शिवलिंग पूजा की शुरुआत कैसे हुई। The Story Behind Shiva Linga in the Hindu Mythology
शिवलिंग पूजा की शुरुआत कैसे हुई।
The Story Behind Shiva Linga in the Hindu Mythology
शिवजी की पूजा लिंग (Penis) रूप मे क्यों होती है, इसके बारे मे लिंगपुराण (डायमण्ड प्रेस) मे दो कथाऐं आती है-
पहली कथा के अनुसार एक बार भृगुऋषि त्रिदेवों की परीक्षा लेने के लिये निकले, और वो जब शिव के पास पहुँचे तो उस समय भोलेनाथ देवी पार्वती के साथ शयनकक्ष मे थे! भृगु ने उनसे मिलना चाहा, पर द्वारपालों ने रोक दिया भृगु ने कुछ देर तक प्रतीक्षा की, और फिर क्रुद्ध होकर अन्दर शयनकक्ष मे चले गये! उन्होने शयनकक्ष मे देखा कि शिव पार्वती के साथ विहार कर रहे थे!
क्रोधित होकर भृगु ने शिव को श्राप दिया कि मै तुम्हारे द्वार पर कब से प्रतीक्षारत हूँ, और तुम यहाँ मौजमस्ती कर रहे हो, इसीलिये मै तुम्हे श्राप देता हूँ कि आज के बाद तुम्हारी पूजा लिंगरूप मे और पार्वती की पूजा योनिरूप मे होगी।
दूसरी कथा के अनुसार एक बार शिव दारुकवन मे नग्न खड़े थे, और कुछ ऋषियों की पत्नियों ने उन्हे उसी नग्नावस्था मे देख लिया! ऋषि-पत्नियाँ शिव के लावण्य पर मोहित हो गयी और आकर उनसे लिपट गयी! थोड़ी ही देर मे उन औरतों के पति ऋषिगण भी वहाँ आ गये और शिव को नग्न देखकर उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया! उन्होने शिव को श्राप दिया कि हे अघोरी-रूपी शिव! तुम नग्न होकर धर्म का लोप कर रहे हो, इसलिये हम तुम्हे श्राप देते हैं कि तुम्हारा लिंग अभी कटकर भूमि पर गिर जाये।
श्राप देते ही शिव का लिंग कटकर भूमि पर गिर गया, और उसमे से अग्नि प्रज्वलित होने लगी! अब वह लिंग जहाँ भी जाता, वहाँ सब कुछ जलकर भस्म हो जाता था। ऐसी स्थिति देखकर देवतागण घबरा गये और इसके निवारण का उपाय पूँछने ब्रह्माजी के पास आये! ब्रह्मा ने कहा कि शिवलिंग अमोघ है और इसे केवल माता पार्वती ही शान्त कर सकती है। अब सारे देवताओं ने पार्वती की शरण ली, और उनसे प्रार्थना किया कि माते शिवलिंग को शान्त करके संसार की रक्षा करो!
तब पार्वती वहाँ पहुँची, जहाँ वह लिंग दहक रहा था, उन्होने शिवलिंग को अपनी योनि मे धारण करके उसे शान्त किया! तभी से योनि और लिंग पूजा शुरू हुई!
