बाइबल में सृस्टि की उत्पती से लेकर सृस्टि के अंत तक कि सारी जानकारी मिलती है। परंतु ये जानकारी रहस्यमयी तरीके से संकेतों मैं छुपी हुई है जिसे वर्तमान समय मैं technology की सहायता से खोजना आसान हो गया है।
संसार का ऐसा कोई सवाल नही जिसका जवाब बाइबल में न हो। 

आइये देखते हैं बाइबल संसार और मानव जाति की उत्पत्ति और अंत के बारे में क्या बताती है।

बाइबल देखने में एक पुस्तक है पर यह 66 किताबों को एकसाथ जोड़ने से बना एक संग्रह है। इन 66 किताबों को लगभग 1600 सालो के दौरान लिखा गया और 40 विभिन्न लोगों ने परमेश्वर से प्रेरणा पाकर इनको लिखा। अद्भुद तरीके से सभी लेखक एक ही परमेश्वर के विषय में बताते हैं और इनमें आपस में कोई मतभेद नहीं है जो लगभग असंभव बात है और अपने आप में एक चमत्कार है।

बाइबल की सबसे पहली पुस्तक यानी उत्पति इसकी पहली आयत कहती है आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की और दूसरी आयत कहती ही पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी तथा भूमि गहरे जल में डूबी हुई थी और पृथ्वी पर कोई प्रकाश भी न था। 

पहली आयत में पृथ्वी और सृष्टि के बनाये जाने का विवरण है लेकिन दूसरी आयत मैं पृथ्वी के बंजर और वीरान होने का दृश्य दिखता है। आगे ध्यानपूर्वक पढ़ने पर पता चलता है कि प्रकाश को पृथ्वी पर आने से परमेश्वर के द्वारा रोका गया था जिसके कारण पृथ्वी अंधकार में पड़ी थी। 

यहां आपको बता दें बाइबल को कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है इसलिए किसी भी शब्द का अर्थ निकालने के लिए सबसे बेहतर विकल्प है original भाषा का शब्द देखकर खुद उसके अर्थ check करना। इसही तरीके से bible स्कॉलर्स study और रिसर्च करते हैं।

अब ये सवाल उठता है परमेश्वर के द्वारा बनाई गई पृथ्वी बेडौल और सुनसान क्यो पड़ी थी ? और परमेश्वर ने प्रकाश को पृथ्वी पर पोहुचने से क्यो रोक दिया था।

क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यों कहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है। *यशायाह 45 : 18*

इसका जवाब हम आगे देखेंगे।

लेकिन इस से पहले हम जान लेते हैं कि पूर्वकाल मैं जीवन कैसा था और उस समय के मनुष्य और जीव जंतु कैसे थे।

वैज्ञानिकओं के अनुसार पृथ्वी पर लाखों साल पहले से जीवन था। बड़े बड़े डाइनासोर के कंकाल इस बात के सबूत हैं। लेकिन एक उल्का पिंड के पृथ्वी पर टकराने के कारण डाइनासोर समाप्त हो गए और पृथ्वी लंबे समय तक जमी रही जिसे शीत युग कहते हैं। और ये शीत युग इतनी तेज़ी से आया कि जीवो को संभलने का मौका भी नही मिला, कुछ जानवरो के अवशेष मिले जिनके मुह में घास पड़ी हुई थी और वह ऐसे ही जम गए।

बाइबल के अनुसार हमारी वर्तमान पृथ्वी पर आज जो जीवन है, उस से पहले भी पृथ्वी पर जीवन था और वह जीवन ज़्यादा समृद्ध था और उस समय के प्राणियों का जीवनकाल कहीं ज़्यादा समृद्ध और लंबा था या संभवतः उनको अमरत्व प्राप्त था। इसी दशा में पृथ्वी लाखों या करोड़ो साल रही।

वैज्ञानिकों को भीमकाय मनुष्यों के कंकाल मिले हैं जोकि लाखों साल पुराने है और जिनका आकार वर्तमान मनुष्यों से दो या 3 गुना ज्यादा है, जिससे ये साबित होता है कि पूर्वकाल में दानव आकार के मनुष्य मनुष्य रहते थे।

विज्ञान के अनुसार dianosor युग का अंत आकाश से आई एक उल्का के टकराने से हुआ। पर बाइबल इस विषय में क्या कहती है?

जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे? अय्यूब 38:4,7

इस आयत के अनुसार जब परमेश्वर ने पृथ्वी बनाई तब स्वर्गदूत आनंद कर रहे थे यानी स्वर्गदूत पहले बनाये गए थे। यहां पर ध्यान दें ये आत्मिक क्षेत्र है इसलिए इसमें समय की गणना हम नहीं कर सकते। क्योंकि लिखा है

हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं। 2 पतरस 3:8

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अब हम आते हैं पहले सवाल के जवाब पर।


बाइबल बताती है पूर्व काल में पृथ्वी और इसपरके सभी प्राणियों का सारा नियंत्रण परमेश्वर के द्वारा बनाये गए सर्वश्रेष्ठ स्वर्गदूत ल्युसिफर के पास था। ल्युसिफर के अधीन सभी स्वर्गदूत थे और पृथ्वी पर का सारा नियंत्रण इस ही अग्रणी स्वर्गदूत के पास था। ल्युसिफर का अर्थ होता है प्रकाश रखने वाला।

परमेश्वर ने ल्युसिफर को वो गुण दिए जो किसी और स्वर्गदूत के या सृस्टि मैं किसी और के पास नहीं थे।

ल्युसिफर का काम था सारी पृथ्वी पर परमेश्वर की महिमा करना और सृष्टि के सभी जीवों को परमेश्वर के प्रेम और उनके सभी गुणों से अवगत कराना।

पर बाइबल बताती है कि कालांतर में एक ऐसा समय आया जब ल्युसिफर अपने गुणों और श्रेष्ठता के कारण घमंड से भर गया और उसने परमेश्वर के एक तिहाई स्वर्गदूतों के साथ मिलकर परमेश्वर से विद्रोह किया । ल्युसिफर चाहता था कि पृथ्वी और उसके सभी जीव परमेश्वर की नही बल्कि ल्युसिफर की महिमा करें। 

क्योंकि परमेश्वर सिद्ध और पवित्र है इसलिये कोई भी या कुछ भी जिसमे अशुद्धता या किसी भी प्रकार का curroption हो वो परमेश्वर के साथ नही रह सकता । इसलिये परमेश्वर ने ल्युसिफर को स्वर्ग से पृथ्वी पर पटक दिया और ल्युसिफर तथा उसके साथ के सभी विद्रोही स्वर्गदूतों के लिए दंड के तौर पर नर्क में उसे डाला जहां पर आग और गंधक थे। और परमेश्वर ने क्रोध में पृथ्वी को भी एक क्षण में बंद कर दिया और पृथ्वी जलमग्न होकर जम गई। इस ही स्थिति में पृथ्वी संभवतः लाखों सालों तक रही।
तत्पश्चात परमेश्वर का क्रोध शांत हुआ और परमेश्वर का आत्मा जलमग्न पृथ्वी के ऊपर पर मंडराया। इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी को पुनः शुरू किया और एक एक करके परमेश्वर ने सभी जीवों और वस्तुओं को बनाया। 

जब सब वस्तुए बन गयी तब परमेश्वर ने मनुष्य को खुदके स्वरूप और समानता मैं बनाया। परमेश्वर ने मनुष्य को हर वो  गुण दिए जो खुद परमेश्वर में थे। प्रेम, दया, करुणा, कृपा बुद्धि और इन सभी गुणों के साथ साथ परमेश्वर ने मनुष्य को स्व इच्छा दी यानी मनुष्य को अपने चुनाव खुद करने की पूरी स्वतंत्रता दी । सिद्ध परमेश्वर हमारे हर निर्णय को पहले से जानने के बाद भी कभी भी मनुष्य के किसी निर्णय में दखल नही दे सकते थे और न ही मनुष्य को बाध्य कर सकते थे । किसी भी विषय में परमेश्वर हमारे द्वारा किये गए चुनाव के आधार पर ही हमारे साथ बर्ताव करते हैं।

परमेश्वर चाहते थे कि मनुष्य अपनी स्व इच्छा तथा पूरे दिल से परमेश्वर से प्रेम करे और परमेश्वर के साथ संगति रखे । परमेश्वर ने पहले मनुष्य यानी आदम को जब बनाया तब उसमें मृत्यु या बीमारी नही थी और पृथ्वी भी आशीषित थी, पेड़ पौधे कभी मुरझाते न थे तथा जानवर भी मनुष्यो के साथ निडर रहते थे और एक दूसरे को नही खाते थे।

परमेश्वर ने प्रथम मनुष्य की इच्छा और चुनाव को जांचने के लिए आज्ञा पालन का एक छोटा सा test दिया। 

परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग से निष्कासित स्वर्गदूत ल्युसिफर इस समय तक पृथ्वी पर मौजूद था जो अपने दंड के कारण परमेश्वर तथा उनकी सारी सृष्टि से घृणा करता था। परमेश्वर ने मनुष्य के खाने के लिए बोहुत सारे फल बनाये थे । पर मनुष्य की आज्ञाकारिता और समर्पण को परखने के लिए परमेश्वर ने आदम को एक आज्ञा दी कि वह भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाए। 

आदम को भी उस वृक्ष का फल खाने की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि और भी सब तरह के फल मौजूद थे। 

