शूद्रों के लिए क्रूर दंड
"शूद्र अगर
ब्राह्मण को लात मारे तो उसका पैर काट दिया जाए।"
"शूद्र वेद नहीं पढ़ सकता, उसे धर्म
उपदेश नहीं दिया जा सकता।"
यह दंड प्रणाली केवल भय और अपमान पर
आधारित है।
🧠 शिक्षा और आध्यात्मिकता पर एकाधिकार
"शूद्र को बुद्धि
नहीं देनी चाहिए, शिक्षा नहीं देनी चाहिए।"
"स्त्रियों का वेद से कोई संबंध नहीं। वे जो वेद पढ़ती हैं,
वे पापयुक्त मानी जाती हैं।"
ये श्लोक शिक्षा और ज्ञान को जाति और लिंग के आधार पर सीमित करते हैं।
यदि मनुस्मृति का शाब्दिक और अक्षरशः पालन किया जाए, तो भारत के संविधान, समानता और सामाजिक न्याय की नींव ही हिल जाएगी। इस ग्रंथ के आलोचनात्मक अध्ययन की आवश्यकता है ताकि सामाजिक भेदभाव और जातिगत अन्याय को समझा जा सके और भविष्य में दोहराया न जाए।
"भर्तारं लङ्घयेद्या स्त्री ज्ञाति गुणदर्पिता।
तां श्वाभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते।।"
मनुस्मृति
नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे।
ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है। इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है।
शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है। 10/129-130
जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो, उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नही है।
राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें।
जिस राजा के यहां शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है।
ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है, मर्यादा है, लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है।
यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है, जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है, तब दस अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए।
यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे, उसके ऊपर पेशाब कर दे तब उसके होठों को और लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे।
यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए।
इस पृथ्वी पर ब्राह्मण–वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नही है। अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए।
शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें।
शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र, बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए ।
बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेंढक, कुत्ता, गोह, उल्लू, कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है।
यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए, क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है।
निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए।
ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है, वह है गुणगान करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना।
शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे, तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगवा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे।
राजा बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री, गृह शय्या, वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे।
जान बूझकर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक कुत्ते-बिल्ली आदि पाप श्रेणियों में जन्म लेता है।
ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।
शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नही बना सकते। गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें ।
ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन ले क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नही है। उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है।
राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें, क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं ।
शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है। मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं। शूद्र टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करें। शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने।
यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए ।
दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित, चाण्डाल, मूर्ख और धोबी आदि अंत्यवासी हो, उनके साथ द्विज न रहें। लोहार, निषाद, नट, गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है।
शूद्रों के साथ ब्राह्मण वेदाध्ययन के समय कोई सम्बन्ध नही रखें, चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए।
अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराए।
शूद्रों को बुद्धि नही देनी चाहिए। अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नही है। शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें।
जिस प्रकार शास्त्र विधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि, दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं , उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है।
शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नहीं करनी चाहिए।
ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक, क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक, वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो।
दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे।
मनुस्मृती अध्याय पहला 1:100
सर्वँ स्वम ब्राह्मणस्थेदं यत्किंचिज्जगतीगतम
श्रैश्ठेनाभिजनेनेदं सर्व वै ब्राह्मनोर्हति
अर्थ - दुनिया कि सारी संपत्ती ब्राह्मण कि हे क्योंकी वो श्रेश्ठ और उच्चकुलिन हे|
मनुस्मृति-5/55
"मांस भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्व प्रवदन्ति मनीषिणः।।"
अर्थात- जो मनुष्य इस लोक मे जिसका मांस खाता है, परलोक मे वह उसका भी मांस खाता है, यही मांस का मांसत्व है।