इसका एक श्लोक भी हैं-
"भगस्य हृदयं लिंग, लिंगस्य हृदयं भगः।
तस्मै ते भगलिंगाय, उमारुद्राव्यै नमः।।"
ये दोनो कथाऐं बहुत सारे लोगों ने पढ़ा भी है, और जानते भी हैं। पर अब जो कथा मै बताने जा रहा हूँ उसे शायद कम ही लोग जानते होंगे।
पण्डित बाबूराम उपाध्याय अनुवादक भविष्यपुराणम् (हिन्दी साहित्य प्रकाशन, प्रयाग)
प्रतिसर्गपर्व-3 खण्ड-4 अध्याय-17 श्लोक-67-82 तक मे एक कथा वर्णित है-
"एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव अत्रिऋषि की पत्नि अनुसुइया के पास गये, और उसकी सुन्दरता पर मंत्रमुग्ध होकर उससे कहने लगे हे मदभरे नेत्रों वाली सुन्दरी! तुम हमे रति प्रदान करो, अन्यथा हम यहीं तुम्हारे सामने अपने प्राण त्याग देंगे! पतिव्रता अनुसुइया ने तीनों को मना कर दिया! तब शिवजी अपना लिंग हाथ मे पकड़ लिये, और विष्णु उसमे रसवृद्धि करने लगे, तथा ब्रह्मा भी काम पीड़ित होकर अनुसुइया पर टूट पड़े। जब तीनो जबरन अनुसुइया को मैथुनार्थ पकड़ने लगे तब उसने तीनों को श्राप दिया कि तुम तीनों ने मेरा पतिव्रत् धर्म भंग करने की चेष्टा की है,
इसलिये महादेव का लिंग, विष्णु के चरण और ब्रह्मा के सिर हमेशा उपहास का कारण बनेगे! और तुम तीनों ने मेरे ऊपर कुदृष्टि डाली है, अतः तुम तीनों ही मेरे पुत्र बनोगे! अनुसुइया के श्राप से शिव के लिंग की पूजा होती है, और उसका उपहास भी होता है! बाद मे शिव ने दुर्वासा, विष्णु ने दत्तात्रेय और ब्रह्मा के चन्द्र के रूप मे अनुसुइया के गर्भ से जन्म भी लिया।"
शायद इसी अश्लीलता की वजह से दयानन्द सरस्वती पूरे देश मे घूमकर इन पुराणों का विरोध करते थे। पर पौराणिक-पंडों ने उनकी एक न सुनी।
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धरती पर जो सोना-चाँदी है है वो शिव के वीर्य से बना है।
ये सीधा- सीधा भागवत पुराण से उठाया गया है । यह श्रीमद्भागवत के प्रथम खंड के आठवें स्कंद के बारहवें अध्याय में लिखा है। लेकिन प्रश्न यह है कि देवता तो हमारा लेकिन सारा सोना- चाँदी यानि वीर्य गिरा आया अमेरिका, लेटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों में । बहुत नाइंसाफी है ....
समुंद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला तो देव-दानव के बीच अमृत को लेकर युद्ध छिड़ गया। ईश्वर की इच्छा थी कि अमृत देवताओं को मिले, ताकि सबका कल्याण हो सकें। इसलिए जनकल्याण के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और दानवों को माया में डालकर अमृत देवताओं को पिलाया।
जब भगवान ने मोहिनी रूपी नारी का रूप धरा तो उसकी महिमा अलौकिक थी। उस रूप पर स्वयंं शिव भी मोहित हो गए थे। भगवान शिव ने जब उनसे मोहिनी रूप के बारे में पूछा तो विष्णु ने उन्हें इसकी सत्यता से अवगत कराने के लिए एक बार फिर वहीं रुप धरकर शिव-पार्वती और उनके गणों के सामने सुंदर उपवन में आए। तब भगवान शिव उस मोहिनी रुप के मायाजाल में ऐसे पड़ें की, उन्हें लोकलज्जा का ध्यान और मां पार्वती की सुध भी ना रहीं।
फिर उस मोहिनी के पीछे भागने लगे, जब शिव ने मोहिनीरुपी नारी को पकड़ा तो शिव की काम शक्ति बहुत तीव्र थी, शायद कामदेव भी उनके सामने ना ठहरे, लेकिन जैसे ही मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने अपने को शिव से छुड़ाया तो शिव ने उन्हें फिर पकड़ने की चेष्टा की। इसी क्रम में भगवान शिव का वीर्य धरती पर गिर गया और जहां-जहां उनका वीर्य गिरा, वहां-वहाँ सोने-चाँदी की खान बन गई। इस तरह सोने-चाँदी में भी शिवजी का अंश है।
यीशु मसीह के नाम से उद्धार पायें, वो किसी धर्म का नहीं बल्कि समस्त मानव जाती का प्रभु है