इस समय तक परमेश्वर आदम के लिए एक सहायक हव्वा यानी स्त्री को भी बना चुके थे। 

जब ल्युसिफर यानी शैतान ने देखा कि परमेश्वर ने पृथ्वी और उसपर की सभी चीजों पर अधिकार रखने के लिए आदम और हव्वा को बनाया है तब शैतान ने आदम हव्वा को अपने जैसा अयोग्य और दूषित बनाने की मंशा से उनके पास गया और उसने साँप के शरीर मे बसकर हव्वा से कहा कि वह परमेश्वर की आज्ञा के विपरीत जाकर उस वृष का फल खाएं जिसे खाने के लिए परमेश्वर ने मना किया था। 

हव्वा शैतान के बहकावे में आ गयी उसने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी तथा ऐसा ही आदम से भी करवाया। परमेश्वर ने आदम हव्वा को पहले ही ये चिता दिया था जिस क्षण तुम उस वृक्ष का फल खाओगे सही क्षण भर जाओगे। इस मृत्यु का अर्थ था अमरत्व खत्म हो जाना तथा आत्मिक मृत्यु और परमेश्वर से दूरी। क्योकि किसी भी प्रकार की अपवित्रता परमेश्वर के साथ नही रह सकती थी।

परमेश्वर मनुष्य जाति या आदम हव्वा से प्रेम करते थे इसलिए परमेश्वर ने पहले से ही मनुष्य जाति के उद्धहर की योजना बना रखी थी। 

परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने के बाद मनुष्य परमेश्वर से दूर हो गया और इसका फायदा शैतान ने उठाया। शैतान ने मनुष्य को और ज़्यादा बुरा बना दिया और समय के साथ मनुष्य जाति में बुराइयां अधिकाधिक बढ़ती गयी। 

जैसे जैसे पीढियां आगे बढ़ती गयी मानव जाति परमेश्वर को भूलती गयी और शैतान की ओर बढ़ती गयी। मनुष्यो के स्वभाव में बुराई घर कर गयी। शैतान ने मनुष्यों को परमेश्वर से दूर बनाये रखने के लिए परमेश्वर के बोहुत सारे विकल्प दिए और मनुष्य पेमेश्वर की बजाए उनकी बनाई चीजों और जीवो की उपासना करने लगा। 

मनुष्यो के मन में परमेश्वर का ज्ञान हमेशा रहा और उनकी बनाई अदभुद सृस्टि से परमेश्वर की पहचान करना मुश्किल नही था परंतु मनुष्य जाति हमेशा अनभिज्ञ बनी रही और परमेश्वर को जानने का प्रयास नहीं किया। मनुष्य जाति के ऐसे स्वभाव के कारण परमेश्वर मनुष्य जाति को एक विद्रोही जाती की तरह देखते हैं। 

क्योकि मनुष्य जाति ने परमेश्वर के पीछे न गयी न परमेश्वर की खोज की बल्कि इसके विपरीत शैतान के पीछे गए उसके द्वारा सिखाये गए काम किये, हत्या बुराई, स्वभाव के विपरीत व्यवहार, लालच, घृणा आदि। इसीके परिणाम स्वरूप मनुष्यो को भी वही सज़ा मिलनी थी जो शैतान को मिली यानी अनंतकाल का नर्क।

परमेश्वर मानवजाति से बेहद प्यार करते थे इसलिए परमेश्वर मानवजाति के उद्धार की योजना सृष्टि की शुरुआत से पहले ही बना ली थी। यहां ये गौर करना ज़रूरी है की परमेश्वर सबकुछ पहले से पता होने के बावजूद भी किसी भी कार्य में दखल नही दे सकते क्योंकि सिद्धता या perfection परमेश्वर का एक गुण है। 

सो परमेश्वर ने मानव जाती के उद्धहर की योजना के अंतर्गत अपने वचन को देह धारण करवाई क्योकि खुद परमेश्वर के इलावा और कोई योग्य न था जो इस कार्य को कर सके। परमेश्वर ने समय समय पर उनसे प्रेम रखने वाले लोगों के द्वारा भविष्यवाणी करके ये प्रकट किया उद्धारकर्ता कैसा होगा और वो कैसे आएगा तथा वो किस प्रकार से मानव जाति को श्राप मुक्त करेगा।

अब परमेश्वर के द्वारा भेजे गए मसीहा यानी यीशु मसीह को वोहि सबकुछ दोबारा करना था जो प्रथम आदम नही कर पाया और विफल हो गया। 
यीशु मसीह को परमेष्वर का पुत्र होना था क्योंकि प्रथम आदम भी परमेष्वर के द्वारा ही सृजा गया था।
यीशु मसीह को आदम केसमान ही के पवित्र और निर्दोष जीवन जीना था जोकि यीशु मसीह ने बखूबी किया।

एक तरफ तो यीशु मसीह को आदम की गलती को ठीक करना था और दूसरी तरफ आदम की और तब से लेकर वर्त्मान समय तक मनुष्यो के सभी पापों की सज़ा भुगतनी थी 

To be continued.